Monday, November 18, 2024
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‘मेरा एनकाउंटर किया जा सकता है, सांसदी छोड़कर लड़ूँगा विधानसभा चुनाव’

अपने विवादित बयानों से पहचाने जाने वाले समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान ने रविवार (मई 3, 2019) को अपनी सांसदी छोड़ने के संकेत दिए। उन्होंने संभावना जताई कि वो संसद से इस्तीफ़ा देने के बाद अगला विधानसभा चुनाव लड़ सकते हैं।

आजम खान ने राज्य सरकार पर कई आरोप भी लगाए। उनके अनुसार प्रदेश में उनको रास्ते से हटाने के लिए हर तरह की कोशिशें की गई हैं, उन पर आपराधिक इल्जाम मढ़े गए हैं और उनकी हत्या का प्रयास भी हुआ है। उनका कहना है कि अधिकारियों ने उनसे (आजम से) अपनी जान को खतरा इसलिए बताया है ताकि बाद में उन्हें हिस्ट्रीशीटर घोषित करके उनका एनकाउंटर किया जा सके। इसके साथ उन्होंने मीडिया पर भी आरोप लगाए कि मीडिया ने जनता के सामने उनकी छवि को ऐसे दिखाया है कि वह उत्तर प्रदेश के ऐसे सांसद हैं जिन पर सबसे अधिक आपराधिक मुकदमे हैं। 

सपा जिलाध्यक्ष के घर रोजा-इफ्तार पार्टी में मीडिया से हुई बातचीत में आजम खान ने रामपुर की हालत पर अपनी नाराज़गी जाहिर की है। उनका कहना है कि रामपुर में स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति बहुत बेकार है और अस्पतालों में डॉक्टर भी नहीं है। आजम खान के मुताबिक वह एक अस्पताल चला रहे हैं, लेकिन अब उसे बंद करने की कोशिश की जा रही है। उनकी शिकायत है कि रामपुर में एक बैराज के कंस्ट्रक्शन का काम भी लंबे समय से लंबित पड़ा हुआ है। जिसे पूरा होना चाहिए, लेकिन हो नहीं पा रहा है।

विरोध के बाद हटाई गई हिंदी की अनिवार्यता, सरकार ने समझाया ‘यह नीति नहीं, सिर्फ़ ड्राफ्ट है’

हिंदी भाषा को लेकर चल रहे विवाद के बीच केंद्र सरकार ने ‘ड्राफ्ट नेशनल एजुकेशन पॉलिसी’ में हल्का बदलाव किया है। सोमवार (जून 3,2019) को हुए इस बदलाव के बाद हिंदी भाषा को वैकल्पिक बना दिया गया है। ड्राफ्ट के बदले गए हिस्से में लिखा है, “लचीलेपन के सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए, जो भी विद्यार्थी पढ़ी जा रही भाषाओं में से एक या दो में बदलाव करना चाहते हैं (एक भाषा का ज्ञान साहित्य स्तर पर होना चाहिए), ऐसा वे छठी या सातवीं कक्षा में कर सकते हैं, जब तक कि वे बोर्ड परीक्षाओं में सभी तीन भाषाओं में अच्छा प्रदर्शन करने में सक्षम हैं।” यह पहले लिखी गई चीजों से अलग है।

जिस हिस्से में बदलाव किया गया है, उसमें पहले व्यवस्था दी गई थी कि हिंदी भाषी राज्यों में विद्यार्थी हिंदी व अंग्रेजी के सिवा एक अन्य भारतीय भाषा का अध्ययन करेंगे जबकि जिन राज्यों में हिंदी नहीं बोली जाती, वहाँ के छात्र हिंदी और अंग्रेजी के सिवा अपनी मातृभाषा में पढेंगे। इसे ‘Three Language Formula’ कहा जा रहा था। ड्राफ्ट पॉलिसी में साफ़-साफ़ कहा गया है कि बहुभाषा की जानकारी आज के भारत की ज़रूरत है और इसे एक भार की जगह मौक़ा के रूप में देखना चाहिए, ताकि अपने ज्ञान और सीखने की सीमा बढ़ाई जा सके।

इस बारे में अधिक जानकारी देते हुए केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री रमेश पोखरियाल ने कहा:

