Wednesday, November 6, 2024
Home Blog Page 5299

केजरीवाल के मंत्री कैलाश गहलोत के भाई पर चला ED का डंडा, ₹1.46 करोड़ की संपत्ति हुई जब्त

प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने विदेशों में संपत्ति रखने को लेकर दिल्ली सरकार में मंत्री कैलाश गहलोत के भाई हरीश गहलोत पर बड़ी कार्रवाई की है। ईडी ने यूएई में विदेशी संपत्ति रखने के लिए विदेशी विनिमय प्रबंधन अधिनियम (फेमा) की धारा 37ए के तहत गहलोत की ₹1.46 करोड़ की संपत्ति जब्त की है। ईडी ने हरीश गहलोत के दिल्ली में वसंत कुंज स्थित एक फ्लैट और हरियाणा स्थित लगभग ₹1.46 करोड़ की कीमत वाली एक जमीन को जब्त कर लिया है।

हरीश गहलोत पर आरोप है कि उन्होंने दुबई में पढ़ाई कर रहे अपने बेटे नितेश गहलोत को हवाला के माध्यम से ₹1 करोड़ भेजे। हवाला कारोबारी इंदरपाल वाधवन ने ₹4 लाख अपने पास रखकर ₹96 लाख नितेश को दिए। इसके बाद हरीश ने 26 सिंतबर 2018 को नितेश को लिए ₹50 लाख और भेजे।

हरीश गहलोत ने इन पैसों को भेजने के पीछे बेटे की पढ़ाई का तर्क दिया था, लेकिन ईडी ने अपने जाँच में पाया कि इन पैसों से दुबई में दो फ्लैट बुक करवाए गए। ईडी ने इन्हीं अनियमितताओं के लिए दिल्ली और हरियाणा में मौजूद हरीश गहलोत की संपत्ति जब्त की है।

गौरतलब है कि, आप विधायक एवं दिल्ली के परिवहन मंत्री कैलाश गहलोत के परिवार और सहयोगियों के यहाँ आयकर विभाग ने पिछले साल अक्टूबर में छापे मारे थे। उनके भाई हरीश गहलोत की संपत्तियों की भी जाँच की गई थी। इस दौरान ₹120 करोड़ की टैक्स चोरी और शैल कंपनी का खुलासा हुआ।

‘8000 से अधिक हिंदू मंदिरों को तबाह करने वाला टीपू सुल्तान’ इमरान खान और थरूर के लिए ‘हीरो’

कॉन्ग्रेस के दिग्गज नेता और केरल के तिरुवअनंतपुरम से सांसद शशि थरूर को ट्विटर पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के ट्वीट पर प्रतिक्रिया देना महँगा पड़ गया। सोशल मीडिया के यूजर्स ने उन्हें उनके शब्दों के चुनावों पर जमकर घेरा और कई सवाल किए।

दरअसल, 4 मई को मैसूर के राजा टीपू सुल्तान की मौत हुई थी। जिसके मद्देनजर बीती 4 मई को पाक प्रधानमंत्री इमरान खान ने ट्वीट करते हुए लिखा कि टीपू सुल्तान एक ऐसे व्यक्ति हैं जिसकी वो बहुत इज्जत करते हैं क्योंकि उन्होंने गुलामी का जीवन जीने की बजाए आजादी को सर्वोपरि समझा और उसके लिए ही लड़ते हुए जान दी।

इमरान खान के इस ट्वीट पर शशि थरूर ने रिट्वीट करते हुए लिखा, “व्यक्तिगत रूप से इमरान खान के बारे में एक बात जानता हूँ कि भारतीय उपमहाद्वीपों के साझा इतिहास में उनकी रूचि वास्तविक और दूरगामी है। वह पढ़ते हैं और ध्यान रखते हैं। फिर भी यह दु:खद है कि पाकिस्तानी नेता ने एक महान भारतीय हीरो को याद करने के लिए उनकी पुण्यतिथि को चुना।” हालाँकि थरूर ने यह ट्वीट भारतीय राजनेताओं पर तंज करने के लिहाज से किया था, लेकिन उन्हें नहीं पता था कि यूजर्स इस तंज पर उनको आड़े हाथों ले लेंगे।

पहले तो सोशल मीडिया पर यूजर्स थरूर की इस बात से नाराज़ दिखाई दिए कि शशि थरूर ने टीपू सुल्तान के लिए ‘हीरो’ शब्द का प्रयोग किया। इसके बाद यूजर्स ने उनसे सवाल किया कि क्या वो अपना असली रंग और पाकिस्तान के प्रति प्रेम चुनाव के बाद नहीं दिखा सकते थे?

8000 से ज्यादा हिंदू मंदिरों को तबाह करने वाले और मालकोट में दिवाली पर्व पर 800 से अधिक लोगों की हत्या करने वाले टीपू सुल्तान के लिए ‘हीरो’ और ‘पुण्यतिथि’ जैसे शब्द पढ़कर सोशल मीडिया पर यूजर्स बौखला उठे। पूरी पार्टी पर निशाना साधते हुए लोगों ने कहा कि इसमें कोई हैरानी नहीं हैं कि ये लोग पाकिस्तान पीएम के साथ मिलकर टीपू सुल्तान की ‘पुण्यतिथि’ मना रहे हैं। कुछ लोगों ने इसे बेहद शर्मनाक बताया। और कुछ ने यहाँ तक कहा कि हिंदुओं की बर्बता से हत्या कर देने वाला इमरान खान और शशि थरूर के लिए हीरो ही हो सकता है।

बता दें इमरान खान और शशि थरूर के अलावा कर्नाटक के पूर्व सीएम सिद्धारमैया को भी टीपू सुल्तान की ‘पुण्यतिथि’ पर कई आयोजन करने के कारण आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है। भाजपा के सांसद ने उन्हें ट्वीट करते हुए लिखा, “अब तुम्हारी बारी है तुम इमरान जी और बाजवा जी को गले लगाओ, जिस तरह नवजोत सिंह सिद्धू ने लगाया था, इस तरह तुम राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी के पसंदीदा लोगों में जल्दी शुमार हो सकते हो।”

टैगोर ने महात्मा गाँधी की देशभक्ति और चरखा को विचारधारा का व्यापार बताया था

भारतीय राजनीति में कुछ समय से देशभक्ति, राष्ट्रवाद और हायपर नेशनलिज़्म जैसे शब्द प्रमुख चर्चा का विषय बन चुके हैं। विचारधारा के इस टकराव में हर दिन राजनेताओं से लेकर मीडिया तक में सुबह से शाम तक एक बड़ा परिवर्तन देखने को मिलता है। इसका उदाहरण यह है कि सुबह उठकर नहा-धोकर जो व्यक्ति गाँधीवादी नजर आता है, शाम होते ही वो जिन्ना-वादी बना घूमता है। इन सबके बीच यदि एक बात कॉमन है तो वो है नरेंन्द्र मोदी। जब सामने वाले व्यक्ति के मत और सिद्धांत सिर्फ इस वजह से बदल जाएँ कि उसे एक व्यक्ति का विरोध ही करना है, तब रवीन्द्रनाथ टैगोर और महात्मा गाँधी स्वतः ही प्रासंगिक हो जाते हैं।

