Monday, November 18, 2024
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पश्चिम बंगाल में एक और BJP कार्यकर्ता की हत्या, पार्टी ने ममता पर लगाया हत्या का आरोप

पश्चिम बंगाल में लगातार हत्याओं का सिलसिला जारी है जिनका शिकार बीजेपी कार्यकर्त्ता हो रहे हैं। इसी कड़ी में बंगाल के कूच बिहार में एक और बीजेपी कार्यकर्ता की हत्या कर दी गई है। कूचबिहार जिले में भारतीय जनता युवा मोर्चा के एक कार्यकर्ता की गला रेत कर हत्या कर दी गई। मृतक की पहचान आनंद पाल के तौर पर हुई है। आनंद मंगलवार (जून 18, 2019) को नाटाबाड़ी इलाके में एक सुनसान जगह पर मृत पाया गया। भाजपा ने इस हत्या का आरोप सीधे सीधे मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर लगाया है।

आनंद कूचबिहार के 28 नंबर मंडल में सक्रिय कार्यकर्ता के तौर पर जाना जाता था। मारूगंज क्षेत्र का रहने वाला आनंद पाल एक दिन पहले से घर से लापता हो गया था। मीडिया में आ रही खबरों के अनुसार घर वालों ने थाना में उसकी गुमशुदगी की शिकायत दर्ज कराने की कोशिश की, लेकिन पुलिस ने मना कर दिया था।

गौरतलब है कि, लोकसभा चुनाव के समय से ही बंगाल में राजनीतिक हिंसा का दौर जारी है। इससे गुरुवार (मार्च 13, 2019) को नॉर्थ 24 परगना जिले के बशीरहाट इलाके में महिला भाजपा कार्यकर्ता की गोली मारकर निर्मम हत्या कर दी गई। कार्यकर्ता की पहचान सरस्वती दास के रूप में हुई। भाजपा ने सरस्वती की हत्या के लिए टीएमसी के गुंडों को ज़िम्मेदार बताया। लोग बंगाल में राष्ट्रपति शासन गुहार लगाने की माँग कर रहे हैं। कुछ का ये भी कहना है कि पार्टी के शीर्ष नेताओं को जमीनी स्तर पर पार्टी के लिए कार्य करने वालों की अब कदर नहीं रही हैं, तो कुछ का कहना है कि इसके लिए भाजपा पर ऊँगली क्यों उठाई जा रही है, सवाल ममता बनर्जी और बंगाल पुलिस से होना चाहिए।

बढ़ती जनसंख्या पर गिरिराज ने जताई चिंता, JDU ने अपने मंत्रालय पर ध्यान देने की दी नसीहत

बिहार में भाजपा और जदयू के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। आए दिन दोनों पार्टियों के बीच की तल्खी सामने आ रही है। इस बार विवाद जनसंख्या नियंत्रण पर कानून को लेकर शुरू हो गया है। जदयू प्रवक्ता संजय सिंह और भाजपा के केंद्रीय पशुपालन, डेयरी और मत्स्य पालन मंत्री गिरिराज सिंह आमने-सामने आ गए हैं।

जानकारी के मुताबिक, गिरिराज सिंह ने आज (जून 18, 2019) यूएन रिपोर्ट के हवाले से जनसंख्या नियंत्रण को लेकर ट्वीट किया। जिसके ठीक बाद जदयू के प्रवक्ता संजय सिंह ने तंज भरे लहजे में जवाब देते हुए उन्हें अपने मंत्रालय पर ध्यान देने की सलाह दी। दरअसल, यूनाइटेड नेशंस की रिपोर्ट के अनुसार, भारत 2027 में चीन को पीछे छोड़ कर सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बन जाएगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि अगले 30 साल में भारत की जनसंख्या में 27.3 करोड़ की वृद्धि हो सकती है। इस हिसाब से 2050 तक भारत की कुल आबादी 164 करोड़ होने का अनुमान है।

बढ़ती जनसंख्या पर आई यूएन की रिपोर्ट से चिंतित गिरिराज सिंह ने अपनी चिंता व्यक्त करते हुए ट्वीट किया, “बढ़ती जनसंख्या और उसके अनुपात में घटते संसाधन को कैसे झेल पाएगा हिंदुस्तान? जनसंख्या विस्फोट हर दृष्टिकोण से हिंदुस्तान के लिए खतरनाक। भारत 2027 में चीन को पीछे छोड़ बन जाएगा सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश- UN रिपोर्ट।”

गिरिराज के ट्वीट के जवाब में जेडीयू प्रवक्ता संजय सिंह ने ट्वीट किया, “देश की 130 करोड़ जनता ने एनडीए को विकास और राष्ट्रवाद के मुद्दे पर वोट किया। जनसंख्या वृद्धि वास्तव में एक समस्या है और इसका ध्यान सबको है। जनसंख्या नियंत्रण के लिए हर संभव प्रयास होने चाहिए लेकिन गिरिराज जी आपको केंद्र सरकार में जिस विभाग की जिम्मेवारी मिली है उसकी चिंता करनी चाहिए।”

