Tuesday, November 19, 2024
Home Blog Page 5195

बालाकोट के बाद वो लड़ाई जो भारतीय नौसेना ने लड़ी: कहानी गायब पाकिस्तानी सबमरीन की

बालाकोट में भारतीय वायुसेना द्वारा एयर स्ट्राइक किए जाने के बाद कई ऐसी घटनाएँ हुईं, जो आमजनों की नज़र से तो दूर रहीं लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले में इन घटनाओं ने भारत की रणनीति पर असर डाला। पुलवामा हमले के तुरंत बाद भारत ने अपनी नौसेना को उस दौरान चल रही एक एक्सरसाइज से हटा लिया और इसे पाकिस्तान नियंत्रित जलक्षेत्र के आसपास लगा दिया। इसमें न्यूक्लियर कन्वेंशनल सबमरीन्स भी शामिल थे। भारतीय नौसेना के इस आक्रामक एक्शन से पाकिस्तान को ऐसा लगा था कि भारत पानी के रास्ते कोई कार्रवाई कर पुलवामा में वीरगति को प्राप्त 40 जवानों का बदला ले सकता है।

भारत ने पाकिस्तान की सेना के क्रियाकलापों पर कड़ी नज़र रखी थी लेकिन फिर भी हमारी वायुसेना ने पाया कि पाकिस्तान का सबसे एडवांस सबमरीन पीएनएस साद अचानक से गायब हो गया। पीएनएस साद अगोस्टा क्लास सबमरीन है। दरअसल, ऐसा पाकिस्तान ने जानबूझ कर किया था। पाक ने ‘Air Independent Propulsion’ तकनीक का प्रयोग कर के ऐसा किया था। इस तकनीक का प्रयोग कर के कोई एडवांस सबमरीन किसी नॉर्मल सबमरीन के मुक़ाबले काफ़ी ज्यादा देर तक पानी के भीतर रह सकता है। इसके बाद भारतीय नौसेना पाकिस्तान द्वारा किसी भी प्रकार की कार्रवाई की संभावना को लेकर ख़ुद को तैयार कर रही थी।

एएनआई में अजीत के दूबे के लेख के अनुसार, कराची में जिस आखिरी लोकेशन से पीएनएस साद गायब हुआ था, वहाँ से उसे गुजरात के तटीय स्थल तक पहुँचने में 3 दिन लगते और अगर वो मुंबई स्थित वेस्टर्न फ्लीट के मुख्यालय तक पहुँचने की चेष्टा करता तो उसे 5 दिन लगते। अगर सच में ऐसा होता तो यह देश की सुरक्षा के लिए ख़तरा हो सकता है, इसीलिए नौसेना ने सभी तैयारियाँ शुरू कर दी थीं। एंटी-सबमरीन वारफेयर स्पैशलिस्ट वॉरशिप्स और एयरक्राफ्ट्स को तैनात कर दिया गया था, ताकि गायब पाकिस्तानी पीएनएस साद की स्थिति का पता लगाया जा सके।

जहाँ-जहाँ उसके जाने की आशंका थी, वहाँ-वहाँ नौसेना ने नज़र रखनी शरू कर दी। अगर उसने भारतीय जलक्षेत्र में प्रवेश किया (ऐसा सोच कर) तो उसे बाहर लाने के लिए हरसंभव कार्रवाई की गई। गुजरात और महाराष्ट्र के तटीय क्षेत्रों पर ख़ास निगरानी रखी गई। स्कॉर्पीन क्लास सबमरीन आईएनएस कलवरी को भी इस कार्य के लिए लगाया गया और नौसेना ने हर वो कोशिशें की, जिससे पाकिस्तान को एहसास हो जाए की भारतीय जलक्षेत्र में उसने कोई भी गड़बड़ी की तो उसे उसका खामियाज़ा भुगतना पड़ेगा। पीएनएस साद को खोजने के लिए सैटेलाइट्स का भी प्रयोग किया गया और जब कुछ दिन बीत गए तब नौसेना को लगा कि इसे पाकिस्तान द्वारा जानबूझ कर छिपाया गया है।

21 दिनों के बाद भारतीय नौसेना ने पीएनएस साद को पाकिस्तान के पश्चिमी क्षेत्र में लोकेट किया। इसे पाकिस्तान ने इसीलिए छिपाया था, ताकि बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद उत्पन्न हुई युद्ध वाली परिस्थितियों में सही समय पर इसका प्रयोग किया जा सके। जैसे ही तनाव बढ़ा, भारत ने उत्तरी अरब सागर में 60 वॉरशिप तैनात कर दिए थे, जिसमें एयरक्राफ्ट कैरियर आईएनएस विक्रमादित्य भी शामिल था। भारतीय नौसेना के आक्रामक रुख से डरे पाकिस्तान ने अपनी नौसेना को मकरन तट तक ही सीमित रखा। उसे खुले समुद्र में निकलने की हिम्मत ही नहीं हुई। ये वो ‘लड़ाई’ थी, जो दुनिया की नज़रों से परे चली।

सिद्धू, राजनीति छोड़ो: पंजाब में लगे पोस्टर, ‘गुरू’ की मुश्किलें बढ़ीं

लुधियाना की जनता सिद्धू को उनका वादा याद दिला रही है। जब स्मृति ईरानी ने दूसरी बार अमेठी के राजनीतिक अखाड़े में राहुल गाँधी को चुनौती दी थी तो कॉन्ग्रेस नेता और पंजाब सरकार में मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू ने उनकी खिल्ली उड़ाते हुए कहा था कि अगर वह (स्मृति) राहुल गाँधी को हरा ले गईं तो सिद्धू राजनीति छोड़ देंगे। अब लुधियाना की पखोवाल रोड पर उन्हें अपना ‘वचन’ निभाते हुए इस्तीफा देने की माँग करने वाले पोस्टर लगने लगे हैं।