“सरकार अपनी नीति के तहत सभी भारतीय भाषाओं के विकास को प्रतिबद्ध है और किसी प्रदेश पर कोई भाषा नहीं थोपी जाएगी। हमें नई शिक्षा नीति का मसौदा प्राप्त हुआ है, यह रिपोर्ट है। इस पर लोगों एवं विभिन्न पक्षकारों की राय ली जायेगी, उसके बाद ही कुछ होगा। कहीं न कहीं लोगों को ग़लतफ़हमी हुई है। हमारी सरकार सभी भारतीय भाषाओं का सम्मान करती है और हम सभी भाषाओं के विकास को प्रतिबद्ध है। किसी प्रदेश पर कोई भाषा नहीं थोपी जाएगी। यही हमारी नीति है, इसलिए इस पर विवाद का कोई प्रश्न ही नहीं है।”

बता दें कि जब से ड्राफ्ट पॉलिसी पर चर्चा शुरू हुई थी, तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र जैसे राज्यों से विरोध के स्वर उठने लगे थे। कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी, तमिलनाडु में डीएमके के मुखिया स्टालिन और अभिनेता कमल हासन और महाराष्ट्र में एनसीपी ने इस पॉलिसी का विरोध किया है। हालाँकि, सरकार बार-बार यह स्पष्ट कर चुकी है कि यह कोई नीति नहीं है बल्कि ड्राफ्ट है, सिफारिश है, और इसमें चर्चाओं के बाद बदलाव किए जाएँगे। लेकिन, गैर-हिंदी भाषी राज्यों के नेता लगातार केंद्र सरकार पर हिंदी भाषा थोपने का आरोप मढ़ रहे हैं।

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी सरकार का पक्ष रखते हुए आश्वस्त किया कि यह सिर्फ़ एक रिपोर्ट है, और इस पर जनता से राय लेने के बाद ही आगे काम किया जाएगा। तीन भाषाओं का फॉर्मूला 1968 में पहली शिक्षा नीति लागू होने के बाद ही चालू कर दिया गया था। चूँकि, कम उम्र के बच्चे भाषाओं को ज़ल्दी सीखते हैं, इसीलिए उन्हें तीन भाषाओं का ज्ञान देने की बात कहीं गई थी। उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने कहा कि उत्तर भारतवासियों को दक्षिण भारत की और दक्षिण भारतवासियों को उत्तर भारत की भाषाएँ सीखनी चाहिए।

13 लोगों सहित सेना का AN-32 विमान लापता, चीनी सीमा के पास करना था लैंड

भारतीय वायु सेना का मालवाहक विमान एंटोनोव (एएन)-32 लापता हो गया है। तीन घंटे से इसका कोई पता नहीं चल रहा है। यह विमान असम के जोरहाट सैन्य हवाई अड्डे से अरुणाचल प्रदेश के चीनी सीमा के पास स्थित मेचुका घाटी के एडवांस्ड लैंडिंग ग्राउंड के लिए निकला था। विमान में चालक दल के 8 सैनिकों समेत 13 लोग सवार थे। वायुसेना ने इस विमान की खोज में अपने सी-130 और सुखोई-30 विमानों समेत सभी उपलब्ध संसाधनों को लगा दिया है

एयरक्राफ्ट एन-32 ने जोरहाट एयरबेस से दोपहर 12.25 पर टेकऑफ किया था। आखिरी बार एयरबेस से उसका 1 बजे कॉन्टैक्ट हुआ था।

पहले भी लापता हो चुके हैं विमान

सैन्य विमान लापता होने की यह पहली घटना नहीं है। इससे पहले 2016 में भी एक एएन-32 मॉडल का ही विमान 29 यात्रियों समेत गायब हो गया था। उस समय भी वायुसेना ने खोज में बहुत जद्दोजहद की थी मगर कोई सफलता हाथ नहीं लगी थी। अंततः विमान को दुर्घटनाग्रस्त, और उसमें सवार सभी 29 लोगों को मृत मान लिया गया था। चेन्नै के तंबरम एयरबेस से अंदमान निकोबार द्वीप समूह के लिए चला विमान बंगाल की खाड़ी में लापता हो गया था

श्री लंका: आत्मघाती हमले के बाद बौद्ध भिक्षु के आमरण अनशन पर हिज़्बुल्लाह और आज़ात सैली, 2 गवर्नरों का इस्तीफा

