Sunday, November 17, 2024
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डॉक्टरों के साथ खड़ा हुआ ममता बनर्जी का भतीजा, हाइकोर्ट पहुँचा हड़ताल का मामला

पश्चिम बंगाल में पिछले चार दिनों से अस्पतालों में ताला लटका हुआ है। डॉक्टरों की हड़ताल जारी है। राज्य में जूनियर डॉक्टर पर हमले के बाद सभी जूनियर डॉक्टर मंगलवार (जून 11, 2019) से आंदोलन कर रहे हैं। डॉक्टरों ने मुख्यमंत्री की अल्टीमेटम को खारिज करने और अपनी माँग पूरी होने तक हड़ताल जारी रखने का भी फैसला किया है। ममता सरकार ने डॉक्टरों की माँग पर अब तक फैसला नहीं किया है।

इस हमले के बाद, देश भर के लाखों डॉक्टरों ने पश्चिम बंगाल में अपने प्रदर्शनकारी सहयोगियों के साथ एकजुटता व्यक्त करने के लिए एक दिन के लिए अपने काम को बहिष्कार करने का फैसला किया है। इंडिया मेडिकल एसोसिएशन ने इस घटना के खिलाफ शुक्रवार को “ऑल इंडिया प्रोटेस्ट डे” घोषित किया है और हड़ताली डॉक्टरों के साथ एकजुटता व्यक्त की है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस मामले पर असंवेदनशीलता जाहिर करते हुए डॉक्टरों को चार घंटे का अल्टीमेटम दिया था। जिसमें डॉक्टरों को 4 घंटे के भीतर काम पर लौटने के लिए और ऐसा न करने पर कार्रवाई का सामना करने की बात कही थी। कथित तौर पर, टीएमसी के समर्थक भी इस घटना से नाखुश हैं और ममता बनर्जी के खिलाफ डॉक्टरों के साथ मिलकर प्रदर्शन कर रहे हैं।

हैरानी की बात तो ये है कि ममता बनर्जी डॉक्टरों को धमकी दे रही हैं और उनके भतीजे आबेष बनर्जी डॉक्टरों के समर्थन में प्रदर्शन उतर आए हैं। आबेश बनर्जी, ममता के भाई कार्तिक बनर्जी के बेटे हैं, केपीसी मेडिकल कॉलेज में डॉक्टर हैं। आबेश ने बुधवार को केपीसी अस्पताल से एनआरएस अस्पताल तक विरोध रैली का नेतृत्व किया।

शब्बा हकीम के फेसबुक पोस्ट का स्क्रीनशॉट

पश्चिम बंगाल में मंत्री फिरहाद हकीम की बेटी शब्बा हकीम ने भी डॉक्टरों के प्रदर्शन का समर्थन किया है। शब्बा हकीम खुद भी डॉक्टर हैं और उन्होंने अपने फेसबुक पोस्ट में लिखा कि शांतिपूर्ण तरीके से विरोध प्रदर्शन करना अधिकार है। साथ ही शब्बा ने ये भी कहा कि टीएमसी समर्थक होने के रुप में ममता सरकार की निष्क्रियता और नेताओं की चुप्पी पर शर्म आती है।

इस आंदोलन की आग दिल्ली तक पहुँच गई है। एम्स के डॉक्टर भी अब बंगाल के डॉक्टरों के समर्थन में आ गए हैं। वहीं, कोलकाता के एसएसकेएम अस्पताल के चार प्रोफेसरों ने इस्तीफा दे दिया तो सागर दत्ता मेडिकल कॉलेज के 18 डॉक्टरों ने भी इस्तीफा दे दिया और जिस एनआरएस मेडिकल कॉलेज में हंगामा हुआ उसके प्रिंसिपल ने भी इस्तीफा सौंप दिया है। एम्स के रेजिडेंट डॉक्टरों ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन से मुलाकात की।

जानकारी के मुताबिक, डॉक्टर कुणाल साहा ने डॉक्‍टरों की हड़ताल के खिलाफ कोलकाता हाईकोर्ट में गुरुवार (जून 13, 2019) को याचिका दायर की है। दायर की गई याचिका में हड़ताली डॉक्‍टरों के खिलाफ कड़े कदम उठाने की अपील की गई है। कोलकाता हाईकोर्ट में मुख्य न्यायाधीश की डिवीजन बेंच में इसकी सुनवाई होगी।

गौरतलब है कि, कोलकाता स्थित नील रतन सरकार मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में सोमवार (10 जून) को एक बुजुर्ग मरीज मोहम्मद शाहिद की मौत के बाद उसके परिजनों ने डॉक्टर परिबाह मुखोपाध्याय पर घातक हमला किया। डॉक्टर्स के मुताबिक, करीब 200 की भीड़ ने मोहम्मद शाहिद की मौत के बाद अस्पताल में जमकर उत्पात मचाया। इस घटना के बाद राज्य के विभिन्न अस्पतालों के डॉक्टर न्याय की माँग करते हुए हड़ताल पर चले गए।

मालेगाँव ब्लास्ट: बॉम्बे हाईकोर्ट ने चार आरोपितों को दी ज़मानत

मालेगाँव ब्लास्ट मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने चार आरोपितों को ज़नानत दे दी है। इन चार आरोपितों में लोकेश शर्मा, धन सिंह, राजेंद्र चौधरी और मनोहर नरवरिया के नाम शामिल हैं। इससे पहले, राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) की विशेष अदालत ने सोमवार (3 जून) को मालेगाँव विस्फोट मामले के इन चारों आरोपितों की ज़मानत याचिका ख़ारिज कर दी थी।

स्पेशल जज वीवी पाटिल ने ज़मानत याचिका यह कहते हुए ख़ारिज कर दी थी कि अपराध की गंभीरता और आरोपी व्यक्तियों के ख़िलाफ़ लगाए गए आरोपों को ध्यान में रखते हुए, वे ज़मानत के लायक नहीं हैं।

अदालत ने इन आरोपितों के संदर्भ में कहा था कि NIA द्वारा एकत्र किए गए सबूतों को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि ये सभी आरोपी, फरार अभियुक्तों के साथ बम तैयार करते थे, जो 8 सितंबर 2006 को मालेगाँव में लगाए गए। इस विस्फोट में 31 लोगों ने अपनी जान गंवाई और 312 लोग घायल हुए थे। वहीं, बचाव पक्ष के अधिवक्ता जेपी मिश्रा और प्रशांत माघुल ने इन चारों के शामिल होने का कोई ठोस सबूत नहीं होने का हवाला दिया था।

हाल ही में, मुंबई की विशेष NIA कोर्ट ने मालेगाँव ब्लास्ट के आरोपितों के ख़िलाफ़ सख़्त रवैया अपनाया था। दरअसल, कोर्ट का यह सख़्त रवैया आरोपितों के कोर्ट में उपस्थित न होने के लिए था। पिछले काफ़ी समय से आरोपित कोर्ट में लगातार अनुपस्थित रहे थे, इसलिए कोर्ट ने सभी आरोपितों को सुनवाई के दौरान सप्ताह में एक बार कोर्ट रूम में हाज़िरी लगाने का निर्देश दिया था।