अप्रैल में रायबरेली में सिद्धू ने चुनौती दी थी कि अगर अमेठी के गढ़ में स्मृति राहुल गाँधी को हरा दें तो वह (सिद्धू) राजनीति छोड़ देंगे। और अब पोस्टरों पर लिखा जा रहा है, “आप राजनीति कब छोड़ रहे हैं? अपने शब्दों पर टिके रहने का समय आ गया है। हम आपके इस्तीफे का इंतज़ार कर रहे हैं।” हालाँकि यह साफ नहीं हो पाया है कि यह पोस्टर किसने सड़क से लगी दीवारों पर चिपकाए हैं। इससे पहले मोहाली में भी ऐसे पोस्टर सामने आ चुके हैं।

सिद्धू को हाल ही में मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने स्थानीय सरकार, पर्यटन, सांस्कृतिक मामले और म्यूज़ियम जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालयों से हटा कर ऊर्जा एवं नवीन ऊर्जा स्रोत मंत्रालयों का प्रस्ताव दिया था। इसे उनके पर कतरे जाना माना जा रहा था। लेकिन दो हफ्ते बीत जाने के बाद भी सिद्धू ने अब तक इस मंत्रालय का प्रभार नहीं संभाला है। माना जा रहा है कि उनकी माँग इस मंत्रालय के साथ प्रदेश कॉन्ग्रेस का अध्यक्ष बनाए जाने की है।

‘एसपी मुखर्जी ने इस्लामिक अध्ययन शुरू करवाया था, आज की BJP को देखकर आत्महत्या कर लेते’

डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी की पुण्यतिथि के अवसर पर पश्चिम बंगाल के तृणमूल कॉन्ग्रेस मंत्री शोभनदेब चटर्जी ने एक सभा का आयोजन कर बीजेपी पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि अगर आज डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी जीवित होते तो वो बीजेपी की आज की राजनीति को देखकर आत्महत्या कर लेते। वे भारतीय जनसंघ के संस्थापक थे।

इंडिया टुडे टीवी से हुई बातचीत में चटर्जी ने कहा, “बीजेपी अपनी विभाजनकारी राजनीति के अनुकूल डॉ मुखर्जी को एक स्थानीय सांप्रदायिक नेता के रूप में पेश करने की कोशिश कर रही है। मुखर्जी बंगाल के एक महान पुत्र थे, जिन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर के रूप में इस्लाम का अध्ययन शुरू करवाया था और इसलिए उनकी वास्तविक विरासत को लोगों के बीच उजागर किया जाना चाहिए। अगर आज मुखर्जी जीवित होते तो उन्हें बीजेपी की राजनीति पर शर्म आती।”

इसके आगे उन्होंने कहा, “आज जिस तरह की विभाजनकारी राजनीति बीजेपी कर रही है, उससे श्यामा प्रसाद मुखर्जी बेहद आहत होते और शायद वो आत्महत्या कर लेते। वह भारत में ऐसी राजनीति कभी नहीं करना चाहते थे। मुखर्जी ने जिस हिंदू धर्म की बात की थी वह हर किसी को साथ लेकर चलने वाला था। हिंदू धर्म का कोई भी व्यक्ति बीजेपी की संकीर्ण राजनीति को नहीं अपना सकता है।”

इससे पहले, बीजेपी ने डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी की पुण्यतिथि के अवसर पर पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू पर निशाना साधा था। बीजेपी के कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने नेहरू द्वारा श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मौत की जाँच का आदेश नहीं देने के फैसले पर सवाल उठाया था।

बंगाल में टीएमसी सरकार दूसरी बार डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जयंती और पुण्यतिथि आधिकारिक रूप से मना रही है। बंगाल के मंत्री शोभनदेब चटर्जी ने सरकार की ओर से कोकरताल श्मशान में मुखर्जी की प्रतिमा के समक्ष श्रद्धांजलि अर्पित की।

‘जनता की माँग के बावजूद नेहरू ने नहीं कराई डॉक्टर मुखर्जी की संदिग्ध मृत्यु की जाँच’

भारतीय जनता पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि उन्होंने श्यामा प्रसाद मुखर्जी की संदिग्ध मृत्यु की जाँच नहीं होने दी। मुखर्जी नेहरू कैबिनेट में इंडस्ट्री एवं सप्लाई मंत्री का कार्यभार संभाल चुके थे। जून 23, 1953 को श्रीनगर में उनकी संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु हो गई थी। आज रविवार (जून 23, 2019) को उनकी पुण्यतिथि के मौके पर नड्डा ने कहा कि पूरा देश चाहता था कि उनकी मृत्यु की जाँच हो, लेकिन नेहरू ने ऐसा नहीं किया। उन्होंने कहा कि इतिहास इस बात का गवाह है कि नेहरू ने जनता की माँग नहीं मानी लेकिन भाजपा उनके बलिदान को कभी नहीं भूलेगी।

बता दें कि इस बार पश्चिम बंगाल सरकार ने भी डॉक्टर मुखर्जी की पुण्यतिथि को मनाने का निर्णय लिया है। ममता बनर्जी ने यह निर्णय लिया कि राज्य सरकार उनकी पुण्यतिथि मनाएगी। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय के एक अधिकारी का मानना है कि तृणमूल को समझ में आ गया है कि देश में हिंदुत्व से जीतने के लिए बंगाली पहचान काफ़ी नहीं है, इसलिए वह अब डॉक्टर मुखर्जी को अपना नेता बताने की कोशिश कर रही है। कोलकाता के केयोरतला बर्निंग घाट पर केंद्र सरकार द्वारा डॉक्टर मुखर्जी की पुण्यतिथि मनाई गई व उनके बलिदान को याद किया गया।