श्री लंका में दो प्रांतों के मुस्लिम समुदाय के गवर्नरों ने इस्तीफा दे दिया है। प्राप्त जानकारी के अनुसार उनका यह इस्तीफा एक बौद्ध भिक्षु के आमरण अनशन करने के बाद आया। दरअसल श्री लंका में 21 अप्रैल को ईस्टर के दिन हुए जिहादी आत्मघाती हमलों के बाद से ही भारी रोष व्याप्त है। श्री लंका की संसद में जन प्रतिनिधि अतुरलिए रतना तेरो- जो कि एक बौद्ध भिक्षु भी हैं- ने शुक्रवार (31 मई 2019) को आमरण अनशन शुरू कर दिया। रतना तेरो अपनी पाँच माँगों पर अड़े थे। उनका आरोप था कि आतंकी हमलों में मुस्लिम नेताओं की मिलीभगत है और इसकी जाँच की जानी चाहिए।

रतना तेरो की माँग थी कि मंत्री रिशाद बतीउद्दीन, और दो गवर्नर- ए एल ए एम हिज़्बुल्लाह और आज़ात सैली को इस्तीफा देना चाहिए। श्री लंका में सिंहली बौद्ध तबके और भिक्षुओं की माँग है कि मुस्लिम नेताओं की आतंकवादियों से संबंध की जाँच होनी चाहिए। हालाँकि मुस्लिम नेताओं ने इससे इंकार किया है। श्री लंका की जनता और अत्यधिक राजनैतिक दबाव के कारण मुस्लिम गवर्नरों को इस्तीफा देना पड़ा।

सांसद रतना तेरो के आमरण अनशन और माँग के आगे आखिरकार मुस्लिम गवर्नरों को झुकना पड़ा और और हिज़्बुल्लाह और सैली को इस्तीफा देना पड़ा। राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना ने दोनों का इस्तीफा स्वीकार कर लिया है। गौरतलब है कि रतना तेरो सत्ताधारी दल यूनाइटेड नेशनल पार्टी के सांसद हैं। श्री लंका के प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे भी इसी पार्टी के सदस्य हैं।

रतना तेरो कैंडी स्थित दालदा मालिगावा मंदिर के सामने शुक्रवार से अनशन पर थे। यह मंदिर कैंडी में स्थित है। सोमवार को रतना तेरो के समर्थन में भारी भीड़ वहाँ तक पहुँची। इस बीच सभी दूकाने बंद रहीं और अनशन के समर्थन में क्षेत्र में हड़ताल रही। मुस्लिम गवर्नरों के इस्तीफा देने के बाद आज करीब 3 बजे रतना तेरो ने अनशन समाप्त कर दिया।

इससे पहले पूर्व राष्ट्रपति और वर्तमान नेता प्रतिपक्ष महिंदा राजपक्षे के समर्थकों ने मंत्री बतीउद्दीन के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव रखा था जिसपर इस महीने के अंत में चर्चा होनी है।

ख्वाजा दरगाह परिसर से मुहम्मद सागर ने भीख मँगवाने को किया 3 साल की बच्ची का अपहरण

अजमेर के ख्वाजा गरीब नवाज दरगाह परिसर से गत 29 मई को शाम 7 बजे तीन साल की बच्ची का अपहरण करने वाले आरोपित को पुलिस ने महज 36 घंटे के भीतर गुजरात के गाँधी नगर से गिरफ्तार कर अपहृत बच्ची को सकुशल बरामद कर लिया। आरोपित मुहम्मद सागर व उसके चंगुल से छुड़ाई गई बच्ची को लेकर पुलिस टीम रविवार मई 02, 2019 को अजमेर पहुँची। प्रारंभिक पूछताछ में आरोपित ने भीख मँगवाने के लिए बच्ची का अपहरण कर भागने की जानकारी दी है। यह कार्रवाई अजमेर एसपी कुंवर राष्ट्रदीप सिंह के निर्देशन में की गई।

सीसीटीवी फुटेज से आया पहचान में

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, एसपी कुंवर राष्ट्रदीप ने बताया कि गिरफ्तार आरोपित मोहम्मद सागर चिश्ती है। वह गाँव राई खादीगी पुलिस थाना गाजल जिला मालदा, पश्चिम बंगाल हाल PSL कारगो सेक्टर-2 गाँधीधाम गुजरात में रहता है। इस संबंध में खुरजा, बुलन्दशहर (यूपी) निवासी एक महिला ने दरगाह थाने में रिपोर्ट दर्ज करवाई थी कि वह 29 मई को अपनी 14 वर्ष व 3 वर्ष की दो बेटियों तथा 8 वर्षीय एक बेटे के साथ शाम 4 बजे अजमेर स्थित ख्वाजा की दरगाह में हाजरी लगाने पहुँची थी।

