Saturday, October 5, 2024
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पुरुलिया की धरती से योगी ने ममता की अराजकता को ललकारा

ममता बनर्जी के अराजक व्यवहार से राजनीतिक हलचल बढ़ती जा रही है। लगातार एक के बाद एक बीजेपी के स्टार नेताओं की रैलियों पर ममता बनर्जी रोक लगाती जा रही हैं जिससे पश्चिम बंगाल में बीजेपी और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बीच राजनीतिक घमासान और तेज हो गया है।

पहले पश्चिम बंगाल सरकार ने यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पुरुलिया में रैली की इजाजत नहीं दी। जबकि बीजेपी के अनुसार योगी जी पुरुलिया में रैली के लिए राँची के बोकारो से सड़क मार्ग से निकल चुके हैं। इस बीच पुरुलिया के एसपी ने का भी बयान है कि अगर योगी आदित्‍यनाथ यहाँ रैली करते हैं, तो उन पर कार्रवाई की जाएगी।

ममता बनर्जी यहीं नहीं रुकी उन्होंने दो हाथ और आगे बढ़ाते हुए बीजेपी नेता शाहनवाज हुसैन और एमपी के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज चौहान को भी पश्चिम बंगाल में रैली करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, हुसैन मुर्शिदाबाद और शिवराज सिंह बेहरामपुर में रैली करना चाहते थे।

इससे पहले भी योगी को पश्चिम बंगाल में रैली से रोका गया था तो उन्होंने फोन से ही रैली की थी। हालाँकि उस पर मचे बवाल के बाद ममता बनर्जी ने दावा किया था कि उन्‍होंने योगी की रैली पर कोई रोक नहीं लगाई है।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, पुरुलिया के एसपी आकाश मघारिया ने बयान दिया कि जमीनी स्‍तर पर तथ्‍यों और आँकड़ों को देखते हुए योगी आदित्यनाथ को रैली की अनुमति नहीं दी गई है।

इससे पहले मध्‍य प्रदेश के पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान ने कहा था कि उन्‍हें बेहरामपुर में रैली की अनुमति नहीं दी जा रही है। बीजेपी के नेता शाहनवाज हुसैन का भी रास्‍ता रोका गया था।

इससे पहले पुरुलिया में हेलिकॉप्‍टर के लैंडिंग की अनुमति नहीं मिलने पर यूपी के मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ ने ट्वीट कर ममता सरकार को लोकतंत्र याद दिलाया था।

सीएम योगी ने कहा, “मुझे अत्यंत दुःख है कि गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर की कर्मभूमि, हमारा बंगाल, आज ममता बनर्जी और उनकी सरकार की अराजकता तथा गुंडागर्दी से पीड़ित है। अब समय है कि बंगाल को एक सशक्त लोकतांत्रिक आंदोलन के माध्यम से संविधान की रक्षा हेतु इस सरकार से मुक्त किया जाए। मैं आज पुरुलिया में आप सबके बीच इस आंदोलन की ध्वजा लेकर भ्रष्टाचारियों के गठबंधन के लिए चुनौती बनकर खड़ा होऊँगा।”

इसके ज़वाब में ममता बनर्जी ने कहा योगी की रैली पर कोई रोक नहीं है। ममता ने कहा, “योगी आदित्यनाथ को रैली करने दो। अपना यूपी तो संभाल नहीं पा रहे हैं, पुलिसवाले मारे जा रहे हैं, मॉब लिंचिंग हो रही है लेकिन वह यहाँ बंगाल घूम रहे हैं। उनसे कहिए पहले अपना राज्‍य संभालें।”

ममता के इस बयान के बाद योगी आदित्‍यनाथ ने ट्वीट कर एक बार फिर ममता बनर्जी पर हमला बोला।

सीएम योगी ने कहा, “राजनीतिक हिंसा में बीजेपी कार्यकर्ताओं की हत्या करवाने वाली, ग़रीबों को लूटने वाले भ्रष्टाचारी लोगों के साथ खड़े होने वाली तथा अराजकता की भेंट चढ़े पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी बौखला गई हैं। पंचायत चुनाव में पश्चिम बंगाल में भारी हिंसा हुई थी। सैकड़ों लोग मारे गए थे लेकिन उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव में कोई हिंसा नहीं हुई।”

उन्‍होंने कहा, “जब से उत्तर प्रदेश में बीजेपी की सरकार आई है तब से कोई दंगा नहीं हुआ। कोई मॉब लिंचिंग नहीं हुई। कोई राजनीतिक हिंसा में हत्या नहीं हो रही है। पीएम मोदी के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश विकास की नई यात्रा पर निकल चुका है। इसलिए आप उत्तर प्रदेश की चिंता छोड़िए और बंगाल पर ध्यान दीजिए।”

बता दें कि ममता बनर्जी और सीबीआई के मुद्दे पर केंद्र सरकार से चल रहे विवाद के बीच योगी आदित्यनाथ मंगलवार को पश्चिम बंगाल पहुंच रहे हैं।

पुरुलिया में सीएम योगी की रैली है लेकिन ममता सरकार ने उनके हेलिकॉप्टर को उतरने की इजाजत नहीं दी है। अब एसपी ने कहा है कि रैली की अनुमति नहीं दी गई है। ऐसे में सीएम योगी ने झारखंड के रास्ते पश्चिम बंगाल जाने के लिए निकल चुके हैं।

इस बीच, मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान ने भी ममता को निशाने पर लिया है। उन्होंने कहा, “सभी राजनीतिक दल अपने विचार जनता के सामने रखते हैं। ममता बनर्जी को किस बात का डर है? बेहरामपुर में मेरी भी कल एक रैली है लेकिन मुझे पता चला है कि मेरे हेलिकॉप्टर को लैंडिंग और रैली को इजाजत नहीं दी गई है।”

योगी जी ने आज सुबह कहा था मैं पुरुलिया पहुँच कर लोकतंत्र की रक्षा के लिए परमहंस की धरती से क्रांति का शंखनाद करूँगा।

और अब झारखण्ड के रास्ते पुरुलिया पहुँच कर योगी जी जनता को सम्बोधित कर रहे हैं।

क्या पोप और इमाम की चुम्मी से ज़मीनी स्तर पर सुधरेगी हालत?

