Tuesday, October 1, 2024
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भगवा को आतंक कहने वाली कॉन्ग्रेस अभी ‘स्त्री आतंकवादी’ जैसे शब्द भी लाएँगे: साध्वी प्रज्ञा

सियासत का शिकार हुई साध्वी प्रज्ञा ने मध्य प्रदेश के भोपाल में मीटिंग के बाद 17 अप्रैल को बीजेपी का दामन थाम लिया। वह भोपाल से बीजेपी के टिकट पर यह लोकसभा चुनाव लड़ रही हैं। इस सीट पर उनका मुकाबला अपनी उल-जुलूल बयानबाजी से चर्चा में रहने वाले कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ ने दिग्विजय सिंह से होगा। भोपाल लोकसभा सीट दिग्विजय सिंह के कारण बेहद हाई प्रोफाइल मानी जाती रही है। बृहस्पतिवार (अप्रैल 18, 2019) को साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कॉन्ग्रेस पार्टी पर निशाना साधते हुए कहा कि वो धर्म युद्ध के लिए निकले हैं।

साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने कहा, “कॉन्ग्रेस ने इतने सालों से देश को भ्रमित किया है, उन विषयों को लेकर जनता के बीच जाऊँगी और अपनी बात रखूँगी। साध्वी ठाकुर ने कहा कि भगवा को जिस कॉन्ग्रेस ने आतंक कहा है, वो मेरा मुख्य विषय है। मुझे इन्होंने बहुत प्रताड़ित किया है, जो मेरे साथ हुआ उसकी क्या गारंटी है कि वो किसी और के साथ नहीं करेंगे? साध्वी ठाकुर ने कहा कि इन्होंने स्त्री के शरीर को स्त्री नहीं समझा, कल ये लोग ‘स्त्री आतंकवादी’ कह सकते हैं।

मुस्लिम वोटर्स भी इसी धरती के पुत्र हैं

इस दौरान जावेद अख्तर के बयान पर साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने कहा कि देश के दुश्मन देश-विरोधी ऐसी बातें करते रहते हैं और करते रहेंगे। उन्होंने कहा, “मुस्लिम वोटर से मेरा कहना है कि वो भी इस देश धरती के पुत्र हैं।”

लोकसभा चुनाव को लेकर साध्वी ने कहा कि प्रचार-प्रसार की हमारी पूरी तैयारी है। उन्होंने कहा, “एजेंडा जल्द पेश किया जाएगा। शिवराज जी का काम सबको दिखता है और बीजेपी जन-जन तक पहुँची है। कॉन्ग्रेस के 10 साल भी जनता को याद हैं, कॉन्ग्रेस ने आते ही जन कल्याणकारी योजनाओं को बंद कर दी।” साध्वी ठाकुर ने कहा कि ये देश का कार्य है, इसमें सबको साथ आकर काम करना होगा। इसके साथ ही उन्होंने बताया कि वो 23 अप्रैल को अपना नामांकन दाखिल करेंगी।

झूठ के सहारे तुफैल द्वारा हिंदुत्व को हिंसक साबित करने का खोटा प्रयास, देवी-देवताओं का अपमान

बीबीसी के पत्रकार रहे तुफैल अहमद ने न सिर्फ़ हिन्दू और हिंदुत्व का अपमान किया है बल्कि भारतीय संस्कृति और जनमानस की भावनाओं को भी ठेस पहुँचाई है। ऐसे स्वयंभू विद्वानों की दिक्कत यह है कि ये बिना जाने-समझे किसी भी संस्कृति पर भद्दे केमन्ट्स कर देते हैं और बड़ी आसानी से बच निकलते हैं। अव्वल तो यह कि ये धर्मनिरपेक्षता के तथाकथित ठेकेदार फ्लाइट, बसों और ट्रेनों में बैठकर नमाज़ पढ़ना चाहते हैं लेकिन दूसरी तरफ़ अन्य धर्मों, सम्प्रदायों और संस्कृतियों को अपने पाँव के धूल के बराबर नहीं समझते। ऐसा ही मामला तुफैल अहमद का है। उन्हें माँ सरस्वती या हिन्दू देवी-देवताओं के बारे में कितना पता है, ये हमें नहीं पता। लेकिन, उनके ताज़ा ट्वीट से इतना तो पता लग ही गया है कि उन्हें भारत, भारतीय इतिहास और संस्कृति की समझ तो नहीं ही है। ऐसे लोगों के ज्ञान चक्षु खोलने के एक ही तरीका है, इन्हें तर्क-रूपी जूता सूंघा कर असली तथ्यों से परिचित कराया जाए।

हिन्दू धर्म को हिंसक साबित करने के कुटिल प्रयास में…

फर्स्टपोस्ट में लिखे एक लेख में तुफैल अहमद ने यह साबित करने का प्रयास किया कि हिन्दुओं द्वारा मुस्लिम आक्रांताओं पर लगाए गए आरोप झूठे हैं। बर्बर इस्लामी आक्रांताओं के लिए जबरन धर्मान्तरण कराना और मंदिरों को तोड़ डालना आम बातें थी, यह बात किसी से छिपी नहीं है। लेकिन तुफैल ने इन बातों को झूठ साबित करने के लिए लम्बा-चौड़ा लेख तो लिखा परंतु जब ट्विटर पर लोगों ने उन्हें ‘शांतिप्रिय समुदाय’ की करतूतों के बारे में राय माँगी तो वो बौखला गए। आपा खो बैठे तुफैल ने तुरंत हिंदुत्व पर सवाल पूछ डाला कि आख़िर कौन से शांतिप्रिय धर्म में देवी-देवताओं को हथियारों के साथ दिखाया गया है, सिवाए सरस्वती के? यहाँ उन्होंने दो बड़ी गलतियाँ कीं। पहली ग़लती, तुफैल ने हिन्दू देवी-देवताओं द्वारा धारण किए गए अस्त्र-शस्त्रों को हिंसा से जोड़कर देखा। दूसरी ग़लती, उन्होंने माँ सरस्वती के बारे में बिना तथ्य जाने झूठ बोला।

पहली बात तो ये कि देवी-देवताओं को अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित दिखाने का अर्थ यह हुआ कि किसी को भी बुराई या दुष्टों से लड़ने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। वेदों व पुराणों में दिव्यास्त्रों से लेकर तमाम प्राचीन हथियारों का विवरण है लेकिन कहीं भी ऐसा प्रसंग नहीं है, जहाँ उनका ग़लत इस्तेमाल कर के समाज में भय का माहौल पैदा किया गया हो। समस्याएँ तब आती हैं जब राक्षसों व दुष्टों द्वारा समाज का उत्पीड़न किया जाता है और ऐसे ही मौक़ों पर देवताओं व देवियों द्वारा समय-समय पर अपने अस्त्र-शस्त्रों का प्रयोग कर बुराई का संहार किया गया है। यही अस्त्र- हिंदुत्व में एक महिला को भी परम शक्तिशाली दिखाते हैं। माँ दुर्गा के पास सभी देवी-देवताओं के हथियार थे, अर्थात उनके भीतर अन्य से ज्यादा शक्ति समाहित थी। ऐसा उदाहरण कहीं अन्यत्र नहीं मिलता।

