हाल ही में शुक्रवार (फ़रवरी, 22 2019) को यूपी के देवबंद से जैश के दो संदिग्ध आतंकियों को हिरासत में लिया गया। इनके पकड़े जाने के बाद से ही एटीएस की पूछताछ इनसे जारी है। रविवार (फ़रवरी 24, 2019) को उत्तर प्रदेश के डीजीपी ओपी सिंह ने संदिग्ध से लगातार 4 घंटे की पूछताछ की। इस पूछताछ में कई हैरान करने वाले खुलासे हुए हैं।
इस पूछताछ में इन दोनों संदिग्धों ने पुलवामा हमले के बाद सुरक्षाबलों द्वारा मारे गए मास्टरमाइंड अब्दुल रशीद गाजी से जुड़े होने की बात को भी स्वीकारा है। जाँच कर्ताओं ने दावा किया है कि इन दोनों के सेलफोन से वायस मैसेज मिला है जिसमें इन दोनों में से एक आतंकी ‘बड़े काम’ और ‘सामान’ से जुड़ी बात कर रहा है। इस बातचीत में ‘सामान’ को हथियारों और विस्फोटकों से जोड़ा जा रहा है।
पूछताछ में आतंकियों से प्राप्त जानकारियों को यूपी पुलिस ने जम्मू-कश्मीर के डीजीपी दिलबाग सिंह के साथ साझा किया है। टाइम्स ऑफ इंडिया से हुई बातचीत में डीजीपी ओपी सिंह ने कहा कि दोनों आतंकियों ने जैश के संबंधों को स्वीकारा किया है और साथ ही कुछ जरूरी जानकारी भी दी है, जो उम्मीद है भविष्य में काम आएगी।
एटीएस, पुलिस महानिरिक्षक असीम अरूण ने बताया कि शहनवाज ने कहा है कि वो आतंकी गतिविधियों में पिछले 18 महिनों से जुड़ा हुआ है जबकि आक़िब को इससे जुड़े 6 महीने हुए हैं। चार घंटे चली पूछताछ में मालूम चला है कि संदिग्ध आतंकी ब्लैकबेरी मैसेंजर और वर्चुअल नंबर का इस्तेमाल कर अपने संदेशों को एक दूसरे तक पहुँचाते थे। इन्ही संदेशों के ज़रिए यह कुछ बड़ी घटना को अंजाम देने की तैयारी कर रहे थे।
साथ ही एटीएस की जाँच में सामने आया है कि इन आतंकियों के मोबाइल में ऐसे ऐप डाउनलोड थे, जो प्ले स्टोर पर मौजूद ही नहीं हैं। इसके ज़रिए ही वह अपने साथियों के संपर्क में आते थे। बता दें कि आतंकियों के इस मॉड्यूल और संगठन के अन्य सदस्यों के बारे में भी अहम सुराग एटीएस के हाथ लगे हैं।
एक ओर जहाँ चुनावी रैलियों में कॉन्ग्रेस पार्टी दलितों की एकमात्र हितैषी होने का दावा करती है, वहीं पार्टी के भीतर उनकी दलित विरोधी मानसिकता को कर्नाटक के डेप्युटी CM, जो कि कॉन्ग्रेस के ही नेता हैं, ने सबके सामने रख दिया है। कर्नाटक की जेडीएस-कॉन्ग्रेस गठबंधन की सरकार में डेप्युटी CM और कॉन्ग्रेस नेता जी. परमेश्वर ने खुद के दलित होने की वजह से मुख्यमंत्री नहीं बन पाने का आरोप लगाया है। परमेश्वर ने कहा कि जाति की वजह से उन्हें 3 बार मुख्यमंत्री का पद देने से इनकार कर दिया गया।
K’taka Dy CM,G Parameshwara at an event in Davangere y’day alleged he was thrice denied CM post as he belonged to Dalit community,said, “PK Basavalingappa & KH Ranganath missed the CM post.Mallikarjun Kharge also couldn’t become CM. I missed it thrice. Somehow, I was made Dy CM.” pic.twitter.com/7g0AcKsde4
कर्नाटक के दावणगेरे में दलित समुदाय के अधिकारों से जुड़ी चलावड़ी रैली में भाग लेने आए उपमुख्यमंत्री जी. परमेश्वर ने कहा, “मुझे दलित होने की वजह से दबाया गया। दलित होने की वजह से ही मुझे 3 बार मुख्यमंत्री की कुर्सी तक नहीं पहुँचने दिया गया। मैंने मजबूरी में डेप्युटी सीएम की कुर्सी से संतोष किया, जिसके लिए मैं जरा भी इच्छुक नहीं था।”
जी. परमेश्वर ने कॉन्ग्रेस पार्टी पर अन्य दलित नेताओं को भी मौका नहीं देने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, “कॉन्ग्रेस ने बी. बासवलिंगप्पा, के.एच. रंगनाथ, मल्लिकार्जुन खड़गे को भी प्रदेश के सीएम की कुर्सी तक पहुँचने नहीं दिया। यह सभी लोग मुख्यमंत्री बन सकते थे, लेकिन जाति की वजह से मात खा गए और दलित उत्पीड़न का शिकार हो गए।”
हालाँकि कॉन्ग्रेस ने परमेश्वर के आरोपों को मानने से मना कर दिया है। पूर्व सीएम और सीनियर कॉन्ग्रेस नेता सिद्धारमैया ने कहा, “मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि परमेश्वर ने यह बयान क्यों और किस संदर्भ में दिया है। कॉन्ग्रेस पार्टी ही दलित तथा समाज के अन्य कमजोर तबकों का ख्याल रखती है।”