हलाल बैंकिंग फर्म के सात निदेशक गिरफ्तार, सरगना ‘जगुआर’ से पहुँचा एयरपोर्ट, फरार

बेंगलुरु में ‘आई मॉनेटरी एडवाइजरी’ (I Monetary Advisory) के नाम से फर्जी इस्लामिक बैंक चलाने वाले मोहम्मद मंसूर खान की फर्म के सात निदेशकों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। इन निदेशकों को पुलिस ने बुधवार (जून 12, 2019) को अलग-अलग जगहों से गिरफ्तार किया। इस दौरान पुलिस को एक निदेशक के घर के बाहर से सफेद रंग की एसयूवी बरामद हुई है, जिसके बारे में बताया जा रहा है कि ये मंसूर खान की है। फर्म का मालिक मंसूर खान अभी भी फरार चल रहा है।

खबर के मुताबिक, कल शाम 6:45 तक खान का इमिग्रेशन क्लियर हो गया था और 8:45 पर उसने दुबई के लिए उड़ान भरी। इस दौरान खान अकेला था। इससे पहले, शनिवार (जून 8, 2019) को खुद अपनी पसंदीदा जगुआर से केम्पेगौड़ा हवाई अड्डे पर पहुँचा था। पुलिस ने बताया कि खान ने बिज़नेस क्लास की सीट बुक की थी। खान के जगुआर (KA 05 MW 41) और रेंज रोवर (PY 05 C777) को बुधवार को गिरफ्तार किए गए सात IMA निदेशकों में से एक, निजामुद्दीन अज़ीमुद्दीन के शिवाजीनगर निवास से जब्त किया गया।

मंसूर खान निवेशकों का सैकड़ों करोड़ रुपया लेकर फरार हो गया है। उसके फरार होने के बाद महज 5 घंटों के अंदर 3300 शिकायतें दर्ज की गई थी, जिसमें से अधिकतर शिकायतकर्ता बेंगलुरु के मुस्लिम समुदाय के लोग थे। वहीं, मामला के सामने आने के बाद  तीसरे दिन भी काफी संख्या में लोग शिवाजीनगर स्थित फर्म के ऑफिस पहुँचे और फर्म के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई। अब तक इस फर्म के खिलाफ 26 हजार लोगों ने शिकायत दर्ज करवाई है। इस शिकायत में मालिक और निदेशकों पर सख्त कार्रवाई की माँग की गई है।

गौरतलब है कि, साल 2006 में खाड़ी से लौटे मोहम्मद मंसूर खान ने इस्लामिक बैंकिंग और हलाल निवेश के नाम पर एक फर्म बनाई जिसका नाम रखा ‘आई मॉनेटरी एडवाइजरी’ (I Monetary Advisory)। इस्लामिक बैंकिंग के नाम पर मंसूर खान ने अपने समुदाय के लोगों से इस फर्म में निवेश करने को कहा। मंसूर खान ने लोगों को बड़े रिटर्न का वादा करके निवेश करने का लालच दिया और जब लोगों ने बड़ी संख्या में निवेश किया, तो उसने उस पैसे से ज्वेलरी, रियल एस्टेट, बुलियन ट्रेडिंग, फार्मेसी, प्रकाशन, शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में जमकर व्यवसाय किया और धन कमाया और फिर देश छोड़कर फरार हो गया। फर्म में तकरीबन 10 हजार निवेशकों ने 2,000 करोड़ रुपये का निवेश किया था। मंसूर खान ने लोगों से 14% से 18% तक के रिटर्न का वादा किया था।

मंसूर के फरार होने के 24 घंटे बाद ही एक ऑडियो क्लिप वायरल हो गई जिसमें मंसूर खान कह रहा था कि वो भ्रष्ट नेताओं और नौकरशाहों को रिश्वत देते-देते थक चुका है, इसलिए आत्महत्या करने जा रहा है। साथ ही इस ऑडियो क्लिप में मंसूर खान ने ये भी कहा कि बेंगलुरु के एक कॉन्ग्रेसी विधायक रोशन बेग ने उसके 400 करोड़ रुपए हड़प लिए हैं। ऑडियो क्लिप के वायरल होने के बाद सैकड़ों की संख्या में निवेशक आईएमए के ऑफिस पहुँचे और हमला करने की कोशिश की। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए पुलिस ने काफी संख्या में जवानों को तैनात किया, जिसके बाद स्थिति नियंत्रण में आई।

साल के अंत तक अमित शाह ही रहेंगे BJP अध्यक्ष, ये है वजह

भाजपा ने घोषणा की है कि साल के अंत में होने वाले तीन राज्यों (महाराष्ट्र, झारखंड व हरियाणा) के विधानसभा चुनाव तक अमित शाह ही संगठन की कमान संभालेंगे। खबरों के अनुसार इन तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव बेहद महत्वपूर्ण हैं, जिसके कारण पार्टी किसी तरह का कोई खतरा नहीं उठा सकती। जरूरत पड़ने पर अमित शाह की सहायता के लिए पार्टी किसी को कार्यकारी अध्यक्ष भी बना सकती है।

अमर उजाला में प्रकाशित खबर के मुताबिक पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा है कि 3 राज्यों (जिनमें विधानसभा चुनाव होने वाले हैं) में अमित शाह की जमीनी स्तर पर मजबूत पकड़ है। ऐसे में अगर संगठन की जिम्मेदारी किसी नए चेहरे को सौंपी जाएगी, तो उसे माहौल समझने में समय लगेगा, जबकि पार्टी के पास इसके लिए बिलकुल वक्त नहीं है।

भारतीय जनता पार्टी की बैठक का ब्यौरा देते हुए भूपेंद्र यादव ने बताया कि अमित शाह ने 2014 में अध्यक्ष बनते हुए कहा था कि पार्टी का सबसे अच्छा समय अभी नहीं आया है और आज एक बार फिर उन्होंने अपनी बात को दोहराया है। भूपेंद्र यादव के अनुसार अमित शाह ने फिर कहा है कि पार्टी का ‘पीक’ अभी नहीं आया है, जिन क्षेत्रों में पार्टी अभी नहीं पहुँची है उन सबमें पार्टी पहुँचेगी।

याद दिला दें कि लोकसभा चुनाव में 300 का आँकड़ा पार करके ऐतिहासिक जीत दर्ज कराने वाली भाजपा ने जीत का पूरा श्रेय अमित शाह की रणनीति और उनकी रणनीति को दिया था। गृह मंत्री पद संभालते ही ऐसी अटकलें लगनी शुरू हो गई थी कि उनके लिए अब मंत्रालय और पार्टी दोनों का कार्यभार संभाल पाना थोड़ा मुश्किल होगा। लेकिन फिर भी आगामी चुनावों को देखते हुए ये बड़ा फैसला लिया गया।

हालाँकि, बता दें भाजपा अध्यक्ष के रूप में अमित शाह का 3 वर्षीय कार्यकाल इस साल की शुरुआत में ही समाप्त हो गया था, लेकिन तब भी पार्टी ने उनसे चुनाव तक पद पर बने रहने को कहा था। भाजपा के संविधान के अनुसार किसी व्यक्ति को लगातार 2 कार्यकाल के लिए अध्यक्ष चुना जा सकता है। उस हिसाब से अभी शाह के पास 1 कार्यकाल बाकी है।

हड़ताल पर बैठे डॉक्टरों को मिला दिल्ली से समर्थन, सफदरजंग और AIIMS भी ‘बंद’

पश्चिम बंगाल में जूनियर डॉक्टरों की हड़ताल का असर देश के अन्य राज्यों में भी दिखने लगा है। दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन (DMA) ने भी शुक्रवार (जून 14, 2019) को बंद रखने का फैसला किया है, वहीं महाराष्ट्र के रेजीडेंट डॉक्टर भी शुक्रवार को सांकेतिक हड़ताल पर रहेंगे।