देशभर में चल रहे आम चुनावों में मोदी सरकार की सबसे बड़ी ताकत, राष्ट्रवाद और देशभक्ति को मीडिया से लेकर तमाम बुद्दिजीवियों ने खूब निशाना बनाया है। विगत कुछ वर्षों में मीडिया में बैठे कुछ जिन्ना-जीवियों के अनुसार बताया गया कि क्या कोई ऐसा तानाशाह गुजरा है, जो देशभक्त नहीं था? परिभाषाएँ पढ़ने को मिलीं कि तानाशाह सबसे पहले खुद को देशभक्त नंबर वन घोषित करते हैं, ताकि विरोधी अपने-आप देशद्रोही मान लिए जाएँ। इसलिए देशभक्ति के मुद्दे पर महात्मा गाँधी की राय जान लेनी आवश्यक हो जाती है।

यदि इस प्रकार की परिभाषाओं पर विश्वास किया जाए तो क्या इन विचारकों के अनुसार महात्मा गाँधी भी एक तानाशाह थे? क्योंकि महात्मा गाँधी ने देशभक्ति को निहायती जरुरी चीज बताते हुए ‘चरखा’ और ‘असहयोग’ को देशभक्ति का पहला हथियार बताया था। क्या आप जानते हैं कि देश के पहले नोबल पुरस्कार विजेता, यानी रवीन्द्रनाथ टैगोर महात्मा गाँधी की इस देशभक्ति को विचारधारा का व्यापर मानते थे?

सबसे पहले टैगोर ने ही बुलाया था गाँधी जी को ‘महात्मा’

आज रवीन्द्रनाथ टैगोर का 158वाँ जन्मदिन है, इसलिए यह बेहतर समय है ये जानने का कि उनके विचार ‘देशभक्ति’ पर आखिर क्या थे? गीतांजलि की रचना के बाद वर्ष 1913 में रवीन्द्रनाथ टैगोर साहित्य के लिए नोबल पुरस्कार जीतने वाले पहले गैर-यूरोपियन थे। टैगोर के मन में महात्मा गाँधी के लिए बहुत आदर था। यहाँ तक कि गाँधी जी को पहली बार ‘महात्मा’ नाम से सम्बोधित करने वाले टैगोर ही थे। हालाँकि, वह गाँधी जी से कई बातों पर उतनी ही असहमति भी दिखाते थे। राष्ट्रीयता, देशभक्ति, सांस्कृतिक विचारों की अदला बदली, तर्कशक्ति ऐसे ही कुछ मसले थे। हर विषय में टैगोर का दृष्टिकोण परंपरावादी कम और तर्कसंगत ज्यादा हुआ करता था, जिसका संबंध विश्व कल्याण से होता था।

टैगोर करते थे महात्मा गाँधी की देशभक्ति की आलोचना

गाँधी जी द्वारा असहयोग आंदोलन को वापस लेने के बाद उन्हें गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया था। लेकिन फरवरी, 1924 को उनके खराब स्वास्थ्य की वजह से उन्हें छोड़ दिया गया। जेल से बाहर आकर महात्मा गाँधी ने तमाम राजनीतिक घटनाक्रमों के बीच ‘चरखा आंदोलन’ शुरू कर के देशवासियों को फिर से एक साथ जोड़ने का फैसला किया।

यही वो समय था जब कवि रवींद्रनाथ टैगोर ने गाँधी जी के न सिर्फ चरखा आंदोलन और असहयोग आंदोलन पर, बल्कि उनकी देशभक्ति और राष्ट्रवाद पर भी लेख लिखकर आलोचना की। टैगोर लगातार अपने लेखन में महात्मा गाँधी की देशभक्ति की आलोचना करते नजर आते थे। उन्होंने लिखा कि किस तरह से कुछ लोगों के लिए उनकी आजीविका है, उसी तरह से कुछ लोगों के लिए राजनीति है, जहाँ वो अपने देशभक्ति की विचारधारा का व्यापार करते हैं।

इस पर महात्मा गाँधी ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा था, “मैं समझता हूँ कि कवि ने अनावश्यक रूप से असहयोग आंदोलन के नकारात्मक पक्ष को उभारा है। हमने ‘ना’ कहने की शक्ति खो दी है। सहयोग न करना ऐसा ही है, जैसे खेत में बीज बोने से पहले किसान खरपतवार को साफ करता है। खरपतवार को साफ करना काफी जरूरी है। यहाँ तक कि जब फसल बढ़ रही हो, तो भी ये जरूरी होता है। असहयोग का अर्थ है कि लोग सरकार से संतुष्ट नहीं हैं।” (यह संवाद 1 जून 1921 को ‘यंग इंडिया’ में प्रकाशित किए गए आर्टिकिल ‘द पोएट ऐंक्ज़ाइटी / The Poet’s Anxiety’ से लिया गया है)

हालाँकि, महात्मा गाँधी चरखा, असहयोग और स्वराज संबंधी टैगोर के प्रश्नों पर हमेशा की तरह खड़े रहे, अपना पक्ष रखा। उन्होंने इन्हें व्यक्ति से व्यक्ति को जोड़ने का साधन बताया था, ताकि लोगों को देशभक्ति के सूत्र में पिरोकर उन्हें औपनिवेशिक सरकार के खिलाफ जगाया जा सके।

भूख की वजह से चल रहा है ‘चरखा’

देशभक्ति या राष्ट्रवाद के बारे में टैगोर का कहना था कि हमारी भाषा में ‘नेशन’ के लिए कोई शब्द नहीं है, जब हम दूसरों ये शब्द उधार लेते हैं, तो यह हमारे लिए सटीक नहीं बैठता। इस पर महात्मा गाँधी का जवाब था, “भारत में ‘चरखा’ भूख की वजह से चल रहा है। चरखा का प्रयोग करने के लिए कहना सभी कामों में पवित्र है। क्योंकि यह प्रेम है और प्रेम ही स्वराज है। हमारा असहयोग अंग्रेजों द्वारा स्थापित की गई व्यवस्था से है, जो कि भौतिकतावादी संस्कृति और कमजोरों के शोषण पर आधारित है। हम अंग्रेजों से कहते हैं कि आओ और हमारी शर्तों पर हमें सहयोग करो। यह हम दोनों के लिए और पूरी दुनिया के लिए बेहतर होगा।” (1921 में यंग इंडिया में प्रकाशित लेख)

क्या देश के प्रगतिशील लोग महात्मा गाँधी की देशभक्ति से असहमत हैं?