मीडिया में एक फोटो काफ़ी वायरल हो रही है। कहा जा रहा है कि यह फोटो सांप्रदायिक सौहाद्रता की नई परिभाषा तय करेगी। इस ‘ऐतिहासिक’ चित्र में ईसाईयों के सबसे बड़े पादरी पोप फ्रांसिस और इस्लाम के सर्वोच्च मौलवियों में से एक इमाम शेख अहमद अल-तैयब एक-दूसरे को चुम्मी लेते हुए दिख रहे हैं। इस्लाम की जन्म-धरती यानी कि अरबी प्रायद्वीप का पहली बार दौरा कर रहे पोप फ्रांसिस और वहाँ के इमाम ने एक दस्तावेज पर भी हस्ताक्षर किए। बता दें कि इमाम शेख अहमद को इस्लामिक जगत में बड़े सम्मान से देखा जाता है। वह सुन्नी इस्लाम के प्रतिष्ठित मदरसे अल-अजहर के इमाम हैं।

ऐतिहासिक इस्लाम-ईसाई गठजोड़ की नई परिभाषा रचने की कोशिश कर रहे शीर्ष मौलवी और पादरी के इस क़दम की पड़ताल करने से पहले जरूरी है कि उनके द्वारा हस्ताक्षरित दस्तावेजों में कही गई बातों पर एक नज़र दौड़ाई जाए। इस दस्तावेज में कहा गया है कि वेटिकन और अल-बसर साथ-साथ ‘कट्टरवाद (Extremism)’ से लड़ेंगे। उन्होंने युद्ध, अत्याचार एवं अन्याय से पीड़ित व्यक्तियों के नाम पर शपथ लिया और ‘खण्डशः लड़े जा रहे तृतीय विश्व युद्ध’ को लेकर भी चेतावनी जारी की।

उस दस्तावेज में कहा गया है:

“हम पूरी तरह से घोषणा करते हैं कि धर्मों को कभी भी युद्ध, घृणास्पद रवैये, शत्रुता और अतिवाद को नहीं उकसाना चाहिए, न ही उन्हें हिंसा या खून बहाना चाहिए।”

चर्च-पीड़ितों के नाम पर भी शपथ ले लेते पोप

2 वर्ष पहले से शुरुआत करते हैं। बात नवंबर 2016 की है। एक स्वीडिश पत्रकार ने जब पोप से महिलाओं को पादरी बनाने के बारे में पूछा, तब पोप ने टका सा जवाब देते हुए कहा कि एक महिला कभी भी रोमन कैथोलिक चर्च में पादरी के रूप में कार्य नहीं कर सकती। यही नहीं, उन्होंने महिलाओं पर लगे इस प्रतिबन्ध को चिरकालिक बताया और कहा कि इसमें बदलाव की कोई संभावना नहीं है। जिस धर्म के सर्वोच्च अधिकारियों और धर्मगुरुओं की महिलाओं के प्रति ऐसी राय हो, वहाँ निचले स्तर पर क्या होता होगा, इस बारे में सोचा जा सकता है।

दुनियाभर के अनगिनत चर्च स्कैंडलों से जूझ रहे ईसाईयत की साख को बचाने की कोशिश में लगे पोप ने अगर इस्लाम से हाथ मिलाने की बजाय चर्च व्यवस्था और अनुक्रम पर ध्यान दिया होता, तो शायद आज चर्च पीड़ित महिलाओं ने राहत की साँस ली होती। बिशप फ्रांको मुलक्कल के ख़िलाफ़ आवाज उठाने वाली ननों के साथ क्या किया गया, यह जगज़ाहिर है। बलात्कार के आरोप में गिरफ़्तार होकर ज़मानत पर बाहर आए उस बिशप का जिस तरह से स्वागत किया गया, इसकी ख़बर पोप तक जरूर पहुँची होगी।

बिशप मुलक्कल (बाएँ) और विरोध प्रदर्शन करती पीड़ित नन (दाएँ)

धारणा है कि दुनियाभर के चर्च में बिना वेटिकन की इजाज़त के एक पत्ता भी नहीं हिलता। हर एक ख़बर वेटिकन तक पहुँचती रहती है, वेटिकन के दिशानिर्देश आते रहते हैं- जिनका पालन कर चर्च प्रशासन अपना कार्य करता है। ऐसे में, भारतीय नन के साथ बलात्कार के आरोपों पर बिशप के ख़िलाफ़ एक शब्द भी नहीं बोलना- यह वेटिकन के अंदर पल रही असुरक्षा की भावना को दिखाता है। चर्च ने पीड़ित नन और उसका साथ देने वाली अन्य ननों को जिस तरह से प्रताड़ित किया, उन पर केस वापस लेने के लिए दबाव बनाया गया, उनका स्थानांतरण कर दिया गया, डराया-धमकाया गया।