हड़ताल के चलते मरीजों और उनके परिजनों को संकट का सामना करना पड़ रहा है। बंगाल में डॉक्टरों द्वारा की जा रही हड़ताल को हर ओर से समर्थन प्राप्त हो रहा है। इस हड़ताल के कारण कई सरकारी अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों में हड़ताल के तीसरे दिन भी ओपीडी सेवाएँ, पैथोलॉजिकल इकाइयाँ और आपातकालीन वार्ड बंद रहे। इसके अलावा निजी अस्पतालों में भी हड़ताल के चलते चिकित्सीय सेवाएँ बंद रहीं।

बंगाल के डॉक्टर कोलकाता में एनआरएस मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में एक 75 वर्षीय मरीज की मौत के बाद, 200 लोगों की भीड़ द्वारा डॉक्टरों पर हमले के मद्देनजर प्रदर्शन कर रहे हैं। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने भी घटना के ख़िलाफ़ हड़ताल कर रहे डॉक्टरों के साथ एकजुटता दिखाने के लिए शुक्रवार को अखिल भारतीय विरोध दिवस घोषित किया है।

दिल्ली में एम्स और सफदरजंग हॉस्पिटल के रेजिडेंट डॉक्टरों के साथ कई संस्थाओं ने शुक्रवार को हड़ताल का आह्वान किया है। सफदरजंग अस्पताल की रेजिडेंट डॉक्टर एसोसिएशन (RDA) ने भी बंद का आह्वान किया है। आरडीए के अध्यक्ष डॉ. प्रकाश ठाकुर के मुताबिक, डॉक्टरों के खिलाफ हिंसा नहीं रुकी तो वे अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाने को मजबूर होंगे। हालाँकि एम्स के महासचिव डॉक्टर के अनुसार इस बीच आपातकालीन सेवाएँ जारी रहेंगी, लेकिन ओपीडी, रूटीन सर्जरी और लैब में होने वाली जाँच बंद रहेगी।

बता दें बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के तानाशाही रवैये के बाद भी डॉक्टर अपने काम पर नहीं लौटे। गुरुवार को दोपहर 2 बजे की समय सीमा ममता बनर्जी ने डॉक्टरों के काम पर लौटने के लिए रखी थी, लेकिन डॉक्टर फिर भी हड़ताल पर बैठे रहे। इस हड़ताल के लिए ममता सरकार और भाजपा एक दूसरे पर आरोप मढ़ने में लगे हैं। ममता बनर्जी ने जहाँ डॉक्टरों के इस हड़ताल की निंदा करते हुए इसे माकपा और भाजपा का षडयंत्र बताया, वही विपक्ष का भी कहना है कि ममता हिटलर की तरह काम करती हैं।

सरकारी डॉक्टर की जान बनाम मुस्लिम वोटबैंक को निहारती निर्मम ममता जो दंगे पीती, खाती और सोती है

भारत में डॉक्टर बहुत कम हैं। जनसंख्या बहुत ज़्यादा है। जनसंख्या के पास धैर्य बहुत कम है। लोग हॉस्पिटल जाते हैं। कुछ लोग इलाज कराने जाते हैं, कुछ जान बचाने जाते हैं। कुछ तो लगभग मृतप्राय शरीर के साथ पहुँचते हैं। मरीज़ रास्ते में मर जाता है। मरीज़ डॉक्टर के आला छाती पर सटाने के दो मिनट बाद मर जाता है। मरीज़ ऑपरेशन थिएटर में टेबल पर मर जाता है।

क्या डॉक्टर कभी चाहता है कि उसका मरीज़ मर जाए? वही डॉक्टर जो आपका सरदर्द भी ठीक कर देता है तो आप उसे दुआएँ देते रहते हैं, वही डॉक्टर क्या आपके परिजन को जान-बूझ कर मार देगा? वही डॉक्टर जो हर जान बचाने पर लगभग भगवान का रूप बता दिया जाता है, कभी चाहेगा कि उसके सामने छाती पकड़ कर कराहता मरीज़ प्राण त्याग दे?

अब आपका एक आर्गुमेंट आएगा कि डॉक्टर आज-कल पैसा बनाने में व्यस्त हो गए हैं, बिना काम के टेस्ट लिख देते हैं आदि। पैसा बनाने में हम में से निन्यानवे प्रतिशत लोग व्यस्त हैं, बस हमें दूसरों के बनते पैसों में लगता है कि वो शॉर्टकट से बना रहा है। इसलिए ये कुतर्क तो बाहर रहने दीजिए। हाँ, इस बात पर मैं सहमत हूँ कि कई बड़े हॉस्पिटलों में जबरदस्ती ऐसे टेस्ट लिख दिए जाते हैं जिसकी ज़रूरत नहीं होती।

उसका दूसरा पहलू यह है कि आज-कल मेडिको-लीगल कोर्ट केस इतने बढ़ गए हैं कि जब सामने वाला वकील आपसे यह पूछे कि क्या आप विश्वास के साथ कह सकते हैं कि फ़लाँ टेस्ट, जो आपने नहीं किया, उसी के कारण यह व्यक्ति नहीं मरा, तो आप जवाब नहीं दे पाएँगे। आपसे पूछ लिया जाए कि आप किस शोध के आधार पर कह रहे हैं कि सरदर्द के लिए ख़ून के जाँच की ज़रूरत नहीं होती और आपने जो टेस्ट नहीं किया उससे कुछ ऐसा नहीं निकलता जिससे इसकी जान बच जाती, तो आप निरुत्तर हो जाएँगे। फिर आपकी नौकरी जाएगी, और शायद लाइसेंस भी। इसलिए, अब ऐसे मामलों से बचने के लिए भी बिना काम के टेस्ट करा लिए जाते हैं।

लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि बड़े हॉस्पिटल इससे पैसा नहीं बना रहे। बिलकुल बना रहे हैं, लेकिन हम दूसरे पक्ष को पूरी तरह इग्नोर नहीं कर सकते। कई बार यह ख़बर भी आती है कि फ़लाँ हॉस्पिटल में सर दर्द के साथ गए थे, और पचास दिन आईसीयू में रखने के बाद लाश के साथ सत्रह लाख का बिल देकर हॉस्पिटल ने विदा किया। ऐसी खबरें गलत नहीं होतीं और बिजनेस की क्रूर दुनिया में हॉस्पिटल मैनेजमेंट इस तरह के कुकृत्य करते हुए कई बार पकड़े गए हैं। इनसे इनकार नहीं है।

ये सब एक तरफ, और दूसरी तरफ भारत सरकार की शिक्षा पद्धति से पढ़ा डॉक्टर, कम संसाधन में किसी सरकारी चिकित्सालय में अपनी सेवाएँ दे रहा होता है। उसने कड़ी मेहनत की, और सरकारी हॉस्पिटल में कम सैलरी पर काम करने लगा। वो सिर्फ डॉक्टर रह जाता है, उसकी जाति, उसका धर्म, उसका मज़हब, उसका क्षेत्र और उसकी तमाम आईडेंटिटीज़ गौण हो जाती हैं। वो समाज के उन तबक़ों के लोगों का इलाज करता है जो बेहतर जगहों पर नहीं जा सकते।

ऐसी जगहों पर वो लोग भी आते हैं जिनकी साध्य बीमारियाँ पैसों के अभाव में असाध्य हो जाती हैं। परिजन सोचते हैं कि ये तो कैंसर नहीं है, फिर ये कैसे मर गया। वो पूछते हैं कि डॉक्टर ने उसे बचाया क्यों नहीं? जबकि डॉक्टर के हाथ में कुछ नहीं रहा हो, वो उस स्थिति में पहुँच चुका हो कि उसकी मृत्यु का उपक्रम उसी डॉक्टर की टेबल पर होना बचा हो। तब आवेश में परिवार वाले डॉक्टर को पीट देते हैं, गालियाँ देते हैं, और कई बार सारा दोष उस पर डाल कर उसकी हत्या तक कर देते हैं।

प्रोफेशनल हजार्ड या मजहबी आतंक का एक रूप?