गौरतलब है कि, इससे पहले भी जदयू और गिरिराज सिंह में ठन चुकी है। 4 जून को गिरिराज सिंह ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के इफ्तार पार्टी में शामिल होने पर सवाल उठाते हुए कई तस्वीरें शेयर किए थे। जिसके बाद जदयू ने उन्हें संभल कर बयान देने की सलाह दी थी। साथ ही भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने भी तब गिरिराज सिंह को ऐसे विवादों से बचने की नसीहत दी थी।

CM की कुर्सी से क्या बताऊँ कहाँ-कहाँ दर्द हो रहा है: कुछ यूँ छलका कुमारास्वामी का दर्द

कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारास्वामी ने एक बार फिर जनता को यह जताया है कि कर्नाटक का मुख्यमंत्री बने रहने में उन्हें बड़ी-बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। एक कार्यक्रम में जनता को संबोधित करते हुए अपने दर्द का ज़िक्र उन्होंने किया। बताया कि रोज़ वह जिस ‘दर्द’ से गुज़रते हैं, वह उसे जनता के सामने बयाँ नहीं कर सकते। साथ में यह भी जोड़ा कि उन्हें नौकरशाहों को यह विश्वास दिलाना पड़ता है उनकी सरकार खतरे में नहीं है।

सही किया जो मुझे चुना

एक रैली को संबोधित करते हुए कुमारास्वामी ने कहा, “मैं आपको बता नहीं सकता खुल के कि मैं किन समस्याओं का सामना कर रहा हूँ। मैं मुख्यमंत्री हूँ लेकिन मैं हर दिन जो दर्द सहता हूँ वह बाँट नहीं सकता। अगर मैं करूँगा (दर्द साझा) तो मुझ पर यह सवाल उठेगा कि मैं लोगों की समस्याएँ कैसे सुलझा रहा हूँ। एक ओर मुझे सरकार के शांतिपूर्वक चलते रहने का ध्यान रखना पड़ता है, दूसरी ओर नौकरशाहों को यह यकीन दिलाना पड़ता है कि यह सरकार सुरक्षित है। यह सब ज़िम्मेदारियाँ हैं मुझ पर।”

लेकिन इसके बावजूद उन्होंने यह विश्वास दिलाया कि लोगों ने उन्हें चुनकर सही किया है। उनके अनुसार उनके द्वारा झेली जा रही अव्यवस्था पर उनके दर्द जताने से लोगों को उन (-की क्षमता) पर शक नहीं हो जाना चाहिए। हाल ही में (शनिवार को) उन्होंने अपने मंत्रिमंडल में दो निर्दलीय विधायकों को मंत्रिपद की शपथ भी दिलाई है

पहले भी जता चुके हैं ‘दुःख’

कुमारास्वामी इससे पहले भी कई बार अपना दुःख प्रकट कर चुके हैं। लोकसभा निर्वाचन के समय प्रचार करते हुए उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे की कथित ‘वैक्सिंग’ पर नाराज़गी जताई थी, और कहा था कि मोदी को मीडिया अधिक इसीलिए दिखाता है क्योंकि उनके चेहरे पर वैक्सिंग की चमक है, जबकि कुमारास्वामी (और अन्य ‘आम’ नेता) एक बार सुबह नहा कर निकलते हैं तो फिर अगले दिन सुबह ही नहाते हैं। इसीलिए उनका चेहरा टीवी पर अच्छा नहीं लगता और मीडिया उन्हें दिखाना पसंद नहीं करता। इसके अलावा अपने गठबंधन साथी कॉन्ग्रेस के ‘दुर्व्यवहार’ से नाराज़ होकर वह इस्तीफे की भी धमकी दे चुके हैं,कॉन्ग्रेस पर खुद को ‘क्लर्क’ बना देने का भी आरोप उन्होंने लगाया था

गाँधी-नेहरू के बजाए The Hindu के मुहम्मद इक़बाल ने तलाश ली नए लोकसभा अध्यक्ष की जाति

जब नरेंद्र मोदी ने 2014 लोकसभा चुनाव में ‘अच्छे दिन आएँगे’ का नारा दिया था तो यह तो सभी जानते थे कि अच्छे दिन किसके आएँगे, लेकिन किस के ‘नहीं आएँगे’ यह 2019 के आम चुनाव के आते-आते स्पष्ट होने लगा। फिर एक दिन वो आया जब भाजपा ने अकेले 300 का आँकड़ा पार कर लिया और कुछ लोगों के अच्छे दिन की उम्मीदों पर पूर्णविराम लग गया।