जुलाई 6, 1901 को कोलकाता में जन्में मुखर्जी समूचे जम्मू कश्मीर को बिना किसी शर्त भारत का सम्पूर्ण और अभिन्न अंग बनाने की वकालत करते रहे थे। वे अनुच्छेद 370 को हटाने के लिए संघर्ष करते रहे थे। 1953 में जब वे जम्मू कश्मीर की यात्रा पर निकले, तब उन्हें नज़रबंद कर लिया गया था और उसी दौरान संदिग्ध परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई थी। मुखर्जी ने नेहरू से विवाद होने व जम्मू कश्मीर पर कॉन्ग्रेस से अपनी राय अलग होने के कारण पार्टी से दूरी बना ली थी। उस समय शेख अब्दुल्ला जम्मू कश्मीर के प्रधानमंत्री थे। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी कह चुके हैं कि मुखर्जी नेहरू और अब्दुल्ला के ‘षड्यंत्र’ का शिकार हुए।

जनसंघ के संस्थापक मुखर्जी को भाजपा के अभिभावक के रूप के देखा जाता है क्योंकि जनसंघ ने ही बाद में जाकर भारतीय जनता पार्टी का रूप लिया। मुखर्जी व दीन दयाल उपाध्याय को भाजपा के वैचारिक स्तम्भ के रूप में देखा जाता है और पार्टी उनके आदर्शों पर चलने की बात कहती है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी डॉक्टर मुखर्जी की पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि दी।

’44 AC, 108 पंखे, 464 फैंसी लाइट्स, 35 क़ीमती सोफे: तेजस्वी ने सरकारी फंड से बंगले पर ख़र्च किए करोड़ों’

बिहार के पूर्व उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के उप-मुख्यमंत्री रहते अपने आवास के लिए किए गए इंतजाम बिहार की राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बन रहे हैं। कहा जा रहा है कि देशरत्न मार्ग पर स्थित बंगले में तेजस्वी ने सुख-सुविधा के साजो-सामान पर बेहिसाब ख़र्च किए। उप-मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने अपने द्वारा लगाए उन आरोपों को दुहराया है, जिसमें उन्होंने तेजस्वी के बेहिसाब ख़र्चे को लेकर सवाल खड़े किए थे। मोदी का कहना है कि तेजस्वी ने अपने पद का दुरूपयोग करते हुए ये ख़र्चे किए। उन्होंने दावा किया कि तेजस्वी ने ब्रिज कंट्रक्शन कॉर्पोरेशन से अपने घर में 50 लाख रुपए के फर्नीचर फिट करवाए। उन्होंने यह भी दावा किया कि अपने आवास नवीकरण में भी तेजस्वी ने करोड़ों ख़र्च किए।

बिहार भाजपा के पूर्व अध्यक्ष सुशील कुमार मोदी ने आँकड़ों सहित इन चीजों को गिनाते हुए कहा, “किस नियम के तहत तेजस्वी ने अपने घर में 44 AC (जिनमें से कुछ बाथरूम में भी थे), 35 क़ीमती लेदर सोफे, 464 फैंसी LED लाइट्स, 108 पंखे, क़ीमती बिलियर्ड्स टेबल, दीवालों पर महँगी लकड़ियों के पैनल और इम्पोर्टेड ग्रेनाइट फ्लोरिंग- यह सब लगवाए?” सुशील मोदी ने कहा कि तेजस्वी द्वारा अपने घर में 7 सितारा होटल जैसी सुविधाएँ लगवाने के कारण ही बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन डिपार्टमेंट को मंत्रियों द्वारा इस तरह के ख़र्चे को रोकने के लिए दिशा-निर्देश जारी करना पड़ा, ताकि भविष्य में ऐसा न हो।

सुशील मोदी ने कहा कि अगर तेजस्वी ने अपने बंगले पर बेहिसाब ख़र्चे नहीं किए होते तो शायद सुप्रीम कोर्ट को उन पर बंगला खाली करने के लिए 50,000 का जुर्माना नहीं लगाना पड़ता। हालाँकि, बीसीडी के मुख्य सचिव चंचल कुमार ने इन दावों का खंडन करते हुए कहा कि बीसीडी द्वारा जारी किए गए फंड्स को विभिन्न चीजों के लिए विभिन्न समय ख़र्च किया गया। उन्होंने दावा किया कि जारी किए गए बजट से ज्यादा ख़र्चे नहीं किए गए। उन्होंने कहा कि अगर इन सारे रुपयों को एक साथ ख़र्च किया गया होता तो इसके लिए कैबिनेट या वित्त विभाग की अनुमति लेनी पड़ती। चंचल कुमार ने कहा कि इस सम्बन्ध में कोई जाँच नहीं बैठाई गई है।

बता दें कि चंचल कुमार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के भी मुख्य सचिव हैं। मुख्यमंत्री के विश्वस्त माने जाने वाले चंचल कुमार पिछले कई वर्षों से इसी पद पर बने हुए हैं। चंचल द्वारा तेजस्वी को क्लीन चिट देने के पीछे नीतीश कुमार और भाजपा के बीच कड़वाहट के रूप में भी देखा जा रहा है। तेजस्वी का देशरत्न मार्ग पर स्थित बंगला मुख्यमंत्री नीतीश के आधिकारिक निवास के बगल में ही स्थित था। ये बंगला तेजस्वी को उप-मुख्यमंत्री रहते जनवरी 2016 को आवंटित किया गया था। भाजप-जदयू की फिर से सरकार बनने के बाद 2017 में इस बंगले को सुशील मोदी को आवंटित किया गया।