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) मार्च में एक ऐतिहासिक पीएसएलवी मिशन शुरू करने जा रहा है। भारतीय स्पेस हिस्ट्री में यह पहली बार होगा जब इसरो एक साथ तीन विभिन्न कक्षाओं में एक ही PSLV मिशन से अलग-अलग सैटेलाइट स्थापित करने जा रहा है।
ISRO Chairman K Sivan: Very soon we are going to make PSLVs from industry for which L&T and HAL have formed a consortium. Along with that small satellite launch vehicles will also be made by the industry. (23.02.2019) https://t.co/ek9IT4y3sk
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार इसरो के अध्यक्ष के सिवन ने कहा, “इसरो मार्च के अंतिम सप्ताह में अभी तक की सूचना के अनुसार 21 मार्च को PSLV C-45 मिशन लॉन्च करेगा। श्री हरिकोटा से टेकऑफ करने के तुरंत बाद, रॉकेट सबसे पहले 763 किमी की कक्षा में डीआरडीओ का एक इलेक्ट्रॉनिक खुफिया उपग्रह एमिसैट (EMISAT) लॉन्च करेगा। डीआरडीओ पेलोड लॉन्च करने के तुरंत बाद, PS-4 चरण (रॉकेट का अंतिम चरण) 504 किमी की कक्षा में पहुँचने के लिए रॉकेट को फिर से स्टार्ट किया जाएगा, जहाँ यह 28 विदेशी उपग्रहों को स्थापित करेगा। इसके बाद, PS-4 फिर से दो ऑर्बिट के जम्प के साथ, 485 किलोमीटर की दूरी तय कर निर्धारित तीसरी कक्षा में पहुँच जाएगा, जहाँ अंतरिक्ष प्रयोगों के लिए एक प्रायोगिक मंच लॉन्च किया जाएगा।”
We’ll launch first 3 orbit mission with PSLV-C45 on Mar 21: ISRO Chairman K Sivanhttps://t.co/vfnebYrEHb
सिवन ने कहा, “PSLV C-45 पूरी तरह से एक नया रॉकेट होगा। इस बार इसमें चार स्ट्रैप-ऑन होंगे। 24 जनवरी को पिछले मिशन के विपरीत जब रॉकेट का अंतिम चरण सक्रिय रहने के लिए बैटरी का उपयोग करता था, इस बार हम सौर पैनलों का उपयोग करने जा रहे हैं ताकि कम से कम छह महीने तक इसे सक्रिय रखने के लिए सौर ऊर्जा का उपयोग किया जा सके।”
इसरो अध्यक्ष ने कहा कि इसरो अप्रैल के अंत में चंद्रयान-2 मिशन शुरू करेगा। दूसरे चंद्र मिशन की तैयारियों की समीक्षा करने के लिए उन्होंने कहा “6 मार्च को प्रख्यात विशेषज्ञों की एक राष्ट्रीय समीक्षा बैठक होगी। इस बैठक से एक दिन पहले, इसरो 5 मार्च को गगनयान अर्थात मानव अंतरिक्ष यान परियोजना पर एक राष्ट्रीय समीक्षा बैठक भी आयोजित करेगा।”
शीर्षक का सवाल अगर कोई ऐसा व्यक्ति करे जो किसी पार्टी को समर्थन नहीं देता, या किसी पार्टी के विरोध में नहीं है, तो सवाल सही लगता है। सवाल इसलिए सही लगता है कि उस व्यक्ति को पार्टियों और नेताओं के फोटो मोमेंट से ही समस्या हो सकती है। उसे लगता हो कि स्थिति आदर्श है, और चुनाव जीतने के लिए विकास के काम करा लिए जाएँ, वही बहुत है। उसे लगता हो कि हर आदमी को परफ़ेक्ट होना चाहिए।
लेकिन जो व्यक्ति एक विचारधारा, या पार्टी-पोलिटिक्स के साथ जगता, रहता, और सोता हो, दिन के दस पोस्ट उसके राजनैतिक होते हों, वो अगर मोदी द्वारा ‘स्वच्छता दूतों’ के पाँव धोने पर उपहास कर रहा है, तो उसकी मानसिकता पर सवाल उठते हैं।
जो भी व्यक्ति थोड़ा भी राजनीति से संबंध रखता है, चाहे वो एक सामान्य नागरिक के तौर पर हो, या फिर किसी पार्टी के कार्यकर्ता के तौर पर, वो जानता है कि चौबीसों घंटे मीडिया से घिरे रहना वाले नेता जो भी करते हैं, उसका पब्लिक में जाना तय है। साथ ही, जब बात पब्लिक में जाती है, तो एक संदेश जाता है। संदेश को आप किस तरह से देखते हैं, ये पूरी तरह आपके ऊपर है।
यही कारण है कि राहुल गाँधी को चुनावों के दौरान गोत्र बताने से लेकर जनेऊ पहनने और शिवभक्त से रामभक्त होना पड़ा था। पार्टी के या वृहद् समाज के वोटर्स को समेटने के लिए ऐसे काम होते रहे हैं, और होते रहेंगे। ऐसे ही काम चाहे धरना करने को लेकर हो, या सड़क पर रातों में अपनी ही सरकार में सोने को हो, बहुतों ने किया है। इन सबका महत्व है।