अच्छे दिनों पर लगे इसी पूर्णविराम का नतीजा पिछले एक माह में हमें सबसे ज्यादा मीडिया और जर्नल्ज़िम के समुदाय विशेष में देखने को मिला है। हर प्रकार के झूठे और गुमराह करने वाले तथ्यों से मोदी सरकार की लोकप्रियता को हानि पहुँचाने के अथक प्रयास में जुटे मीडिया गिरोहों की ही एक सबसे बड़ी शाखा है The Hindu समाचार पत्र।

ऐसा लगता है जैसे सरकार विरोधी षड्यंत्रों में दिन-रात एक कर देने वाले ‘द हिन्दू’ अखबार ने अब अपना मुद्दा चुन लिया है। द हिन्दू जैसे समाचार पत्र एक ओर जहाँ देश में जातिवाद और साम्प्रदायिक मुद्दों पर चिंतित दिखाई पड़ते हैं वहीं उनकी असलियत यह है कि जातिवाद और साम्प्रदायिक मुद्दे भड़काकर वो अपनी दुकान और रोजी-रोटी का जुगाड़ कर रहे हैं।

आज ही लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए ओम बिड़ला के नाम की चर्चा शुरू होते ही द हिन्दू ने अपना मुद्दा चुन लिया। द हिन्दू के पत्रकार मुहम्मद इक़बाल ने अपने आर्टिकल में भाजपा नेता ओम बिड़ला की जाति को सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण साबित कर दिया है। द हिन्दू के अनुसार लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला नहीं बल्कि ‘वैश्य’ ओम बिड़ला बनाए जाने तय हुए हैं।

प्रश्न यह भी है कि द हिन्दू अपने मजहबी और सवर्ण-दलित के दृष्टिकोण से बाहर क्यों नहीं निकल पा रहा है? क्या द हिंदू अखबार इस बात का सबूत देना चाहता है कि इस देश में अभी भी एक ऐसा वर्ग मौजूद है, जो शिक्षित होने के बावजूद उपनिवेशवाद के दौर में जीना पसंद करता है? क्या द हिन्दू को नेताओं और सैनिकों में जाति तलाशना कॉन्ग्रेस ने सिखाया है और उसे इस माहौल से उबरने में समय लगने वाला है?

हमने विगत कुछ समय में देखा है कि मीडिया ने स्वयं की धूरी में कुछ परिवर्तन किया है। नेहरूवियन सभ्यता में जन्मे मीडिया और उनके बुद्धिपीड़ितों ने शायद यह तो जान लिया है कि उनके अन्नदाता अब संसद के भीतर सिमट गए हैं और अब बहुत ज्यादा स्कोप बाकी है नहीं, इसलिए इन मीडिया गिरोहों ने अपने प्रिय चाचा नेहरू को बिसरा देने का निर्णय ले लिया है।

देश में सुई से लेकर सब्बल तक में नेहरू की छवि देखने वाले मीडिया ने दिल पर पत्थर रखकर अब नेहरू से ब्रेकअप कर लिया है। अब यह मीडिया गिरोह नेहरू की बातें कम करते नजर आते हैं। नेहरू और इंदिरा ने साथ मिलकर भी जोर लगाया लेकिन इन मीडिया गिरोहों के अच्छे दिन नहीं आ पाए।

हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि पत्रकारिता के नाम पर बरसों से प्रोपेगैंडा बेच रहे द हिन्दू जैसे ही दूसरे अन्य मीडिया संस्थानों ने ऐसे समय में सैनिकों की जाति पर चर्चा की जब पुलवामा हमले के बाद उनके शवों को ठीक से इकठ्ठा तक नहीं किया गया था। द हिन्दू जैसे सूचना के साधनों ने नेहरू के जाने के वर्षों बाद तक भी नेहरूभक्ति दिखाई, उन्हें भूलने नहीं दिया। यह अच्छा प्रयास भी था और इसकी सराहना भी की जानी चाहिए।

लेकिन 2019 के चुनावों के बाद से इन नमक-हराम मीडिया गिरोहों ने नेहरू को ऐसे निकाल फेंका है जैसे लोग चाय में से मक्खी को निकाल फेंकते हैं। मीडिया अब समझ गया है कि वो नेहरू को गन्ने की तरह गन्ने की मशीन में ठूँसकर जितना निचोड़ सकते थे, निचोड़ चुके हैं।