अस्त-शस्त्र हिंसा का द्योतक नहीं है

इसे और अच्छी तरह से समझने के लिए प्रसिद्ध अंग्रेजी लेखक और धर्मगुरु सद्गुरु के शब्दों को देखते हैं। इसी तरह के एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा था कि हिन्दू देवी-देवता अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित होते हैं क्योंकि वो हथियारों की रणनीतिक महत्ता को समझते हैं। एपीजे अब्दुल कलाम का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि हमारे पास एक ऐसे राष्ट्रपति थे जो मिसाइल तकनीक और रॉकेट विज्ञान के पितामह थे। लेकिन उनका नेतृत्व, व्यवहार और उनकी कार्यप्रणाली से हमें शांति का ही सन्देश मिला। फेक शांति की बात करने वालों के लिए सद्गुरु एक बगीचे का उदाहरण देते हैं। बाहर से देखने पर तो वो अत्यंत सुन्दर और सम्मोहक लगता है लेकिन धरती के भीतर जड़ों, कृमियों व अन्य जीवों के बीच अस्तित्व की ऐसी लड़ाई चलती रहती है जिसमें क्षणभर में कई पैदा होते हैं और कइयों का विनाश हो जाता है।

तुफैल अहमद ने हिंदुत्व का एक ही पक्ष देखकर भद्दा, झूठा और अपमानजनक कमेंट कर तो दिया लेकिन वो इसके दूसरे पक्ष को नहीं देख पाए। द्वारकाधीश श्रीकृष्ण अगर सबसे धारदार अस्त्र सुदर्शन चक्र धारण करते हैं तो दूसरी तरफ़ वो बाँसुरी बजाते हुए जीव-जंतुओं को प्रसन्न करते हुए भी नज़र आते हैं। जहाँ भगवान शिव रौद्र रूप में त्रिशूल के साथ बुराई के संहार को तत्पर नज़र आते हैं तो वहीं दूसरी तरफ़ डमरू बजाकर नृत्य करते हुए संगीत की महत्ता का उद्घोष भी करते हैं। अगर भगवान विष्णु अपने दाहिने हाथ में कौमोदीकी गदा धारण किए हुए हैं तो उसके एक हाथ में कमल का फूल होता है जो अपने-आप में शांति का अनुभव देता है। भगवान गणेश जहाँ कुल्हाड़ी से सबक सिखाने को तैयार दिखते हैं वहीं उनके एक हाथ में लड्डू होता है जो स्वादिष्ट भोजन की ओर इशारा करता है।

तुफैल अहमद ने जानबूझ कर हिंदू देवी-देवताओं के एक ऐसे पक्ष को हिंसा से जोड़कर ग़लत तरीके से पेश करना चाहा, जिसका असली सन्देश शांति और बुराई के संहार से जुड़ा है। समीक्षा, व्याख्या और विश्लेषण का स्वागत तभी तक है जब तक वो झूठ को प्रचारित करते हुए संवेदनाओं पर चोट करने का घृणित कार्य न करे। तुफैल ने अपना प्रोपेगंडा चलाने के लिए, हिंदुत्व को इस्लामिक आतंकवाद की तरह साबित करने की असफल कोशिश में झूठ बोला, ग़लत व्याख्या की और संवेदनाओं को पैरों तले कुचल दिया। अब जरा इसके उलट अन्य घटना की कल्पना कीजिए। मान लीजिए कि तुफैल की तरह झूठ बोलकर नहीं बल्कि सत्य के आधार पर ही पैगम्बर मुहम्मद के हरेक कार्यों व जीवन की व्याख्या की जाए तो क्या-कया निकलेगा? जिस धर्म के हितधारकों का अस्तित्व सच्चाई पर आधारित एक कार्टून बना देने भर से ख़तरे में आ जाता हो, उसी धर्म के लोग झूठ के आधार पर दूसरे सम्प्रदायों को नीचे दिखा रहे।

जी हाँ, माँ सरस्वती भी धारण करती हैं अस्त्र-शस्त्र

अब तुफैल के दूसरे झूठ पर आते हैं जिसमें उन्होंने माँ सरस्वती का जिक्र कर उन्हें बाकि देवी-देवताओं से सिर्फ़ इसीलिए रखा है क्योंकि उनके हिसाब से वो हथियार नहीं धारण करतीं। इसे ‘बन्दर बैलेसनिंग’ कह सकते हैं। एक तरफ़ तो उन्होंने हिन्दू देवी-देवताओं को हिंसक दिखाना चाहा और दूसरी तरफ सरस्वती को अच्छा दिखाकर यह भी साबित करने की कोशिश की कि वो अध्ययन के आधार पर ये बातें बोल रहे हैं। लेकिन तुफैल को जानना पड़ेगा कि माँ सरस्वती के हाथों में भी हथियार होते हैं, और ऐसा चित्रित भी किया गया है। अगर उन्होंने दो-चार मंदिरों का भ्रमण कर के या फिर कुछ अच्छी पुस्तकें पढ़ कर कमेंट किया होता तो शायद ऐसा नहीं बोलते। आइए देखते हैं कि कैसे तुफैल ने झूठ बोला ताकि हिन्दू धर्म को अहिंसक साबित किया जा सके।

कर्नाटक के हालेबिंदु में एक शिव मंदिर है, जिसका नाम है होयसलेश्वर मंदिर। राजा विष्णुवर्धन के काल में निर्मित इस मंदिर को पहले तो अलाउद्दीन ख़िलजी की सेना ने बर्बाद कर दिया और फिर बाद में मोहम्मद बिन तुग़लक़ ने यहाँ तबाही मचाई थी। हिन्दू राजाओं के प्रयासों से इसे हर बार एक नया रूप दिया गया। यहाँ माँ सरस्वती की मूर्ति ‘नाट्य सरस्वती’ के रूप में स्थित है। नीचे दिए गए चित्र में आप देख सकते हैं कि उनके हाथों में हथियार भी सुशोभित हैं। ऐसा एक-दो नहीं बल्कि सैकड़ों मंदिरों में दिखाया गया है।

नाट्य सरस्वती, जो हथियार भी धारण करती हैं (होयसलेश्वर मंदिर, कर्नाटक)

इसी तरह होसहोलालु के लक्ष्मीनारायण मंदिर में भी माँ सरस्वती को अस्त्र-शस्त्रों के साथ दिखाया गया है। इससे यह तो साबित हो जाता है कि तुफैल ने कभी सर उठाकर मंदिरों की ओर देखा तक नहीं, तभी उन्हें झूठ और असत्य के आधार पर लिखना पड़ रहा है। दूसरी बात यह कि उन्होंने पवित्र पुस्तकों को पढ़े बिना ही ज्ञान ठेल दिया। ऋग्वेद 6.61 के सातवें श्लोक को देखें तो वो इस प्रकार है:

“उत सया नः सरस्वती घोरा हिरण्यवर्तनिः|
वर्त्रघ्नी वष्टि सुष्टुतिम ||”

जैसा कि आप देख सकते हैं, यहाँ सरस्वती को ‘घोरा’ कहा गया है। इस श्लोक का भावार्थ करें तो यहाँ माँ सरस्वती को दुष्टों का संहारक कहा गया है। कुल मिलाकर देखें तो जहाँ एक तरफ़ माँ सरस्वती को पुस्तक और वीणा के साथ दिखाया गया है, वहीं दूसरी तरफ़ बुराई व दुष्टता का संहार के लिए उनके पास अस्त्र-शस्त्र भी है। तुफैल जैसों को बेनक़ाब करने के लिए इतना काफ़ी है। बिना अध्ययन किए किसी चीज पर कमेंट करने वाली फेक लिबरल मानसिकता से बाहर निकलने से मना करने वाले ये झूठी धर्मनिरपेक्षता के ठेकेदार भी अब वॉट्सएप्प यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर होते जा रहे हैं। इन्हें अपने धर्म की कुरीतियों पर कुछ भी सुनना गवारा नहीं लेकिन अपनी ही धरती की संस्कृति को झूठ बोलकर कटघरे में खड़ा करना इसका स्वभाव है।

गैंगरेप पीड़िता FIR लिखवाने पहुँची थाने, पुलिस अधिकारी ने किया बलात्कार और बना ली वीडियो – Pak की शर्मनाक घटना

पाकिस्तान में अहमदपुर की ईस्ट पुलिस ने क्षेत्रीय पुलिस अधिकारी (आरपीओ) के आदेश के तहत एक सहायक सब-इंस्पेक्टर (एएसआई) पर एक महिला के साथ बलात्कार करने के आरोप में मामला दर्ज किया है।

पाकिस्तानी अखबार डॉन में प्रकाशित खबर के मुताबिक पीड़िता पहले से ही सामूहिक बलात्कार की शिकार हो चुकी थी। जिसके कारण वह न्याय की गुहार लिए पुलिस के पास शिकायत करने पहुँची थी।

पाकिस्तान की ऊछ शरीफ शहर की रहने वाली पीड़िता का दावा है कि पुलिस अधिकारी मामले की जाँच का बहाना बनाकर उसे अपने घर ले गया। जहाँ पर पुलिस अधिकारी ने उसके साथ बलात्कार किया और साथ ही उसकी वीडियो भी बना ली। इसके बाद पुलिस अधिकारी ने उसे धमकी दी कि वह इस बारे में किसी को भी बताने की गलती न करे।

पीड़िता की मानें तो पुलिस अधिकारी ने उसे 12 फरवरी को बुलाया था और कहा था कि वह उसका बयान दर्ज करना चाहता है। लेकिन वहाँ जो कुछ भी हुआ, उसने वहाँ के प्रशासन पर भी सवाल खड़े कर दिए।

गौरतलब है कि पाकिस्तान में लगातार यौन हिंसा की घटनाएँ सामने आती रहती हैं। अभी पिछले साल नवंबर महीने में एक अस्पताल में बेहोश महिला के साथ स्टाफ के द्वारा रेप करने की खबर सामने आई थी।

लाहौर के सर्विस अस्पताल में हुई इस घटना में पीड़ित 35 वर्षीय महिला को इस बात का तब पता चला जब उसे दर्द हुआ और खून बहने लगा। इसके अलावा साल 2016 में काहना इलाके में एक डीएसपी पर अल्पसंख्यक लड़की के रेप का आरोप भी लगा था।

कॉन्ग्रेस के ‘चौकीदार चोर है’ के प्रसारण पर चुनाव आयोग ने लगाया बैन

लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण के मतदान आज जारी हैं। इसी बीच मध्य प्रदेश कॉन्ग्रेस के ‘चौकीदार चोर है’ शीर्षक से प्रस्तुत किए गए विज्ञापनों के प्रसारण पर रोक लगा दी गई है। मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी वीएल कांताराव की अध्यक्षता वाली कमिटी ने इन विज्ञापनों के प्रसारण की अनुमति को निरस्त करने का फैसला लिया है। भारतीय जनता पार्टी ने इन विज्ञापनों के प्रसारण को रोकने की अपील की थी।

भारतीय जनता पार्टी की ओर से शांतिलाल लोढ़ा ने आपत्ति उठाई थी कि विज्ञापन में अपमानजनक और व्यक्ति को बदनाम करने वाली भाषा का उपयोग किया गया है। उन्होंने अपनी अपील में यह भी कहा था कि चौकीदार के नाम से भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रसिद्ध हैं, जिन्हें विज्ञापन में चोर बताया गया है, जो कि अपमानजनक है।

अपील के अनुसार, “किसी भी विज्ञापन में किसी भी व्यक्ति विशेष के नाम से आरोप नहीं लगाए जा सकते हैं, यह संविधान का भी उल्लंघन है। विज्ञापन से प्रधानमंत्री और उनके कार्यालय को ठेस पहुँची है। कॉन्ग्रेस ने यह भी नहीं बताया है कि ‘चौकीदार चोर’ से आशय उनका किस व्यक्ति से है? इसलिए इस विज्ञापन को निरस्त किया जाए।”

स्थानीय मीडिया में विज्ञापन पर बैन लगाए जाने की संभावना पर प्रकाशित रिपोर्ट

भाजपा की आपत्ति पर प्रदेश कॉन्ग्रेस के मीडिया विभाग की अध्यक्ष शोभा ओझा ने यह तर्क दिया था कि ‘चौकीदार चोर है’ से आशय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से नहीं है। हालाँकि, वे यह स्पष्ट नहीं कर पाईं कि उनका आशय आखिर है किससे?

मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी और राज्य स्तरीय मीडिया प्रमाणन तथा अनुवीक्षण समिति के अध्यक्ष वीएल कांताराव ने संबंधित ऑडियो और वीडियो विज्ञापन को किसी भी माध्यम से प्रचार-प्रसार करने पर रोक लगा दी है। उन्होंने इन्हें जमा करवाने का आदेश देने के साथ यह भी कहा कि राज्य स्तरीय विज्ञापन प्रमाणन समिति ने जो विज्ञापन आदेश जारी किए थे, उनको निरस्त करते हुए अपील स्वीकार की जाती है। इस आदेश से असंतुष्ट होने पर अपील उच्चतम न्यायालय में की जा सकती है।

निर्वाचन पदाधिकारी द्वारा जारी आदेश की प्रति

पाकिस्तान से आए हिंदुओं की एकमात्र गुहार- एक बार फिर मोदी सरकार!