इसे अंग्रेज़ी में प्रोफ़ेशनल हजार्ड बोला जाता है। हिन्दी में अर्थ होता है पेशे में होने के कारण आने वाले ख़तरे। यानी, मान कर चलिए कि ये काम कर रहे हैं तो ऐसा भी हो सकता है। इसलिए क्रिकेटर लोग हेलमेट पहनते हैं। क्रिकेट खेलना उनका पेशा है, और गेंद का सर पर लगना उस पेशे से होने वाला ख़तरा। वही ख़तरा डॉक्टरी में गाली, थप्पड़, घूँसे, जूते से लेकर, अब बंगाल को देखें तो, 200 दंगाईयों की भीड़ द्वारा डंडे और ईंट तक का रूप ले चुका है।

75 साल की उम्र का मोहम्मद सईद नाम का एक व्यक्ति NRS हॉस्पिटल में इलाज के लिए आता है, डॉक्टर उसे बचा नहीं पाते। डॉक्टरों का कहना है कि मौत प्राकृतिक कारणों से हुई। परिवार वालों को जाने क्या सूझी कि वो दो ट्रक में 200 लोग ले आए और हॉस्पिटल के दो डॉक्टरों की लगभग जान ही ले ली। एक के सर पर ईंट लगी और खोपड़ी में फ़्रैक्चर हो गया लेकिन अब वो स्टेबल बताया जा रहा है, दूसरा गंभीर रूप से घायल है।

जब यह हमलावर भीड़ अपना उत्पात मचा रही थी तो प्रशासन इसे क़ाबू करने में पूरी तरह से विफल रहा। दूसरी घटना बर्धमान मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल की बताई जा रही है कि वहाँ भी भीड़ ने डॉक्टरों पर पत्थरबाज़ी की। कई डॉक्टर वहाँ भी घायल हुए। हालाँकि, कुछ मीडिया संस्थान इस ख़बर को नकार रहे हैं लेकिन सोशल मीडिया पर वहाँ के कुछ लोग बता रहे हैं कि स्थिति बहुत तनावपूर्ण है। तीसरी घटना में बताया जा रहा है कि एक डेंटल कॉलेज के छात्र को रास्ते में डॉक्टर वाला निशान देख कर लोगों ने रोक कर पीट दिया।

सोमवार से चल रहे इस घटनाक्रम के परिणामस्वरूप बुधवार को बंगाल के लगभग सारे ओपीडी बंद रहे और कई मेडिकल कॉलेजों के जूनियर डॉक्टर हड़ताल पर डटे रहे। ममता बनर्जी का कोई अता-पता नहीं था। लेकिन जब वो हरकत में आई तो बातचीत के इरादे से नहीं, वरन धमकी के साथ कि अगर चार घंटे में हड़ताल बंद नहीं हुई तो वो एक्शन लेगी। साथ ही, चार दिनों से सोए प्रशासन की प्रमुख ने डॉक्टरों को यह आश्वासन भी नहीं दिया कि उनकी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी सरकार लेगी।

उसके बाद ‘ये भाजपा की साज़िश है’ वाला राग अलाप कर ममता ने जो बयान दिया है वो सुन कर लोग सर पकड़ लेंगे कि आखिर ये चाहती क्या हैं? ममता ने कहा कि पुलिस वालों की भी मौत हो जाती है तो क्या वो हड़ताल पर बैठ जाते हैं! ये वाक्य इतना वाहियात है कि इस पर सफ़ाई माँगना भी बेकार है।

जैसे-जैसे समय बीत रहा है, देश के हर राज्य से एक के बाद एक हॉस्पिटल अपने साथी डॉक्टरों के साथ खड़े होते दिख रहे हैं और सांकेतिक हड़ताल कर रहे हैं। बंगाल में स्थिति बहुत ही संवेदनशील बनी हुई है क्योंकि ममता को यह समझ में नहीं आ रहा है कि चार दिन पहले मोहम्मद सईद की मृत्यु के बाद जो दो सौ दंगाईयों ने डॉक्टरों को पीटा और सर तोड़े, उन पर कार्रवाई कैसे करे। समय शायद इसलिए लग रहा है क्योंकि नाम में मोहम्मद है, राम होता तो अभी तक जेल में होते।

इन मौक़ों पर ममता ने एस्मा कानून की दुहाई देते हुए कहा है कि डॉक्टरों को काम पर लौटना ही होगा। और डॉक्टरों ने क्या किया? उन्होंने एक साथ इस्तीफा दे दिया। ममता ने स्वीकार नहीं किया लेकिन वो उन्हें आश्वस्त भी नहीं कर पाईं कि प्रशासन उन्हें सुरक्षित माहौल में काम करने देगा। सुरक्षित माहौल तो छोड़िए उसी हॉस्पिटल में, टाइम्स ऑफ इंडिया की रिर्पोट के अनुसार, पचास गुंडे आठ बजे रात में घुस गए और उस तरफ गए जहाँ डॉक्टर हड़ताल पर बैठे हैं। अंधेरे में उन्हें कोई पहचान नहीं पा रहा। ज़ाहिर है कि ये भी एक तरीक़ा है डराने-धमकाने का।

ममता की राजनैतिक हालत खराब है

ममता की राजनैतिक हालत बहुत खराब है। हिंसा का दौर रुक नहीं रहा, पोलिटिकल कैपिटल ये खो चुकी हैं। एक झटके में भाजपा ने इनसे आधा बंगाल ले लिया और तिलमिलाई-सी यह नेत्री अपना पारम्परिक वोटर बेस खोना नहीं चाहती। इस राजनीति की बलि भाजपा के कार्यकर्ता भी चढ़ रहे हैं, और बंगाल की आम जनता भी। यही राजनीति अब अपने पाँव पसार कर बंगाल के हॉस्पिटल तक पहुँच गई है जहाँ मोहम्मद सईद की मौत पर प्रोपेगेंडा चलाने वाला अख़बार ‘द टेलिग्राफ़’ उसकी बेटी का यह बयान छापता है कि उसकी माँ की मृत्यु भी उसी अस्पताल में हुई थी, जैसे कि वहाँ के डॉक्टर इंतजार में बैठे थे कि सईद ज्यों ही आएगा उसकी जान ले लेनी है।

अब ममता बनर्जी के हाथ में बस तृणमूल की गुंडई और समुदाय विशेष के उत्पात का ही सहारा है। समुदाय विशेष ने ममता की मदद खूब की है। हर त्योहार पर दंगे की शक्ल लेते जुलूस, दुर्गा विसर्जन की इजाज़त न देना, रामनवमी के जुलूस पर पत्थरबाज़ी, दुर्गा पूजा के पंडालों पर ईंट फेंकना, लगभग हर जिले में मजहबी उन्माद की परिणति आगजनी और दंगे में होना… ये सब बंगाल का पर्याय बन चुके हैं। बंगाल जल रहा है और ममता सोच रही है कि इसको कैसे खेला जाए।