महत्व यही है कि आप जिनसे जुड़ना चाहते हैं, वहाँ तक आप शारीरिक रूप से नहीं पहुँच सकते, तो ऐसे संदेशों के ज़रिए पहुँचते हैं। एक पब्लिक फ़िगर का, नेता का, एक समय में सिर्फ स्पीच के माध्यम से ही नहीं, अपने बॉडी लैंग्वेज, अपनी सामान्य जिंदगी और अपनी आधिकारिक यात्राओं के दौरान किए गए छोटे-छोटे कार्यों से भी अपनी जनता से जुड़ने का मौका होता है।
कल जो मोदी ने किया, या मोदी जो अपनी रैलियों के दौरान करते हैं, उसके मायने होते हैं। आप विरोध में खड़े हैं तो आपको बेशक वो एक ड्रामा लगेगा, लेकिन वही काम आपके मतलब के लोग करते हैं, तो वो सामान्य सी बात होती है जो राहुल गाँधी हमेशा करते थे, लेकिन राजनीति के कारण उन्हें पब्लिक में करना पड़ा। ख़ैर, यहाँ बात राहुल बनाम मोदी की है भी नहीं।
चाहे वो उत्तर-पूर्व के राज्यों में रैलियों को संबोधित करते हुए उनकी वेशभूषा धारण करनी हो, उनकी जनजातीय परंपरा की पगड़ी, टोपी, कपड़े पहनने हों, मोदी ऐसे मौक़े नहीं छोड़ते। साथ ही, आप में से ही कई उन टोपियों का, कपड़ों का उपहास करते हैं। आप कर सकते हैं क्योंकि आपके लिए जीन्स-पैंट ही कपड़ा है, बाकी चीज़ें जो आपकी समझ में नहीं आती, वो नौटंकी है।
इसके मायने यही हैं कि मोदी अपने कुरते में भी स्पीच दे सकते थे, लेकिन उन्होंने उस इलाके की जनजातीय परंपरा को यह संदेश दिया कि देश का प्रधानमंत्री उनकी परंपरा का सम्मान करता है। आपको इसमें कुछ भी असामान्य नज़र नहीं आएगा क्योंकि आप न तो लोयथम रिचर्ड को जानते हैं, न ही नाइदो तनियम को। आप उन हजारों उत्तर-पूर्व के लोगों को नहीं समझ पाते, और मजाक करते हुए, टिप्पणियाँ करते हुए, उसके बालों के कारण उसकी जान ले लेते हैं।
आप जान ले लेते हैं क्योंकि आप उस समाज का हिस्सा हैं, जिनके लिए विविधता उपहास का विषय है। समाज ऐसे लोगों को मार देता है क्योंकि वो उनसे अलग दिखते हैं। नागालैंड की जनजाति की टोपी या फिर अरुणाचल से न्यासा जनजाति की पगड़ी को आप आजीवन देख नहीं पाते, अगर मोदी ने न पहना होता। इससे कम से कम यह तो हुआ ही होगा कि कोई आपको वैसा पहने दिख जाए तो उसे आप सीधा अफ़्रीका का नहीं मान लेंगे, और आपके अपने देश की विविधता का भान होगा!
उसी तरह, कितनी बार रुककर सफ़ाई कर्मचारी से ठीक से बात की है आपने? सीवरों में घुसकर मरने वाले लोग वही लोग हैं, जो हमारे समाज को साफ रखते हैं। कितनी बार अपने घर में झाड़ू लगाने आती महिला को आपने प्रेम से कुछ कहा है? कितनी बार आपने उसके बच्चे की मदद करनी चाही है? कितनी बार उसके परिवार के बारे में जानने की कोशिश भी की है? याद करेंगे तो शायद दो-तीन बार ऐसा किया होगा। हम में से बहुत वो भी नहीं करते।
गाँधी जी ने जब कहा था कि कोई भी कार्य छोटा नहीं होता, तो हमने किताबों से वो लाइन रट ली, लेकिन समझ नहीं पाए। इन बातों की समझ बाहर के कई देशों में है, इसलिए वहाँ नाली साफ करने वाले को एक प्रोफेसर से ज़्यादा पैसे मिलते हैं। वहाँ की समझ यह है कि कोई हमारी गंदगी हटा रहा है, कोई वह काम कर रहा है जो मैं स्वयं नहीं करना चाहता। इसलिए उस कार्य को करने वाले की अहमियत बढ़ जाती है।
मोदी जब स्वच्छता दूतों के पाँव धोता है तो वो सिर्फ एक ड्रामा नहीं है, वो एक स्टेटमेंट है कि राष्ट्र का मुखिया उन लोगों के कार्यों को, उनकी कोशिशों को, उनकी अहमियत को पहचान रहा है, जिनके कारण विश्व का सबसे बड़ा मेला सफ़ाई के मामले में बेहतरीन रहा। ये महज़ एक विडियो नहीं है, यह एक संदेश है कि हमें अपने घर की सफ़ाई करने वाले, हमारे काम निपटाने वाले लोगों को आभार प्रकट करना चाहिए।
पैर धोना एक प्रतीकात्मक कार्य है। लेकिन कभी-कभी ऐसे प्रतीक हमारे समाज में ज़रूरी होते हैं जहाँ हम हमेशा ही ऐसे लोगों को नीची निगाह से देखते हैं। आप नहीं देखते होंगे, हो सकता है, लेकिन समाज कैसे देखता है, वो हम सब जानते हैं। ये सिर्फ पाँव धोकर फोटो खिंचाना नहीं है, ये सद्भावना का संदेश है कि हमें अपना व्यवहार कैसा रखना चाहिए।