गुजरात में लगभग 600 से अधिक पाकिस्तानी हिंदू अप्रवासी ऐसे हैं, जो 2019 के लोकसभा चुनावों में पहली बार मतदान करेंगे। साल 2015 में मोदी सरकार द्वारा भारत की नागरिकता दिए जाने के बाद अब ये लोग मोदी सरकार को वोट डालने के लिए तैयार हैं।

2007 तक कराची में रहने वाले धनजी बागरा अब राजकोट(गुजरात) के निवासी हैं। इंडियन एक्सप्रेस में छपी रिपोर्ट के मुताबिक वो कहते हैं, “मुझे नरेंद्र मोदी को समर्थन देना है, उन्होंने हमारे लिए बहुत कुछ किया है। उन्होंने हमें यहाँ रहने की मँजूरी दी, भारतीय नागरिकता दी, और इस लायक बनाया कि हमें रोजगार मिल सके।”

बागरा ने राहुल गाँधी को समर्थन देने की बात को नकारते हुए कहा, “हम राहुल गाँधी का साथ नहीं दे सकते। उन्होंने हमारे लिए किया ही क्या है?” बागरा कहते हैं कि जब कॉन्ग्रेस सत्ता में थी, तो उन्हें बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ा था, और उन्हें उस दौरान लगभग पाकिस्तान भेजने के लिए मज़बूर भी कर दिया गया था।

बागरा पेशे से मोची हैं। साल 2007 में वे अपनी पत्नी (भानबाई)और दो बच्चे (मेघबाई जीवा और आकाश) के साथ राजकोट आए थे। लेकिन भारतीय नागरिकता इन्हें 2015 में मिल पाई। मार्च 2019 में उन्हें वोटर आईडी कार्ड भी मिल गया है, जिसकी मदद से वह 23 अप्रैल को अपना मतदान दे पाएँगे।

बागरा की मानें तो वह कराची में रह सकते थे लेकिन परिवार की सुरक्षा और सम्मान की चिंता उन्हें हमेशा घेरे रहती थी। महिलाएँ वहाँ अकेले नहीं निकल सकती थीं, और चोरी वहाँ पर बेहद आम थी।

रिपोर्ट के मुताबिक बागरा बताते हैं कि उनके घर पर चोरी होने के बाद उनकी माँ जो गुजरात के कच्छ में पैदा हुई थीं, उन्होंने उन्हे भारत जाने की नसीहत दी। बागरा ने उनकी सलाह को मान लिया। बागरा रोज भगवतीपारा में रेलवे ओवरब्रिज के नीचे जूता-चप्पल ठीक करने के लिए अपनी दुकान लगाते हैं। उनकी दुकान से उनका घर 2 किलोमीटर की दूरी पर है। बागरा के दोनों लड़के भी काम करते हैं। उनके परिवार में उनकी बहु और कृष्णा-रूही नाम के पोते-पोती भी हैं।

शुरुआत में उन्हें राजकोट में गुजर-बसर करने में काफ़ी दिक्कत हुई। पहली कक्षा तक पढ़े बागरा कहते हैं कि वे यहाँ लॉन्ग टर्म वीज़ा पर भारत आए थे। एक ओर जहाँ उन्हें काम की सख्त जरूरत थी, वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान का नाम सुनते ही कोई उन्हें काम देने को तैयार नहीं होता था। बागरा बताते हैं कि उनके पास भारतीय होने की कोई पहचान नहीं थी, बावजूद इस सच्चाई के कि वे कच्छ के मूल निवासी महेश्वरी में से एक हैं।

वो कहते हैं कि उन्होंने दिन में पुराने जूते-चप्पलों को ठीक करने से काम की शुरुआत की और रात में गैराज में चौकीदार की नौकरी की। पुराने दिनों को याद करते हुए वह कहते हैं कि हमें एक दिन खाना मिलता था और अगले दो दिन हमें खाली पेट गुज़ारने पड़ते था। इस दौरान उन्होंने अपने एक साथी (पाकिस्तानी अप्रवासी) से झोपड़ी किराए पर ली थी।

महेश्वरी समुदाय के नेताओं की यदि मानें तो बागरा जैसे लोगों के दिन तब बदले जब एनडीए की सरकार सत्ता में आई। पाकिस्तान से आए हिंदू अप्रवासियों के समर्थक केजी कनार कहते हैं कि मोदी सरकार ने लंबे समय से वीजा पर आए पाकिस्तानी हिंदू अल्पसंख्यकों को आधार कार्ड बनवाने का, बैंक खाता खुलवाने का और संपत्ति खरीदने का मौका दिया, जिससे वह अपना जीवनयापन बिना किसी परेशानी के कर सकें।

बागरा की पत्नी भानबाई का कहना है कि वह भी मोदी सरकार के लिए ही वोट करेंगी। भानबाई की मानें तो वह कराची के हर चुनाव में मतदान करती थीं, लेकिन इस बार वह मोदी को वोट करेंगी, क्योंकि यहाँ (भारत) में सब कुछ मोदी के कारण ही है।

बागरा की तरह, शंकर पटारिया नाम के एक रिक्शा चालक भी 2007 में भारत आए था। उनकी मानें तो उन्होंने भी अप्रत्यक्ष रूप से बताया है कि वो मोदी सरकार को ही वोट करेंगे। पटारिया अपने परिवार के साथ राजकोट घूमने आए थे, लेकिन जगह पसंद आने के कारण उन्होंने यही रुकना ठीक समझा।

बागरा और शंकर के अलावा धनजी भुचिया को भी पिछले वर्ष भारत की नागरिकता मिली है। वो कहते हैं कि आज से 7 साल पहले वीज़ा का समय बढ़वाना बहुत मुश्किल काम हुआ करता था, लेकिन अब सभी सेवाएँ ऑनलाइन उपलब्ध हैं। राजकोट में इस समय कर सलाहकार के रूप में कार्यरत धणजी का कहना है कि वोटर आईडी कार्ड मिलने से उनमें जोश आया है, वह अब खुलेआम कह सकते हैं कि वह इस देश के नागरिक हैं।

भुचिया की मानें तो वह अपने जीवन में पहली बार मतदान करेंगे। उन्होंने पाकिस्तान में कभी भी वोट नहीं किया क्योंकि उन्हें लगता था कि वहाँ के दूसरे समुदाय वाले हिंदुओं से नफरत करते हैं। भुचिया बताते हैं कि पाकिस्तान में बाबरी मस्जिद के बाद माहौल और भी अधिक खराब हो गया था। वो वहाँ से जल्द से जल्द निकलना चाहते थे, लेकिन ऐसा करने के लिए उनके पास कोई संसाधन नहीं था।

राजकोट में महेश्वरी समुदाय के नेता भवन फुफल (Bhavan Fufal) की मानें तो वहाँ कुछ अप्रवासी 1990 के समय से हैं, जबकि कुछ 2007-2009 के बीच में आए हैं। उनकी मानें तो महेश्वरी समुदाय के अधिकतर अप्रवासी राजकोट और अहमदाबाद में बसे हुए हैं, जबकि कुछ परिवार राजस्थान चले गए हैं।