तेजस्वी यादव इस बंगले को खाली करने के लिए तैयार नहीं थे और मामला अदालत तक पहुँचा था। अंततः, सुप्रीम कोर्ट ने तेजस्वी पर जुर्माना लगाते हुए उन्हें इस बंगले को खाली करने का आदेश दिया था। उससे पहले पटना हाईकोर्ट ने भी उन्हें बंगला खाली करने का आदेश दिया था लेकिन तेजस्वी उस निर्णय के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट पहुँच गए थे।

‘बड़ी मजबूरी’ में मनोज तिवारी को जान से मार दूँगा, जरूरत पड़ी तो मोदी को भी रास्ते से हटा दूँगा’

दिल्ली भाजपा अध्यक्ष और मशहूर गायक व अभिनेता मनोज तिवारी को जान से मारने की धमकी मिली है। एक एसएमएस में मिली इस धमकी में धमकी देने वाले ने यह भी कहा है कि उसे तिवारी को मारने का निर्णय ‘बड़ी मजबूरी’ में लेना पड़ रहा है, जिसके लिए वह स्वयं बहुत दुखी है। मनोज तिवारी ने मामले की शिकायत दिल्ली पुलिस से की है, जो इस शख्स को तलाशने में जुट गई है। तिवारी ने समाचार एजेंसी से बात करते हुए बताया कि हिंदी में भेजे गए इस संदेश को भेजने वाले ने अपना नाम नहीं बताया है।

इस शख्स ने SMS में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी लपेटते हुए कहा कि अगर जरूरत हुई, तो उन्हें भी ‘रास्ते से हटा दिया जाएगा’। यह संदेश तिवारी को शुक्रवार दोपहर 12.52 बजे मिला था और उन्होंने इसे शनिवार को पढ़ा। इससे पहले भाजपा के ही पश्चिमी दिल्ली के सांसद प्रवेश वर्मा को भी दो दिन पहले ही किसी ने जान से मार देने की धमकी दी थी। उन्होंने दिल्ली पुलिस के कमिश्नर अमूल्य पटनायक को पत्र लिखकर इस बारे में जानकारी दी थी। प्रवेश वर्मा का कहना था कि वह दिल्ली में मस्जिदों के अवैध निर्माण के खिलाफ आवाज़ उठा रहे हैं, इसीलिए उनको निशाना बनाया जा रहा है।

नहीं उतरा EVM का ‘भूत’, राहुल गाँधी करेंगे आंदोलन, चुनाव का बहिष्कार

2019 के लोकसभा नतीजों से झटका खाने के बावजूद राहुल गाँधी सुधरते नहीं नज़र आ रहे हैं। पहले योग दिवस पर वाहियात ट्वीट करने के कारण उनकी आलोचना हुई, अब एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि वह ‘EVM हैकिंग’ पर मोदी सरकार के खिलाफ राष्ट्रव्यापी आंदोलन चलाने की तैयारी में जुटे हैं। संडे गार्जियन की खबर के अनुसार कॉन्ग्रेस के (इस्तीफा देने के बाद बरकरार) अध्यक्ष राहुल केंद्र सरकार के खिलाफ असहयोग आंदोलन चलाना चाहते हैं।

संडे गार्जियन के अनुसार कॉन्ग्रेस के डाटा एनालिटिक्स मुखिया प्रवीण चक्रवर्ती की एक रिपोर्ट पढ़ने के बाद से राहुल गाँधी यह मानने लगे हैं कि कॉन्ग्रेस EVM में गड़बड़ी के चलते ही हारी। अख़बार का दावा है कि राहुल गाँधी ने बैलेट से चुनाव कराने माँग उठाने के साथ विधानसभा निर्वाचन के बहिष्कार का निर्णय लिया है। लेकिन पार्टी के वरिष्ठ नेता उनकी इस योजना से सहमत नहीं दिख रहे हैं। उनके हिसाब से अगर कॉन्ग्रेस बहिष्कार करती है तो उसकी बची-खुची जगह भी क्षेत्रीय दलों के हाथों में चली जाएगी। लेकिन राहुल गाँधी अपनी योजना पर अड़े हैं।

राहुल की माँ और यूपीए अध्यक्षा सोनिया गाँधी का समर्थन भी राहुल गाँधी की इस योजना को मिलता हुआ नहीं लग रहा है। उनके सलाहकारों की भी यह राय रिपोर्ट में बताई गई है कि इस कदम से EVM की बजाय कॉन्ग्रेस की ही विश्वसनीयता दाँव पर होगी। कॉन्ग्रेस इससे पहले लोक सभा निर्वाचन में भी EVM पर हमले कर के देख चुकी है। एक संदिग्ध ‘एक्सपर्ट’ के इस्तेमाल से भी उसे कोई फायदा नहीं हुआ था। आज भले सोनिया गाँधी EVM पर सवाल उठाने में हिचकिचा रहीं हों, लेकिन अतीत में वह भी पीछे नहीं रहीं हैं

‘कबीर सिंह’ में जिनको मर्दवाद दिख रहा है: नकली समीक्षकों की समीक्षा

एक चीज़ होती है “टाइटल” जिसका मलतब होता है कि परोसी जा रही चीज़ का बहुत बड़ा प्रतिशत टाइटल में समाहित है। “कबीर सिंह” नाम से पता तो चल रहा होगा कि कबीर सिंह नाम का किरदार। उसी के इर्द गिर्द होगा जो भी होगा। बाकी सब साइड में ही रहेंगे। ठीक ना!