सत्ता के लालच में अंधी हो चुकी यह महिला सारे हथकंडे आज़माना चाहती है कि शायद केन्द्र विवश हो कर राष्ट्रपति शासन की सिफ़ारिश कर दे और इसे ‘बाहर से आए मोदी ने तुम बंगालियों की लोकतांत्रिक सरकार पर हमला बोला है’ कहने का मौका मिले और इसकी पैठ मजबूत हो। अब ममता के पास यही कार्ड बचा है। हिंसा और दंगे तो इतने आम हो गए हैं कि पहले तो पत्रकारिता का समुदाय विशेष ममता की चाटुकारिता के चक्कर में कवर नहीं करता था, अब ये इतने आम हो गए हैं कि क्या कवर करे, क्या छोड़े, यही सोचकर कवर नहीं कर रहा।

बंगाल में जो हो रहा है वो ऐतिहासिक है। जो बंगाल में हैं वो जानते हैं कि कुछ इलाके ऐसे भी हैं जहाँ हिन्दू परिवार घर में आलू उबाल कर गुज़ारा कर रहा है क्योंकि समुदाय विशेष उनके घर से निकलने पर हमला बोल सकता है। वोट बैंक के चक्कर में मुस्लिम ध्रुवीकरण की राजनीति करने वाली ममता जो बो रही है, वो उसे काटना होगा। अगर मुस्लिम इकट्ठा होंगे तो उसका सीधा परिणाम हिन्दुओं के एकजुट होने से होगा।

दंगाईयों का दुस्साहस और ममता की गायब पुलिस

बंगाल के लोग जानते हैं कि ममता बनर्जी की आवाज पर जो लोग ट्रकों में रॉड और मशाल लेकर बर्धमान से लेकर मालदा, पुरुलिया, मुर्शीदाबाद, आसनसोल जैसी हर जगह पर आग लगाने निकल जाते हैं वो कौन हैं, कहाँ से आए हैं, और क्यों आए हैं। बंगाल के लोगों ने लोकसभा चुनाव में ममता को अपनी जगह दिखा दी है कि इतनी हिंसा और धमकी के बीच भी अगर तीन साल में भाजपा अपना वोट शेयर तृणमूल के बराबर ले आती है, तो ममता आँख मूँद कर नमाज़ करने की एक्टिंग जितनी कर ले, बंगाल रेत की तरह फिसल रहा है उसकी गिरफ़्त से।

सोचने वाली बात तो यह है कि आखिर एक स्टेशनरी की दुकान चलाने वाले आम व्यक्ति में यह हिम्मत कहाँ से आती है कि वो अपने वृद्ध बाप की प्राकृतिक मौत पर दो सौ गुंडे बुला लेता है और हॉस्पिटल पर धावा बोल देता है? कहीं न कहीं उसने तो यही सोचा होगा कि वो बच जाएगा क्योंकि उसके नाम में रामधोनु वाला राम नहीं तथाकथित सेकुलर रोंगधोनु वाले ‘रोंग’ सेकुलर हैं। ये दुस्साहस कहाँ से आता है कि परिवार नहीं पूरी भीड़ जमा हो जाती है और उसके पास ईंट और पत्थर होते हैं फेंकने के लिए?

ये तो व्यवस्थित तरीके से हमला बोलना हुआ। ये भीड़ इतनी जल्दी कैसे आती है, कहाँ हमला करती है और किधर गायब हो जाती है? क्या पुलिस ने नहीं देखा इन्हें? क्या हॉस्पिटल में सुरक्षा के लिए पुलिस आदि नहीं होती या फिर इस पहचानहीन भीड़ का सामूहिक चेहरा ममता की पुलिस ने पहचान लिया और उन्हें वो करने दिया जो वो कर गए?

इसी भीड़ की हिमाक़त ममता जैसी तानाशाही प्रवृत्ति के राजनेताओं के दिमाग में इतना उन्माद भर देती है कि वो समझदारी से मुद्दे को सुलझाने की जगह धमकी देती है कि डॉक्टरों के रजिस्ट्रेशन कैंसिल किए जाएँगे, इंटर्नशिप का लेटर नहीं दिया जाएगा…

ममता को इतने पर नहीं रुकना चाहिए था। वो सुबह उठ कर यह घोषित कर दे कि बंगाल अपने आप में एक स्वतंत्र राष्ट्र है और वो वहाँ की साम्राज्ञी हैं। बंगाल की पुलिस को रातों-रात आर्मी बना दिया जाए और अपने नाम के विपरीत कार्यों की शृंखला में हर हॉस्पिटल के सामने आर्मी कैंटोनमेंट से तोपें लाकर खड़ी कर दी जाएँ और ऐलान कराया जाए कि काम करो, या टैंक के गोले झेलो।

तब हमारे बड़े-बड़े पत्रकार क़सीदे लिखेंगे कि इस समाज ने हमेशा ही महिला नेत्रियों को आगे बढ़ने से रोका है। वो इसलिए क़सीदे लिखेंगे क्योंकि अभी उनकी आँखों में घोड़े का बाल चला गया है, और वो आज कल बंगाल में जो हो रहा है वो ठीक से देख नहीं पा रहे।

देश के लिए बलिदान हुए थे कॉर्पोरल निराला, गरुड़ कमांडो ने पैसे जुटाकर कराई बहन की शादी

डेढ़ वर्ष पहले पाँच जिहादियों को मार कर गरुड़ कमांडो और कॉर्पोरल ज्योति प्रकाश निराला ने अपने प्राण देश के लिए उत्सर्ग किए थे। उस समय उन्हें अशोक चक्र तो मिला और देश में उनके बलिदान का सम्मान सदैव रहेगा, लेकिन उनके परिवार के लिए उस समय आर्थिक कठिनाईयों का गंभीर प्रश्न खड़ा हो गया। आज खबर आ रही है कि अपने साथी सैनिक की ज़िम्मेदारियाँ पूरी करने का बीड़ा सेना के जवानों ने खुद उठाया और कॉर्पोरल निराला की बहन की शादी अपने चंदे के धन से कराई है।

जन्म बिहार, बलिदान कश्मीर में

बिहार के रोहतास में जन्मे कॉर्पोरल निराला को वीरगति कश्मीर में प्राप्त हुई थी। ज़की-उर-रहमान लखवी के भतीजे समेत छह लश्कर के जिहादियों को मार गिराने वाले बांदीपोरा में हुए ऑपरेशन में 31-वर्षीय कमांडो के शौर्य ने पूरे देश का सर गर्व से उठा दिया। उन्हें अशोक चक्र भी मिला।

सोशल मीडिया पर आरपीजी ग्रुप के चेयरमैन हर्षवर्धन गोयनका ने ट्वीट करते हुए बताया कि कमांडो निराला की बहन की शादी के लिए गरुड़ कमांडो यूनिट ने आपस में चंदा कर ₹5 लाख इकठ्ठा किए थे। यही नहीं, शादी की रस्म पूरी करने के लिए कमांडोज़ ने शादी में शिरकत भी की। उन्होंने शादी की एक रस्म के दौरान कमांडो यूनिट के सैनिकों की हथेलियों पर चलती कमांडो निराला की बहन की तस्वीर भी पोस्ट की।