फुफल की मानें तो पहले उनके लिए भारतीय नागरिकता पाना लगभग मुश्किल हुआ करता था, लेकिन अटल बिहारी के नेतृत्व वाली सरकार में दिक्कतों में कमी आई और नागरिकता देने की प्रक्रिया को तेज कर दिया गया। और इसके बाद जब मोदी सरकार आई तो केंद्र ने गुजरात की सरकार को हिंदू अप्रवासियों को नागरिकता देने का अधिकार दे दिया।

इसके बाद गुजरात सरकार ने अहमदाबाद और गाँधीनगर के कलेक्टरों को यह अधिकार सौंप दिए। जिसके कारण नागरिकता मिलने की प्रक्रिया में और तेजी आई। यही कारण है कि उनके समुदाय से मोदी को ही वोट जाएगा, इसमें कोई शक नहीं है।

गौरतलब है कि साल 2015 में 490 पाकिस्तानी हिंदू अप्रवासियों को अहमदाबाद में, कुच में 89 में लोगों को और राजकोट में 20 लोगों को नागरिकता प्राप्त हुई।

बता दें कि इन्हीं अप्रवासियों में से एक 52 वर्षीय नंदलाल मेघानी जो 2002 में अहमदाबाद के घटलोदिया में बसे थे। वो स्पष्ट कहते हैं कि उनका वोट सिर्फ़ भाजपा को जाएगा। उनकी मानें तो उन्हें यहाँ की नागरिकता पाने के लिए 15-20 वर्ष लगे हैं। उनके मुताबिक मोदी सरकार उनकी आवाज सुनती है। वो कहते हैं कि अगर वो अपने लिए नहीं तो अपनों बच्चों के लिए वोट देंगे।

बंगाल में पेड़ से लटका मिला शव, ओडिशा में खून से लथपथ… कब थमेगा BJP कार्यकर्ताओं की हत्याओं का सिलसिला?

पश्चिम बंगाल के पुरुलिया ज़िले में एक भाजपा कार्यकर्ता का शव पेड़ से लटका मिला। मृतक शिशु पाल 22 वर्षीय युवक था और स्थानीय ग्राम पंचायत के भाजपा सदस्य का बेटा था। पश्चिम बंगाल के पुरुलिया ज़िले में यह तीसरी ऐसी घटना है। इससे पहले दो भाजपा कार्यकर्ता – त्रिलोचन महतो और दुलाल कुमार भी बलरामपुर क्षेत्र से लापता हो गए थे और बाद में पता चला कि उनकी हत्या कर दी गई थी। बाद में महतो का शव एक पेड़ से लटका मिला था, जबकि कुमार एक हाई टेंशन इलेक्ट्रिक पोल से लटके पाए गए थे।

ख़बर लिखे जाने के बीच ही, ऐसी खबरें भी आई हैं कि रायगंज पीसी के गोलपोखर में एक चैनल के रिपोर्टर और फोटोग्राफर की भी पिटाई की गई है। इस मामले में सहकर्मियों ने उन्हें बचाया और उन्हें अस्पताल ले गए। मारपीट के कारण रिपोर्टर को काफी चोटें आईं और काफी खून भी बहा। उन पर यह हमला तब हुआ जब डराने-धमकाने की ख़बर पाकर वो एक बूथ पर उसकी रिपोर्टिंग करने गए थे, यहीं पर उन्हें लहूलुहान कर दिया गया।

पश्चिम बंगाल में TMC का राजनीतिक दुश्मनी भरा व्यवहार आम हो गया है। 11 अप्रैल को सम्पन्न हुए लोकसभा चुनाव के पहले चरण के दौरान भी पश्चिम बंगाल में हिंसा की कई घटनाएँ दर्ज की गईं थी।

इसी तरह की हिंसात्मक ख़बर का ख़ुलासा ओडिशा में भी हुआ। यहाँ लोकसभा और विधानसभा चुनावों के दूसरे चरण की पूर्व संध्या पर गंजम जिले के अगाझोला गाँव में एक भाजपा कार्यकर्ता का शव मिला। स्थानीय ख़बरों के अनुसार, 26 वर्षीय बीजेपी कार्यकर्ता सदानंद बेहरा का शव खून से लथपथ था।

ख़बर के अनुसार, गाँव के स्थानीय लोगों ने सदानंद के शव की खोज की और पुलिस को सूचित किया। उसके बाद पुलिस ने शव को पोस्टमॉर्टम के लिए भंजनगर अस्पताल भेज दिया।

बीजेपी नेता बिजयंत पांडा ने ट्वीट करके ECI से ओडिशा की स्थिति का संज्ञान लेने और अतिरिक्त बलों की व्यवस्था करने का अनुरोध किया है।

सरोदा पुलिस स्टेशन के प्रभात कुमार साहू ने कहा है कि फिलहाल मामले की जाँच चल रही है और क्षेत्र में सुचारू मतदान प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिए पुलिस दल तैनात किए गए हैं।

राज्य के कई इलाकों में आज चुनाव होने के कारण इलाके में तनाव की स्थिति बनी हुई है। किसी भी अप्रिय स्थिति से निपटने के लिए यहाँ भारी पुलिस बल की तैनाती की गई है।

ओडिशा में पिछले एक सप्ताह में राजनीतिक हिंसा की कई घटनाएँ सामने आई हैं। इस सप्ताह की शुरुआत में, खुर्दा शहर में एक भाजपा मंडल अध्यक्ष की पार्टी कार्यालय के पास अज्ञात हमलावरों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी, जबकि विधायक उम्मीदवार बच गए थे।

यहाँ यह उल्लेखनीय है कि एक सप्ताह पहले, उसी भंजनगर क्षेत्र में भाजपा विधायक उम्मीदवार के भतीजे पर हिंसक उपद्रवियों द्वारा हमला किया गया था और उन्हें भी गंभीर चोटें लगी थीं। भाजपा विधायक उम्मीदवार प्रद्युम्न नायक के भतीजे अजीत प्रधान पर केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान की एक सार्वजनिक बैठक के बाद हिंसक हमला किया गया था। नायक ने आरोप लगाया था कि टूटू प्रधान नामक एक स्थानीय सरपंच ने हमले का आदेश दिया था।

झूठे, पाखंडी और दिखावटी हैं अजय देवगन, रेप आरोपित के साथ कर रहे काम: तनुश्री दत्ता

भारत में ‘मी टू’ आंदोलन की सूत्रधार अभिनेत्री तनुश्री दत्ता ने अब अजय देवगन पर निशाना साधा है। फ़िल्म ‘दे दे प्यार दे’ के प्रमोशन में व्यस्त अजय देवगन पर तनुश्री ने इसी फ़िल्म को लेकर हमला बोला। अजय देवगन के अलावा इस फ़िल्म में तब्बू और रकुल प्रीत सिंह हैं। वहीं आलोक नाथ भी इस फ़िल्म में एक महत्वपूर्ण भूमिका में नज़र आएँगे। इसी बात से नाराज़ तनुश्री दत्ता ने अजय देवगन के बारे में कहा, “फिल्म के निर्माताओं ने एक रेप आरोपित को फिल्म का हिस्सा बनाए रखा। दे दे प्यार दे के ट्रेलर और पोस्टर सामने ना आने तक किसी को पता नहीं था कि आलोकनाथ फिल्म का हिस्सा हैं। अजय देवगन और मेकर्स चाहते तो वे चुपचाप से आलोकनाथ को रिप्लेस कर सकते थे।

