Friday, April 19, 2024
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Arvind Sharma

देशहित में कॉन्ग्रेस को वोट देकर 10% सीटें जिताइए, आपको राफेल की कसम है

जैसे शेयरिंग सवारियाँ ढोने वाला ऑटो ड्राईवर, आवश्यकतानुसार ट्रैफिक पुलिस वाले की मुट्ठी गर्म कर देता है, और प्रभु का तीसरा नेत्र भी इस दुर्लभ संयोग को देखने से वंचित रह जाता है। वैसे ही मोदी ने बंद मुट्ठी करके ₹15 हजार करोड़ के दो स्पेशल नोट जूनियर अम्बानी की जेब में डाल दिया होगा।

‘चौकीदार चोर है’ कहने वाले राहुल गाँधी को 23 मई के बाद चौकीदारों से हो जाएगी ‘दहशत’

'चौकीदार' को 'चोर' कौन कह रहा है ? वही जो '5000 करोड़ रुपए' के 'नेशनल हेराल्ड केस' में ख़ुद अपनी माताजी सहित जमानत पर चल रहा है, जिनके जीजाजी देश के सबसे बड़े 'भू-माफिया' हैं, जिनके पिताजी की 'बोफोर्स घोटाले' में संलिप्तता थी?

मोदी… वाजपेयी नहीं हैं – मर्यादा की LoC और आधी रात घर में घुसकर मारने वाले में अंतर है

जब वाजपेयी सरकार गई तो उस वक्त अटल जी का घुटनों का ऑपरेशन हो चुका था, वे ठीक से चल भी नहीं पाते थे। लेकिन अभी का जो नेता है उसका दिल, दिमाग और घुटना एकदम ठीक और ठिकाने पर हैं, इसीलिए वह हवाई जहाज की खड़ी सीढ़ियों को भी दौड़ते हुए चढ़ जाता है।

अभी असली मजे ‘भक्त’ ही ले रहे हैं, बाकियों को आ रही है खट्टी डकारें

"भेन मायावती तो सुषमा स्वराज के बाद देश की दूसरी सबसे ग़जब की वक्ता हैं हीं, इसलिए उनकी बातेंऊँ सारी सही हैं, लेकिन एक सही बात आज हमहूँ कहि दे रहे हैं, चाहें तो लिख कें ले लेओ कि दुनिया इतें की वितें हे जाय, आवेगो तो मोदीअई"

30 साल में यह पहला ऐसा चुनाव है, जब PM के अलावा कोई और PM का उम्मीदवार नहीं

ऐसे में सिर्फ एक व्यक्ति बचता है जो अभी प्रधानमंत्री है, और आगे भी हर हाल में प्रधानमंत्री बनना चाहता है। जिसके पास न अब सत्ता और षड्यंत्रों के अनुभवों की कमी है, न संसाधनों की, न समर्थकों की, न ऊर्जा की, न मुद्दों की और न ही दिलेरी की।

लुटियन के दलालों को बस यही बात बहुत चुभती है

विशेषकर अंग्रेज़ी पत्रकार, एनजीओ, लेखक, चिंतक, बुद्धिजीवी और विचारक टाइप लोग मोदी से खफ़ा हैं, क्योंकि इस व्यक्ति को लुटियन दिल्ली में, इंडिया हैबिटैट सेंटर, इंडिया इंटरनेशनल सेंटर जैसे ठिकानों में अड्डा ज़माने वाले लोगों से कोई हमदर्दी नहीं है।

मठाधीश पत्रकारों को औकात दिखाती सोशल मीडिया

रवीश कुमार का तो यह हाल है कि वे प्रनॉय रॉय के घर में तीसरी सबसे पुरानी चीज हो चुके हैं, लेकिन तब भी उनकी नौकरी छोड़ नहीं सकते क्योंकि उन्होंने इतना 'यश' कमाया है कि यहाँ से जाने के बाद उन्हें शायद ही कोई रोजगार दे।

संपादक के नाम पत्र: छेनू तक मेरा खत पहुँचा दीजिए

बात दरअसल यह है कि रविश कुमार जैसे लोग पत्रकारिता के उस युग से वास्ता रखते हैं, जब खबरें नहीं फतवे दिए जाते थे, यानि कह दिया सो कह दिया, न खाता न बही-जो छेनू ने कह दिया वही सही।

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