ऐसा नहीं है कि ये ख़बरें सिर्फ़ चर्च या गाँव-शहर तक सिमट कर रह गईं। राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने भी इस ख़बर को चलाया। अंतरराष्ट्रीय मीडिया में तो यहाँ तक कहा गया कि वेटिकन को एशिया में ननों के यौन शोषण के बारे में पूरी जानकारी है, लेकिन वो कोई कार्रवाई करना मुनासिब नहीं समझते। ऐसी एक-दो घटनाएँ नहीं हैं। बहुत सारी हैं। अव्वल तो यह कि चर्च दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करना तो दूर, उलटा उन्हें बचाने के लिए हरसंभव तिकड़म आजमाता है।

पोप ने युद्ध, अत्याचार और अन्याय के पीड़ितों के नाम पर शपथ लिया और उनके लिए दुःख जताया, ऐसे में उनसे पूछा जाना चाहिए कि क्या पादरियों के व्यभिचार, चर्च प्रशासन के अत्याचार और वेटिकन के अन्याय से पीड़ित ननों के लिए उनके मन में किसी प्रकार का दुःख है भी या नहीं? अपने-आप को मॉडर्निटी का वाहक और आधुनिकता का झंडाबरदार मानने वाले समुदाय में इस तरह की घटनाओं का होना और उसे जानबूझ कर नज़रअंदाज़ किया जान- इसके क्या मायने हो सकते हैं?

कौन सा धर्म घृणा को उकसा रहा है?

दस्तावेज में अतिवाद या कट्टरवाद के ख़िलाफ़ बात करते हुए दोनों धार्मिक नेताओं ने कहा कि धर्म को इस तरह की घृणा को बढ़ावा नहीं देना चाहिए। धर्म द्वारा घृणा फैलाए जाने की बात करते समय अगर पोप शायद अमेरिका में हिन्दू मंदिरों में तोड़-फोड़ किए जाने को लेकर भी कुछ कह देते, तो शायद लगता कि वो सचमुच इस मामले में गंभीर हैं। ज्ञात हो कि लुईविले स्थित स्वामीनारायण मंदिर में एक ईसाई कट्टरवादी व्यक्ति ने तोड़-फोड़ किया और मूर्ति को भी क्षति पहुँचाई।

उसने हिन्दू मंदिर के दीवारों पर ईसाई धर्म से जुड़ी लाइन लिखी और भगवान स्वामीनारायण की मूर्ति को क्षति पहुँचाई। मूर्ति की आँखों को काले रंग से पोत दिया गया। पुलिस के अनुसार, दीवारों पर ‘एक ही गॉड- जीसस’ जैसे वाक्य लिखे पाए गए। पुलिस का कहना है कि यह हेट क्राइम है। वैसे, यह पहली बार नहीं है जब अमेरिका में किसी हिन्दू मंदिर को क्षति पहुँचाई गई हो। इस से पहले 2015 में 5 हिन्दू मंदिरों में तोड़-फोड़ की गई थी और ‘बाहर निकलो’ जैसे नारों से दीवार भर दिए गए थे।

लुईविले स्थित मंदिर में भगवान की मूर्ति को क्षति पहुँचाई गई

दुनिया को सौहार्द सिखाने चले पोप को सबसे पहले अपना घर दुरुस्त करना चाहिए। जिस तरह से आधुनिक देशों में भी धर्म प्रेरित हिंसा की आदतें बढ़ रही हैं, उस से पता चलता है कि ईसाई धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए क्या किया जा रहा है। अतिवाद या कट्टरवाद या एक्सट्रिमिज्म से लड़ने की बात करने वाले पोप को हिन्दू मंदिरों पर लगातार हो रहे हमले की निंदा करनी चाहिए। अगर वो ऐसा नहीं करते हैं, तो मंच पर चुम्मा-चाटी करने से शायद ही कोई परिणाम निकले।

क्या चुम्मा-बंधन से कट्टरवाद का अंत हो जाएगा?

अगर हम इस्लामिक कट्टरवाद के उदाहरण देने लग जाएँ, तो शायद एक दशक का समय भी कम पड़ जाए। लेकिन इसे एक विडम्बना कहें या संयोग, या फिर चुम्मा गैंग को आइना- जब मौलवी साहब पोप की चुम्मी ले रहे थे, उसी दौरान एक ऐसी ख़बर आई, जो उनके दस्तावेज, समझौते और बड़ी-बड़ी बातों की पोल खोल दे। इमाम शेख अहमद जिस सुन्नी वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं, उसी समुदाय बहुल देश पकिस्तान के सिंध प्रांत में एक मंदिर में आग लगा दी गई

पाकिस्तान के सिंध में हिन्दू मंदिर की मूर्तियों व पवित्र पुस्तकों को जला दिया गया

सिंध के खैरपुर जिला स्थित श्याम सुन्दर सेवा मण्डली मंदिर में कट्टरवादियों (आतंकी कहें तो बेहतर रहेगा) ने रविवार (फरवरी 3, 2019) को आग लगा दी। उस दिन शाम को आतंकी मंदिर में घुसे और उन्होंने मूर्तियों के साथ-साथ भगवद्गीता और गुरु ग्रन्थ साहिब जैसी पवित्र पुस्तकों को जला डाला। इस घटना के बाद वहाँ का हिन्दू समुदाय भय एवं निराशा के माहौल में जी रहा है। इस्लामिक कट्टरवाद से पीड़ित विश्व के कई देश आज खून-ख़राबे से पीड़ित हैं। स्थिति में सुधार लाने के लिए चुम्मा-चाटी नहीं, निचले स्तर पर जाकर गंभीरता से शांति का सन्देश फैलाने की ज़रूरत है। रविवार को यह घटना हुई, और सोमवार को इमाम साहब ने पूजा स्थलों की सुरक्षा का प्रण लिया।