Disclaimer: ऑपइंडिया इस खबर को केवल श्री गोयनका के ट्वीट के आधार पर कर रहा है और हमने इस घटना की स्वतंत्र जाँच नहीं की है। हालाँकि सामान्यतः ऑपइंडिया किसी एक स्रोत पर आधारित ऐसी स्टोरीज़ नहीं करता है, पर यहाँ हम एक बलिदानी सैनिक से जुडी कहानी होने के चलते, (और इस विश्वास से कि ऐसे गैरराजनीतिक, गैरविवादस्पद विषय पर झूठ बोलने का श्री गोयनका जैसे जाने माने सार्वजनिक जीवन जीने वाले व्यक्ति के पास कोई कारण नहीं होगा), अपवादस्वरूप यह स्टोरी कर रहे हैं।

अंतरिक्ष में भारत का नया लक्ष्य: 2030 तक होगा अपना स्पेस स्टेशन

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष के शिवन ने आज प्रेस कर जानकारी दी कि भारत अपना खुद का स्पेस स्टेशन बनाने की तैयारी कर रहा है। इसके लिए वर्ष 2030 तक का लक्ष्य रखा गया है, और सरकार ने इसके लिए ₹10,000 करोड़ के बजट आवंटन को आचार संहिता लगने के पहले ही मंजूरी दे दी थी। यह मिशन भारत के महत्वाकांक्षी ‘गगनयान’ मिशन का ही विस्तार होगा और इसके लिए भारत किसी भी देश का कोई सहयोग या सहायता नहीं लेगा।

एक बार फिर एलीट क्लब पर नज़र

इस मिशन के ज़रिए भारत की निगाहें एक बार फिर चुनिंदा देशों के क्लब में शामिल होना है, जिनके पास खुद के स्पेस स्टेशन हैं। अभी तक यह उपलब्धि केवल अमेरिका, चीन, रूस के पास है। अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (ISS) किसी एक देश नहीं बल्कि कई देशों के एक संघ के नियंत्रण में है, जिसमें रूस, कनाडा, जापान के अलावा अधिकांशतः यूरोपीय देश शामिल हैं।

20 टन के इस स्पेस स्टेशन का प्रयोग मुख्यतः न्यून-गुरुत्वाकर्षण (माइक्रोग्रेविटी) में होने वाले प्रयोगों के लिए किया जाएगा। शुरुआती योजना इसमें अंतरिक्ष यात्रियों के 15-20 दिन तक ठहरने का इंतजाम करने की है। हालाँकि, योजना की तस्वीर गगनयान की सफलता के बाद ही साफ़ हो पाएगी। गगनयान के अंतर्गत 2022 तक एक या दो उड़ानें पहले बिना चालक दल के करने के बाद चालक दल के साथ उड़ान 2022 के आसपास होगी।

फ़िलहाल चंद्रयान-2 पर ध्यान

फ़िलहाल इसरो का ध्यान चंद्रयान-2 पर है, जिसे 15 जुलाई को उड़ान भरनी है। यह चन्द्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने का प्रयास करेगा, जो कि अब तक मानव द्वारा अनछुआ है। चंद्रयान-2 लगभग दस वर्ष पुराने मिशन चंद्रयान-1 का अगला हिस्सा है। उसके अंतर्गत भारत ने चन्द्रमा पर अपना मिशन भेजा था।

AltNews की नई करतूत: अलीगढ़ मामले में SSP के नाम से छापे झूठे बयान

स्वघोषित फैक्ट चेकिंग पोर्टल AltNews ने अलीगढ़ में ढाई साल की मासूम बच्ची के जघन्य मर्डर केस में न सिर्फ मुख्य आरोपित ज़ाहिद, असलम के पापों को धुलने की कोशिश की, बल्कि अपने इस मुहीम को आगे बढ़ाने के लिए अलीगढ़ के एसएसपी आकाश कुल्हारी के स्टेटमेंट को भी गलत तरीके से ट्विस्ट देकर प्रस्तुत किया।

स्वघोषित फैक्ट-चेकर AltNews ने, जो कि खालीपन में चुटकुलों और मीम्स का भी फैक्ट चेक कर डालता है, ज़ाहिद और असलम के अपराधों को धोने-सुखाने के कुछ ज़्यादा तेजी से प्रयास किए और क्लेम कर दिया कि कोई रेप नहीं हुआ है। इसे साबित करने का आधार इन्होनें यह निकाला कि ऐसा उत्तर-प्रदेश पुलिस के कुछ अधिकारियों का वैसा कहना है।

6 जून को प्रकाशित अपने रिपोर्ट में AltNews ने SSP आकाश कुल्हारी को कोट करते हुए लिखा-

“एसएसपी अलीगढ़ के मुताबिक पीड़िता का रेप नहीं हुआ है, पोस्ट मार्टम रिपोर्ट के अनुसार गला घोंटने से उसकी हत्या हुई है। सोशल मीडिया पर जो दावा किया जा रहा है कि उसकी आँखें बाहर आ गई थी और उसकी बाँह उखड़ी हुई थी, भी गलत है। उसके शरीर पर एसिड डाला गया था यह भी गलत है, ऐसा कुछ नहीं हुआ था। पोस्टमार्टम रिपोर्ट पीड़िता के परिवार से भी साझा किया गया है।”

ऑपइंडिया ने घटना के बाद से ही एसएसपी से बात करने की कोशिश की और आज जब उनसे संपर्क हुआ तो AltNews के झूठ की कई और परतें खुल गई। हालाँकि, ऑपइंडिया ने पहले भी कई बार AltNews को बेनकाब किया है और AltNews के अलीगढ़ वाली रिपोर्ट और फैक्ट चेक का भी हमने फैक्ट चेक कर उनके अजेंडे का खुलासा किया था। इसी घटना के सम्बन्ध में जब ऑपइंडिया ने एसएसपी आकाश कुल्हारी से बात की तो उन्होंने साफ कहा कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में रेप हुआ या नहीं ऐसा कोई दावा नहीं किया गया। उन्होंने यह भी कहा कि पुलिस ने अभी दो हॉस्पिटल को पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट भेजी है, इस रिपोर्ट पर अपनी विस्तृत रिपोर्ट देने के लिए।

ऑपइंडिया ने एसएसपी आकाश कुल्हारी से यह भी पूछा कि क्या उन्होंने AltNews को कोई ऐसा स्टेटमेंट दिया था जिसमें यह दावा हो कि पीड़िता बच्ची की आँख बाहर नहीं निकली थी या उसकी बाँह उखड़ी हुई नहीं थी? एसएसपी कुल्हारी ने ऐसे किसी भी बयान से इनकार किया जो उनके नाम से AltNews ने ऊपर कोट किया है।

(नीचे दिए गए यूट्यूब लिंक पर आप एसएसपी आकाश कुल्हारी से हमारी बातचीत सुन सकते हैं)

ऑपइंडिया: सर, There is a website called AltNews where they have quoted you… कि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में लिखा है कि रेप नहीं हुआ है ?

SSP कुल्हारी : नहीं, ऐसा मैंने कुछ नहीं कहा

ऑपइंडिया: विक्टिम की जो आँखे gouged की थी, amputation of right arm क्या ऐसा नहीं है कुछ पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में ?

SSP कुल्हारी: रिपोर्ट में ऐसा लिखा हुआ है

ऑपइंडिया : तो क्या उन्होंने आपको गलत कोट किया ?

SSP कुल्हारी : Yes, obviously. I think so.