यह भारतीय संस्कृति की खासियत है, जिसने एक ही समय में दो इतने विपरीत विचारधारा वाले और महान लोगों को जन्म दिया। जाने-माने फ्रेंच लेखक रोमेन रोलैंड ने इसे ‘द नोबल डिबेट’ कहा था। वर्तमान में देखा जाए तो गोदी मीडिया महात्मा गाँधी के नारे से असहमत नजर आती है। समाज का दूर से ही प्रगतिशील नजर आने की हर संभव कोशिश करता व्यक्ति; फिर चाहे वो विपक्ष हो, उनके सस्ते कॉमेडियंस हों, या उनकी गोदी मीडिया हो, आज देशभक्ति को हायपर नेशनलिज़्म साबित करने पर तुला हुआ नजर आता है।

यदि गौर किया जाए तो देशभक्ति को विशेष बनाने का काम आज इन्हीं लोगों ने किया है, जिन्होंने अपने दुराग्रहों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कद को इतना ऊँचा उठा दिया। पुलवामा आतंकी घटना से लेकर एक सेना से बर्खास्त जवान तक में मोदी विरोध का मौका तलाश लेने वाले लोगों को समझना चाहिए कि देश और देशभक्ति का मतलब अगर आज ‘मोदी’ बन चुका है, तो इसमें सबसे बड़ा योगदान उन्हीं के अतार्किक विरोध का रहा है।

2016 से पहले नहीं हुआ था कोई भी सर्जिकल स्ट्राइक: RTI से ख़ुलासा, कॉन्ग्रेस का दावा फर्जी

एक आरटीआई के माध्यम से ख़ुलासा हुआ है कि 2016 से पहले सेना ने किसी भी प्रकार के सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम नहीं दिया था। जम्मू के एक व्यक्ति द्वारा दायर की गई आरटीआई के जवाब में रक्षा मंत्रालय ने कहा कि उसे 2016 से पहले किसी भी प्रकार के सर्जिकल स्ट्राइक के होने की जानकारी नहीं है। बता दें कि 2016 में हुए सर्जिकल स्ट्राइक में भारतीय सेना ने पाक अधिकृत क्षेत्रों में घुसकर आतंकियों का काम तमाम किया था। इसके बाद देश और दुनिया में भारतीय सेना के पराक्रम और मोदी सरकार की इच्छाशक्ति की प्रशंसा हुई थी। अभी हाल ही में कॉन्ग्रेस के राजीव शुक्ला ने दावा किया था कि यूपीए सरकार के दौरान भी ऐसे सर्जिकल स्ट्राइक्स हुए थे। शुक्ला ने कहा था:

“यूपीए सरकार के कार्यकाल में 6 बार सर्जिकल स्ट्राइक हुई थी। पहली सर्जिकल स्ट्राइक 19 जून 2008 को जम्मू-कश्मीर के पूँछ में स्थित भट्टल सेक्टर में हुई थी। दूसरी नीलम नदी घाटी में 30 अगस्त से 1 सितंबर 2011 के बीच हुई। तीसरी सावन पात्रा चेकपोस्ट पर 6 जनवरी 2013 को हुई। चौथी 27-28 जुलाई 2013 को नाजापीर सेक्टर में हुई। पाँचवीं नीलम घाटी में 6 अगस्त 2013 को और छठवीं 14 जनवरी 2014 को हुई।”

शुक्ला ने दावा किया था कि यूपीए के शासनकाल में 6 बार और उससे पहले वाजपेयी के कार्यकाल के दौरान 2 बार सर्जिकल स्ट्राइक किया गया था। जबकि, आरटीआई से ख़ुलासा हुआ है कि उरी हमले के बाद 2016 में की गई सर्जिकल स्ट्राइक ही पहली सर्जिकल स्ट्राइक थी। जम्मू के रोहित चौधरी द्वारा दायर आरटीआई के जवाब में सेना के डीजीएमओ के माध्यम से रक्षा मंत्रालय ने यह जानकारियाँ दी। अभी हाल ही में पुलवामा हमले के बाद भी भारतीय वायु सेना ने पाकिस्तान में घुसकर आतंकी कैम्पों को तबाह कर डाला था व कई आतंकियों को भी मार गिराया था।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक़्सर सर्जिकल स्ट्राइक का जिक्र कर सेना की पीठ थपथपाते रहते हैं और पूर्ववर्ती कॉन्ग्रेस सरकार को ऐसी इच्छाशक्ति न दिखा पाने के लिए उनकी आलोचना भी करते हैं। जवाब में कॉन्ग्रेस का कहना है कि मोदी चुनावी फायदे के लिए सेना का इस्तेमाल कर रहे हैं। सर्जिकल स्ट्राइक के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल और कॉन्ग्रेस नेता संजय निरुपम सहित कई नेताओं ने सबूत की भी माँग की थी। जनरल वीके सिंह ने ट्विटर पर आलोचकों को जवाब देते हुए कहा कि उन्हें काउंटर स्ट्राइक और सर्जिकल स्ट्राइक के बीच का अंतर नहीं पता।

श्री लंका ब्लास्ट का बदला पूरा, चुन-चुन कर मारे गए या गिरफ़्तार हुए हमले से जुड़े सभी आतंकी

श्री लंका में ईस्टर ब्लास्ट्स से जुड़े सभी आतंकियों को या तो मार गिराया गया है, या फिर वो पकड़े गए हैं। द्वीपीय देश की सुरक्षा एजेंसियों के प्रमुखों ने इस बात की घोषणा की। उन्होंने कहा कि राष्ट्र अब सुरक्षित है और स्थितियाँ सामान्य हो रही है। तीनों सेनाओं के कमांडर्स और पुलिस प्रमुख ने कहा कि स्पेशल सिक्योरिटी प्लान को अमल में लाने के लिए सारे प्रयास किए गए हैं। बता दें कि श्री लंका में हुए बम ब्लास्ट्स में 257 के क़रीब लोग मारे गए थे। ईस्टर के दिन हुए इन हमलों में चर्चों और आलिशान होटलों को मुख्य रूप से निशाना बनाया गया था। बड़ी मात्रा में विस्फोटक भी ज़ब्त किए गए हैं, जो आतंकी हमलों को अंजाम देने वाले इस्लामी कट्टरपंथी संगठन नेशनल तोहिथ जमात के बताए जा रहे हैं।

कुल मिलाकर देखें तो श्री लंका सेना व सुरक्षा बलों की कार्रवाई को विपक्षी नेता महिंदा राजपक्षे का भी पूरा समर्थन मिला है। आतंकी संगठनों के पास जितने भी विस्फोटक थे, सारे ज़ब्त कर लिए गए हैं। इस आतंकी संगठन से जुड़े किसी भी व्यक्ति को नहीं बख्शा गया है, सभी गिरफ़्तार हो चुके हैं। उनके दो बम एक्सपर्ट मुठभेड़ में मारे जा चुके हैं। श्री लंका के इंस्पेक्टर जनरल ऑफ पुलिस (IGP) विक्रमारत्ने ने कहा कि उन्हें ये घोषणा करने में ख़ुशी हो रही है कि जिन भी लोगों के इस हमले से डायरेक्ट लिंक हैं, उन्हें या तो मार गिराया गया है या फिर गिरफ़्तार कर लिया गया है।