बच्ची अपने भाई-बहनों के साथ जन्नति दरवाजे के सामने बैठी थी जहाँ पर तीनों बच्चे खेल रहे थे। तभी शाम करीब 7 बजे रोजा इफ्तारी के समय लौटे तो 3 साल की छोटी बेटी नहीं मिली। तब बच्ची की माँ ने दरगाह में मौजूद लोगों की सहायता से दरगाह में गुम हुई बेटी की तलाश शुरू की। मामला अजमेर एसपी कुंवर राष्ट्रदीप तक पहुँचा और एसपी के निर्देशन में एएसपी सरिता सिंह, दरगाह थानाप्रभारी हेमराज चौधरी व वृत्ताधिकारी सुरेंद्र सिंह बच्ची की तलाश में जुटे।

दरगाह से गुम हुई बच्ची की तलाश में दरगाह थाना स्टॉफ के अलावा गंज थाना व क्लाक टॉवर थाना पुलिस सहित सात टीमें गठित कर दी। पुलिस ने रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, प्रमुख बाजार और दरगाह परिसर और आसपास लगे सीसीटीवी फुटेज खंगालने शुरु किए। जिसमें सफेद शर्ट, नीली जीन्स व सफेद मुस्लिम टोपी सिर पर लगाए एक लड़का नजर आया। जिसकी गोद में तीन वर्षीया लाल रंग का टॉप पहने बच्ची नजर आई। वह दरगाह से शाम 7.05 बजे शाहजानी मस्जिद से महफिल खाना गेट पहुँचा।

इसके बाद मोहम्मद सागर बच्ची को गोद में लिए हुए मुख्य बाजार से होकर शाम 7:22 बजे क्लॉक टावर के पास से रेलवे स्टेशन के अंदर जाते हुए नजर आया। वहाँ वह प्लेटफॉर्म नंबर 2 पर नजर खड़ा नजर आया। इसके बाद ओझल हो गया। अगले दिन 30 मई को आरपीएफ की स्पेशल टीम को मोहम्मद सागर रात 9:05 बजे भुज जाने वाली ट्रेन नं 14321 से बरेली में 2 नम्बर प्लेटफॉर्म से इंजन के पीछे प्रथम कोच में बैठता दिखाई दिया।

तब अजमेर पुलिस ने मारवाड़ जंक्शन, आबू रोड, पालनपुर, डिसा, भीलडी, रगनपुर, संतलपुर, बांजू, गांधीधाम, आदिपुर, अजार व भुज में जीआरपी, आरपीएफ को फुटेज भेजे। वहीं, एक और पुलिस टीम को भुज के लिए रवाना किया गया। अजमेर पुलिस ने रेलवे प्रशासन, आरपीएफ व जीआरपी की टीम की मदद तथा गुजरात पुलिस के सहयोग से अपहरणकर्ता मोहम्मद सागर गाँधीधाम, गुजरात पहुँचने पर पकड़ा गया। उसके चंगुल से बच्ची को मुक्त करवाया गया।

राजीव गाँधी मरते समय PM थे, सीताराम केसरी अध्यक्ष नहीं: कॉन्ग्रेस अपनी वेबसाइट से फैला रही फेक न्यूज़

परिवारवाद में कॉन्ग्रेस किस कदर डूबी है, इसकी बानगी तो राहुल गाँधी के पैरों में गिरकर उनसे अध्यक्ष पद न छोड़ने की पार्टी की चिरौरी से ही दिख गई थी। लेकिन अब पार्टी परिवार की मुराद में इतना डूब गई है कि इतिहास को भी बदलने पर आमादा है। राजीव गाँधी को पार्टी की वेबसाइट पर मरते समय भारत का तत्कालीन प्रधानमंत्री बताया गया है जबकि सच्चाई यह है कि उस समय भारत के प्रधानमंत्री चंद्रशेखर हुआ करते थे। इसके अलावा पार्टी की वेबसाइट पर पूर्व अध्यक्ष सीताराम केसरी को पार्टी के अध्यक्षों की सूची से भी हटा दिया गया है।