इसलिए अब द हिन्दू ने पाला बदला है। जैसे ही राहुल गाँधी हिंदुत्व की तरफ बढ़े, द हिन्दू अखबार ने अपनी रिसर्च का टॉपिक हिंदुत्व में मौजूद जाति और वर्ण व्यवस्था की ओर धकेल दिया है। अब द हिन्दू की ख़बरों का समस्त रिसर्च एंड डेवलपमेंट मुहम्मद इकबाल नाम के पत्रकार द्वारा हिन्दुओं की आस्था, वर्ण और जाति तलाशने में लगाया जाएगा। इससे जो हासिल होगा वह अभी गुप्त है और 2024 के चुनाव से पहले राहुल गाँधी किसी जनसभा को सम्बोधित करते हुए बता ही देंगे।

The Hindu को कॉन्ग्रेस द्वारा दी गई ‘ट्रेनिंग’ का असर छूटने में वक़्त लगेगा

समाज का ध्रुवीकरण, चाहे जातिवाद से या फिर सम्प्रदाय की आग से, कब और किस दिशा में करना है इसका अभ्यास कॉन्ग्रेस को पूरी तरह से है। कॉन्ग्रेस इस मामले में इतनी भाग्यशाली रही कि उसने वर्षों तक बिना किसी रोकटोक के इस काम को अंजाम दिया और इसके बीज लगभग सभी बड़े-छोटे संस्थानों में गहराई तक बो दिए।

द हिन्दू ने मोदी 2.0 के नए चेहरे ओम बिड़ला की जाति पर तो मुहम्मद इकबाल से पीएचडी करवा ली लेकिन उसे कभी नेहरू और गाँधी की जाति पर समय देने का वक़्त नहीं मिल सका। जर्नलिज़्म के नाम पर अन्नदाताओं की स्वामिभक्ति का अन्न द हिन्दू जैसे मीडिया गिरोहों की नसों में रक्त बनकर बह रहा है। अभी समाज को इसके व्यापक नुकसान उठाने होंगे। मुहम्मद इकबाल ने इस पूरे लेख में बेहद सावधानी से यह दिखाने का प्रयास किया है कि ओम बिड़ला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी हैं और उन्होंने जनता से उनके नाम पर वोट माँगे। क्या द हिन्दू यह भूल गया है कि उनके लाडले राजकुमार को अमेठी से दक्षिण खदेड़ने के लिए जनता को नरेंद्र मोदी के नाम की जरूरत नहीं पड़ी?

आज सुबह से ही लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए ओम बिड़ला के नाम पर चर्चा शुरू होते ही कुछ लोग उनका योगदान तलाशते भी नजर आए। ये वही लोग थे जिन्होंने कॉन्ग्रेस सरकार के दौरान लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार के योगदान पर कभी कान खड़े नहीं किए। या शायद ये लोग स्वयं अपने चुने गए नेताओं से इतनी उम्मीद नहीं करते और उन्हें इस लायक नहीं समझते कि उनके योगदान पर चर्चा की जाए।

खैर, मीडिया एकबार फिर वही जल्दबाजी कर रहा है। जातिगत समीकरणों के द्वारा भाजपा के विस्तार को तौलने में द हिन्दू के मुहम्मद इकबाल फिसड्डी साबित होंगे क्योंकि देश की प्राथमिकताएँ बदल चुकी हैं। देश का नारा ‘भारत’ है। मीडिया गिरोहों को अभी और दीर्घकालिक आत्मचिंतन की आवश्यकता है।

20000 एकड़ मंदिरों की ज़मीन पर अवैध कब्जा, तेलंगाना सरकार ने सब खाली कराने का दिया आदेश

तेलंगाना सरकार ने अब हिन्दू मंदिरों की ज़मीनों पर से अवैध कब्ज़े खाली कराने के लिए कमर कस ली है। 20,000 एकड़ की ज़मीनों पर से अवैध कब्ज़ा खाली कराने के लिए तेलंगाना के एंडोमेंट (सरकार द्वारा अधिग्रहित मंदिरों के मामलों का मंत्रालय) मंत्री ए इंद्र करण रेड्डी ने अधिकारियों को अवैध कब्जेदारों को हटाने और ज़मीन खाली कराने के निर्देश जारी कर दिए हैं। 

जिसे सस्ते में ज़मीन दी, उसने महंगे किराए पर उठा दी

हिन्दू मंदिरों की ज़मीनों पर प्रदेश में काफ़ी समय से यह फर्जीवाड़ा जारी है। न्यू इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक 20,124.08 एकड़ की मंदिरों की ज़मीन पर अवैध कब्ज़ा हुआ है। यह कब्ज़ा ऐसे होता है कि मंदिर की ज़मीन जिसे रियायती दरों पर किराए पर दी जाती है, वह उसका प्रयोग खुद न कर आगे दूसरों को ज़्यादा महंगे दामों पर किराए पर दे देते हैं। इससे राज्य सरकार को राजस्व-हानि होती है। जितनी ज़मीनों पर अवैध कब्ज़ा है (20,124.08 एकड़), वह राज्य सरकार द्वारा कुल किराए पर दिए गए क्षेत्रफ़ल (21,238.26 एकड़) का लगभग पूरा हिस्सा है। मंत्री करण रेड्डी ने सोमवार को अधिकारियों को निर्देश दिया है कि चाहे कब्ज़ा करने वाला कितना भी रसूखदार हो, कोई मुरौव्वत नहीं की जानी चाहिए

सवाल: आखिर हिन्दू मंदिरों की ज़मीनें बाँटी ही क्यों गईं?