हालाँकि, विक्रमारत्ने ने कोई आँकड़ा नहीं दिया कि कुल कितने आरोपित गिरफ़्तार किए गए हैं लेकिन पुलिस प्रवक्ता गुनशेखरा ने बताया कि कुल 73 लोगों को गिरफ़्तार किया गया है, जिनमें 9 महिलाएँ भी शामिल हैं। इन सभी से ‘क्रिमिनल इन्वेस्टीगेशन डिपार्टमेंट’ और ‘टेररिज्म इन्वेस्टीगेशन डिपार्टमेंट’ द्वारा पूछताछ की जा रही है। यह भी बताया गया कि आतंकी संगठन से जुड़ी 700 करोड़ रुपए की सम्पत्तियाँ चिह्नित की गई हैं और 14 करोड़ रुपए नकद बरामद किए गए हैं। इस हमले की ज़िम्मेदारी इस्लामिक स्टेट ने ली है लेकिन सुरक्षा एजेंसियों ने कहा है कि आईएस के सपोर्ट से तोहिथ जमात ने इसे अंजाम दिया।

सोमवार (मई 6, 2019) को स्कूलों को भी खोल दिया गया लेकिन छात्रों की उपस्थिति अधिकतर जगहों पर 10% के आसपास रही। अभिभावकों के भीतर अभी भी डर बैठा हुआ है और वो बच्चों को बाहर नहीं भेज रहे हैं। सेना प्रमुख ने विश्वास दिलाया कि स्थिति अब सामान्य हो गई है। उन्होंने लोगों को किसी भी प्रकार के अफवाहों से बचने की सलाह भी दी। बुर्क़े पर प्रतिबन्ध सहित कई अहम कदम भी उठाए गए हैं।

CJI को फँसाने के पीछे नेताओं, उद्योगपतियों, आतंकियों व वकीलों का शक्तिशाली तंत्र?

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (CJI) जस्टिस रंजन गोगोई पर यौन शोषण के आरोप लगे। ये आरोप सुप्रीम कोर्ट की पूर्व महिला कर्मचारी ने लगाए। ये महिला जस्टिस गोगोई के आवास स्थित कार्यालय में कार्यरत थी। लेकिन, क्या आपको पता है कि देश की न्यायिक व्यवस्था के शीर्ष पद पर बैठे व्यक्ति के ऊपर इस तरह से यौन शोषण का आरोप लगाने के पीछे कुछ ऐसी बातें हैं, जो इस मामले को एक टेढ़ी खीर बनाती है। इस मामले की पृष्ठभूमि में कुछ ऐसा खेल चल रहा है, जो इतना जटिल एवं पेचीदा है कि एक आम आदमी की नज़रों से आसानी से छिप जाता है और सामने आता भी है तो भ्रम पैदा करता है। ऐसा सिर्फ़ हमारा ही नहीं, बल्कि सुप्रीम कोर्ट के वकीलों का भी मानना है। वकीलों की छोड़िए, ख़ुद सीजेआई रंजन गोगोई ने कहा है कि इसके पीछे कुछ बड़ी शक्तियाँ काम कर रही हैं।

जब देश का मुख्य न्यायाधीश यह कहता है कि न्यायपालिका गंभीर ख़तरे का सामना कर रही है, तब इसका विश्लेषण होना चाहिए। ये बड़ी शक्तियाँ कौन हैं? क्या कोई बड़ा राजनीतिक दल है? क्या कोई बड़ा आतंकतवादी गिरोह है? या फिर कोई बड़ा उद्योगपति घराना है? या फिर, इन तीनों का कोई ऐसा नेक्सस है जो मिलजुल कर देश की न्यायिक व्यवस्था को अपने इशारे पर नचाना चाह रहा है? यहाँ हम इन सभी बातों की पड़ताल करेंगे, लेकिन सबसे पहले आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के जजों के आंतरिक पैनल ने सीजेआई गोगोई को क्लीन चिट दे दी है। गंभीर आरोप लगाने वाली महिला ने कहा कि उसे इस प्रक्रिया पर विश्वास नहीं है और वह जजों के सामने पेश नहीं होंगी। यहाँ सवाल उठता है कि अगर पीड़िता को जजों के सामने पेश होने से इनकार ही करना था तो फिर उसने 22 जजों से शिकायत ही क्यों की थी?

क्या कहता है बार काउन्सिल ऑफ इंडिया?

सबसे पहले बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) के बयान से शुरू करते हैं। बार काउंसिल जस्टिस गोगोई के पीछे खड़ा हो गया है, वो भी पूरी मज़बूती से। बीसीआई ने सभी वकीलों व न्यायिक बिरादरी के लोगों को लिखे पत्र में साफ़-साफ़ कहा है कि सीजेआई को फँसाने के लिए कोई बड़ी साजिश चल रही है। बीसीआई के अध्यक्ष मनन मिश्रा का मानना है कि देश की जनता मुर्ख नहीं है और वो समझती है कि सीजेआई के ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज कराने वाली महिला कोई साधारण महिला नहीं है, उसके पीछे एक बहुत बड़ा तंत्र खड़ा है। बीसीआई का मानना है कि जिस तरह से उस महिला ने पुलिस स्टेशन में दावा किया कि उसके पास सबूत के रूप में मोबाइल रिकॉर्डिंग है और जिस तरह से वह अदालत, सीबीआई, आईबी, पुलिस सहित अन्य संस्थाओं से डील कर रही है, उससे लगता है कि इसके पीछे कुछ न कुछ तो बड़ी गड़बड़ी है।

बार काउन्सिल सुप्रीम कोर्ट के पैनल द्वारा जस्टिस गोगोई को क्लीन चिट देने का जिक्र करते हुए कहता है कि पैनल ने एकदम सही प्रक्रिया के तहत कार्य किया, सभी उपलब्ध साक्ष्यों को गहनता से परखा और सावधानी से छानबीन के बाद यह निर्णय लिया। बीसीआई के कुछ सवाल जाएज हैं। इनपर बहस होनी चाहिए। बीसीआई पूछता है कि जब उस महिला ने एफआईआर दर्ज कराने की बजाए सुप्रीम कोर्ट के जजों से ही शिकायत की थी, फिर उन्हीं जजों से उसे बाद में दिक्कत क्यों हो गई? जिन जजों से उसने शिकायत की, उन्हीं के सामने पेश होने से इनकार क्यों कर दिया? आख़िर अपनी शिकायत के निवारण के लिए पीड़िता ने ही तो ये मंच चुना था, फिर बाद में इसी से समस्या क्यों हुई?

पीड़िता ने 22 जजों से शिकायत की, सुप्रीम कोर्ट ने जजों के अंतरिम पैनल का गठन किया, जाँच शुरू हुई और महिला ने पैनल के समक्ष पेश होने से इनकार कर दिया (एक बार पेश होने के बाद)। बता दें कि महिला ने इसके पीछे कोई ठोस कारण भी नहीं दिया हैं। उसने सीधा कह दिया कि चूँकि पैनल का वातावरण बहुत ही भयावह है और उसे जजों से न्याय की उम्मीद नहीं है। अगर उसे जजों पर विश्वास नहीं था तो शिकायत इस मंच पर क्यों की गई? पुलिस से शिकायत की जा सकती थी, राष्ट्रपति या क़ानून मंत्रालय को पत्र लिखा जा सकता था लेकिन महिला ने जजों के मंच को ही चुना और फिर बाद में उसे नकार भी दिया। ज्ञात हो कि उस पैनल में 2 महिला जज भी थीं। जब पैनल में महिलाओं का बहुमत था, तब पीड़िता ने भय का वातावरण क्यों कहा, वो भी बिना किसी ठोस कारण के?