राहुल गाँधी की जीवनी में बताया राजीव को तत्कालीन प्रधानमंत्री

अपने (नि?)वर्तमान अध्यक्ष और राजीव गाँधी के बेटे राहुल गाँधी की पार्टी वेबसाइट पर प्रकाशित जीवनी में कॉन्ग्रेस ने लिखा है कि अपनी मृत्यु के समय (21 मई, 1991 को) राहुल के पिता राजीव गाँधी भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री थे। यह पूरी तरह गलत है। राजीव की हत्या के समय उनकी सरकार न केवल जा चुकी थी बल्कि उसके बाद प्रधानमंत्री बनने वाले विश्वनाथ प्रताप सिंह की भी सरकार गिर कर चंद्रशेखर की सरकार आ गई थी, जिसे पहले तो राजीव गाँधी का ही समर्थन जिलाए हुए था, और बाद में राजीव गाँधी ने समर्थन वापस ले लिया था, जिसके बाद देश में नई लोकसभा के निर्वाचन की प्रक्रिया चल रही थी। उसी दौरान प्रचार करते हुए राजीव गाँधी की लिट्टे के दहशतगर्दों ने हत्या कर दी थी

राफेल-राफेल का झूठा राग गाने वाले राहुल गाँधी की कॉन्ग्रेस भी उतनी ही झूठी निकली

और ऐसा भी नहीं है कि यह कोई टाइपिंग की गलती, क्लेरिकल मिस्टेक या तथ्यों की ग़लतफ़हमी हो- क्योंकि ऐसा कुछ तो केवल एक बार हो सकता है, बार-बार नहीं। जबकि कॉन्ग्रेस की वेबसाइट पर एक बार नहीं बल्कि दो बार राजीव गाँधी को उनकी हत्या के समय भारत का तत्कालीन प्रधानमंत्री बताया गया है।

न खाता न बही, कॉन्ग्रेस से केसरी की याद मिटी

कॉन्ग्रेस में सीताराम केसरी का 1996 से 1998 तक कॉन्ग्रेस का अध्यक्ष होना आज गाँधी परिवार की आँखों में चाहे जितना खटके मगर यह एक ऐतिहासिक तथ्य है- उतना ही जितना कि यह कि सोनिया गाँधी को पार्टी अध्यक्षा बनाने के लिए 14 मार्च 1998 को केसरी को एक कमरे में बंद कर एक तरह से जबरदस्ती, गुंडागर्दी का सहारा लिया गया था। और अब कॉन्ग्रेस इस आँखों के काँटे को मिटा कर तारीख बदलने की कोशिश कर रही है।

पार्टी के 1990 के बाद के अध्यक्षों की सूची में से सीताराम केसरी का नाम गायब है।

दोनों घटनाएँ संयोग, या कुछ और?

इन दोनों घटनाओं का इतने आस-पास होना, वह भी उस समय जब कॉन्ग्रेस और देश में ‘गाँधी’ उपनाम की महत्ता पर गंभीर प्रश्नचिह्न हैं, महज संयोग है? या फिर कॉन्ग्रेस के इतिहास से (और भारत के भी इतिहास से) गाँधी के इतर चरित्रों को आधिकारिक तौर पर हटाने की कोशिश? यह तो तय है कि कॉन्ग्रेस की वेबसाइट पर राजीव गाँधी के कार्यकाल का ‘विस्तार’ कर दिए जाने से न इस देश का इतिहास पुनर्लिखित कर वीपी सिंह और चंद्रशेखर को भुला दिया जाएगा, न ही सीताराम केसरी को बाकी पार्टियाँ और देश मिटा देगा। लेकिन क्या इससे यह संदेश दिए जाने की कोशिश हो रही है कि “गाँधी इज़ कॉन्ग्रेस, कॉन्ग्रेस इज़ गाँधी”? क्या कॉन्ग्रेस अपने कैडर में राहुल गाँधी के हटने की उम्मीद में महत्वाकांक्षा पाले क्षत्रपों (शशि थरूर लोकसभा में कॉन्ग्रेस के मुखिया बनने की इच्छा जाहिर कर चुके हैं करण थापर को इंटरव्यू में) को यह संदेश दे रही है कि कॉन्ग्रेस के लिए नेहरू-गाँधी-वाड्रा परिवार इतना जरूरी है कि उसे बनाए रखने के लिए पार्टी इतिहास पुनर्लिखित भी करेगी, अगर जरूरी हुआ- इसलिए क्षत्रप सब्जबाग न पालें…

किशोर कुमार की पत्नी और बीते जमाने की एक्ट्रेस-सिंगर का निधन हो गया, क्या आप उन्हें जानते हैं?