ऐसे में कोई अपने जीवन के आधे घंटे निकालकर, प्रतीक के लिए ही सही, उनके पास जाने की कोशिश करता है, उन्हें यह विश्वास दिलाता है कि वो जो कार्य कर रहे हैं, वो महान कार्य है, तो आपको समस्या क्यों होती है? आप ही तो वो लोग हैं जिन्होंने ‘स्वच्छता अभियान’ पर मोदी के झाड़ू पकड़ने को लेकर मजाक उड़ाया था। लेकिन आप आज भी उसके इम्पैक्ट को स्वीकारने की स्थिति में नहीं हैं क्योंकि आपके लिए तो मोदी को हर व्यक्ति के घर में जाकर झाड़ू लगाते हुए दिखना था।
आप इन मामूली बातों के बड़े असर से वाक़िफ़ नहीं हैं। शायद आपका अनुभव वैसा न हो, या सोशल मीडिया के बाइनरी में आप भी मिडिल ग्राउंड तलाशने में परेशान हो रहे हों। ‘स्वच्छता अभियान’ और ‘हर घर में टॉयलेट’ के मायने उन औरतों से पूछिए जिन्हें अंधेरे में शौच को जाना पड़ता था। लेकिन आप नहीं समझ पाएँगे क्योंकि आपके लिए झाड़ू और ट्वॉयलेट तो मामूली चीज़ें हैं, इन पर पीएम अपना समय क्यों दे रहा है।
लोगों को इस बात से आपत्ति हो जाती है कि मोदी अपनी माँ के पैर छूते हुए फोटो डालता है, बग़ीचे में घुमाते हुए फोटो डालता है। ऐसे लोग बहुत ही आसानी से भूल जाते हैं कि इसी फेसबुक, इन्स्टाग्राम या ट्विटर पर वो दिन भर अपने मन की बातें करते रहते हैं, अपनी प्रेमिका की तस्वीरें लगाते हैं, माँ के गले लिपटकर उन्हें चूमते हैं।
क्या प्रधानमंत्री को अपनी माँ के प्रति प्रेम दर्शाने का हक़ नहीं है? क्या वो पत्थर हो जाए? आखिर किस बेटे की लालसा नहीं होती कि वो जीवन में कुछ करे, और अपनी माँ को उसका एक हिस्सा न दे? जिस माँ के रक्त और मांस से ये शरीर बना है, जिस माँ का हिस्सा हम हैं, उसे अगर हम प्रधानमंत्री बनने के बाद अपने आवास पर न लाएँ, उसके व्हील चेयर को ढकेलते हुए बग़ीचे में न घुमाएँ तो फिर प्रधानमंत्री बनकर अपने वैयक्तिक स्तर के आनंद से हम वंचित रह जाएँगे।
सोशल मीडिया का दौर है, तो जैसे आप अपनी माँ के गले लगकर फेसबुक पर लगा देते हैं, और लोग उसे देखकर खुश होते हैं, वैसे ही एक प्रधानमंत्री भी करता है। इसमें समस्या क्या है? प्रधानमंत्री अपने निजी जीवन के क्षण, अपने वैयक्तिक पोस्टों के माध्यम से शेयर न करे? मैं तो चाहूँगा कि हर व्यक्ति ऐसा करे क्योंकि न तो एक बेटे द्वारा अपनी माँ को चूमने से बेहतर कोई तस्वीर हो सकती है, न ही किसी सफ़ाई कर्मचारी के पाँव धोते प्रधानमंत्री से ज़्यादा समावेशी संदेश।
इसलिए, आप जब ऐसी बातों पर प्रश्न करते हैं, तो अपने आप को एक बार देख लिया कीजिए। दौर बहुत ही अच्छा है। हर दौर अच्छा होता है। हर दौर के लोग अच्छे होते हैं। जहाँ तक इस तंज का सवाल है कि ऐसे लोगों के बच्चे होते तो वो उनके ‘मूतने की तस्वीरें’ भी लगाता, तो यह जान लीजिए कि जो पहली बार पिता बनता है, वो इन बातों पर भी अपार आनंद पाता है। क्या पता आप ही जब उस स्थिति में होंगे तो अपने बच्चों के साथ की हर वैसी तस्वीर शेयर करेंगे।
ये ड्रामा नहीं है। ये ड्रामा आपके लिए हो सकता है क्योंकि आपको लगता है कि इसकी ज़रूरत नहीं है। और वो आप ही होंगे जो यह भी कहते पाए जाएँगे कि दलितों को पीटा जा रहा है, मोदी जी बयान क्यों नहीं देते। वही मोदी उसी दलित के घर चला जाएगा, तो आप कहेंगे चुनावों के समय नौटंकी हो रही है।
आप ही कहेंगे कि भाजपा और मोदी ‘सूट बूट की सरकार’ चलाते हैं, जिसका मतलब है कि उसे आम आदमी से कोई मतलब नहीं। वही आदमी जब किसी बुजुर्ग महिला के पाँव छूता है, तो आपको लगता है कि सब कैमरे के लिए हो रहा है। आप ही कहते हैं कि वंचितों के लिए मोदी ने क्या किया, उन्हें सताया जा रहा है, और जब मोदी उनके पाँव धोता है, तो आपको लगता है कि नौटंकी हो रही है।
आप शायद इन बातों के प्रभाव को समझ नहीं सकते। शायद समझना नहीं चाहते। या, आपकी समझ का दायरा इतना संकुचित है कि आपके लिए आप जो चाहते हैं, उससे इतर कुछ भी होता अजीब लगता है, नौटंकी लगती है। जो मोदी से जुड़े हैं, वैचारिक स्तर पर, या पार्टी के स्तर पर, उनमें ऐसे लाखों लोग हैं जो ऐसे तबक़ों से आते हैं जिन्हें हमेशा हेय दृष्टि से देखा गया है। इन लोगों तक अगर जुड़ाव का एक संदेश ही जा रहा है कि मोदी उनके कार्यों की सराहना करता है, तो उनके लिए ‘सम्मान’ नाम के शब्द के मायने व्यापक हो जाएँगे। लेकिन आपको क्या, आप नहीं समझेंगे, क्योंकि आप समझना नहीं चाहते।
कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी की बहन प्रियंका गाँधी के पति रॉबर्ट वाड्रा के राजनीति में एंट्री करने की अटकलों पर बयानबाजी शुरू हो गई है। मुरादाबाद में आजकल रॉबर्ट वाड्रा के होर्डिंग व पोस्टर लगे हैं। इन सभी पोस्टर में उनसे लोकसभा चुनाव लड़ने का आग्रह किया गया है। भाजपा नेता मुख्तार अब्बास नकवी ने इसे लेकर जहाँ कॉन्ग्रेस पर जबरदस्त तंज कसा है, वहीं कॉन्ग्रेस नेता संदीप दीक्षित का कहना है कि हर किसी को अपनी बात रखने का अधिकार है। मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों में प्रवर्तन निदेशालय की पूछताछ का सामना कर रहे वाड्रा ने भी सक्रिय राजनीति में आने का संकेत क्या दिया, उनको लोकसभा चुनाव लड़ाने की माँग होने लगी।
राजनीति में आने की अटकलों पर रॉबर्ट वाड्रा ने कहा, “पहले मुझे आधारहीन आरोपों से मुक्त होना है। उसके बाद मैं इस मामले (राजनीति में आने पर) पर काम करना शुरू करूँगा। अभी कोई जल्द नहीं है।”
रॉबर्ट वाड्रा के लोकसभा चुनाव लड़ने से संबंधित पोस्टर मुरादाबाद में लगने पर केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा, “ये जो P-R (प्रियंका-राहुल) का सियासी सर्कस है, इसमें जोकर की एंट्री बाकी थी। अब जोकर की एंट्री दिखाई पड़ रही है।”
मुरादाबाद के युवाओं में वाड्रा को लेकर काफी जोश नज़र आ रहा है। युवा कॉन्ग्रेस की ओर से लगाए गए पोस्टर पर लिखा है कि रॉबर्ट वाड्रा मुरादाबाद लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने के लिए आपका स्वागत है। लोकसभा चुनाव के मद्देनजर उत्तर प्रदेश में सियासी सरगर्मी बढ़ने लगी है। कॉन्ग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी के सक्रिए राजनीति में उतरने के बाद अब उनके पति रॉबर्ट वाड्रा के सियासी मैदान में एंट्री को लेकर हलचल तेज हो गई है।
वहीं, कल ही कॉन्ग्रेस पार्टी के सहयोगी महान दल जनता से अपील करती दिखी थी। ‘महान दल’ के अध्यक्ष केशव देव मौर्य वोटर्स से अपील कर रहे थे कि वोट देने के लिए प्रत्याशी मत देखना, चाहे वह कोई भी हो, अच्छा हो, बुरा हो, खराब हो, बाहर का हो, भीतर का हो, पाकिस्तान से भी आकर लड़े, बस हाथ का पंजा देखकर ही उसी को वोट देना। यह मात्र संयोग ही हो सकता है कि रॉबर्ट वाड्रा इनमें से ज्यादातर शर्तों पर एकदम ‘फिट’ नजर आते हैं।
मध्य प्रदेश के सुमावली विधान सभा से कॉन्ग्रेस विधायक हैं ऐंदल सिंह कंसाना। इनके बेटे हैं राहुल सिंह। राहुल आगरा-मुंबई हाइवे पर स्थित छौंदा टोल प्लाजा पर 15-20 बदमाशों के साथ हमला और तोड़-फोड़ करते हुए पाए गए।
दैनिक भास्कर की ख़बर के अनुसार यह घटना शनिवार-रविवार (फ़रवरी 24, 2019) रात की है। जब पूरा वाकया सीसीटीवी कैमरे में क़ैद हो गया। पुलिस का कहना है कि इन बदमाशों ने टोल के ऑफिस पर क़रीब पाँच मिनट तक ताबड़तोड़ गोलियाँ बरसाई। परिस्थिति को गंभीर होता देख वहाँ मौजूद सिक्योरिटी गार्ड्स ने इन बदमाशों पर जवाबी गोलीबारी की।
दोनों तरफ से चली गोलियों में एक युवक गंभीर रूप से घायल हो गया। मुरैना के एसपी रियाज़ इक़बाल के मुताबिक़ विधायक ऐंदल सिंह कंसाना के बेटे राहुल सहित 15-20 अन्य लोगों के ख़िलाफ़ 307 धारा के तहत केस दर्ज किया गया है। घटना को अंजाम देने के बाद से ही अपराधी फरार हैं।
इस घटना की रिपोर्ट दर्ज कराते हुए टोल मैनेजर भगवान सिंह सिकरवार ने बताया कि रात के साढ़े 10 बजे राहुल उन्हें फोन करके धमकी दे रहा था कि टोल से उसकी और उसके नाम से जितनी भी गाड़ियाँ निकलेंगी, उनसे कोई शुल्क ना लिया जाए।
कांग्रेस सरकार में दबंगों का आतंक फिर से सिर उठाने लगा है. सुमावली से कांग्रेस विधायक ऐंदल सिंह कंसाना के बेटे राहुल सिंह ने 15 से 20 साथियों के साथ मिलकर एक टोल नाके पर जमकर उत्पात मचाया और फायरिंग की.https://t.co/T5cqxMsx8F