बता दें कि नाना पाटेकर पर दुर्व्यवहार का आरोप लगाने वाली तनुश्री दत्ता का बॉलीवुड करियर कब का समाप्त हो चुका है। उन्होंने कहा कि ‘दे दे प्यार दे’ के निर्माताओं ने आलोक नाथ को फ़िल्म में रखकर पीड़ित विनता नंदा का अपमान किया है। नंदा ने कई ट्वीट के माध्यम से आलोक नाथ पर 20 वर्ष पहले उनका यौन शोषण करने के आरोप लगाए थे। मामला अभी अदालत में चल रहा है। तनुश्री दत्ता ने आगे इस पर कमेंट करते हुए कहा:

“हमें बॉलीवुड में असली हीरो और हीरोइनें चाहिए। हमें इस्डस्ट्री में वास्तविक पुरुषों और महिलाओं की ज़रूरत है जो असहाय लोगों कीप्रतिष्ठा का सम्मान कर सकें। हमें ऐसे लोग चाहिए जो करुणा, सद्भावना और वीरता के सक्रिय उदाहरण बनें, जो अपनी ताक़त और पदवी का इस्तेमाल कर कुछ बड़ा असर करें न कि ऐसे लोग जो ‘मी टू’ अभियान को पटरी से उतारने का कार्य करें। बॉलीवुड झूठे, दिखावटी और डरपोक लोगों से भरा पड़ा है। सभी लोगों की राय है कि अब यह साइनपोस्ट अजय देवगन की तरफ़ इशारा कर रहा है।”

‘दे दे प्यार दे’ का ट्रेलर (फ़िल्म में आलोक नाथ भी हैं)

अजय देवगन पूर्व में कह चुके हैं कि वो किसी भी ऐसे व्यक्ति के साथ कार्य नहीं करेंगे, जिसने महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार किया हो। उन्होंने कहा था कि अगर किसी ने एक महिला के साथ भी कुछ ग़लत किया है तो उसके साथ वह या उनकी कम्पनी कोई कार्य करेगी। अजय देवगन ने तनुश्री के आरोपों का जवाब देते हुए कहा कि फ़िल्म की शूटिंग इन आरोपों के बाहर आने से पहले ही पूरी हो चुकी थी। तनुश्री दत्ता पिछले कुछ महीनों से लगातार विवादित बयान दे रही हैं और उनके हर बयान पर बवाल मचना तय हो जाता है।

अगर फ़िल्म ‘दे दे प्यार दे’ की बात करें तो इसके ट्रेलर को यूट्यूब पर बहुत ही अच्छा रेस्पॉन्स मिला है। इसे पाँच करोड़ से भी अधिक बार देखा जा चुका है। यूट्यूब पर ट्रेलर को क़रीब 6 लाख लोगों ने लाइक किया है व 31,000 से भी अधिक लोगों ने कमेंट किया है। ‘प्यार का पंचनामा’ फेम लव रंजन द्वारा निर्देशित की गई इस फ़िल्म में जावेद जाफरी और जिमि शेरगिल भी नज़र आएँगे। जहाँ अजय देवगन लगातार हिट फ़िल्में दे रहे हैं, तनुश्री दत्ता की पिछले 9 वर्षों से कोई फ़िल्म नहीं आई है।

जानिए कौन सी संस्था है ISI से भी ज्यादा खतरनाक और कैसे पाकिस्तान लड़ रहा है इन्फॉर्मेशन युद्ध

दुनिया के देशों ने अपने देश की सुरक्षा के लिए फौज रखी हुई है, लेकिन पाकिस्तान की फौज ने अपने लिए एक देश रखा हुआ है जिसके संसाधनों का उपयोग वह अपने हिसाब से करती है। पाकिस्तानी फ़ौज के मातहत जहाँ ISI का काम ख़ुफ़िया जानकारी जुटाना है वहीं ISPR का काम है अंतरराष्ट्रीय मीडिया में पाकिस्तान की अच्छी इमेज बनाना। यह संस्था नए जमाने का इन्फॉर्मेशन युद्ध लड़ने का काम करती है। प्रस्तुत लेख में यह बताया गया है कि ISPR भारत के लिए क्यों ख़तरनाक है।

14 फ़रवरी को पुलवामा, कश्मीर में CRPF के काफ़िले पर हुए आतंकी हमले ने देश की जनता व् सरकार दोनों को हिला कर रख दिया। हमले के तुरंत बाद देश में जनाक्रोश उमड़ पड़ा। लोगों ने भारी संख्या में वीरगति को प्राप्त जवानों की अंतिम यात्रा में शामिल होने की फोटो और विडियो सोशल मीडिया पर भरी संख्या में पोस्ट कर पाकिस्तान पर जवाबी कार्रवाई करने की मांग की। मोदी सरकार ने भी 14 फ़रवरी को ही उच्च स्तरीय सुरक्षा मीटिंग में सेना को रणनीति बनाने की अनुमति दे दी।

पुलवामा हमले के 12 दिन बाद 26 फ़रवरी को सवेरे 3:30 बजे भारत के 12 मिराज-2000 लड़ाकू विमानों ने LoC पार कर पाकिस्तान की जमीन पर पल रहे जैश ए मोहम्मद के 3 आतंकी ठिकानों पर हमला कर पुलवामा हमले का जवाब पाकिस्तानी सेना और आतंकवादी संगठनों को दे दिया। बाद में ANI न्यूज़ एजेंसी के हवाले से खबर आई कि विंग कमांडर अभिनन्दन ने अपने मिग-21 लड़ाकू विमान से पाकिस्तानी लड़ाकू विमान एफ-16 को मार गिराया। लेकिन अचानक मिग-21 में तकनीकी खराबी आ जाने के कारण वह अपने विमान सहित पाकिस्तानी सीमा में जा गिरे और उनको पाकिस्तानी आर्मी ने अपनी हिरासत में ले लिया।

27 फ़रवरी को पाकिस्तानी अधिकारी मेजर जनरल आसिफ ग़फूर ‏ने विंग कमांडर अभिनन्दन के पाकिस्तान में होने की खबर अपने आधिकारिक ट्विटर और फेसबुक अकाउंट पर उनका विडियो और फ़ोटो पोस्ट कर दी। साथ ही अपने ट्विटर अकाउंट पर लिखा कि पाकिस्तान ने जवाबी कार्रवाई करते हुए भारतीय वायुसेना के 2 लड़ाकू विमानों को मार गिराया और एक भारतीय पायलट को पाकिस्तानी सेना ने पकड़ लिया है। लेकिन पाकिस्तानी लड़ाकू विमान एफ-16 और जैश ए मोहम्मद के आतंकवादी ठिकाने पर हुई भारतीय कार्रवाई को ख़ारिज कर दिया और कुछ पेड़ों के गिरने कि खबर दी।