अर्जुन रेड्डी की रीमेक है और उसके मुकाबले उन्नीस ही है। खैर… इधर कुछ मिलने वालों ने इस फिल्म के रिव्यू भेजे जिन्हें पढ़कर दिमाग हिल गया। जिसमें से सबसे ज़्यादा आकर्षित किया मुझे स्त्री-विरोधी शब्द ने। एक तो मुझे ये समझ नहीं आता कि आजकल हर किसी चीज़ में ये स्त्री-विरोधी (फर्ज़ी वाला) क्या एंगल है! मतलब हर कहीं, कभी भी। ना हो तब भी, जबरन! ज़बरदस्ती हर बात में ये एंगल ढूंढना और फिर पूरी बात का रुख मोड़कर रख देना सही नहीं है भाई।

एक किरदार लिखा गया, कबीर सिंह नाम का। किरदार कुछ यूँ है कि सनकी है। एंगर मैनेजमेंट की समस्या है उसे। नशा करता है। मेडिकल स्टूडेंट है। जो भी करता है शिद्दत से करता है। “होप इज गुड” उसका दर्शन है। कॉलेज छोड़कर जा रहा होता है और एक लड़की आती है, रुक जाता है। यहाँ आपको ये बात पकड़नी होगी कि उसे पहले किसी लड़की में दिलचस्पी नहीं होती है उस तरह की लेकिन एक लड़की आती है और वो अपना फैसला बदल लेता है। आपको ये बात एंड तक पकड़कर रखनी होगी क्योंकि जब आप उस लड़के को परवर्ट कहते हैं तब ये फैक्टर बीच में आएगा ही।

लड़का लड़की से प्यार करता है। पज़ेसिव होता है। केयर करता है। ध्यान रखता है लड़की का हर लेवल पर। जो भी करता है उसमें दोनों का कंसेंट रहता है। एक सीन ऐसा नहीं जहाँ लड़का लड़की के साथ ज़बरदस्ती कर रहा हो और लड़की ने विरोध किया हो। एक सीन ऐसा नहीं जहाँ लड़की असहज हुई हो और चेहरे से लगा हो।

एक संवाद है जहाँ नायक बोल रहा है कि, “चुप नहीं रहना चाहिए। चुप रहना आदत बन जाती है फिर।” इससे उसका व्यक्तित्व समझ में आ जाना चाहिए तब तक तो। ये दूसरी बार होता है फिल्म शुरू होने के बाद तक जहाँ आप कबीर सिंह के बारे में जान पाते हैं उसके डार्क शेड्स के अलावा।

हाँ तो आगे, प्यार होता है और प्यार में वो सब होता है जो होता ही है और होना ही चाहिए। प्यार में आदर्श मत ढूँढिए। वो आदर्श नहीं होता। वो रफ़ हो होता है जब तक किसी को नुकसान नहीं पहुँचा रहा। प्यार है आपकी सेल्फी नहीं जिसमें फिल्टर्स लगाकर दिखाया जाए। जो है सो है। प्यार महत्वपूर्ण है और रहेगा। भाई बिना पज़ेसिव हुए कौन-सा प्यार होता है एक तो कोई महान आत्मा मुझे ये समझाए और पजेसिव हो जाए तो स्त्री-विरोधी कैसे हो जाए, दूसरी बात ये समझाए।

स्पेस नाम की चीज़ को प्यार में इतना हाइप दिया गया है कि अधिकार को गुलामी का नाम दिया गया और अब अगर लड़का अपनी प्रेमिका को प्यार में दुपट्टा सही करने को बोल दे तो उसे गुलामी कहना आम बात हो गयी है। पेरेंट्स कह दें तो वही बात गुलामी से शिफ्ट होकर उनका कंसर्न बन जाती है। है ना!

तो स्त्री विरोधी है ये फिल्म! अच्छा! मेरी मति थोड़ी कम साथ देती है शायद इसलिए इसको पॉइंट्स से समझाती हूँ, आइए आप भी मेरे साथ अगर वक़्त है तो।

1. संभवतः बॉलीवुड में मैंने पहला ऐसा सीन देखा है जहाँ लड़का अपने दोस्त से अपनी प्रेमिका के पीरियड्स की तकलीफ और दर्द पर बात कर रहा है कि, “यार तुझे पता है जब पीरियड्स होते हैं तब उसे कितना दर्द होता है। गर्म पानी का बैग रखना होता है उसकी थाई पर वगैरह वगैरह, समझ रहा है तू मेरी बात? और ये स्त्री-विरोध है! वाह। यहाँ पतियों और प्रेमियों को अपनी पत्नियों और प्रेमिकाओं के पीरियड्स कब आए कब गए हवा नहीं लगती और ये बात कर रहे हैं। गज़ब।

2. लड़का लड़की को थप्पड़ मारता है ये बात उछाल दी गई लेकिन एंड में लड़की लड़के को एक के बाद एक थप्पड़ जड़ती है जिसे वो गर्दन झुकाकर प्यार से सहता है, ये बात नहीं दिखी! अब ये पॉइंट्स लिखा है तो बात ये होने लगेगी कि अच्छा! तो मतलब थप्पड़ मारना सही है? जबकि ये मैंने कहा ही नहीं, मैंने तो ये ध्यान दिलाया कि लड़की वाले थप्पड़ आप मिस कर गए पॉपकॉर्न के चक्कर में।

3. लड़का लड़की को प्रॉपर्टी समझता है! गलत। कहीं नहीं ऐसा। वो उसकी परवाह करता है। अपने साथ रखकर उसकी पढ़ाई में मदद करता है, उसकी चोट ठीक करता है। लड़की सहज होती है सहमति रखती है। नहीं रखती है तो बताएँ।

ये पॉइंट्स मैं इसलिए गिना रही हूँ ताकि आपकी एक साइड की आँख में जो इन्फेक्शन हो रखा है वो सही हो जाए और आप दोनों आँखों से देख पाए।

खैर, मेरे मुद्दे कुछ और हैं उस पर आती हूँ।

कबीर सिंह आपके संस्कारी समाज का रफ़ चिट्ठा है बिना फ़िल्टर का, जिसमें लड़का जैसा है वैसा ही दिखता है। जो-जो उसके साथ घटता है उसके बाद उसके व्यक्तित्व में आए परिवर्तनों से वो खुद जूझ रहा है। अब चूँकि टाइटल में कबीर सिंह ही है तो प्रीति सिक्का के खाते में कम डायलॉग क्यों हैं, ये मूर्खता वाला सवाल ना कीजिए।

जो ज्ञान की गंगा कबीर सिंह को लेकर बहाई जा रही है उसे देखकर तो डायरेक्टर और एक्टर्स ने भी एक्स्ट्रा दो बार फिल्म देख डाली होगी कि यार कहीं सच में औरतों पर अत्याचार तो नहीं बना दिया!