यह अच्छी बात है कि राज्य सरकार अपने राजस्व के नुकसान को लेकर सजग है और भ्रष्टाचार रोकने और सरकार की आमदनी बढ़ाने का प्रयास कर रही है। लेकिन इसके पीछे उससे भी बड़ा सवाल यह है कि आखिर राज्य सरकार की यह हिम्मत कैसे हुई कि हिन्दू मंदिरों की ज़मीनें मंदिर के कार्यों के बाहर किसी को किराए पर उठा दी जाएँ? क्या इसीलिए हिन्दू (और केवल हिन्दू, क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 25-30 बाकी अन्य सभी पंथों और मज़हबों को अपने समुदाय के संस्थानों को सरकारी हस्तक्षेप से स्वतंत्र हो संचालित करने का अधिकार देते हैं) मंदिरों का सरकारी अधिग्रहण किया जाता है, ताकि उनकी संपत्ति का मनमर्ज़ी दुरुपयोग हो?

तेलंगाना में सरकार ने कुल 87,235 एकड़ मंदिरों की भूमि का अधिग्रहण किया हुआ है। इसमें से केवल 2,458.05 एकड़ मंदिरों के खुद के पास है- अर्चकों द्वारा नियंत्रित भूमि के रूप में। बाकी ज़मीन का क्या हिसाब है? हिन्दुओं की सम्पत्ति को भारत का ‘सेक्युलर’ राष्ट्र राज्य जिस तरह अधिग्रहित करता है और गैर-हिन्दू कार्यों में उसका उपयोग करता है, वैसा वह एक भी मुस्लिम या ईसाई संस्थान के साथ करने की हिमाकत क्या कर सकता है? बेहतर होगा कि उपरोक्त 20,000 एकड़ ज़मीन को जब तेलंगाना सरकार अवैध कब्ज़े से मुक्त करा ले, तो उसे दोबारा हड़पने की अपेक्षा उसे जिन-जिन मंदिरों से ‘लूटा’ है, उन्हें लौटा दिया जाए।

अयोध्या हमला: इरफ़ान, शकील, इक़बाल, आशिक़ को उम्रक़ैद, संतों ने कहा – 14 वर्षों के ‘वनवास’ के बाद फ़ैसला

अयोध्या में हुए आतंकी हमले के 14 वर्ष बाद अदालत का महत्वपूर्ण निर्णय आ गया है। स्पेशल ट्रायल कोर्ट ने अपना निर्णय देते हुए 4 आरोपितों को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई। 5 जुलाई 2005 को हुए इस आतंकी हमले के मामले में मोहम्मद अजीज नामक एक आरोपित को बरी कर दिया गया। जिन आतंकियों को आजीवन कारावास की सज़ा दी गई, उनके नाम इरफान, मोहम्मद शकील, मोहम्मद नसीम, आशिक़ इकबाल उर्फ फ़ारुख़ हैं। इन सभी पर ढाई लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया गया। सुनवाई नैनी जेल स्थित विशेष कोर्ट में पूरी हुई। 2006 में इस केस की सुनवाई को सुरक्षा कारणों से फ़ैजाबाद से इलाहबाद स्थानांतरित कर दिया गया था।

मोहम्मद अजीज को साक्ष्य के अभाव में दोषमुक्त करार दिया गया। स्पेशल कोर्ट के निर्णय को देखते हुए अयोध्या व आसपास के क्षेत्रों में सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए थे। जस्टिस दिनेश चंद्र की अदालत में इस मामले को लेकर बहस 11 जून को ही पूरी हो गई थी। उस आतंकी हमले को लश्कर-ए-तैयबा ने अंजाम दिया था। इस हमले में एक टूरिस्ट गाइड सहित 7 लोगों की मृत्यु हो गई थी, वहीं पुलिस ने जवाबी कार्रवाई में 5 आतंकियों को ढेर कर दिया था। सीआरपीएफ व पीएसी के कुछ जवान इस दौरान घायल भी हो गए थे।

