Friday, April 19, 2024
115 कुल लेख

Anand Kumar

Tread cautiously, here sentiments may get hurt!

क्या डिंपल बाबा के चेहरे से नक़ाब उतर गया है? सोचिएगा ज़रूर!

'इंडिया टुडे' ने जिस इंटरव्यू को प्रसारित नहीं किया उसके बीच से ही शायद ये तस्वीरें निकल कर आई हैं। इनमें जो भंगिमा है वो किसी खलनायक के 'आओ कभी हवेली पर' वाले रूप की ही याद दिलाती हैं।

‘काशी’ पर लिखा गया साहित्य: काशीनाथ सिंह के अलावा भी है बहुत कुछ

किताबों में रुचि होने की वजह से हमें वाराणसी के साथ-साथ 'काशी का अस्सी' भी याद आ जाती है। एक वामी मजहब के लेखक की इस किताब को पढ़ने के बाद शायद ही कोई उर्दू भाषा से प्रेरित गाली होगी, जिसे सीखना बाकी रह जाता होगा।

जब तुर्की में कमाल पाशा ने बुर्के पर प्रतिबंध लगाने के लिए अपनाया था नायाब तरीका

अरबी अक्षर इस्तेमाल करने के बदले 1 नवम्बर 1928 को कमाल पाशा ने तुर्की वर्णमाला भी लागू कर दी और इसके साथ ही तुर्की ज़ुबान को अरबी में लिखना बंद करवा दिया।

लॉस्ट इन ट्रांसलेशन: वामियों का ‘एलिटिस्ट’ अभियान और भारत की आम जनता

वो इंडिया के लोग भारत में आकर, किसी और माहौल, किसी और भाषा में, किसी और विषय की बात कर रहे हैं। बेगुसराय की जनता अपना मत देने के लिए बटन दबाती है। दुआ है कि इस 'दबाने' में भी कहीं उन्हें अपने प्रत्याशी के विरोध के स्वर को दबाया जाना न समझ आ जाए!

लोकतंत्र का इतिहास, जूलियस सीज़र और केजरीवाल की कम्बल कुटाई

दबी जबान में चर्चा हो रही है कि बंद कमरे में कुछ लोगों ने मफ़लर वाले के साथ वो कर दिया है जो कम्बल उढ़ा कर किया जाता है। कविराज विष-वास सोशल मीडिया पर इसपर कटाक्ष भी करते दिखे। यकीन नहीं होता, इतिहास खुद को दोहराता है, ऐसा सुना था, मगर इतनी समानताएँ?

जलते जहाज पर 900 टन पानी डालकर आग बुझाने की हुई थी कोशिश: अग्निशमन सप्ताह

जहाज में लदा हुआ कपास, जलता हुआ, आग की बारिश की तरह आस पास की झुग्गी झोपड़ियों पर बरसा। धमाके से दो स्क्वायर किलोमीटर का तटीय इलाका जल उठा।

प्रतीकों का रसूलीकरण: अगर इशरत जहां की जाँच हुई, तो साध्वी प्रज्ञा के आरोपों की जांच में दिक्कत क्या है?

पीठ पर गोली लगने की वजह से जेहादियों के हाथ मारे गए करकरे को सवालों से परे क्यों होना चाहिए? अगर इशरत जहां के आतंकियों के साथ मारे जाने पर भी जाँच आयोग बिठाए जाते हैं, तो साध्वी प्रज्ञा के आरोपों की जांच में दिक्कत क्या है?

मतदान कर्तव्य ही नहीं, अब नैतिक बाध्यता भी: मुट्ठी भर ‘अभिजात्यों’ से माइक और लाउडस्पीकर छीनने का मौका

आजादी के सात दशकों में हिन्दुओं के #मानवाधिकार छीनते रहने वालों का अट्टहास हर ओर तो सुनाई देता है! ऐसे अट्टहास हमें सुनाई इसलिए देते हैं क्योंकि उन्होंने यूनिवर्सिटी, समाचारपत्र, रेडियो, टीवी चैनल जैसे संसाधनों पर कब्ज़ा कर रखा है। मतदान इन मुट्ठी भर अभिजात्यों से...

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