लेकिन, सीनियर मैनेजर द्वारा इस बात की मनाही के बाद राहुल अपने 15-20 साथियों के साथ वहाँ पहुँचा और जमकर गोलीबारी की। गोलीबारी की आवाज़ सुनते ही वहाँ पर हड़कंप मच गया और वहाँ मौजूद सभी कर्मचारी बूथ छोड़कर भागने लग गए। साथ ही उस हाइवे से गुज़रने वाले सभी वाहन भी अपनी जगह पर खड़े रह गए।
मामले के तूल पकड़ने के बाद कॉन्ग्रेस विधायक का बयान आया है कि फायरिंग के वक्त उनका बेटा टोल पर गया ही नहीं। साथ ही विधायक ने टोल टैक्स ठेकेदार की FIR को भी झूठा करार दिया।
सुप्रीम कोर्ट उस याचिका पर सुनवाई करने को तैयार हो गया है, जिसमें जम्मू-कश्मीर में पत्थरबाज़ो से सुरक्षाबलों की सुरक्षा की माँग की गई थी। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की खंडपीठ ने 19 वर्षीय प्रीति केदार गोखले और 20 वर्षीय काजल मिश्रा द्वारा दायर की गई याचिका पर केंद्र सरकार, रक्षा मंत्रालय, जम्मू-कश्मीर सरकार और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) को भी नोटिस जारी किए।
Supreme Court issues notice to centre and Jammu & Kashmir government on a plea filed by two children of Army officers, seeking protection for Army personnel deployed in the state. The plea seeks formulation of a policy to protect human rights of security personnel. pic.twitter.com/OjgCTG7n0S
याचिका में सुरक्षाबल के मानवाधिकारों के उल्लंघन को रोकने के लिए एक नीति तैयार करने की माँग भी की गई है। इस याचिका में सुरक्षा बलों पर ड्यूटी के दौरान भीड़ द्वारा पत्थरों से होने वाले हमलों का ज़िक्र किया गया है। बता दें कि जब सुरक्षाबल आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में लगे हुए होते हैं तब कई बार उन पर स्थानीय युवकों द्वारा पत्थरबाज़ी की जाती है। ऐसा करने के पीछे मक़सद यह होता कि सुरक्षा बलों का ध्यान भटकाया जाए और आतंकवादियों को भागने का मौक़ा मिल सके।
दोनों याचिकाकर्ताओं का कहना है कि ऐसी घटनाओं से जवानों के कर्तव्य पालन में बाधा तो आती ही है, साथ में उनकी तैनाती की जगह पर उनकी सुरक्षा को भी ख़तरा होता है।
जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में हुए आत्मघाती हमले के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान को सबक सिखाने की कोशिशों में भारत को फ्रांस का साथ मिला है। पिछले दिनों फ्रांस सरकार के सूत्रों ने इस बात की जानकारी दी थी कि संयुक्त राष्ट्र संघ में जैश-ए-मोहम्मद को प्रतिबंधित करने के लिए फ्रांस प्रस्ताव पेश करेगा। इसके अलावा भारत-फ्रांस मिलकर पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के ख़िलाफ़ पाकिस्तान पर दबाव बनाने के लिए अन्य विकल्पों पर भी विचार कर रहे हैं।
ख़बरों के अनुसार, जैश के सरगना मसूद अज़हर के साथ-साथ उसके भाई अब्दुल रौफ़ असगर और अन्य जैश कमांडरों के ख़िलाफ़ भी संयुक्त राष्ट्र संघ में प्रस्ताव पेश किया जा सकता है। बता दें कि जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर के साथ पठानकोट हमले के आरोपी असगर को भी प्रतिबंधित करने के लिए सरकार डॉजियर तैयार कर रही है।
फ़िलहाल यह देखना बाक़ी है कि अब्दुल रौफ़ असगर और जैश के अन्य आतंकियों को यूएन के सेक्शन 1267 के तहत प्रतिंबधित सूची में शामिल करने के लिए अलग से प्रस्ताव रखा जाएगा या अज़हर के लिए पेश किए जाने वाले प्रस्ताव में ही उसका नाम शामिल कर लिया जाएगा।
भारत ने ऐसी तमाम कोशिशें की हैं, जिससे जैश के अन्य कमांडरों को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादियों की सूची में शामिल कराया जा सके। लेकिन भारत की इन कोशिशों में चीन ने हमेशा ही अड़ंगा लगाया है। इस बार भी संशय बरक़रार है। कहीं ऐसा न हो कि भारत के पक्ष में फ्रांस की कोशिशों में चीन अपनी टांग अड़ा दे।