आज सुबह ही मशहूर गायक किशोर कुमार की पूर्व पत्नी और गुजरे जमाने की बंगाली एक्ट्रेस-सिंगर का निधन हो गया, जिनका नाम था रूमा गुहा ठाकुरता। उनकी उम्र 84 साल थी। सोमवार (जून 03, 2019) सुबह कोलकाता के बालीगंगे स्थित अपने घर पर उन्होंने अंतिम साँस ली। आज शाम कोलकाता में उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। रूमा, किशोर कुमार की पहली पत्नी थीं। उनकी शादी 1950 में हुई थी और करीब 8 साल बाद दोनों का तलाक हो गया था। सिंगर अमित कुमार (66) रूमा और किशोर के बेटे हैं।

जानी-मानी एक्ट्रेस-सिंगर रूमा गुहा ठाकुरता कुछ दिन पहले ही अपने बालीगंगे प्लेस वाले घर से कोलकाता लौटी थीं। किशोर कुमार की पहली पत्नी रूमा अपने बेटे अमित कुमार से मिलने के लिए मुंबई आई थीं और करीब तीन महीने रुकी थीं। कहा जाता है कि रूमा बुढ़ापे में होने वाली तकलीफों से काफी परेशान थीं।

1944 में हिंदी फिल्म ‘ज्वार-भाटा’ से किया था बॉलीवुड डेब्यू

रूमा गुहा ने साल 1944 में हिंदी फिल्म ‘ज्वार-भाटा’ से बॉलीवुड डेब्यू किया था। इसके बाद उन्होंने बंगाली फिल्मों की ओर रुख कर लिया था। रूमा ने ‘एंटोनी फिरंगी’, ‘गंगा ओभीजान’, ‘बालिका वधू’ और ‘अभिजान’ समेत कई बंगाली फिल्मों में काम भी किया। इसके अलावा वह 36 Chowringhee Lane और The Namesake जैसी हॉलीवुड फिल्मों का भी हिस्सा रह चुकी हैं। एक्टिंग के अलावा रूमा ने प्लेबैक सिंगिंग से भी खूब नाम कमाया था। साल 1958 में रूमा ने कोलकाता यूथ क्वायर (Calcutta Youth Choir) नाम की संस्था बनाई, जो उभरते हुए सिंगर्स को प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराती है।

1960 में हुआ था किशोर कुमार और रूमा गुहा का तलाक

रूमा गुहा मशहूर गायक और कलाकार किशोर कुमार की पहली पत्नी थीं। किशोर कुमार और रूमा गुहा ने साल 1951 में शादी रचाई थी। दोनों का एक बेटा अमित कुमार है, वो भी गायक हैं। हालाँकि, साल 1960 में किशोर कुमार और रूमा गुहा ने एक-दूसरे से तलाक ले लिया था। किशोर से तलाक के बाद रूमा ने अरूप गुहा ठाकुरता से शादी रचाई थी। दोनों की एक बेटी श्रोमोना गुहा ठाकुरता है।

PM मोदी के नाम से ‘लैपटॉप योजना’ चलाने वाला निकला IITian, हुआ गिरफ्तार

पुलिस ने राजस्थान से 23 वर्षीय राकेश जांगिड़ नाम के एक आईआईटी ग्रेजुएट युवक को गिरफ्तार किया है। युवक पर आरोप है कि वो नरेंद्र मोदी की तस्वीर लगाकर एक फर्जी वेबसाइट चलाता था। साथ ही व्हॉट्सएप के जरिए लोगों को बताता था कि मोदी सरकार के दोबारा सत्ता में आने के बाद एक नई योजना आई है, जिसमें फ्री लैपटॉप बाँटे जाएँगे।

राकेश इन संदेशों में मेक इन इंडिया का लोगो और प्रधानमंत्री की फोटो भी भेजता था, ताकि संदेश की प्रमाणिकता पर संदेह न हो। आरोपित लोगों से इस वेबसाइट पर रजिस्ट्रेशन करने के लिए कहता था, जिससे साइट पर अधिक से अधिक ट्रैफिक आ सके।

23 साल का राकेश राजस्थान में नागौर जिले के पुंदलोता का निवासी है। 2019 में IIT दिल्ली से पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद आरोपित अपनी फर्जी वेबसाइट (www.modi-laptop.wishguruji.com) के जरिए लोगों को हैदराबाद में नौकरी का ऑफर देकर ठगता था। जाँच के मुताबिक पिछले 2 दिन में इस फर्जीवाड़े के चलते उसकी वेबसाइट पर 15 लाख से अधिक लोगों ने नौकरी के लिए पंजीकरण किया है।