इस सबके बाद पाकिस्तान के मीडिया ने जश्न मानते हुए 2 भारतीय विमान मार गिरने की फर्जी खबर को अपनी वेबसाइट और चैनल पर दिखाना शुरू कर दिया। पाकिस्तानी सेना के आधिकारिक बयान के हवाले से ही इस्लामिक न्यूज़ चैनल अल-जज़ीरा से लेकर ब्रिटिश अख़बार मेल टुडे तक ने अपनी वेबसाइट पर पाकिस्तान द्वारा भारतीय लड़ाकू विमाग मिग-21 मार गिराने की फर्जी खबर पोस्ट कर दी। सबसे आश्चर्य की बात ये है कि दुनिया के तमाम देशों की मीडिया ने बिना जाँच पड़ताल किए, बिना भारतीय पक्ष जाने इस तरह की फर्जी खबर अपने न्यूज़ चैनल पर चला दी और अपनी वेबसाइट पर भी पोस्ट की। सोशल मीडिया पर चारों तरफ पाकिस्तानी सेना की बहादुरी की पोस्ट की जा रही थी और अभी भी की जा रही है।

आखिर क्यों इस तरह कि खबर डाली गयी और कौन था इस खबर के पीछे ? शायद किसी ने इस विषय में नहीं सोचा। शायद आप यह भी नहीं जानते हैं कि मेजर जनरल आसिफ ग़फूर ‏कौन है और किस पाकिस्तानी संस्था के लिए काम करता है। विंग कमांडर अभिनंदन की वापसी की जानकारी भारतीय सेना, नेवी और वायुसेना के अधिकरियों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में दी लेकिन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान के पाकिस्तानी संसद में दिए गए बयान का उल्लेख करते हुए पाकिस्तानी मीडिया ने बहुत ही नाटकीय अंदाज में अपने न्यूज़ चैनल और अख़बार में खबर छापी कि प्रधानमंत्री इमरान खान ने “Good Gesture” के लिए विंग कमांडर अभिनन्दन को भारत वापस भेजने की अनुमति दे दी है।

इस खबर के आने के 10 मिनट के अन्दर ही विदेशी न्यूज़ एजेंसी की न्यूज़ वेबसाइट्स पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को शांतिदूत बना कर और अंतरराष्ट्रीय कानून को नज़रअंदाज़ करते हुए बड़े-बड़े आर्टिकल लिखे गए जिसमें जापान टाइम्स, अलजज़ीरा, वॉशिंगटन पोस्ट से लेकर तमाम भारतीय अख़बार शामिल थे।

अब सवाल आता है कि पाकिस्तान इतने अच्छे से मीडिया कैसे मैनेज कर रहा है? क्या पाकिस्तान बहुत पहले से अपनी सेना की कायरता छुपाने के लिए काम कर रहा है? कौन उसके लिए योजना बना रहा है? आखिर इतने आतंकी हमले के बाद में पाकिस्तान में आन्दोलन क्यों नहीं होते?

दरअसल पाकिस्तान ने 1949 में एक संस्था बनाई थी जिसका नाम है Inter Services Public Relations (ISPR); इस संस्था के डायरेक्टर जनरल पाकिस्तानी सेना, वायुसेना, नेवी और मरीन के प्रवक्ता होते हैं। इन डायरेक्टर जनरल का काम आर्म्स फोर्सेज, पब्लिक और सिविल अधिकारियों के बीच तालमेल बनाए रखना होता है। इस संस्था के पहले डायरेक्टर जनरल पाकिस्तानी आर्मी के कर्नल शाहबाज़ खान थे।

इसके हेडक्वॉर्टर में पब्लिक, मीडिया और पाकिस्तानी आर्म्ड फोर्सेज के बीच रिश्ते मजूबत को लेकर रणनीति बनती है और इसके लिए वहाँ लगभग हर रोज पब्लिक वर्कशॉप, सेमिनार, कॉन्फ्रेंस व् प्रशिक्षण चलाया जाता है जिनमें सेना, मीडिया व् पब्लिक से सम्बंधित विभिन्न मुद्दों पर चर्चा होती रहती है। इन सभी कार्यक्रमों में देशी और विदेशी दोनों स्तर पर पाकिस्तानी फौज के लिए समर्थन जुटाने, फर्जी न्यूज़ फ़ैलाने से लेकर जियो पॉलिटिक्स तक शामिल है।

ISPR देशी-विदेशी संस्थाओं में मीडिया पॉलिसी बनाने से लेकर पत्रकारिता, फिल्म निर्माण, रेडियो ब्रॉडकास्ट, पब्लिक कैंपेन और कई तरह के सामाजिक कार्यक्रम करने के लिए पैसे देता है। पाकिस्तान के कई फिल्म अभिनेता, रेडियो जॉकी, पत्रकार ISPR के लिए काम करते हैं। अभिव्यक्ति और पत्रकारिता की आज़ादी के लिए पाकिस्तान की ह्यूमन राईट कार्यकर्ता और वकील असमा जहाँगीर ने ISPR पर सवाल उठाया थाऔर ISPR के खिलाफ कोर्ट में एक पेटिशन भी डाली थी।

हाल ही में भारत के लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन (रिटायर्ड) ने इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ स्ट्रेटेजिक स्टडीज (लंदन) के एक सेमिनर में बोलते हुए आईएसआई से ज्यादा ख़तरनाक ISPR को बताया और कहा कि ISPR इनफार्मेशन वॉरफेयर में बहुत ही अच्छा काम कर रहा है। उन्होंने अपने व्याख्यान में ISPR को पूरे नंबर देते हुए कहा कि भारतीय सेना इनफार्मेशन वॉर में ISPR के मुकाबले पिछड़ चुकी है और जिस तरह से ISPR इनफार्मेशन रणनीति बना कर पाकिस्तान के लिए काम कर रही है वह तारीफ के काबिल है।

भारत में ISI के बारे में सब जानते हैं लेकिन ISPR के विषय में बहुत कम लोग जाते हैं और कश्मीर में हो रहे हमले के पीछे ISPR का बहुत बड़ा हाथ है। हाल ही में हुए पुलवामा हमले के बाद सेना की कार्रवाई को लेकर आई तमाम फर्जी मीडिया रिपोर्ट में ISPR का बहुत बड़ा हाथ है। इसी संस्था की इनफार्मेशन वॉर रणनीति के कारण भारत में कई बार दंगे और सांप्रदायिक घटनाओं को अंजाम दिया जा चुका है।

जिस तरह भारत के कुछ अभिनेता और कला क्षेत्र से जुड़े लोग, NGO कार्यकर्ता तथा पत्रकार पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित मुशायरों और अन्य कार्यक्रमों में जाकर भारत विरोधी बयानबाजी करते हैं ऐसे में आप को आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि ISPR ही उन सबके पीछे काम कर रही है और इसके लिए उनको पैसे भी दे रही है।