याद दिला दें कि पिछली बार 2017 में मसूद अज़हर पर प्रतिबंध लगाने के प्रस्ताव पर चीन ने ही वीटो लगाया था और कहा था कि ऐसा करने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं है। तब भारत ने इसे सेलेक्टिव अप्रोच और डबल स्टैंडर्ड बताकर चीन की आलोचना की थी और कहा था कि इससे आतंकवाद से जंग जीतने की अंतरराष्ट्रीय प्रयास कमज़ोर होते हैं। पुलवामा हमले के बाद भी जैश के प्रमुख मसूद अज़हर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करने में चीन ने ही अपने पाँव पीछे किए थे।
अब यह साफ़ हो चला है कि अगर चीन असगर और अन्य जैश कमांडरों को प्रतिबंधित करने वाले प्रस्ताव के साथ भी यही रवैया अपनाता है तो निश्चित तौर पर उसे अंतरराष्ट्रीय शर्मिंदगी झेलनी पड़ेगी। बता दें कि अज़हर का भाई असगर न सिर्फ़ पठानकोट हमले में शामिल था बल्कि वह भारत के ख़िलाफ़ अपने अभियान में अज़हर से भी अधिक प्रभावशाली रहा है। हाल ही में असगर ने भारत पर हमले की बात कही थी। कश्मीर एकजुटता दिवस के दिन असगर ने कहा भी था कि वह भारत को आतंकित करना चाहता है। असगर के अलावा इब्राहिम अतहर और शाहिद लतीफ का नाम प्रतिबंध के लिए प्रस्तावित किया जा सकता है। दोनों ही पठानकोट हमले का आरोपी है।
फ्रांस ने अपने प्रयासों के लिए अन्य यूरोपीय देशों से संपर्क साधना शुरू कर दिया है। वहीं पाकिस्तान ने भी अपने मित्र देशों के साथ मेल-जोल बढ़ा दिया है, जिससे वो फ्रांस की इस पहल में बाधा उत्पन्न कर सके।
भारत-चीन सीमा पर वीरगति को प्राप्त हुए भारतीय सेना के मेजर प्रसाद गणेश महादिक की पत्नी भी अब सेना में शामिल होंगी। उन्होंने सेना में शामिल होने के लिए ज़रूरी सर्विस सेलेक्शन बोर्ड (SSB) की परीक्षा भी उत्तीर्ण कर ली है। उन्होंने दूसरे प्रयास में यह परीक्षा उत्तीर्ण की। ‘विडो केटेगरी’ में 16 अभ्यर्थियों में अव्वल आईं गौरी माहादिक अब 49 हफ़्ते की ट्रेनिंग के लिए अप्रैल में चेन्नई रवाना होंगी। क़रीब एक वर्ष के कड़े प्रशिक्षण के बाद उन्हें मार्च 2020 में भारतीय सेना में नॉन-टेक्निकल श्रेणी के तहत लेफ्टिनेंट का पद दिया जाएगा।
#WATCH: Late Army Major Prasad Mahadik’s wife Gauri Mahadik, who will join Indian Army next year, says, “he always wanted me to be happy & smiling. I decided I’ll join the forces, I’ll wear his uniform, his stars on our uniform. Our uniform because it will be his and my uniform”. pic.twitter.com/vrCGdn5ZfA
गौरी महादिक पेशे से वकील और कंपनी सेक्रेटरी हैं। पति के चल बसने के बाद उन्होंने नौकरी छोड़ कर सेना में जाने का निर्णय लिया। फिलहाल वह मुंबई के एक फर्म में जॉब कर रही हैं। इंडो-जर्मन चैंबर ऑफ कॉमर्स के साथ काम कर चुकीं गौरी ने अपने इस निर्णय के बारे में बताते हुए कहा:
“पति के शहीद होने के 10 दिन बाद मैं सोच रही थी कि अब मुझे क्या करना चाहिए। फिर मैंने फ़ैसला किया कि मुझे उनके लिए कुछ करना है और मैं सेना में शामिल होउँगी। मैं उनकी (पति स्वर्गीय प्रसाद महादिक) वर्दी और उनके स्टार को पहनूँगी। मैं चेन्नई में ऑफिसर ट्रेनिंग एकेडमी (OTA) में प्रशिक्षण के बाद बतौर लेफ्टिनेंट के रूप में अगले साल सेना में शामिल हो जाउँगी। मेरे पति ने भी वहीं ट्रेनिंग ली थी।
Mumbai: Gauri Mahadik who lost her husband- Army Major Prasad Mahadik in a fire at his shelter in Tawang, Arunachal Pradesh, in Dec 2017, to join Indian Army next year. She will undergo training at Officers’ Training Academy (OTA) in Chennai where her husband was trained as well pic.twitter.com/dVmtXph6eF
“देश की रक्षा करते हुए बलिदान हुए जवानों की विधवाओं के लिए एसएसबी परीक्षा हुई थी। बेंगलुरू, भोपाल और इलाहाबाद- इन तीन केंद्रों से कुल 16 अभ्यर्थी चुनी गईं। हमें सीडीएस की लिखित परीक्षा से छूट दी गई। हमारा भोपाल में सीधे ओरल टेस्ट हुआ था। परीक्षा केंद्र पर मुझे वही टेस्ट नंबर मिला, जो कि ओटीए में चयन से पहले मेरे पति को मिला था।”