एसएसपी कुल्हारी ने इस घटना के सम्बन्ध में यह भी कहा कि अगले 3-4 दिन में नए अपडेट्स आएँगे।

यहाँ यह साफ देखा जा सकता है कि कैसे AltNews ने ज़ाहिद और असलम के अपराध को कम करके दिखाने के लिए, स्वघोषित फैक्ट चेकर होते हुए भी तथ्यों से छेड़छाड़ की। झूठ का पर्दाफाश करने का झूठा दावा करने वाली AltNews जैसी वेबसाइट खुद ही एसएसपी के नाम से भी झूठ परोसती नज़र आ रही है।

AltNews ने यहाँ तक दावा कर दिया था कि Opindia की इस घटना पर पहली रिपोर्ट जिसमें बच्ची के शरीर के क्षत होने और बर्बरता की बात कही गई थी ‘फेक’ है। यहाँ उनका पूरा दावा इस आधार पर था कि आँख बाहर नहीं आई थी। जिसके बारे में हमनें डॉक्टर से बात की जिन्हे हमने पोस्टमार्टम रिपोर्ट दिखाया था। उन्होंने साफ कहा और यहाँ तक कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी यही कह रही है कि आँखे भी क्षतिग्रस्त थी।


अलीगढ़ मामले में AltNews की रिपोर्ट से


AltNews के रिपोर्ट जिसका टाइटल था, “Murder of a child in Aligarh: Fact-checking social media claims”, जिसमें AltNews ने दावा किया था कि OpIndia ने ‘झूठा दावा’ किया है कि पीड़िता की आँख बाहर आ गई थी। जिसके लिए झूठ इम्प्लान्ट करने का ठेका लेने वाले फैक्ट चेकर ने एसएसपी आकाश कुल्हारी के नाम से कुछ दावे भी किए जबकि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में साफ मेंशन है कि ‘eye tissue absent, orbital socket intact’.


अलीगढ़ मामले की पोस्ट मार्टम रिपोर्ट (image courtesy: journalist @anjanaomkashyap on Twitter)

ऑपइंडिया ने इस पोस्टमार्टम रिपोर्ट को कई डॉक्टरों को दिखाया। उन्होंने बताया कि बच्ची की मौत उसे लगने वाली कई गंभीर चोटों की वजह से हुई है। एक डॉक्टर ने यह भी स्पष्ट किया, “जख्म इतने गहरे और घातक हैं कि उससे शॉक और मौत निश्चित है। शॉक की पुष्टि वेसल्स के कोलैप्स होने से हो जाती है (ऐंटेमार्टम साइन) मृत्यु से पहले बहुत ज़्यादा ब्लड लॉस भी हुआ था।”

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर डॉक्टर्स का कहना है, “सबसे महत्पूर्ण बात यहाँ यह है कि उस बच्ची के गर्भाशय और जेनिटल सहित एब्डॉमिनल ऑर्गन भी गायब हैं। जो इस बात का सबूत है कि उसे वीभत्स तरीके से टार्चर किया गया था जिससे उसकी शरीर से अत्यधिक रक्तस्राव हुआ हो और जो उसके ब्लड वेसेल्स के कोलैप्स होने की वजह भी हो। बाकी दूसरे घातक जख्म, जैसे पाँव का घुटने के नीचे से फैक्चर होना और हाथ की एक हड्डी ह्यूमरस का उखड़ जाना, का वर्णन ही बर्बरता की पूरी कहानी कह रहा है। रेप की पुष्टि के लिए हालाँकि वेजाइनल स्वैब जाँच के लिए भेजा गया है लेकिन बॉडी डिकम्पोज होने की वजह से शायद ही इस जाँच के लिए उपयोगी हो। वैसे यहाँ यह जानना ज़रूरी है कि स्वैब का परिणाम नेगेटिव आना सेक्सुअल एक्ट के न होने का सबूत होता है।”

डॉक्टर ने आगे कहा, “उसकी दाहिने भुजा की हड्डी का उखड़ना और बाएँ पाँव का फ्रैक्चर निश्चित रूप से उसके मौत के पहले की घटना है। उसके एब्डॉमिनल अंगों का गायब होना भी उसके साथ हुई बर्बरता का सबूत है।”

यहाँ गौरतलब है कि ऐसे स्वघोषित एक्टिविस्ट के लिए पुलिस का स्टेटमेंट ही अंतिम सत्य की तरह है क्योंकि यह इनके एजेंडे और नैरेटिव को आगे बढ़ा रहा है। यदि इनके एजेंडे को शूट नहीं कर रहा है तो यह गिरोह कोर्ट के निर्णय को भी मानने से इनकार कर देगा। AltNews के इसी तर्क से सवाल यहाँ यह भी है कि क्या AltNews के संस्थापक इशरत जहाँ के मामले में यह स्वीकार सकते हैं कि वह एक आतंकी थी क्योंकि कई पुलिस वालों ने ऐसा कहा है। हम सब को उनका जवाब पता है।

दूसरे आरोपित असलम को भी AltNews ने बचाने की कोशिश की थी, जिस पर पहले से अपनी बेटी और एक और बच्ची के साथ रेप का आरोप है। उसे पहले भी पॉक्सो के तहत गिरफ्तार किया जा चुका है।

हालाँकि, AltNews ने सोशल मीडिया पर लम्बी फजीयत के बाद और पोस्ट मॉर्टम रिपोर्ट से उसके हर झूठ की कलई खुलने के बाद, AltNews ने अपनी ऑरिजिनल रिपोर्ट को अपडेट किया, यह कहते हुए कि हमने एक बार फिर एसएसपी आकाश कुल्हारी से संपर्क किया, जिन्होंने कन्फर्म किया कि हाँ, बच्ची की बाँह उखड़ी हुई थी। सिर्फ इतना जिक्र कर भी AltNews ने उस क्रूरता से इनकार ही किया जिसका जिक्र पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में है।

अब यहाँ आश्चर्य की बात यह है कि जब एसएसपी खुद ही इनकार कर रहे हैं तो फैक्ट चेकर ने जब जज बनकर पूरी घटना की गंभीरता को कम करना चाहा और सारे निष्कर्ष बिना किसी परिणाम के थोप दिए तो आखिर वह अपने उस निर्णय तक पहुँचे कैसे? ना सही स्टेटमेंट और न ही पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट? क्या महज अजेंडा सेटिंग ही नहीं था वह फैक्ट चेक क्योंकि यहाँ आरोपित दूसरे मजहब है और पीड़िता एक हिन्दू?

इस पूरे प्रकरण से कई और सवाल उभर कर सामने आते हैं–

  1. AltNews ने सोशल मीडिया पर अफवाहों के फैक्टचेक के लिए पुलिस के बयान पर ज़्यादा यकीन किया बनिस्बत पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के।
  2. AltNews अपने एक पॉइंट को सिद्ध करने के लिए पुलिस अधिकारी का ट्विस्टेड बयान का प्रयोग किया न कि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट का।
  3. AltNews ने यहाँ मात्र अपने अजेंडा सेटिंग के लिए तथ्यों की जगह अपनी कल्पनाओं और झूठ का प्रयोग कर आरोपितों के अपराध को कम कर दिखाना चाहा।
  4. AltNews को यह भी नहीं पता कि प्राइमरी पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट क्या होती है। जिसमे इस बात का जिक्र नहीं होता कि रेप हुआ है या नहीं। वास्तव में पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट या ऑटोप्सी केवल यह पता करने के लिए होता है कि मौत का कारण क्या था और जख्मों की विस्तृत जाँच पड़ताल की जाती है जो मृत्यु की वजह बने। ऑपइंडिया ने जब इस सम्बन्ध में डॉक्टर से बात की तो उन्होंने बताया कि रेप की पुष्टि वजाइनल स्वैब की रिपोर्ट आने के बाद ही होती है। अलीगढ़ मामले में भी अभी तक रिपोर्ट का इंतज़ार है जिसमें आमतौर पर 1 सप्ताह से 1 महीने तक का भी समय लग सकता है। प्राइमरी रिपोर्ट वास्तव में अंतिम निष्कर्ष नहीं होती।
  5. AltNews ने शायद अपने प्रोपेगेंडा और अपनी धूर्तता से विवश होकर सोशल मीडिया फैक्ट चेक के नाम पर इस पूरे मामले की गंभीरता को कम करके दिखाने की कोशिश की, क्योंकि यहाँ आरोपित दूसरे विशेष मजहब से थे और यह घटना रमजान के पाक महीने में हुई थी।