दाउद-गोयल-जेट एयरवेज कनेक्शन

भगोड़ा आतंकी दाऊद इब्राहिम मुंबई में सीरियल बम विस्फोट सहित कई आतंकी मामलों का दोषी है। एक वकील ने सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल दाखिल कर इस कनेक्शन के बारे में कुछ बड़ा दावा किया। हालाँकि, इसमें कितना सत्य है और कितना झूठ, ये नहीं पता, लेकिन इसका विश्लेषण तो होना ही चाहिए। उत्सव बैंस ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी याचिका में कहा कि उनसे एक बड़े दलाल ने संपर्क किया और जस्टिस गोगोई के ख़िलाफ़ प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कुछ ख़ास आरोप लगाने को कहा। जब न्यायिक इतिहास में प्रेस कॉन्फ्रेंस की बात आएगी तो उस प्रेस कॉन्फ्रेंस की बात भी की जाएगी जिसमें सुप्रीम कोर्ट के चार सीनियर जजों ने लोकतंत्र के ख़तरे में होने की बात कही थी। उत्सव द्वारा किए गए सारे ख़ुलासों को यहाँ पढ़ें।

इन चार जजों में मौजूदा सीजेआई रंजन गोगोई भी शामिल थे। इसमें जस्टिस चेलमेश्वर भी शामिल थे। इन जजों ने तत्कालीन सीजेआई दीपक मिश्रा पर आरोप लगाए थे। उन पर जजों को मामले आवंटित करने से लेकर कई आरोप लगाए गए थे। उस समय पूरे देश में इसे लेकर घमासान मचा था और मीडिया में इस प्रेस कॉन्फ्रेंस को लेकर केंद्र सरकार सहित जस्टिस दीपक मिश्रा पर कई सवाल दागे गए थे। विपक्ष ने भी जस्टिस मिश्रा के ख़िलाफ़ महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी कर ली थी। चार जजों के प्रेस कॉन्फ्रेंस पर बिना टिप्पणी किए यहाँ सवाल यह उठता है कि क्या एक वकील से प्रेस कॉन्फ्रेंस करा कर न्यायपालिका को अस्थिर करने की साज़िश रची गई थी? इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि एक वकील से प्रेस कॉन्फ्रेंस कराने के बाद कुछ अन्य वकीलों को उसके साथ खड़ा कर दिया जाता और फिर से कुछ वैसा ही घमासान मचती!

वह कौन सा दलाल था, जिसनें उत्सव बैंस को ऐसा करने को कहा था? उत्सव ने ख़ुद को ज़हर देकर मारे जाने की आशंका जताते हुए कहा कि इस पूरे नेक्सस में जेट एयरवेज के संस्थापक नरेश गोयल और दाऊद इब्राहिम भी शामिल है। उन्होंने पुलिस जाँच पर अविश्वास जताते हुए कहा कि इस मामले में उन्हें राजनीतिक नियंत्रण में आने वाली संस्थाओं पर भरोसा नहीं है। अदालत में उनकी याचिका स्वीकार हुई और कुछ सबूतों के पेश करने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पुलिस, आईबी और सीबीआई के प्रमुखों को पेश होने को कहा। एक अन्य वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने आरोप लगाया कि उत्सव ने ये ख़ुलासा करने से पहले जस्टिस गोगोई से 2 बार मुलाक़ात की थी।

उत्सव और भूषण एक-दूसरे को पहले से जानते हैं और भूषण ने कहा है कि उत्सव ने उन्हें मिलकर अपनी बात कहनी चाही थी लेकिन वो लोग नहीं मिल पाए। प्रशांत भूषण ने यहाँ तक दावा किया कि 19 अप्रैल की रात उत्सव ने जस्टिस गोगोई से मुलाक़ात की थी। उत्सव ने भूषण पर उनकी पीठ में छूरा घोंपने का आरोप लगाया। प्रशांत भूषण और अरुंधति रॉय सीजेआई मामले में पहले ही ‘स्वतंत्र जाँच’ की माँग कर चुके हैं। प्रशांत भूषण ने नीना गुप्ता के हवाले से कहा कि उन्होंने बैंस को अदालत परिसर के अंदर ये कहते हुए सुना था उन्हें सर (जस्टिस गोगोई) ने बुलाया है। भूषण ने लम्बे चौड़े दावे तो कर दिए लेकिन उनकी बातें झूठ निकल गईं। नीना गुप्ता ने ‘द वायर’ से संपर्क कर साफ़ कहा कि प्रशांत भूषण ने उन्हें लेकर झूठ बोला

‘द वायर’ ने स्टोरी को अपडेट कर के नीना के हवाले से बताया कि प्रशांत भूषण ने झूठ बोला

आख़िर इस मामले में कूदने वाले प्रशांत भूषण का इससे क्या हित सध रहा है? प्रशांत भूषण किसे बचाने के लिए मीडिया में झूठ बोल रहे हैं? जब सुप्रीम कोर्ट के एक सक्रिय और वरिष्ठ वकील इस तरह से झूठ बोलता फिरे, तो बीसीआई की बातें सही नज़र आती दिखती है कि इसके पीछे कोई बड़ा तंत्र कार्य कर रहा है।

दाऊद इब्राहिम की भारतीय इंडस्ट्री पर पकड़

‘द हिन्दू’ के राष्ट्रीय सुरक्षा सम्पादक रह चुके जोसी जोसेफ ने अपनी पुस्तक में दाऊद की भारतीय इंडस्ट्री में पकड़ का उल्लेख किया है। अपनी पुस्तक ‘A Feast of Vultures: The Hidden Business of Democracy in India‘ में खोजी पत्रकार जोसेफ लिखते हैं कि आईबी के जॉइंट डायरेक्टर अंजन घोष ने गृह मंत्रालय की ज्वाइन सेक्रटरी संगीता गैरोला को दिए एक पत्र में लिखा था, “नरेश गोयल के शेखों के साथ आत्मीय रिश्ते और क़रीबी व्यापारिक रिश्ते पिछले 2 दशकों से हैं। इन नजदीकियों का इस्तेमाल उन्होंने न सिर्फ़ अपनी कम्पनी में निवेश आकर्षित करने के लिए किया बल्कि अवैध रुपयों की हेराफेरी के लिए भी किया। इसमें से अधिकतर रुपए तस्करी, वसूली और अन्य अवैध धंधों से हासिल किए गए।”

बता दें कि जेट एयरवेज कंगाली की ओर है और ऋण से डूबी कम्पनी के निवेशकों में हड़कंप मचा हुआ है। नरेश गोयल जब वोट देने आए तो उन्होंने पत्रकारों के सवाल का जवाब नहीं दिया। वरिष्ठ अधिकारियों ने तत्कालीन गृह मंत्री लाल कृष्ण आडवाणी से मुलाक़ात कर नरेश गोयल के शकील अहमद और दाऊद इब्राहिम से सम्बन्ध होने की बात कही थी। उन्होंने गोयल और आतंकियों के बीच टेलीफोन बातचीत होने की भी बात कही। जोसफ इसके लिए लाल कृष्ण आडवाणी द्वारा की गई ढिलाई को भी कहीं न कहीं ज़िम्मेदार मानते हैं, जिसके कारण गोयल अधिकारियों से लेकर राजनेताओं तक के चहेते बन गए। कंधार ऑपरेशन के बाद जेट एयरवेज को मिले सिक्योरिटी क्लीयरेंस को लेकर भी काफ़ी विवाद हुआ था।