ज़मीन से जानबूझ कर अनजान हैं पोप और इमाम

पोप और इमाम ने अपने समझौते में ‘धार्मिक स्थलों की सुरक्षा’, ‘सहिष्णुता की संस्कृति का प्रचार’ और ‘आस्था की स्वतन्त्रता’ की बात कही है जबकि ज़मीनी स्तर पर दोनों ही धर्मों से ये तीनो ही चीजें गायब होती चली जा रही हैं। फतवों के इस दौर में हर एक प्रक्रिया, कार्य और कार्यक्रम को लेकर अजीबोगरीब नियम बने हुए हैं या फिर बना दिए जाते हैं, जो आधुनिकता ही नहीं बल्कि संबंधित धर्म का भी मखौल उड़ाते हैं। क्या इमाम अल-तैयब इस बात की गारंटी लेंगे कि इस्लाम में चुम्मा-चाटी पर कोई फतवा नहीं है? इस्लाम में समलैंगिकता के लिए कोई जगह है या नहीं?

अगर इन सब सवालों का ऊपर से जवाब नहीं मिलता है, तो नीचे बैठे मौलवियों की दुकान चलती रहेगी। जब तक पोप पाँच सितारा मंचों की जगह अनुयायियों के बीच उतर कर उन्हें सहिष्णुता का पाठ नहीं पढ़ाएँगे, तक तक हिन्दू मंदिरों पर हमले जारी रहेंगे। लेकिन पोप भला सहिष्णुता का पाठ क्यों पढ़ाने निकले, जिस धार्मिक न्याय-व्यवस्था में ईश्वर की सेवा करने वाली ननों के लिए ही न्याय की कोई जगह नहीं है, वहाँ कुछ और उम्मीद पालना बेमानी है।

‘मेरे मजहब के कारण मेरे मुक़दमों पर विपक्ष मेरे साथ खड़ा नहीं… दीदी के साथ सब हैं’

सपा नेता और रामपुर विधायक आज़म खान एक ऐसा नाम हैं, जो मौसम चाहे कोई भी हो लेकिन वो ख़बरों में विवादों का हिस्सा बनकर अक्सर सुनाई देते रहते हैं। हाल ही में बंगाल में सीबीआई और पुलिस में मामला गर्माने के बीच सपा नेता आज़म खान का बड़ा ही बचकाना बयान सामने आया है।

आज़म खान की शिक़ायत है, “मेरे ख़िलाफ़ 250 मुक़दमे दर्ज हैं। लेकिन, मेरे लिए कोई भी लड़ने वाला नहीं हैं। बंगाल में ममता धरने पर बैठी हैं तो पूरा विपक्ष उनके साथ चला गया है क्योंकि वो ‘दीदी’ हैं और मै (आज़म खान) मुस्लिम, इसलिए मेरे साथ साथ कोई खड़ा नहीं है।”

आजम का आरोप है कि बीजेपी के लोग उन्हें देशद्रोही कहते है । उन्होंने पीएम मोदी पर तंज कसते हुए कहा कि अगर वो देशद्रोही हैं तो देश में उन्हें किसी एक वफ़ादार का नाम बता दिया जाए। आजम ने केंद्र सरकार पर सीबीआई का गलत इस्तेमाल करने का भी आरोप लगाया है।

शिकायतों के बीच आज़म खान सलाहकार बन बैठे, आज़म ने मोदी को बिन माँगी सलाह देते हुए कहा कि ‘चाहे पीएम मोदी को चुनाव में वोट मिलें या न मिलें लेकिन मोदी बंगाल जाकर ममता से मिलें और यदि कोई गलती की हो तो उनसे माफ़ी माँग उनका धरना ख़त्म कराएँ। ऐसा करके उन्हें अपने बड़प्पन  का परिचय देना चाहिए।’

ठग लाइफ़: गडकरी ने तीतर बन रहे राहुल गाँधी को कहा, आपके सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं है

कॉन्ग्रेस के युवा अध्यक्ष राहुल गाँधी ने केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी को एक ट्वीट में ‘साहसी’ बताया था जिस पर नितिन गडकरी ने जवाब देते हुए दूसरा ट्वीट कर कहा, “मुझे आपके सर्टिफ़िकेट की जरूरत नहीं है। लेकिन आश्चर्य इस बात का है कि एक राष्ट्रीय पार्टी के अध्यक्ष होने बाद भी हमारी सरकार पर हमला करने के लिए आपको मीडिया द्वारा ‘ट्विस्ट’ किए गए खबरों का सहारा लेना पड़ रहा है।”

इसके बाद एक और ट्वीट कर गडकरी ने लिखा, “यही मोदी जी और हमारे सरकार की कामयाबी है कि आप को हमला करने के लिए कंधे ढूँढने पड़ रहे हैं। रही बात आपके उठाए गए मुद्दों की तो मैं डंके की चोट पर कहता हूँ कि राफेल में हमारी सरकार ने देश हित सामने रख कर सबसे पारदर्शक व्यवहार किया है।”

केंद्रीय मंत्री ने कॉन्ग्रेस के भाजपा में फूट डालने के तमाम प्रयासों पर अपने अगले ट्वीट से पानी फेरते हुए लिखा, “आप समेत कुछ लोगों को मोदी जी का प्रधानमंत्री बनना सहन नहीं हो रहा।”