एक बात बताइए, सिनेमा पहले आया कि समाज! पहले चेहरा आया कि दर्पण! तो कौन किसका प्रभाव है ये आपको समझ नहीं आता क्या? आप प्रक्रिया को परिणाम और परिणाम को प्रभाव कैसे बोल सकते हैं, क्या लॉजिक क्या है आपका?

समाज पहले बना ना! तो फिर इस फिल्म में ऐसा क्या दिखाया गया है जो पहले से आपके समाज में भयंकर रूप से मौजूद नहीं है? अतिरेक से समस्या हुई आपको! हम्म। तो वो तो सिनेमा में होगा ही। मसाला डाला जाएगा ना, नहीं तो आप जाएँगे ही क्यों!

गैंग्स ऑफ़ वासेपुर कल्ट है और कबीर सिंह कबाड़ा!

वैसे इसमें स्टार्टिंग में दिखाया गया है ना कि लड़का एंगर मैनेजमेंट की समस्या से ग्रसित है! तो अब मुझे ये जानना है कि एंगर मेनेजमेंट से जूझ रहा किरदार किस तरह का व्यवहार करेगा? संतुलित! नहीं ना! सनकी इन्सान किस तरह से पेश आता है! फ़िल्टर लगाकर! नहीं ना! और किसने कहा कि लड़कियों को कबीर सिंह जैसा प्रेमी ही चाहिए या नहीं चाहिए? ये आप और हम कैसे तय करेंगे और क्यों करेंगे?

कबीर सिंह से रातों रात सब बिगड़ेंगे। गर्लफ्रेंड को प्रॉपर्टी समझेंगे। शराब, सिगरेट, ड्रग्स में नहाएँगे, रेंडमली किसी को भी रास्ते चलते पीट पिटा देंगे? अब सब कबीर सिंह बनकर घूमेंगे? अच्छा मतलब सब एमबीबीएस भी करेंगे? हैं? मतलब कुछ भी। कुछ भी। अबे! कुछ भी।

स्टार्टिंग में ही एक चीज़ और दिखाई गई है जब कबीर की दादी बोलती है “होप इज़ गुड और कबीर को यकीं है कि उसकी गुड़िया कहीं नहीं गई है वो उसे ढूँढ लेगा।” इसका मतलब अंत तक भी समझ नहीं आया क्या इतनी लम्बी फिल्म में? नहीं आया होगा क्योंकि स्त्री-विरोधी कोहरा छंटे तब ना कुछ दिखे।

सिंपल है बाबा, एक लड़का है प्यार करता है। सब कुछ स्वाभाविक सा है। उसके साथ हुए गलत को लेकर लड़ जाता है। उसमें कमियाँ है वो परफेक्ट नहीं है, जो कोई भी नहीं होता।

क्या अपने प्यार के लिए लड़ना नहीं चाहिए? लड़का अगर अपने या लड़की के घरवालों की बात मानकर लड़की को छोड़ दे तो कायर और ना माने उनकी बात तो बागी, हिंसक? मतलब दोनों तरफ से आप ही खेल लो यार।

डायरेक्टर ने आपको बोला क्या कि मैंने अखंड रामायण का पाठ रखा है, सपरिवार पधारना! तो फिर वहाँ जाकर कौन-से आदर्श खोज रहे हैं आप? ए सर्टिफिकेट का मतलब नहीं बुझाता आपको?

कौन-सी ऐसी चीज़ है जिसको इस फिल्म में जस्टिफाई किया गया है? क्या इसमें लगातार कबीर को उसकी आदतों की वजह से लताड़ नहीं लगाई गई है? ट्रेलर से समझ नहीं आया समझदारों को कि डार्क शेड की सनकी मिजाज़ के किरदार की फिल्म है?

परवर्ट कैसे हुआ लड़का? प्यार के नाम पर वो किसको ठगता है ये जानना है मुझे। वो एक्ट्रेस को अप्रोच करता है साफ़ बोलकर कि फिजिकल होना है प्यार-व्यार कुछ नहीं और वो लड़की तैयार हो जाती है यानी कि वो लड़की क्या हुई इस लॉजिक के हिसाब से? मासूम! अब आप इस पर घेरेंगे कि अच्छा! तो मतलब लड़का किसी के भी साथ सोए कोई दिक्कत नहीं! अब मैं यहाँ स्पून फिडिंग नहीं करवाऊँगी, कम से कम धूर्तों को तो बिल्कुल नहीं।

एक सीन है जहाँ वो एक्ट्रेस कबीर के कपड़े प्रेस कर रही है और वो चिढ़कर अपने दोस्त से बोलता है, “यार मुझे पसंद नहीं कि कोई मेरे लिए ये सब करे। मुझे अच्छा लगता था ये सब करना प्रीति के लिए।” अब ये दिखा कि नहीं आपको? कितनी छोटी छोटी चीजें जो सबसे बड़ा इम्पेक्ट रख रही हैं वो सब अपने छोड़ दी और उठाकर लाए अपने मतलब की चीज़। क्यों?