दैनिक भास्कर की खबर के मुताबिक साइबर क्राइम ब्राँच के वरिष्ठ अधिकारी ने मामले पर जानकारी देते हुए बताया है कि आरोपित को उसके घर से गिरफ्तार किया गया है। अधिकारी का कहना है कि संजय बड़ी होशियारी से गूगल एडसेंस का प्रयोग करता था। फिलहाल इस बात की जाँच चल रही है कि इस आईआईटी की पढ़ाई किए युवक ने और किन-किन योजनाओं के नाम पर फर्जीवाड़ा किया है।

कॉन्ग्रेस कार्यकर्ता की हत्या में AIMIM नेता तौफ़ीक शेख गिरफ़्तार

कॉन्ग्रेस कार्यकर्ता रेशमा पेडकानुर की हत्या मामले में ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के नेता तौफ़ीक शेख उर्फ़ पिलवान को महाराष्ट्र पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया है। फ़िलहाल, मामले की जाँच अभी जारी है।

ख़बर के अनुसार, तौफ़ीक शेख को ज़िले के धुलकेड़ गाँव के पास से हिरासत में लिया गया। उस पर रेशमा
पेडकानुर की हत्या का आरोप है। आरोपित को पकड़ने के लिए ऑपरेशन बसावन बागेवाड़ी पुलिस सर्कल इंस्पेक्टर, महादेव शिरहट्टी के नेतृत्व में किया गया था।

रेशमा के पति खाजा बंदे नवाज़ ने तौफ़ीक शेख के ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज कराई थी। हत्या का यह मामला भारतीय दंड संहिता की धारा 302 और 201 के तहत दर्ज किया गया था। इसकी जाँच के लिए पुलिस ने दो टीमों का गठन किया था, जिनमें से एक बसावना बागेवाड़ी के पुलिस उपाधीक्षक महेश्वर गौड़ा और दूसरी विजयापुर के पुलिस उपाधीक्षक अशोक के नेतृत्व में थी। पुलिस सूत्रों का मानना ​​है कि तौफीक समेत छह लोग इस हत्या में शामिल थे।

दरअसल, कर्नाटक की राजनीति में उस समय हड़कंप मच गया था जब गुरुवार (16 मई) दोपहर से लापता चल रहीं कॉन्ग्रेस नेता रेशमा पेडकानुर की लाश विजयपुरा के कोल्हर गाँव में कृष्णा नदी के किनारे जंगलों में शुक्रवार (17 मई) को सुबह क़रीब छह बजे मिली थी। विजयपुरा ज़िले की रहने वाली रेशमा पहले जेडीएस में थीं। कॉन्ग्रेस नेता के परिवार वालों का कहना है कि आख़िरी बार उन्हें गुरुवार दोपहर में AIMIM के नेता तौफ़ीक के साथ देखा गया था, रेशमा के पति ने भी तौफ़ीक पर ही शक़ ज़ाहिर किया था। इसके अलावा तौफ़ीक और रेशमा के बीच किसी ज़मीन के विवाद का भी ख़ुलासा हुआ था।

जानकारी के अनुसार, वर्ष 2013 में रेशमा नेे जेडीएस के टिकट पर विधानसभा का चुनाव लड़ा था। 2018 के विधानसभा चुनाव में टिकट ना मिलने के बाद वो कॉन्ग्रेस में चली गई थीं और तभी से रेशमा कॉन्ग्रेस में सक्रिय थीं।

सूरत अग्निकांड: मृत छात्रा के नाम पर परोसा जा रहा झूठ, जबरदस्ती घुसेड़ा जा रहा जय शाह का नाम

सूरत फायर ट्रेजेडी को लेकर तरह-तरह की अफवाहें उड़ाई जा रही हैं। जहाँ सरकार और सिस्टम से सवाल पूछे जाने चाहिए, वहाँ अपना ख़ुद का प्रोपेगेंडा चलाने की कोशिश की जा रही है। फेसबुक पर गौरव ज़िब्बू नामक व्यक्ति ने बिना सबूत बहुत सारे लम्बे-चौड़े दावे किए हैं, जिसका दूर-दूर तक सत्य से कोई लेना-देना नहीं है। पहले हम इस पूरे मामले को समझते हैं और फिर हम झूठ की परत दर परत बखिया उधेड़ेंगे।

कुछ दिनों पहले गुजरात के सूरत स्थित तक्षशिला कॉम्प्लेक्स में लगी भीषण आग में 22 स्टूडेंट्स की मौत हो गई थी। इसके बाद हरकत में आई राज्य सरकार ने पूरे गुजरात में 9395 भवनों को चिन्हित करके उनके मालिकों को कारण बताओ नोटिस जारी किया था। ये सभी अग्नि सुरक्षा मानक पर खरे नहीं उतरे।