अगले ट्वीट में नितिन गडकरी ने राहुल गाँधी को धोबी-पछाड़ लगाते हुए लिखा, “हमारे और कॉन्ग्रेस के डीएनए में यही अंतर है कि हम लोकतंत्र और संवैधानिक सस्थाओं पर विश्वास करते हैं। आपके ये पैंतरे चल नहीं रहे। मोदी जी फिर प्रधानमंत्री बनेंगे और हम मजबूती के साथ देश को आगे बढ़ाएँगे। लेकिन, आप भविष्य में समझदारी और जिम्मेदारी के साथ बर्ताव करेंगे यह उम्मीद करता हूँ।”

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के हाल ही में कुछ बयानों को मीडिया और कॉन्ग्रेस द्वारा तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है, जिसका फायदा उठाकर राहुल गाँधी ने उनकी तारीफ करते हुए सोमवार को कहा था कि भाजपा में गडकरी इकलौते ऐसे नेता हैं, जिनमें कुछ साहस है और ऐसे में उन्हें राफेल, किसानों और बेरोजगारी के मुद्दों पर भी बोलना चाहिए।

नितिन गडकरी अपने बयानों में लगातार स्पष्ट करते आ रहे हैं कि उनका कोई भी बयान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी से सम्बंधित नहीं है और फूट डालने के प्रयास न किए जाएँ, फिर भी कॉन्ग्रेस के प्रयास बंद नहीं हो रहे थे।

नितिन गडकरी पर चल रही विपक्ष की सर-फुटव्वल पर ऑपइंडिया के विचार आप पढ़ सकते हैं।

जामिया मिलिया इस्लामिया ग़रीबों को नहीं देगा 10% आरक्षण

जामिया मिलिया इस्लामिया ने अपने ‘अल्पसंख्यक दर्जे’ का हवाला देते हुए आर्थिक रूप से विपन्न (EWS) कोटे के छात्रों को 10% आरक्षण देने से इनकार कर दिया है। सोमवार (फरवरी 4, 2019) को विश्वविद्यालय के अकादमिक परिषद की बैठक में फ़ैसला लिया गया कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) को अपनी सीट मैट्रिक्स संबंधी आवश्यकताओं और बुनियादी सुविधाओं की जरूरतों का विवरण नहीं भेजा जाएगा।

बता दें कि 17 जनवरी को केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने केंद्रीय शैक्षिक संस्थानों को 2019-20 सत्र से ईडब्ल्यूएस कोटा लागू करने के लिए कहा था। संस्थानों को 31 जनवरी तक संभावित वित्तीय आवश्यकताओं के साथ कोर्स के अनुसार सीट मैट्रिक्स प्रस्तुत करने के लिए कहा गया था। जेएनयू ने इसे 1 फरवरी को भेजा, जबकि डीयू अभी भी अपने कॉलेजों के डेटा की जाँच करने में जुटा हुआ है।

जामिया मिलिया के एक अधिकारी ने टाइम्स ऑफ इंडिया से नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर कहा:

“चूँकि हम एक अल्पसंख्यक संस्थान हैं, हमारे यहाँ EWS कोटा लागू नहीं होगा। यूजीसी ने पहले ही कहा है कि कुछ संस्थान और अल्पसंख्यक संस्थान इस नई प्रणाली के तहत नहीं आएँगे। जामिया ने ओबीसी विस्तार कोटा भी लागू नहीं किया था।”

ज्ञात हो कि केंद्र सरकार ने सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों, उनसे सम्बद्ध कॉलेजों एवं केंद्र द्वारा वित्त पोषित डीम्ड विश्वविद्यालयों को इस आरक्षण व्यवस्था को लागू करने के लिए बजट की ज़रूरतों के बारे में पूछा था। उनसे EWS आरक्षण व्यवस्था को तुरंत लागू करने को कहा है। देश के सभी उच्च शैक्षणिक संस्थानों में 10% आरक्षण 2019-20 सत्र से ही लागू हो जाएगा।

सामान्य वर्ग के ग़रीबों को 10% आरक्षण संबंधी विधेयक को लोकसभा और राज्यसभा में भारी बहुमत से पारित किया गया था। इसके बाद इस विधेयक पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर करने के साथ ही इसने क़ानून का रूप ले लिया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे ऐतिहासिक विधेयक बताते हुए प्रशंसा की थी।

उज्जैन में स्वच्छता अभियान: बदली क्षिप्रा की तस्वीर, कचरे से रोज़गार और कमाई भी

पीएम मोदी द्वारा शुरू किए गए स्वच्छता अभियान की आलोचना करने वाले और उसके परिणामों पर सवाल उठाने वालों के लिए उज्जैन से जवाब आया है। स्वच्छता भारत अभियान के तहत उज्जैन में एक प्रोजेक्ट शुरू किया गया है, जो उज्जैन में क्षिप्रा नदी के साथ वहाँ की महिलाओं का भी कायाकल्प करने में असरकारी साबित हो सकता है।

दरअसल, पौराणिक नगरियों में से एक महाकाल की नगरी उज्जैन में पवित्र क्षिप्रा नदी को बचाने के लिए और पर्यावरण को संरक्षित करने के लिए यह बड़ा कदम उठाया गया है। इस प्रोजेक्ट को नगर निगम उज्जैन ने स्वच्छता अभियान के तहत शुरू किया गया है।

नगरीय विकास विभाग के अधिकारियों  के मुताबिक फ़िलहाल उज्जैन में इसे पॉयलट प्रोजेक्ट के रूप में शुरू किया गया है। इस प्रोजेक्ट में नदी किनारे श्र्द्धालुओं द्वारा जो कपड़े आदि छोड़े जाते हैं उन्हें रिसाइकिल करके फाइलें और अन्य स्टेशनरी उत्पाद बनाने की शुरुआत हो चुकी है।