लड़का जहाँ जाता है अपनी प्रेमिका को ढूँढ़ता है। एक फेज़ होता है लाइफ का और अब आती है वो तीसरी बारी जहाँ लड़का अपनी माँ से कहता है कि, “माँ समझो न मेरी लाइफ का एक फेज़ चल रहा है।” होता है भाई एक फेज़ लाइफ का, वो भी तब जब रिश्तों में हारता है इंसान। तब संतुलन हिलता है दिल का, दिमाग का, व्यक्तित्व के हर एक पहलू का। सही गलत का फर्क सबसे पहले धुंधला पड़ता है उस पर भी तब जब नशा चढ़ा रहता हो सारा वक़्त। वो अपने आप को जिलाए रखने के लिए सेल्फ डेसट्रक्टिव मोड में लाकर उल जुलूल करने को बाध्य रहता है और जो कि पूरी तरह से गलत ही होता है। ये है कबीर सिंह का किरदार। ये सारी चीजें हरगिज़ जस्टिफाई नहीं की जा सकती लेकिन ये संभावनाएँ तो हैं ना!

हाउ कैन यू थिंक कि नशे का आदि सनकी इंसान समाज को आदर्श देगा? हाउ कुड यू? वही बात की मछली को उसके पेड़ पर चढ़ने की काबिलियत से नापना है तो आपको इलाज की ज़रूरत है भाई।

चौथी बारी तब आती है जब वो अपने दोस्त से पूछता है कि “ये कास्ट वास्ट कौन सिखाता है यार ये सब? क्या है ये सब! अरेंज मैरिज में प्यार होता है क्या या फिर सुहागरात का सोचकर ही एक दूसरे पर कूद जाते हैं?” अगर एक सनकी आदमी ऐसे सवाल पूछता है तो फिर इस दुनिया का हर आदमी सनकी क्यों ना हो? मैं तो खुद ऐसी हूँ।

जब किरदार सनकी है तो गीता पाठ नहीं पड़ेगा। व्हॉट डू यू वॉन्ट? हम साथ साथ हैं की टीम इन कबीर सिंह?

ड्रग्स, शराब, सिगरेट, हिंसा निश्चित और निर्विवाद रूप से बेहद ख़राब चीज़ें हैं और वो सबको पता है। आपको भी तो। या आप ये फिल्म देखते ही ये सब पीने लगे? अगर नहीं तो दूसरों की समझदारी पर शक क्यों?

मतलब एक सिनेमा बना, जिसमें शाहिद की अल्टीमेट एक्टिंग गई तेल लेने, ये संस्कारी समाज का “रैंकिंग डिसऑर्डर” पहले कूद गया। ऐसे जज करेंगे आप?

फिल्म है फिल्म और कोई महान फिल्म नही है। आदमी तीन घंटे मनोरंजन के लिए जाता है वरना ज्ञान तो इधर फेसबुक पर भी घणा पसरा है। संस्कारों की खेती इधर वैसे ही बिना ब्रेक के हो रही है। ऐसे जज कीजिएगा तो बॉलीवुड, टाॅलीवुड, हॉलीवुड सब बंद करना पड़ जाएगा।

मैसेज चाहिए इनको! तो नैतिक शिक्षा की क्लास में जाइए न, ए सर्टिफिकेट की फिल्म देखने काहे जा रहे?

हर मिनट होते बलात्कार वाले समाज के लोग इन फिल्मों से बिगड़ रहे हैं? जबकि सदियों से घरों में रामायण रखी है लेकिन एक पेज ना खुलता इनसे। बिल्कुल फिल्मों का प्रभाव होता है समाज पर लेकिन माइंड इट कि फिल्में खुद समाज का जीता जागता प्रभाव है। समाज ने कबीर सिंह पैदा किए हैं फिल्मों ने तो एक्टिंग करवाई है।

कबीर सिंह कोई महान नायक नहीं है। प्यार करता है और उसके लिए लड़ना जानता है बाकी सब उसके किरदार की कहानी है। बाकि क्या बात करनी होती है! संगीत अच्छा है। कॉपी रीमिक्स के ज़माने में कुछ मौलिक गीत है कुछ अर्जुन रेड्डी का ही बैकग्राउंड संगीत लिया गया है। कुछ सीन एडिट किए जा सकते थे और अर्जुन रेड्डी वाले ही रहते तो बेहतर था। शाहिद अपने किरदार से हिले नहीं हैं आपको भी नहीं हिलने देंगे। खैर..

एक किरदार रचा जाता है सिनेमा के लिए और उसको वैसा का वैसा उतारा जाता है परदे पर। डायरेक्टर आपके मूड और संस्कारों के हिसाब से नहीं बनाएगा। ऐसे तो कभी कुछ भी नहीं बन पाएगा। फिल्म को ए सर्टिफिकेट मिला है। सोच समझकर जाइए ना। हर चीज़ की एक काबिल जगह होती है। नैतिक शिक्षा चाहिए तो किताबों का रुख करें, प्रेरणा चाहिए तो मोटिवेशनल क्लासेस जॉइन करें। और उसको समाज की भलाई में किस तरह लाया गया उस पर मुझे टैग करके निबंध लिखें। आई वुड लव टू रीड बेबीज़।

फिर भी इस फिल्म से ही सन्देश चाहिए तो वो है ये कि प्यार कीजिए तो उसके लिए लड़िए। घरवाले नहीं मानेंगे टाइप का टाइमपास मत कीजिए। छोड़ देने के बाद इन्सान की क्या हालत हो सकती है उस पर भी गौर कीजिए। उसकी बर्बादी की ज़िम्मेदारी कौन लेगा?

जाते जाते एक दिलचस्प बात बता दूँ कि अर्जुन रेड्डी स्त्री विरोधी नहीं थी लेकिन कबीर सिंह है! हें हें हें!