ये मामला बहुत बड़ा है, जिसकी हमने सिर्फ़ एक झलक पेश की है। इसके बाद में विस्तारपूर्वक आप ऊपर दिए गए पुस्तक के हाइपरलिंक (साभार: आउटलुक) पर क्लिक कर के पढ़ सकते हैं। यहाँ हम सीजेआई पर लगे यौन शोषण के आरोप एवं नरेश गोयल-दाऊद कनेक्शन की बात कर रहे हैं, जोसी जोसफ के हवाले से। अभी हाल ही में आरबीआई ने एक समय-सीमा तय कर बैंकों के लिए 180 दिन के अंदर मामला सुलझाने या फिर इस समयावधि के बाद कम्पनी को ‘Insolvency Proceedings’ में भेजने की बात कही थी। लेकिन, अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट ने इस सर्कुलर को निरस्त कर दिया। इसके बाद उधारदाता भी संशय में है, कि अब क्या किया जाए?

क्या राफेल से भी जुड़ता है कोई तार?

राफेल मामले पर सुप्रीम कोर्ट मोदी सरकार को क्लीन चिट दे चुका है। इसके बाद तमाम तरह की समीक्षा याचिकाएँ दाखिल की गईं, जिसमें मीडिया रिपोर्ट्स को भी आधार बनाया गया। सुप्रीम कोर्ट में इस बहुचर्चित सुनवाई को लेकर क्या कोई जाँच प्रभावित करने की कोशिश कर रहा है? जैसा कि जस्टिस गोगोई ने अंदेशा जताया है कि न्यायपालिका ख़तरे में है, क्या उनके हाथ में जो मामले हैं उन्हें प्रभावित करने के लिए ये सब किया जा रहा है? पूर्व सीजेआई दीपक मिश्रा के समय भी कुछ ऐसा ही हंगामा हुआ था, अब उसका स्तर और भी ज़्यादा बढ़ गया है।

राफेल मामले से पहले सीबीआई के अंदर मचे घमासान के दौरान भी प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को लेकर एक अनर्गल ट्वीट किया था, जिसके बाद उन्हें कोर्ट से फटकार मिली थी। अगर पिछले कुछ दिनों के घटनाक्रम को देखें तो अदालत के बाहर वो तमाम तरह की बातें की जा रही है, जिससे सुनवाई को प्रभावित किया जा सके। फिलहाल जस्टिस गोगोई को क्लीन चिट मिल चुका है और मीडिया रिपोर्ट्स में ये चर्चाएँ चल रही हैं कि पीड़िता के पास अन्य विकल्प क्या है? लेकिन, मुख्य न्यायाधीशों पर आरोप और दबाव का यह चलन कहाँ से निकला है और इसके पीछे कौन है, ये अभी भी एक राज़ बना हुआ है।

दिग्विजय की जीत के लिए कंप्यूटर बाबा ने झूठ बोलकर बुलाया साधु-संतों को, करवाया हठ योग

मध्य प्रदेश की भोपाल लोकसभा सीट पर भाजपा प्रत्याशी साध्वी प्रज्ञा और कॉन्ग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह के बीच का मुकाबला चरम पर पहुँच गया है। इस सीट पर अब चुनावी घमासान के बीच आज से साधु-संतों की एंट्री भी हो गई है। भाजपा की प्रज्ञा ठाकुर को जवाब देने के लिए दिग्विजय सिंह के समर्थन में साधु-संतों की जमात उतर आई है। भाजपा साध्वी प्रज्ञा को हिंदुत्व के चेहरे के रूप में प्रस्तुत कर रही है और अब ऐसा लग रहा है कि प्रज्ञा ठाकुर के प्रखर हिंदुत्व का सामना करने के लिए दिग्विजय सिंह को हठयोग का सहारा लेना पड़ रहा है।

भोपाल में दिग्विजय सिंह ने कंप्यूटर बाबा की अगुवाई में पत्नी अमृता के साथ पूजा पाठ और हवन किया। कंप्यूटर बाबा ने दिग्विजय सिंह के समर्थन में हजारों की संख्या में साधु संत को लेकर भोपाल में कैंप लगाकर हठयोग शुरू कर दिया है। भोपाल के कोहेफिजा स्थित सोफिया कॉलेज ग्राउंड में साधु संत इकट्ठा होकर धुनी रमा रहे हैं और दिग्विजय सिंह की जीत के लिए हवन कर रहे हैं। इसके साथ ही कंप्यूटर बाबा, दिग्विजय सिंह का प्रचार-प्रसार करने के लिए 8 मई को शोभा यात्रा भी निकालेंगे।

दरअसल, कंप्यूटर बाबा ने झूठ बोलकर दिग्विजय सिंह के लिए पूजा-पाठ करने के लिए बुलाया था। रिपब्लिक भारत ने जब एक साधु से बात की तो उन्होंने कहा कि वो लोग यहाँ कंप्यूटर बाबा के कहने पर आए हैं। कंप्यूटर बाबा ने उन्हें बताया था कि यहाँ पर भंडारा है, लेकिन यहाँ आकर पता चला कि कॉन्ग्रेस पार्टी के पक्ष में बोलना है, दिग्विजय सिंह को जिताना है। उन्होंने कहा कि सन्यासियों को कोई पार्टी से लेना देना नहीं। बीजेपी आए चाहे कॉन्ग्रेस।

बता दें कि कंप्यूटर बाबा को शिवराज सिंह चौहान की सरकार में मंत्री का दर्जा मिला हुआ था, लेकिन बाद में वो मनमुटाव के चलते सरकार से बाहर आ गए थे। भाजपा से बाहर निकले कम्प्यूटर बाबा कॉन्ग्रेस को समर्थन दे रहे हैं। दिग्विजय सिंह के लिए कैंपेनिंग करने वाले कंप्यूटर बाबा ने मीडिया से बात करते हुए भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार 5 सालों में मंदिर भी नहीं बना पाई, और अब मंदिर नहीं तो मोदी नहीं।

साधु संतों के द्वारा किए जाने वाले पूजा-पाठ और यज्ञ को लेकर जब साध्वी प्रज्ञा से बात की गई तो उन्होंने कहा कि ये लोग भगवाकरण का दिखावा कर रहे हैं। प्रज्ञा ने पिछले दिनों की एक रैली का जिक्र करते हुए बताया कि उस रैली में कंप्यूटर बाबा सड़क के किनारे भीख माँगने वालों को भगवा पहनाकर रैली में लाए थे। जब मीडिया वालों ने उनसे पूछा कि वो लोग कहाँ से आए हैं? तो उनलोगों ने बताया कि वो लोग भीख माँग रहे थे, मगर कंप्यूटर बाबा उन लोगों को पैसे देकर सभा में ले आए हैं।

तो क्या अब यह पूछूँ कि राजीव गाँधी माँ की मौत के वक्त कैमरामैन लिए घूम रहे थे?