भारत भी अब चुप नहीं बैठा है और पाकिस्तान की इनफार्मेशन वॉर रणनीति व् सोशल मीडिया पर सेना को लेकर फैलाई जा रही फर्जी न्यूज़ को ध्यान में रखते हुए मोदी सरकार ने भारतीय सेना को इनफार्मेशन वारफेयर ब्रांच खोलने की अनुमति दे दी है

TV अभिनेत्रियों भार्गवी और अनुषा की सड़क दुर्घटना में मौत, 2 अन्य घायल

तेलंगाना के विकाराबाद ज़िले में बुधवार तड़के एक सड़क दुर्घटना में दो तेलुगु टीवी अभिनेत्रियों की मौत हो गई। मृतकों की पहचान 20 वर्षीय भार्गवी और 21 वर्षीय अनुषा के रूप में हुई है। ये हादसा बुधवार सुबह विकाराबाद एरिया में हुआ। हादसे के समय कार में चार लोग थे। एक्ट्रेस भार्गवी और अनुषा हैदराबाद में अपने अपकमिंग प्रोजेक्ट की शूटिंग खत्म कर घर लौट रही थीं, और एक्सीडेंट का शिकार हो गईं।

20 वर्षीया भार्गवी की मौक़े पर मौत हो गई

ख़बर के अनुसार, कार में ड्राइवर चकरी और विनय कुमार नामक एक अन्य व्यक्ति मौजूद था। भार्गवी की मौके पर ही मौत हो गई, वहीं अनुषा को गंभीर हालत में हैदराबाद के सरकारी उस्मानिया अस्पताल ले जाया गया, जहाँ उन्होंने दम तोड़ दिया। चकरी और विनय इस दुर्घटना में घायल हुए हैं।

चकरी विकाराबाद से हैदराबाद वापस लौट रहे थे, क्योंकि अनंतगिरी के जंगल में एक शूट हुआ था। घर वापस आते समय, सामने से आ रहे ट्रक से बचने के लिए पतली सड़क पर गाड़ी को साइड लेने की कोशिश में कार का बैलेंस बिगड़ा और गाड़ी सीधे जाकर एक पेड़ से टकरा गई। टक्कर इतनी जोरदार थी कि अभिनेत्रियों की मौत हो गई।

छोटे पर्दे की इन दोनों एक्ट्रेस में भार्गवी टीवी शो मुत्याला मुग्गू में निगेटिव भूमिका में थीं और अपने काम के लिए लोकप्रिय थीं, वहीं अनुषा एक नवोदित अभिनेत्री थीं।

मतदान कर्तव्य ही नहीं, अब नैतिक बाध्यता भी: मुट्ठी भर ‘अभिजात्यों’ से माइक और लाउडस्पीकर छीनने का मौका

संसद में लगते एक विद्रूप अट्टहास पर प्रधानमंत्री महोदय ने कहा था, “लगाने दीजिए, ऐसी हँसी रामायण सीरियल के बाद से नहीं सुनी!” वो बड़े राजनीतिज्ञ हैं, प्रधानमंत्री भी। सुरक्षा व्यवस्था की मजबूरियाँ उन्हें चौक-चौराहों पर खड़े होकर लोगों की बातें नहीं सुनने देती होगी। समय शायद इतना नहीं मिलता होगा कि टीवी पर भारत के “तथाकथित” न्यूज़ चैनल देख पाएँ। वरना ऐसी हँसी कोई बरसों न सुने ऐसा कैसे हो सकता है? जनता के हितों को बूटों तले रौंदकर जनतंत्र के चार खम्भों में से किसी न किसी खम्भे के एक पुर्जे की ऐसी हँसी तो रोज ही सुनाई देती है!

बालकनी में काटे जाते बकरों का खून एक खम्भे को सफाई लगता है और साथ ही जब होली के रंगों में वो दाग ढूंढते हैं, तब न्यायपालिका से ऐसा ही अट्टहास सुनाई देता है। जब इन्दिरा जयसिंह को सुप्रीम कोर्ट के चैम्बर में शराब पर पाबन्दी के लिए आन्दोलन चलाना पड़ता है, उस वक्त किसका अट्टहास सुनाई देता है? एक खम्भा जब छत से फेंके गए किसी गुब्बारे के वीर्य से भरे होने की खबर गढ़ लेता है तब अट्टहास ही तो सुनाई देता है। उसी स्तम्भ को महान बताते तमाम प्रगतिशील चेहरों पर से जब #मी_टू अभियान में नकाब नुचता है, तब खोजी पत्रकारिता पर कौन हँसा था?

आज सत्य, अहिंसा और न्याय की बात करने वालों को ये भी बताना चाहिए कि हाथों में कलावा बांधे एक जेहादी कसाब के जिन्दा पकड़े जाने से अगर पोल न खुली होती तो वो जिस किताब का विमोचन कर रहे थे, उसके जरिए कौन से सत्य, कैसी अहिंसा और कहाँ के न्याय की पैरोकारी कर रहे थे? मुंबई आतंकी हमलों में बेगुनाहों के खून में न्याय ही तो बहा था! निहत्थों पर हमले में अवश्य अहिंसा हुई होगी! शायद उनका कहा ही सत्य होता है, इसलिए एक पाकिस्तानी के जेहादी हमले को आरएसएस की साजिश बताकर #हिन्दूआतंकवाद का नैरेटिव ही शायद उनका #पोस्टट्रुथ वाला सत्य होगा!

ऐसे ही किसी अट्टहास के डर से तो भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने की बात पर राजनीति में उतरे #आआपा समर्थक भी चुप्पी लगा जाते हैं। अगर ऐसा अट्टहास न सुनाई देता होता, तो #आआपा समर्थक प्रोफेसर आनंद प्रधान के खामोश हो जाने के पीछे क्या राज है? कसाब के साथी आतंकियों के जो टूरिस्ट गाइड बने जो भट्ट उन्हें मुंबई दर्शन करवा रहे थे, उनकी बहन पूजा भट्ट जब आतंकवाद का भय दिखाती हैं तब भी तो ऐसा ही अट्टहास सुनाई देता है। तथाकथित आजादी के सात दशकों में हिन्दुओं के #मानवाधिकार छीनते रहने वालों का अट्टहास हर ओर तो सुनाई देता है!

बाकी ये भी ध्यान रखिए कि ऐसे अट्टहास हमें सुनाई इसलिए देते हैं क्योंकि उन्होंने यूनिवर्सिटी, समाचारपत्र, रेडियो, टीवी चैनल जैसे संसाधनों पर कब्ज़ा कर रखा है। अभिजात्यों के हाथ से ये माइक छीन लिए जाएँ तो उनके अट्टहास की दशा “जंगल में मोर नाचा, किसने देखा?” की सी हो जाएगी। मतदान इन मुट्ठी भर अभिजात्यों से ये माइक और लाउडस्पीकर छीनने का मौका भी देता है। मतदान कर्तव्य ही नहीं, अब नैतिक बाध्यता भी है। सुधार की कोशिशें न करने वालों को शिकायत का नैतिक अधिकार नहीं रहता, ये तो याद ही होगा।