इन उत्पादों की ख़ास बात यह होगी कि बाज़ारों में मिलने वाले उत्पादों से तीन गुना सस्ते होंगे। साथ ही सबसे अच्छी बात इस प्रोजेक्ट की यह होगी कि इससे स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं को भी रोज़गार मिलेगा।

अगर यह कोशिश सफल हुई तो प्रदेश के 378 नगरीय निकायों को फाइलों और स्टेशनरी की आपूर्ति हो जाएगी। फ़िलहाल, तो उज्जैन नगर निगम ने इससे बनने वाली फाइलों का उपयोग शुरू कर दिया है।

दैनिक जागरण में छपी रिपोर्ट के अनुसार नदी में श्रद्धालुओं द्वारा छोड़े गए कपड़े और मंदिर-दफ्तरों की पुरानी स्टेशनरी मिलाकर लगभग 5 टन कचरा हर महीने जमा होता है। इसे रिसाइकिल करके कागज़ और फाइलें बनाई जाएँगी।

इन फाइलों के बनाने में लगभग ढाई रुपए का ख़र्चा आता है। जबकि ये फाइलें बाज़ार में 10 रुपए की मिलती हैं। इस परियोजना के तहत हर महीने क़रीब पाँच टन कचरे से लगभग 10 हज़ार फाइले बनाई जाएँगी। इन फाइलों को उज्जैन के स्थानीय सरकारी दफ्तरों में 8 रुपए प्रति फाइल की दर पर बेचा जाएगा।

बजट 2019 की कहानी, राधा मोहन सिंह की जुबानी

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री राधा मोहन सिंह ने बजट 2019 को किसानों का बजट बताया है। पढ़ें क्या है ताज़ा बजट को लेकर उनके विचार, ख़ुद उनके ही शब्दोें में।

बजट 2019 को लेकर राधा मोहन सिंह के विचार:

‘सबका साथ सबका विकास’ के मूलमंत्र पर सतत रूप से कार्यरत वर्तमान सरकार ने कृषि क्षेत्र के चहुमुखी विकास और किसानों की आय बढ़ाने की अपनी प्रतिबद्धता को 2019 के बजट के साथ एक बार पुन: उजागर कर दिया है। मैं आपको बता दूँ कि कृषि एवं किसान कल्‍याण मंत्रालय का बजटीय आवंटन वर्ष 2018-19 के 58,080 करोड़ रूपए से लगभग ढाई गुना की बढ़त के साथ 1,41,174.37 करोड़ रूपए हो गया है। मोदी सरकार का केवल एक वर्ष यानि 2019 का बजटीय प्रावधान यूपीए सरकार के 5 वर्षों (2009-14) के 1,21,082 करोड़ रूपए के बजटीय प्रावधान से भी 16.6% अधिक है।

इसीलिए ‘कृषि उत्पादों के भंडारों के साथ साथ किसान की जेब भी भरे एवं उनकी आय भी बढ़े’ वाली अपनी सोच के अनुरूप, सरकार ने भारतीय इतिहास पटल पर एक नया अध्याय रचते हुए बजट 2019 में किसानों के लिए इनकम सपोर्ट के प्रावधान के साथ अन्य कई प्रावधान करते हुए ग्रामीण भारत पर सबसे ज्यादा फोकस किया है।

पीएम-किसान योजना

मुझे यह बताते हुए बेहद खुशी हो रही है कि देश में छोटे और सीमांत किसानों को प्रत्‍यक्षता आय संबंधी सहायता दिए जाने के प्रयोजनार्थ एवं एक सुव्‍यवस्‍थित कार्य व्‍यवस्‍था कायम करने के लिए सरकार ने शत प्रतिशत केंद्रीय सहायता के साथ 75 हजार करोड़ रुपए के प्रस्तावित बजट से प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम-किसान) नामक योजना आरंभ करने का निर्णय लिया है ताकि छोटे और सीमांत किसान, जिनके पास राज्य तथा केंद्र शासित प्रदेशों के भू-अभिलेखों में सम्मिलित रूप से दो हेक्टेयर तक की कृषि योग्य भूमि का स्वामित्व है, को उनके निवेश और अन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए एक सुनिश्चित आय सहायता प्रदान की जा सके, जिससे वो अपनी उभरती जरूरतों को तथा विशेष रूप से फसल चक्र के पश्चात तथा संभावित आय प्राप्त होने से पहले की स्तिथि में होने वाले व्ययों की आपूर्ति कर सके।

निर्धन किसानों को सरकार का तोहफ़ा।

इस योजना के अंतर्गत, लघु व सीमांत परिवारों को प्रति वर्ष 6000 रु. की सहायता सीधे चार-चार माह की तीन किश्तों में उपलब्ध कराई जाएगी ताकि किसानों को अपने छोटे छोटे खर्चों की आपूर्ति के लिए साहूकारों के चंगुल में पड़ने से भी बचाया जा सके और खेती के कार्यकलापों में उनकी निरंतरता भी सुनिश्चित की जा सके। इतना ही नहीं, यह योजना उन्हें अपनी कृषि पद्धतियों के आधुनिकीकरण के लिए भी सक्षम बनाएगी और वो इस समर्पित सहायता के साथ साथ अन्य योजनाओं का लाभ उठाते हुए एक सम्मानजनक जीवनयापन के मार्ग पर आगे बढ़ सकेंगे।

राधा मोहन सिंह Radha Mohan Singh ಅವರಿಂದ ಈ ದಿನದಂದು ಪೋಸ್ಟ್ ಮಾಡಲಾಗಿದೆ ಸೋಮವಾರ, ಫೆಬ್ರವರಿ 4, 2019