आज कल राजीव गाँधी चर्चा में आ गए हैं। चर्चा में वो गलत कारणों से आए, जैसा कि वो अपनी असमय मृत्यु के बाद अक्सर आते रहे हैं। साल के दो दिनों को छोड़ दिया जाए, वो भी कॉन्ग्रेस के कार्यकाल के, तो राजीव गाँधी सिख हत्याकांड से लेकर, क्वात्रोची, एंडरसन, शाहबानो, रामजन्मभूमि, बोफ़ोर्स, भोपाल गैस कांड आदि के लिए हमेशा चर्चा में बने रहते हैं।

मोदी ने एक रैली में उन्हें ‘भ्रष्टाचारी’ कह दिया और कॉन्ग्रेस के कई लोगों के साथ, उनके समर्थकों को भी बुरा लग गया। उसके बाद मीडिया और सोशल मीडिया पर चर्चा छिड़ गई कि राजीव गाँधी कितने महान थे और देश के लिए उन्होंने क्या-क्या किया था। बताया जाने लगा कि राजीव गाँधी ये थे, और राजीव गाँधी वो थे।

हालाँकि, ये मोदी का वार नहीं, पलटवार था जो कि राहुल, प्रियंका और कॉन्ग्रेस के लगातार ‘चौकीदार चोर है’ के नारे के बाद आया था। कॉन्ग्रेस का दुर्भाग्य देखिए कि जो नारा इन्होंने इस लोकसभा चुनाव के लिए इस बार अपना मुख्य नारा बनाया है, वो भी चोरी का है। कल ही ट्विटर पर एक विडियो घूम रहा था जिसमें 1989 के चुनावों के विश्लेषण के दौरान पत्रकार वीर साँघवी दूरदर्शन पर बता रहे हैं कि बंगाल में ‘राजीव गाँधी चोर है’ का नारा वामपंथी लगा रहे हैं।

ये वही वामपंथी हैं जिनकी मदद से कॉन्ग्रेस ने सरकार चलाई है। और अब वही वामपंथी एक बार फिर कॉन्ग्रेस की मदद ‘चोर’ वाले नारे के माध्यम से मदद कर रहे हैं।

ख़ैर, इसी चर्चा के दौरान लोग बताने लगे कि राजीव गाँधी की मृत्यु के बाद इस तरह की बातें गलत हैं। फिर कॉन्ग्रेस ख़ानदान को एक शहीदों के परिवार की तरह दिखाया जाने लगा। उसके बाद कुछ तस्वीरें फैलाई जाने लगीं कि कैसे राहुल गाँधी अपने पिता की छाती से चिपक कर रो रहे थे जब उनकी दादी, यानी श्रीमती इंदिरा गाँधी की हत्या हो गई थी।

किसी बच्चे का अपने पिता से चिपक कर इस तरह से रोना एक सहज बात है। क्योंकि हर व्यक्ति कहीं न कहीं अपने परिवार के सदस्य के साथ भावुक तौर पर जुड़ा होता है, और ऐसे मौक़ों पर ऐसे भाव नैसर्गिक हैं। उसके बाद तस्वीरें आईं कि कैसे राहुल गाँधी अपने पिता की अर्थी का कंधा दे रहे थे। राजीव गाँधी की हत्या से जुड़ी तमाम बातें सोशल मीडिया पर दिखाई जाने लगीं।

लेकिन इससे साबित क्या होता है? ये तो सामान्य-सी बात है कि किसी की मृत्यु हुई है और वो प्रधानमंत्री है, तो ऐसी तस्वीरें तो होंगी ही। इसका राजीव गाँधी की नीतियों, उनके द्वारा किए घोटाले और अपराधियों को मदद पहुँचाने की बातों से कोई वास्ता नहीं। उनकी हत्या की गई, हत्यारों को सजा मिली। लेकिन हत्या हो जाने से वह इन अपराधों से मुक्त नहीं हो जाते।

इन तस्वीरों का दूसरा पहलू यह है कि वही सोशल मीडिया योद्धा इन तस्वीरों को दिखा रहे हैं जो मोदी द्वारा अपनी माताजी के पाँव छूने में दिखावा ढूँढ लाते हैं। वो हर ऐसे मौक़े पर कहते हैं कि आखिर कौन अपनी माँ के पैर छूता है तो कैमरामैन लेकर चलता है। वो हर बार मोदी का अपनी माताजी से मिलने को ऐसे दिखाते हैं जैसे मोदी अपनी माताजी को भुना रहा हो वोटों को लिए।

हम उस दौर में जी रहे हैं जब हर हाय प्रोफाइल व्यक्ति की एक्सक्लूसिव तस्वीर की एक क़ीमत होती है। मोदी जैसे व्यक्ति की हर मूवमेंट पर चुनावों के दौरान ख़बर बनती है। मोदी चाहे, या न चाहे, उनका इस बात में कुछ नहीं चलता। इसी में एक बात और है कि अगर मोदी मीडिया को अपने साथ आने से, या दूर से भी फोटो लेने से मना कर दे तो यही मोदी हिटलर हो जाएगा और लोग कहेंगे कि मोदी के हाथों में जो डब्बा था उसमें पंद्रह हजार करोड़ के दो नए नोट थे, जो उसने चुपके से अपनी माताजी को दे दिया।

मीडिया को आप फोटो लेने से नहीं रोक सकते। मीडिया को आप फोटो दिखाने से नहीं रोक सकते। मीडिया का काम है ऐसा करना। इसलिए, दक्षिणपंथियों ने यह सवाल नहीं उठाया कि क्या राजीव गाँधी अपनी माताजी की हत्या के बाद कैमरामैन लेकर चल रहे थे और उन्हें कह रखा था कि ज्योंहि राहुल रोए, तस्वीरें ले लेना। क्योंकि वामपंथियों, छद्म-लिबरलों और दक्षिणपंथियों में यही फर्क है।

ऐसा नहीं होता कि कोई ऐसे मौकों पर तस्वीर लेने का निर्देश देता हो। प्रधानमंत्री की हत्या हुई, पूरे देश की मीडिया उस समय भी, अपने सीमित संसाधनों के साथ वहाँ मौजूद थी और तस्वीरें ली जा रही थीं। आज तो साधन असीमित हैं। आज तो पाँच सौ मीटर दूर से आप तस्वीरें ले सकते हैं, न रील ख़र्च करने का झंझट, न उसे डिलीट करने का। फिर भी मोदी को लेकर एक घृणित कैम्पेन चलता है मानो एक पीएम का अपनी माँ के पैर छूना दिखावा हो जाता है।

चुनावों के इस दौर में हम सब अपनी मर्यादा भूल गए हैं। नेता भी, जनता भी, मीडिया भी। हमने खम्भे पकड़ रखे हैं और चोर को साधु बनाने के लिए जोर लगा रहे हैं, कोई साधु को चोर बनाने का जुगाड़ लगा रहा है। बहुत कम ऐसे हैं जो दोनों बातों को, उन समयों के संदर्भ में रखकर तार्किकता से देखते हैं।