मारे गए आतंकियों के पास से बरामद सामग्रियों के आधार पर 5 आरोपितों को गिरफ़्तार किया गया था, जिनमें से 4 को अदालत ने आज दोषी पाते हुए सज़ा दी। इन सभी को जुलाई 2005 में गिरफ़्तार किया गया था। उस हमले में हैंड ग्रेनेड, एके-47 और राकेट लॉन्चर तक का इस्तेमाल किया गया था। साधु-संतों के बीच इस हमले को लेकर भारी आक्रोश था और वे अपराधियों के लिए कड़ी से कड़ी सज़ा चाहते थे। हमले के दौरान आतंकियों ने उस जीप को भी ब्लास्ट कर उड़ा दिया था, जिस पर सवार होकर वे आए थे। डेढ़ घंटे तक चली मुठभेड़ के बाद 5 आतंकियों को मार गिराया गया था।

मामले की सुनवाई के दौरान कुल 63 गवाहों के बयान दर्ज किए गए थे। इस पाँचों आरोपितों पर आतंकी हमले की साज़िश रचने और आतंकियों की मदद करने का मामला चलाया जा रहा था। कई बार इस मामले में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए भी सुनवाई हुई। हमले से पहले सभी आतंकियों ने नेपाल के रास्ते भारत में प्रवेश किया था। पुलिस ने बाद में भारी मात्रा में हथियार भी बरामद किए थे। 5 एके-56 राइफल्स, 5 M1911 पिस्टल्स, एक RPG-7 ग्रेनेड लॉन्चर, कई M67 ग्रेनेड और कुछ आपत्तिजनक दस्तावेज बरामद किए गए थे। ताज़ा निर्णय भी सुरक्षा कारणों से जेल के भीतर ही सुनाया गया।

ये हमला सुबह क़रीब सवा 9 बजे हुआ था। साधु-संतों ने इस निर्णय के बाद कहा कि इसमें काफ़ी लम्बा समय लगा लेकिन भगवान राम ने भी 14 वर्षों का ही वनवास झेला था, इस बार भी 14 वर्षों बाद फ़ैसला आया है। संतों ने आतंकियों के लिए फाँसी की माँग की थी।

VIDEO: ‘इस्लाम के खिलाफ है वंदे मातरम, नहीं लगाऊँगा नारा’ – लोकसभा में मुस्लिम सांसद

मंगलवार (जून 18, 2019) को संसद सत्र के दूसरे दिन लोकसभा में उस वक्त हंगामा तेज हो गया, जब सपा के सांसद शफीकुर्रहमान बर्क ने शपथ लेने के बाद वंदे मातरम को इस्लाम के खिलाफ बताते हुए ऐसे नारे न लगाने की बात कही। रहमान के इस बयान के बाद सदन में जोरदार हंगामा हुआ, जिसकी वजह से शपथ ग्रहण का कार्यक्रम कुछ देर के लिए टालना पड़ा। सत्र की शुरुआत के पहले दिन से ही सत्ताधारी दल के सांसद सदन के भीतर वंदे मातरम और भारत माता की जय के नारे लगा रहे हैं।

दरअसल, लोकसभा में उत्तर प्रदेश से निर्वाचित सदस्यों को शपथ दिलाई जा रही थी। इस कड़ी में लोकसभा महासचिव ने संभल से चुने गए सपा सांसद शफीकुर्रहमान बर्क को शपथ दिलाई। उर्दू में शपथ लेने के बाद बर्क ने कहा कि भारत का संविधान जिंदाबाद लेकिन जहाँ तक वंदे मातरम का सवाल है यह इस्लाम के खिलाफ है और वो इसका पालन नहीं कर सकते। सांसद के यह कहते ही सदन में और जोर-जोर से वंदे मातरम का नारा लगने लगा। अन्य सांसदों ने शफीकुर्र रहमान बर्क के इस बयान के लिए उनसे माफी की माँग कर दी। ये सब कुछ सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की मौजूदगी में हुआ।

शफीकुर्रहमान बर्क के इस बयान पर भाजपा सांसद और संघ विचारक राकेश सिन्हा ने पलटवार किया। उन्होंने कहा कि शफीकुर्रहमान बर्क की मानसिकता आजादी से पहले मुस्लिम लीग वाली है। इनके जैसे लोगों के लिए देश में जगह नहीं।

गौरतलब है कि, शफीकुर्रहमान बर्क पहले भी वंदे मातरम का विरोध कर चुके हैं। 2013 में बीएसपी सांसद रहते हुए उन्होंने वंदे मातरम का बहिष्कार करने के लिए संसद से वॉकआउट किया था। इससे पहले बर्क ने 1997 में संसद के 50 साल पूरे होने पर आयोजित स्वर्ण जयंती कार्यक्रम में भी वंदे मातरम का बहिष्कार किया था। इसको लेकर तब उनका तर्क था कि वंदेमातरम का मतलब भारत माता की पूजा या वंदना करना है और इस्लाम में पूजा करना जायज नहीं है। जिसकी काफी आलोचना हुई थी।