शहीद मेजर प्रसाद महादिक की पत्नी गौरी महादिक की आंखों से आंसू निकल आए। गौरी अब एसएसबी की परीक्षा में टॉप करने के बाद सेना की वर्दी पहनकर देश का झंडा बुलंद करने के लिए तैयार हैं। pic.twitter.com/X4ZxVqwhIe
बता दें कि 30 दिसंबर 2017 में गौरी महादिक के पति भारत-चीन सीमा पर स्थित अरुणाचल प्रदेश के तवांग में ड्यूटी के दौरान एक अग्नि दुर्घटना में वीरगति को प्राप्त हो गए थे। 31 वर्षीय मेजर गणेश महादिक और गौरी महादिक की शादी को उस वक़्त बस 2 वर्ष ही हुए थे। बिहार रेजिमेंट के 7वें बटालियन का हिस्सा रहे मेजर महादिक मार्च 2012 में भारतीय सेना में शामिल हुए थे। जब महादिक का पार्थिव शरीर मुंबई के विरार स्थित उनके आवास पर पहुँचा था, तब उनके पिता ने कहा था कि हरेक नव वर्ष के दौरान उन्हें उनके बेटे का बलिदान याद आएगा।
गणेश महादिक का शरीर आग से इतना झुलस गया था कि परिवार वालों को उनके पार्थिव शरीर को पहचानने में भी मुश्किल आ रही थी। मेजर गणेश जब वीरगति को प्राप्त हुए थे, तब गौरी की उम्र मात्र 26 वर्ष थी। मेजर गणेश को संगीत और खेल से ख़ासा लगाव था। वह मैराथन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया करते थे। गौरी महादिक के सेना में शामिल होने की ख़बर सुन लोग उनके साहस व हौसले को सलाम कर रहे हैं।
दिल्ली के लिए पूर्ण राज्य की माँग को लेकर 1 मार्च से अरविंद केजरीवाल अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठने वाले हैं। इसी मौक़े को आधार बनाते हुए दिल्ली की पूर्व सीएम शीला दीक्षित ने उन पर निशाना साधा है। उन्होंने केजरीवाल को लेकर टिप्पणी की है कि वह दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने के मुद्दे पर केवल ‘खोखली बातें’ कर रहे हैं।
दिल्ली कॉन्ग्रेस अध्यक्ष शीला दीक्षित ने कहा है कि केजरीवाल दिल्ली के लिए पूर्ण राज्य के दर्जे के बारे में केवल खोखली बातचीत कर रहे हैं। इन बयानबाजी से कुछ भी सामने आने वाला नहीं है।
शीला दीक्षित ने कहा कि सिर्फ संसद की कार्यवाही से ही दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाया जा सकता है और अभी कोई संसद सत्र तो है नहीं, तो वह ऐसा क्यों कर रहे हैं?
Sheila Dikshit on Delhi CM Arvind Kejriwal to sit on an indefinite hunger strike: Only a Parliament session can change the constitution for Delhi to be accorded full statehood and no parliament session will be held now, so why is he doing this? I don’t understand pic.twitter.com/0RSyzzPseM
पूर्व सीएम का मानना है कि अगर केजरीवाल दिल्ली के लिए पूर्ण राज्य के दर्जे के विषय में गंभीर थे तो उन्हें 4 साल पहले यह मुद्दा उठाना चाहिए था। लेकिन, वह लोकसभा चुनाव को देखते हुए पूर्ण राज्य का मुद्दा उठा रहे हैं।
अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को सम्बोधित करते हुए महरौली और बदरपुर इलाकों में कॉन्ग्रेस नेता शीला ने कहा कि दिल्ली के लोग मुख्यमंत्री केजरीवाल के खोखले वादों से तंग आ गए हैं।
साथ ही कॉन्ग्रेस नेता शीला दीक्षित ने इस बात को भी दोहराया कि वह लोकसभा के चुनावों में आम आदमी पार्टी से गठबंधन नहीं करेंगी। उन्होंने कहा कि केजरीवाल कॉन्ग्रेस के साथ गठबंधन की बात करते हुए लोगों को भ्रमित कर रहे हैं, लेकिन कॉन्ग्रेस अपने दम पर चुनाव लड़ेगी और जीतेगी भी।
बता दें कि इस हड़ताल पर केजरीवाल ने खुद एक ट्वीट भी किया है कि वह दिल्ली वालों का कर्ज कभी नहीं चुका सकते हैं। दिल्ली वालों के अधिकारों की लड़ाई को उन्होंने गर्व की बात बताते हुए कहा कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा पाने का अधिकार है और उसे यह मिलना ही चाहिए।
I cannot repay the debt of my Delhi for all that the people here have given me in my life. It will be my proud privilege to lay down my life fighting for Delhiites rights. Delhi deserves full statehood & must get it at all costs