मानोगे नहीं ना सुपर दोगलों!

एंड अफ्कोर्स मासूमों! नशा कोई भी हो चेतावनी के साथ आता है। नहीं भी आता हो तब भी मुझे आपकी समझदारी पर कोई शक नहीं। ये एक विशुद्ध मसाला फिल्म है। बात बस ये है। झूठ मत फैलाइए।

और जो ये पूछ रहे कि आपको ऐसा प्रेमी मिले तब क्या हो? तो तब ये हो कि वो लड़का प्रेमी था तब ऐसा नहीं था, प्रेम के चले जाने के बाद सेल्फ डेसट्रकटिव मोड में आ जाता है! उसकी ज़िम्मेदारी कौन लेगा भाइयों और भाइयों की बहनों?

इस फिल्म में बेवफा कोई नहीं है। एक सीन है बस उसी की वजह से गलतफहमियाँ होती है और फिर ये सब। खैर।

लेखिका: भारती गौड़

CCTV लगवाकर गंभीर ने केजरीवाल को कहा: एक कैमरा आपके झूठे वादों पर भी फोकस्ड

पूर्वी दिल्ली से सांसद गौतम गंभीर ने अपने संसदीय क्षेत्र में सीसीटीवी कैमरे लगाने का काम शुरू किया है। उन्होंने इससे जुड़ा एक वीडियो ट्विटर पर शेयर करते हुए दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल पर तंज भी कसा है। भाजपा सांसद ने कहा कि उनका एक कैमरा उनके झूठे वादों पर भी फोकस करेगा। दरअसल, केजरीवाल ने पूरी दिल्ली में सीसीटीवी कैमरा लगाने का वादा किया था जो कि अब तक अधूरा है।

गंभीर ने ट्वीट किया, “ऊपर वाला अब और करीब से देखेगा। मेरी माताओं, बहनों की सुरक्षा और अपराध नियंत्रण के लिए मैंने आज से अपने संसदीय क्षेत्र में सीसीटीवी कैमरा लगवाने का काम शुरू कर दिया है। वैसे मफलरवाले (केजरीवाल) सर जी मेरा एक कैमरा आपके झूठे वादों पर भी फोकस्ड है।” इसमें गंभीर ने Hawkeye Systems को धन्यवाद भी दिया है।

इसके साथ ही गौतम गंभीर ने Hawkeye Systems द्वारा लिखा गया एक पत्र भी साझा किया है। जिसमें Hawkeye Systems ने गंभीर को पूर्वी दिल्ली में लोगों की सेवा करने के लिए बधाई दी है और इलेक्ट्रॉनिक सुरक्षा क्षेत्र में काम करने वाली कंपनी ने गंभीर के सीसीटीवी कैमरे लगाकर महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करने के कार्य को पूरा करने में सहयोग करने की इच्छा जाहिर की है। कंपनी ने कहा कि वो गौतम गंभीर द्वारा बताए गए स्थानों पर 50 कैमरे इन्सटॉल करना चाहते हैं। कंपनी का कहना है कि ये उनके लिए सम्मान की बात होगी। इस पत्र में Hawkeye Systems ने कहा है कि गंभीर की स्वीकृति के बाद 3 से 4 सप्ताह में सारे कैमरे लग जाएँगे।

बता दें कि, सीसीटीवी कैमरे लगवाना उन वादों में से है, जिसे गौतम गंभीर ने लोकसभा चुनाव से पहले किए थे। क्रिकेट से राजनीति में आए गंभीर ने पूर्वी दिल्ली से आम आदमी पार्टी (आप) की आतिशी मार्लेना और कॉन्ग्रेस के अरविंदर सिंह लवली को लोकसभा चुनाव में शिकस्त दी थी।

श्री लंका धमाके में नेशनल तौहीद जमात से जुड़े सारे आरोपित हिरासत में

श्री लंका के प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने शनिवार को घोषणा की कि ईस्टर बम धमाकों में संदिग्ध माने जा रहे संगठन एनटीजे के सभी सदस्य उनकी हिरासत में आ गए हैं। 3 चर्चों और कई लक्ज़री होटलों में हुए नौ बम धमाकों में 258 लोग मारे गए थे और 500 के करीब घायल हुए थे। सरकार ने स्थानीय इस्लामी संगठन नेशनल तौहीद जमात (एनटीजे) पर इस्लामिक स्टेट (आइएस) के साथ हमले का आरोप लगाया था। दक्षिण श्री लंका के गाल में जनसभा को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा, “मुझे पुलिस से सूचना मिली है कि ज़ाहरान के ग्रुप के सभी लोग हिरासत में हैं।”

श्री लंका में हुए इस हमले में ज़ाहरान हाशिम वह संदिग्ध है जो बम धमाके में ही मारा गया था। इस हमले में 11 भारतीयों समेत 44 विदेशी भी मारे गए थे। विक्रमसिंघे के मुताबिक चरमपंथी संगठन से खतरे को पूरी तरह काबू में कर लिया गया है। “उनके साथ जिनके भी तार जुड़े थे, उन सबसे पूछताछ की जा रही है। ज़ाहरान के मज़हबी भाषण को सुनने जो आते थे, उनसे भी पूछताछ हुई है।” विक्रमसिंघे की सरकार पर पहले से दी गई गुप्त जानकारी पर भी कदम न उठाने का आरोप लगा था। जिम्मेदारी तय करने के लिए जाँच की जा रही है

वहीं राष्ट्रपति मैत्रीपाल सिरिसेना ने देश में लागू आपातकाल की सीमा बढ़ा दी है। यह शनिवार को समाप्त होने वाला था। धमाकों के बाद लागू इस कानून के अंतर्गत पुलिस और सुरक्षा बलों को हिरासत समेत इसके अंतर्गत व्यापक अधिकार मिले थे