सानिया ने कहा- ‘पाक टीम की अम्मी नहीं हूँ’ वीना मलिक ने जवाब में किए दर्द भरे ट्वीट

क्रिकेट वर्ल्डकप के दौरान भारत द्वारा पाकिस्तान को हराने के बाद पाकिस्तान क्रिकेट टीम से नाराज प्रशंसकों के मन का दुःख अभी तक नहीं ख़त्म हो रहा है। इस हार से सबसे ज्यादा दुःखी लोगों में से एक पाकिस्तानी अभिनेत्री वीना मलिक भी हैं। इस हार के लिए उन्होंने पाकिस्तान के खिलाड़ी शोएब मलिक और उनकी पत्नी सानिया मिर्ज़ा को निशाना बनाया है।

रविवार (जून 16, 2019) को भारत और पाकिस्तान के बीच हुए महामुकाबले से ठीक एक दिन पहले शोएब मलिक अपनी पत्नी सानिया मिर्ज़ा और कुछ साथी खिलाड़ियों के साथ हुक्का पार्टी करते हुए देखे गए थे। पाकिस्तान की करारी हार के बाद उनकी इस पार्टी का वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हुआ, जिसके बाद सोशल मीडिया पर शोएब मलिक और बाकी पाकिस्तानी खिलाड़ियों की आलोचना हो रही है। 

इसी वीडियो के चलते ट्विटर पर इस समय सानिया मिर्जा और पाकिस्तानी एक्ट्रेस वीना मलिक एक-दूसरे को जवाब देने में लगी हुई हैं। यह बात तब से शुरू हुई है जब वीना मलिक ने सानिया मिर्जा की एक वीडियो उनके पति शोएब और बेटे के साथ जंक फूड खाते हुए वीडियो वायरल हुई थी। इस पर पाकिस्तानी एक्ट्रेस वीना मलिक ने ट्वीट करते हुए लिखा- “सानिया, दरअसल मैं तुम्हारे बच्चे के लिए बहुत चिंतित हूँ। तुम लोग अपने बेटे को शीशा पैलेस लेकर कैसे चले गए? क्या यह उसकी सेहत के लिए हानिकारक नहीं है। साथ ही जहाँ तक मुझे याद है, आर्चीज में जंक फूड मिलता है जो एक एथलीट और बच्चे के लिए ठीक नहीं है। यह आपको अच्छी तरह पता होना चाहिए क्योंकि आप एक माँ के साथ एथलीट भी हैं।”

वीना मलिक की इस बात का जवाब देते हुए सानिया मिर्जा ने ट्वीट करते हुए लिखा – “वीना, मैं अपने बच्चे को शीशा पैलेस लेकर नहीं गई थी। आपको और बाकी दुनिया को ये चिंता करने की जरूरत नहीं है कि मैं अपने बच्चे का ख्याल किसी से भी कम रखती हूँ। दूसरी बात ये है कि मैं ना तो पाकिस्तानी क्रिकेट टीम की डाइटीशियन हूँ और ना ही उनकी अम्मी, प्रिंसिपल और टीचर।”

इसके बाद सानिया ने एक और ट्वीट किया। इसमें उन्होंने लिखा- “मैं नहीं जानती वह कब सोते हैं, कब उठते हैं और कब खाते हैं। तीसरी बात और बहुत महत्वपूर्ण मगर मैं तुम्हारी जगह होती तो मैं अपने बच्चों को लेकर और चिंतित होती क्योंकि वह तुम्हारी अश्लील मैगजीन कवर फोटो देखते। तुम जानती हो यह खतरनाक हो सकता है। सही कहा ना? लेकिन शुक्रिया इतना चिंतित होने के लिए।” हालाँकि, सानिया ने यह ट्वीट डिलीट कर दिया।

सानिया ने अपना ट्वीट डिलीट तो कर दिया लेकिन इसका स्क्रीनशॉट लेकर वीना मलिक ने पोस्ट किया है। ट्विटर पर ये युद्ध जारी है और वीना मलिक दर्द भरे ट्वीट कर रही हैं।

PM मोदी के ‘अधीर फाइटर’ बनेंगे लोकसभा में विपक्ष के नेता, ममता बनर्जी के हैं कट्टर आलोचक

कॉन्ग्रेस ने पश्चिम बंगाल के बहरामपुर से सांसद चुने गए अधीर रंजन चौधरी को लोकसभा में संसदीय दल का नेता चुना है। कभी वामदलों का गढ़ रहे पश्चिम बंगाल में जहाँ तृणमूल और भाजपा के बीच मुख्य मुक़ाबला था, वहाँ इस बार कॉन्ग्रेस के उम्मीदवारों ने मात्र दो सीटें जीतीं और अधीर रंजन उनमें से एक हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इससे पहले केरल के शशि थरूर और आनंदपुर साहिब से जीते मनीष तिवारी के नामों की भी चर्चा थी लेकिन सोनिया गाँधी की अध्यक्षता में हुई एक बैठक में अधीर रंजन चौधरी को इस पद के लिए चुना गया। वह लोकसभा में विपक्ष के नेता भी होंगे।