इस सम्मानजनक जीवनयापन की शरुआत तुरन्त प्रभाव से होगी क्योंकि इस योजना को 01.12.2018 से ही लागू करने का ऐलान किया गया है तथा पात्र किसान परिवारों को यह लाभ इसी प्रभाव से देय होगा। इसी लिए वर्ष 2018-19 के पूरक माँगों में 20 हजार करोड़ रुपए का प्रस्ताव किया गया है। 01.12.2018 से 31.03.2019 की अवधि की प्रथम किश्त में पात्र परिवारों के चिन्हीकरण के तत्काल बाद इसी वित्तीय वर्ष में ही हस्तांतरित कर दी जाएगी। वर्ष 2019-20 से लाभ का हस्तांतरण आधार आधारित डेटाबेस के माध्यम से सीधे बैंक खातों में किया जाएगा

गौपालन एवं पशुपालन को बढ़ावा

मोदी सरकार द्वारा देश में पहली बार देशी गौपशु और भैंसपालन को बढ़ावा देने, उनके आनुवांशिक संसाधनों को वैज्ञानिक और समग्र रूप से संरक्षित करने तथा अद्यतन प्रौद्योगिकियों का उपयोग करते हुए भारतीय बोवाईनों की उत्‍पादकता में सतत् वृद्धि हेतु राष्‍ट्रीय गोकुल मिशन प्रारम्‍भ किया गया है। इसकी अहमीयतता के मध्यनज़र वर्ष 2018-19 के रु.250 करोड़ के बजट को बढ़ाकर रु. 750 करोड़ कर दिया गया है। अपने इस प्रयास को आगे बढ़ाते हुए सरकार ने अब “राष्‍ट्रीय कामधेनु आयोग” के निर्माण का फैसला लिया है जो एक स्‍वतंत्र निकाय होगा।

गौ संसाधनों के सतत् आनुवांशिक उनयन को बढ़ाने तथा गायों के उत्‍पादन और उत्‍पादकता को बढ़ाने हेतु, नीतिगत ढ़ांचा एवं कार्यकारी वातावरण प्रदान करते हुए यह आयोग दिशानिर्देश जारी करेगा जिससे फार्म आय की बढ़ोत्‍तरी, डेयरी किसानों की गुणवत्‍तापूर्ण जीवन और देशी गायों के उन्‍नत संरक्षण और प्रबंधन को बढ़ावा मिल सके। राष्‍ट्रीय कामधेनु आयोग देश में गायों और गौवंशों के कल्‍याण के कानून के प्रभावी कार्यान्‍वयन को भी देखेगा तथा गौवंशों की रक्षा में शामिल गौशालाओं, गौसदनों तथा नए संसाधनों के कार्य में सलाह देने के साथ-साथ देश में डेयरी सहकारिताओं, पशु विकास एजेंसियों, किसान उत्‍पादक कंपनियों और डेयरी उद्योगों के साथ समन्‍वय से डेयरी किसान के हितों को बढ़ावा देगा।

मत्स्यपालन को प्रोत्साहन

भारत विश्‍व में दूसरा सबसे बड़ा मछली उत्‍पादक देश है जो कि विश्‍व उत्‍पादन का 6.3% मछली उत्‍पादन करता है। मत्‍स्‍यपालन का जीडीपी में लगभग 1% का योगदान है तथा यह लगभग 1.5 करोड़ लोगों की आय का महत्‍वपूर्ण स्रोत है। मत्‍स्‍यपालन क्षेत्र के व्‍यापक योगदान और विकास की संभावनाओं को देखते हुए मोदी सरकार ने विद्यमान पशुपालन, डेयरी एवं मत्‍स्‍यपालन विभाग से स्‍वतंत्र ढांचे और स्‍टाफ के साथ एक नया एवं स्वतंत्र मत्‍स्‍यपालन विभाग बनाने का निर्णय लिया है। किसान क्रेडिट कार्ड के माध्‍यम से भारत सरकार कृषि प्रक्षेत्र से जुड़े किसानों को सस्‍ते दर पर संस्‍थागत ऋण उपलब्‍ध कराती हैं।

इससे न सिर्फ कृषि उत्‍पादों को बढ़ाने में मदद मिलती है वरन् कृषि उत्‍पादकता में भी वृद्धि होती है। अब पशुपालन एवं मत्स्यपालन की गतिविधियों से अधिक किसानों के जुड़ने के कारण वर्ष 2019 के बजट में किसान क्रेडिट कार्ड सुविधा की उपलब्धता को पशुपालन तथा मत्‍स्‍यपालन के लिए भी सुनिश्चित करने बारे निर्णय लिया गया है और इसी अनुरूप पूर्व से किसान क्रेडिट कार्ड धारकों को 4% ब्याज दर पर 3 लाख की ऋण सीमा के तहत पशुपालन तथा मत्‍स्‍यपालन गतिविधियों को भी शामिल किया गया है। जिन किसानों के पास खेती में उपयोगी संसाधनों के लिए क्रेडिट कार्ड नहीं है उनके लिए 2 लाख तक का नया किसान क्रेडिट कार्ड पशुपालन व मत्स्यपालन गतिविधियों के लिए बनाने का प्रावधान किया गया है।