सूरत अग्निकांड को लेकर फैलाया जा रहा झूठ

गौरव ज़िब्बू ने लिखा कि सूरत अग्निकांड में मृत छात्रा पंचानी के पिता ने सरकार द्वारा दी जा रही 4 लाख रुपए की मुआवजा राशि लेने से मना कर दिया है। उसने दावा किया है कि लड़की के पिता ने कहा कि फायर ब्रिगेड को इन रुपयों की ज्यादा ज़रूरत है और वे अपनी तरफ से 4 लाख रुपए ‘रेस्क्यू लैडर’ खरीदने के लिए अग्निशमन विभाग को देना चाहते हैं। कई अन्य मीडिया रिपोर्ट्स में भी ये बात कही गई। एशियन एज और डेक्कन क्रॉनिकल जैसे मीडिया संस्थानों से लेकर ट्विटर व फेसबुक पर अन्य लोगों ने भी इस झूठ को आगे बढ़ाने का काम किया।

बड़े मीडिया संस्थानों ने भी झूठ फैलाया

जब एक मीडिया पोर्टल ने मृत छात्रा हैप्पी पंचानी के परिवार से संपर्क किया तो उन्होंने सोशल मीडिया पर चल रही इन बातों को अफवाह करार दिया। पंचानी के चाचा ने कहा कि ऐसी झूठी बातें एक स्थानीय अख़बार के कारण शुरू हुई। पंचानी के चाचा ने इन अफवाहों को नकारते हुए कहा कि न हैप्पी के पिता ने ऐसा कोई निवेदन किया है न उसके परिवार से किसी और ने मुआवजा न लेने की बात कही है। परिवार ने अफवाह फ़ैलाने वालों से निवेदन भी किया कि ऐसे पोस्ट शेयर न किए जाएँ, वायरल न किए जाएँ, इससे उन्हें समस्या है।

वायरल पोस्ट में और भी कई दावे किए गए हैं। इसमें एक आरटीआई (सूचना का अधिकार) नंबर भी दिया है और कहा गया है कि ये आरटीआई उनके दावे की पुष्टि करते हैं। लेकिन, गौरव ज़िब्बू द्वारा दिया गया आरटीआई नंबर अपूर्ण है और उसके द्वारा किसी तरह की जानकारी नहीं निकाली जा सकती। इसके अलावा यह भी दावा किया गया है कि अग्निशमन विभाग के संसाधनों को ख़रीदने का कॉन्ट्रैक्ट 2005 में अमित शाह के बेटे जय शाह को दे दिया गया जबकि अमित शाह की शादी ही 1987 में हुई थी।

गौरव ज़िब्बू की फेसबुक पोस्ट, जिसमें किए गए हैं झूठे दावे

इस हिसाब से आप 2005 में जय शाह की उम्र का अंदाजा लगा सकते हैं। जय शाह का जन्म अगर 1988 में हुआ हो, तब भी 2005 में वो नाबालिग ही रहे होंगे। अर्थात, ज़िब्बू व अन्य वायरल पोस्ट्स का मानना है कि एक नाबालिग लड़के को करोड़ों का महत्वपूर्ण कॉन्ट्रैक्ट दे दिया गया। इसके अलावा यह भी दावा किया गया है कि अग्निशमन विभाग की ट्रकों को अडानी ग्रुप को बेच दिया गया। यह सोचा जा सकता है कि बिलियन डॉलर नेट वर्थ वाली इतनी बड़ी कम्पनी क्या 5 लाख में सेकेण्ड हैण्ड ट्रक खरीदेगी? इसके अलावा लेख में सूरत के लोगों पर भाजपा को वोट देने के लिए भी तंज कसा गया है।

कुल मिलाकर देखें तो अपूर्ण आरटीआई नंबर, नाबालिग जय शाह को करोड़ों का प्रोजेक्ट, अडानी ग्रुप जैसी बड़ी कम्पनी द्वारा सेकेण्ड हैण्ड ट्रक खरीदना, हैप्पी पंचानी के परिवार द्वारा मुआवजा न लेने की बात करना- इस पोस्ट में कई सारे झूठ हैं, विसंगतियाँ हैं और ये पूरा का पूरा एक प्रोपेगेंडा है। हास्यास्पद यह कि बड़े-बड़े मीडिया हाउस भी बिना जाँच-पड़ताल किए ही इस खबर को चला रहे हैं और एक तरह से इस प्रोपेगेंडा को हवा दे रहे हैं।