राजीव गाँधी की हत्या हमारे देश पर एक हमला था, लेकिन राजीव गाँधी एक भ्रष्ट व्यक्ति भी थे। दोनों दो बातें हैं, और दोनों सही हैं। उसी तरह हर व्यक्ति को अपने परिवार के साथ समय बिताने का हक़ है, तस्वीरें लेने का हक़ है, शेयर करने का हक़ है। हम में से वो व्यक्ति भी मोदी का मजाक उड़ाता है जो दिन भर में अपने खाने की प्लेट से लेकर, अपने प्रेमी-प्रेमिका की तस्वीरों और पाउट वाले सेल्फी तक अपना दिन निकाल देता है।

इसलिए हम क्या करते हैं, क्यों करते हैं, जो करते हैं, उसका संदर्भ क्या है, ये सब जान कर ही किसी बात पर कमेंट या चर्चा करेंगे तो बेहतर होगा।

पति की खातिर दलित महिला गुंडों के सामने झुकी, 3 घंटे तक 5 युवकों ने किया रेप – बनाए 11 वीडियो क्लिप

राजस्थान के अलवर में एक बेहद ही शर्मनाक घटना में 5 युवकों ने पति के सामने ही पत्नी के साथ कथित तौर पर गैंगरेप को अंजाम दिया। रिपोर्ट्स के अनुसार, आरोपित युवकों ने गैंगरेप के बाद दलित जाति की पीड़ित युवती का वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया। यह घटना राजस्थान के अलवर जिले के थानागाजी इलाके की है।

विगत 26 अप्रैल को पीड़िता अपने पति के साथ बाइक पर सवार होकर दोपहर 3 बजे तालवृक्ष जा रही थी, तभी थानागाजी-अलवर बाइपास रोड पर उनकी बाइक के सामने 5 युवकों ने अपनी मोटरसाइकिलें लगा दीं। इसके बाद वे महिला एवं उसके पति को रेत के टीलों की तरफ ले गए। वहाँ उन्होंने पति के साथ मारपीट की और दंपति को बंधक बना लिया।

पाँचों युवकों ने इसके बाद दोनों पति-पत्नी के कपड़े उतरवाए। पति के साथ मारपीट की। पीड़िता के साथ भी मारपीट की और रेप की कोशिश की। शुरुआत में जब पीड़िता ने रेप की कोशिश का विरोध किया तो उसके पति को और मारा गया। अंततः पीड़िता ने अपने पति की रक्षा के लिए हार मान ली। इसके बाद उन दरिंदों ने 3 घंटे तक बारी-बारी से पीड़िता के साथ रेप किया। 11 वीडियो क्लिप भी बनाए।

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट हैं ‘गायब’

चुनावों के बीच गैंगरेप के इस मामले ने पूरे इलाके में रोष का माहौल पैदा कर दिया है। आरोपितों की गिरफ्तारी और उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई को लेकर जगह-जगह प्रदर्शन हो रहे हैं। लेकिन अभी तक इस मामले में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत या उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट का बयान नहीं आया है। उधर, इस मामले में 30 अप्रैल को ही केस दर्ज होने के बावजूद अभी तक आरोपितों की गिरफ्तारी नहीं हो पाई है। मीडिया और पुलिस के मुताबिक, सभी आरोपित शख्स गुर्जर समाज से हैं और क्षेत्र में उसका राजनीतिक प्रभाव भी है, इसलिए शुरुआत में डर की वजह से पीड़िता की ओर से रिपोर्ट दर्ज नही करवाई गई थी।

आरोपित युवकों ने न सिर्फ महिला के साथ दरिंदगी की थी, बल्कि वीडियो भी बनाया था। इसके साथ ही उन्होंने पति की हत्या की धमकी भी दे दी थी। धमकी के डर से दलित दंपति ने इस मामले की शिकायत दर्ज नहीं की, लेकिन बदमाश फिर भी बाज नहीं आए और पति को लगातार फोन पर हत्या और वीडियो वायरल करने की धमकियाँ देते रहे, और वीडियो को वायरल कर दिया। इस घटना के बाद स्थानीय लोगों में प्रशासन के खिलाफ जबर्दस्त आरोप है। पुलिस ने छोटेलाल, जीतू और अशोक सहित 5-6 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कर जाँच शुरू कर दी है।

26 अप्रैल की घटना को चार दिनों बाद 30 अप्रैल को पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज किया गया। पुलिस ने IPC और SC/ST ऐक्ट की धाराओं 147, 149, 323, 341, 354B, 376(D) & 506 के तहत मुकदमा दर्ज किया है।

जाँच में पुलिस की भूमिका संदिग्ध

इस शर्मनाक घटना के बाद पुलिस की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठ रहे हैं। बड़ा सवाल यह है कि चुनाव के कारण घटना का खुलासा न कर के पुलिस क्या किसी को राजनीतिक फायदा पहुँचाना चाहती थी? अगर ऐसा नहीं था तो पुलिस कहीं आरोप‍ितों के पक्ष में ही तो नहीं थी? अगर ये दोनों कारण नहीं हैं, तो घटना का खुलासा 4 दिन बाद तब क्यों किया, जब वीडियो वायरल हो गया?

आपसी सहमति से भी तलाक लेना अब आसान नहीं, सुप्रीम कोर्ट के बाद अब HC का बड़ा फैसला

इलाहाबाद हाइकोर्ट ने सोमवार (मई 7, 2019) को तलाक के मामले में एक बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा है कि शादी के एक साल के भीतर आपसी सहमति से तलाक का मुकदमा दाखिल नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने बताया है कि विवाह अधिनियम की धारा 13 बी के तहत शादी के 1 साल बाद ही आपसी सहमति से तलाक लिया जा सकता है।

प्रयागराज के अर्पित गर्ग और आयुषी की तलाक अर्जी को खारिज़ करते हुए जस्टिस एसके गुप्ता और जस्टिस पीके श्रीवास्तव की खंडपीठ ने यह फैसला सुनाया है। दंपत्ति की तलाक अर्जी परिवार न्यायाधीश द्वारा पहले ही खारिज़ की जा चुकी थी। इसके ख़िलाफ़ ही हाइकोर्ट में अपील दाख़िल हुई थी। लेकिन उच्च न्यायालय ने सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि यह एक वैधानिक व्यवस्था है इसलिए तलाक के लिए एक साल की अवधि का बीतना बाध्यकारी है।

बता दें आयुषी और अर्पित नामक दंपत्ति की शादी 9 जुलाई 2018 को हुई थी। 12 अक्टूबर 2018 से वह दोनों अलग-अलग रहने लगे और 20 दिसंबर को आपसी सहमति से तलाक का मुकदमा दाखिल किया गया था। परिवार न्यायालय ने तलाक के मुकदमे के लिए एक साल की अवधि से पहले दाखिल मामले को समय से पहले मानते हुए वापस कर दिया था। परिवार न्यायालय के इसी फैसले को हाइकोर्ट में चुनौती दी गई थी।

अपील करने वाले ने दलील देते हुए कहा था कि दोनों (आयुषी और अर्पित) का एक साथ रहना संभव नहीं है।दोनों अलग रहना चाहते हैं और तलाक के लिए भी राजी हैं। इसलिए उनकी अपील थी कि इस वैधानिक अड़चन को दूर किया जाए।