इतनी सारी विसंगतियों को देखते हुए अब तो AltNews को कायदे से मेमे चेक करने के व्यवसाय में आ जाना चाहिए क्योंकि गंभीर और अतिसंवेदनशील मसले में फैक्ट चेक के नाम पर टाँग घुसा कर पाठकों को गुमराह करना भी गुनाह है। लेकिन, क्या करें AltNews! अजेंडा और प्रोपेगेंडा भी तो कोई चीज होती है और उसके बल जब फैक्ट चेक एक धंधा बन जाए तो सत्य के प्रति जिम्मेदारी हमारी-आपकी और बढ़ जाती है। ऑपइंडिया अपनी सत्य के प्रति प्रतिबद्धता हर बार ऐसे छद्म स्वघोषित फैक्ट चेकरों को बेनकाब कर करेगी।

‘हमारे बच्चे एससी महिला द्वारा तैयार भोजन कभी नहीं खाएँगे’, दलित आंगनवाड़ी कर्मी का तबादला

तमिलनाडु से आई इस ख़बर से आज के समाज की विकृत मानसिकता का पता चलता है कि माँ-बाप अपने बच्चों को आख़िर क्या शिक्षा देंगे जब उन्हें किसी महिला द्वारा भोजन बनाना तो छोड़िए, उस जगह पर खड़े होने पर भी आपत्ति है। ज्योतिलक्ष्मी और अन्नलक्ष्मी नामक दो महिलाओं को उनके दलित समाज से आने के कारण, ग्रामीणों के विरोध के बाद उनका ट्रांसफर कर दिया गया।

द हिन्दू की एक ख़बर के अनुसार, 3 जून को, एम अन्नालक्ष्मी को मदुरै कलेक्टर के कार्यालय से एक आदेश (अप्वाइंटमेंट लेटर) मिला, जो उनके गाँव वालयापट्टी में आंगनवाड़ी कार्यकर्ता के रूप में उनकी नियुक्ति से संबंधित था। दरअसल, अन्नलक्ष्मी, एक अनुसूचित जाति (एससी) की महिला हैं, जिनकी नियुक्ति आंगनवाड़ी केंद्र में एक सहायक और रसोइया के रूप में हुई थी। अगले ही दिन ज़िला प्रशासन द्वारा अन्नलक्ष्मी का तबादला पास के गाँव किलवनरी में कर दिया गया। वहीं एक अन्य दलित महिला ज्योतिलक्ष्मी का तबादला मादीपनुर में कर दिया गया।

अन्नलक्ष्मी ने बताया, “गाँव के हिन्दू तिरुमंगलम तालुक के आईसीडीएस कार्यालय गए थे जहाँ उन्होंने कहा कि उनके बच्चे एससी महिला द्वारा तैयार भोजन कभी नहीं खाएँगे।” आज हम जिस युग में रह रहे हैं, वहाँ इस प्रकार का भेदभावपूर्ण व्यवहार गले नहीं उतरता। हद तो तब पार हो जाती है जब कोई मामला इतना संगीन हो जाए कि बात जान पर बन पड़े।

ख़बर के अनुसार, 8 जून को, दलित कॉलोनी में मानों कोई तूफ़ान आ गया हो। उनके इलाक़े में हिंसात्मक गतिविधियों को अंजाम दिया गया। जब दलित शिकायत दर्ज करने के लिए नागायापुरम थाने गए, तो कुछ हमलावरों ने उनके घरों में घुसकर बिजली मीटर के बक्से, दरवाज़े और वाहन तोड़ दिए। यहाँ तक कि उनके पशुओं पर हमला भी किया। इस झड़प में कुछ लोग गंभीर रूप से घायल भी हो गए।

इस घटना पर ज्योतिलक्ष्मी ने कहा, “कितने दु:ख की बात है कि मैं अपने ही गाँव में काम करने में असमर्थ हूँ।” ऐसे हिंसक माहौल को देखना किसी के लिए भी आसान नहीं होगा। ख़ासतौर पर तब, जब सज़ा किसी ऐसी ग़लती की मिले जो की ही न गई हो। फ़िलहाल स्थिति यह है कि दोनों महिलाएँ अब अकेले घर जाने तक से डरती हैं।

ज्योतिलक्ष्मी ने बताया कि उन्हें 4 जून को अपने गाँव की आंगनवाड़ी में न जाने के लिए कहा गया था। उन्होंने कहा, “मैं एक मेडिकल परीक्षा के बाद एक प्रमाण-पत्र जमा करने के लिए गई थी, जो काम शुरू करने के लिए तैयार किया गया था। लेकिन वहाँ के अधिकारी ने मुझे बताया कि मेरे गाँव के कई पुरुष और महिलाएँ हमारी नियुक्ति के विरोध में आए थे। उन्होंने स्पष्ट रूप से अधिकारी से कहा था कि वे दलितों द्वारा तैयार भोजन को कभी नहीं छूएँगे।”

दोनों महिलाओं के अनुसार, यह भेदभावपूर्ण रवैया उस वक़्त खुलकर सामने आया जब अप्रैल में दलितों को स्थानीय मुथलम्मन मंदिर उत्सव में पूजा करने की अनुमति नहीं दी गई। उन्होंने कहा, “पुरुषों ने हमें मंदिर के बाहर तक नारियल तोड़ने की अनुमति नहीं दी।”

ज्योतिलक्ष्मी ने अपनी कड़ी मेहनत पर रोशनी डालते हुए बताया कि उन्होंने इस नौकरी के लिए 18 साल की उम्र से कोशिश की थी क्योंकि वो हमेशा से ही बच्चों को पढ़ाना चाहती थीं। वहीं, अन्नलक्ष्मी का कहना है कि इस तनाव के चलते उनका तबादला होना अत्यंत पीड़ादायक है।

इस मामले की जाँच पेरियार डीएसपी टी मथियालगन कर रहे हैं। अब तक 11 आरोपितों को न्यायिक हिरासत में भेजा जा चुका है। पुलिस ने SC/ ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989, और IPC के तहत मामले दर्ज किए हैं।

इस मामले पर कलेक्टर (प्रभारी) एस शांता कुमार ने बताया कि उन्होंने अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के साथ 11 जून को गाँव का दौरा किया। उन्होंने कहा, “कोई भी शख़्स अब अपने काम पर वापस जा सकता है और जहाँ तक ​​ज़िला प्रशासन का सवाल है, उसकी कार्रवाई अब बंद है।” फ़िलहाल, दोनों महिलाओं को अभी तक अपने उच्च अधिकारियों से वालयापट्टी में बहाली के संबंध में कोई जानकारी नहीं मिली है।