इससे पहले वरिष्ठ कॉन्ग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे लोकसभा में विपक्ष के नेता थे। उनके चुनाव हार जाने के कारण पार्टी को किसी अन्य चेहरे की तलाश थी। पश्चिम बंगाल प्रदेश कॉन्ग्रेस कमिटी के अध्यक्ष रहे चौधरी केंद्र की मनमोहन सरकार में रेल राज्यमंत्री भी रह चुके हैं। 63 वर्षीय चौधरी 1999 में पहली बार बहरामपुर से सांसद चुने गए थे और उस समय से अभी तक वे लगातार इसी सीट से जीतते रहे हैं। कुल 5 बार लोकसभा चुनाव जीत चुके चौधरी लोकसभा में विपक्ष के नेता होंगे, वहीं राज्यसभा में यह ज़िम्मेदारी गुलाम नबी आज़ाद ही संभालते रहेंगे।

अधीर रंजन चौधरी कॉन्ग्रेस के सभी वर्गों व समितियों का नेतृत्व करेंगे। कहा जा रहा है कि राहुल गाँधी द्वारा इनकार करने के पास यह पद उन्हें दिया गया। एक और रोचक बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चौधरी की तारीफ करते हुए उन्हें ‘फाइटर’ बताया था। सत्र की शुरुआत से पहले हुई बैठक में मोदी ने कई कॉन्ग्रेस नेताओं के सामने चौधरी की पीठ थपथपाते हुए उन्हें ‘अधीर फाइटर’ कहा था। चौधरी ने भी पीएम की तारीफ करते हुए कहा था कि उनकी किसी ने निजी दुश्मनी नहीं है और संसद कोई जंग का मैदान नहीं है। चौधरी ने कहा था कि लोकसभा में वो अपनी आवाज़ उठाएँगे और हम अपनी।

लोकसभा में सभी महत्वपूर्ण चयन समितियों में भी अधीर रंजन बतौर विपक्ष के नेता कॉन्ग्रेस का प्रतिनिधित्व करेंगे। चौधरी लम्बे समय से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के आलोचक रहे हैं। तृणमूल की राजनीति के ख़िलाफ़ वह काफ़ी पहले से मुखर रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वह संयुक्त राष्ट्र जनरल असेंबली में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। बंगाल में हो रही राजनीतिक हिंसा के विरुद्ध उन्होंने पीएम मोदी को पत्र भी लिखा था।

ओवैसी के शपथ लेने के दौरान संसद में लगे ‘जय श्रीराम’ और ‘वंदे मातरम’ के नारे

संसद सत्र के दूसरे दिन (जून 18, 2019) ऑल इंडिया मजलिस-इ-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने सांसद पद के लिए शपथ ली। खबरों के अनुसार मंगलवार को ओवैसी संसद में जैसे ही शपथ लेने के लिए उठे, वहाँ बैठे कुछ भाजपा नेताओं ने ‘जय श्रीराम’ और ‘वंदे मातरम’ के नारे लगाने शुरू कर दिए। भाजपा नेताओं को ‘जय श्रीराम’ बोलता देख ओवैसी ने उन्हें हाथों से इशारा कर ‘लगाओ-लगाओ’ कहा और शपथ लेने के बाद ओवैसी ने खुद ‘जय भीम’ और ‘अल्लाह-हू-अकबर’ के नारे लगाए।

शपथ के दौरान हुई इस नारेबाजी पर ओवैसी ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि ये अच्छी बात है कि भाजपा को उन्हें देखकर राम की याद आई। उम्मीद है भाजपा वालों को संविधान और मुजफ्फरपुर में बच्चों की होती मौत भी याद रहेगी।

गौरतलब है इस बार शपथ ग्रहण समारोह के दौरान कुछ सांसद अलग ही अंदाज में नजर आ रहे हैं। इस शपथ ग्रहण समारोह में पंजाब के संगरूर से जहाँ आम आदमी पार्टी के सांसद भगवंत मान ने ‘इंकलाब जिंदाबाद’ के नारे लगाए, वहीं भाजपा सांसद प्रज्ञा ठाकुर ने भी शपथ लेने के बाद ‘भारत माता की जय’ कहा। कॉन्ग्रेस सांसद सुरेश ने हिंदी में शपथ लेकर जहाँ सबको चौंका दिया वहीं डॉ. हर्षवर्धन ने संस्कृत में शपथ ली। कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने इस दौरान अंग्रेजी में शपथ ली।