अर्थात् अब पशुपालकों तथा मछुआरों को भी 4% की रियायती ब्‍याज दरों पर ऋण उपलब्‍ध हो सकेगा।वर्तमान में किसी प्राकृतिक आपदा से प्रभावित होने की परिस्‍थिति में किसानों को मात्र एक वर्ष की अवधि के लिए 2% ऋण छूट का लाभ मिलता है। प्राकृतिक आपदा में अधिकतम ऋण छूट लाभ देते हुए,किसान हित में मोदी सरकार द्वारा प्राकृतिक आपदा से प्रभावित किसानों के लिए अब कृषि ऋण को 3 से 5 वर्षों के लिए पुनर्गठन की अवधि के लिए न सिर्फ 2% ऋण छूट वरन् ससमय भुगतान (Timely Payment) करने पर 3% अतिरिक्त ऋण छूट का लाभ भी दिया जाएगा।

किसान क्रेडिट कार्ड

वर्तमान में लगभग 7 करोड़ सक्रिय किसान क्रेडिट कार्ड हैं जिसका अर्थ है कि लगभग 50% किसान आज भी संस्‍थागत ऋण प्रणाली से बाहर हैं। भारत सरकार इन सभी किसानों को संस्‍थागत ऋण प्रक्रिया के तहत लाने के लिए कटिबद्ध है। और इस उद्देश्‍य की प्राप्‍ति हेतु भारत सरकार, राज्‍य सरकार तथा सभी बैंकों के साथ मिलकर किसान क्रेडिट कार्ड के निर्माण हेतु सघन अभियान को प्रारम्‍भ करेगी। इस अभियान के अंतर्गत ऐसे सभी इच्छुक किसान जो कृषि साथ-साथ पशुपालन अथवा मत्स्यपालन के व्यवसाय से जुड़े हैं, एक सरलीकृत प्रार्थना-पत्र भरकर किसान क्रेडिट कार्ड का आवेदन बैंकों को दे सकेंगे।

प्रार्थना-पत्र के साथ फोटो के अतिरिक्त उन्हें मात्र तीन दस्तावेज- भौमिक अधिकारों संबंधित अभिलेख, पहचान-पत्र तथा निवास संबंधी प्रमाण पत्र ही देना होगा। इस संदर्भ में वित्तीय सेवाएं विभाग द्वारा उनके अधीन सभी वित्तीय संस्थाओं को पृथक से आदेश निर्गत कर दिए गए है। राज्य सरकारों को भी यह अनुरोध किया गया है कि वे एक रणनीति के तहत ग्रामवार अथवा बैंक शाखावार कैंप आयोजित करें जिसमें फील्ड स्तरीय कर्मचारी प्रार्थना-पत्र को भराने तथा आवश्यक अभिलेख उपलब्ध कराने में सहायता करेंगे।

अभी तक किसान क्रेडिट कार्ड को बनाने में किसानों को प्रक्रिया, दस्तावेज, निरीक्षण तथा खाता-बही से संबंधित विभिन्न प्रकार के शुल्क देने पड़ते थे। इंडियन बैंकर्स एशोसिएसन द्वारा भी किसान हित में यह निर्णय लिया है कि तीन लाख तक के ऋण सीमा तक उपरोक्त शुल्क नहीं लिए जाएंगें

इन सब प्रावधानों और 2019 के बजट से स्पष्ट है कि देश के किसान को वास्तविक अन्न-दाता मानते हुए सरकार ने उनके विकास और आय दोनों का ही पूरा ध्यान रखा है। खाद्यान्नों की बेहतर कीमतें तय करने के साथ उनके लिए आय सहायता भी तय की है, जो आर्थिक सुरक्षा एवं उनकी वास्तविक आय को वर्ष 2022 तक दोगुना करने में विशेष रूप से मददगार होगी।

-राधा मोहन सिंह, केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री (भारत सरकार)

कलश में इकट्ठा जनता की समर्पण राशि से मोदी लड़ेंगे लोकसभा चुनाव, रचेंगे इतिहास!

12 फरवरी से बीजेपी का ‘मेरा परिवार भाजपा परिवार’ अभियान शुरू होने वाला है। इसमें भाजपा के कार्यकर्ता, हर घर पार्टी का झण्डा लेकर जाएँगे और ‘मेरा परिवार भाजपा परिवार’ लिखा हुआ स्टीकर चिपकाकर इस अभियान को चलाएँगे।

इस अभियान के शुरू होने से एक दिन पहले पंडित दीनदयाल उपाध्याय की याद में बीजेपी 11 फरवरी को समर्पण दिवस मनाएगी। इस कार्यक्रम में कलश को लेकर कार्यकर्ता जनता के बीच जाएँगे और जनता से समर्पण राशि एकत्रित करेंगे। लोगों के घरों से इकट्ठा हुई इसी समर्पण राशि से पीएम मोदी 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ेंगे।

इन सब बातों की जानकारी भाजपा के लोकसभा चुनाव प्रभारी और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे पी नड्डा ने सोमवार (फरवरी 4, 2019) को दी। साथ ही उन्होंने बीजेपी जिला बूथ कार्य प्रमुखों, व प्रदेश प्रमुखों को बूथ क्षेत्र के घर-घर से संपर्क बढ़ाने के निर्देश दिए हैं।

नड्डा ने राजनीति को बूथ केन्द्रित राजनीति बताते हुए कहा कि सभी को बूथ वर्किंग से खुद को जोड़ना है। साथ ही नड्डा ने भाजपा के मुख्यालय में बूथ प्रमुखों को संबोधित करते हुए मोदी सरकार की योजनाएँ भी गिनाईं और 12 फरवरी से शुरू होने वाले ‘मेरा परिवार-भाजपा परिवार’ अभियान की सफलता के टिप्स भी दिए।

भारतीय राजनीति के इतिहास में शायद ऐसा पहली बार होने वाला है कि जनता की समर्पण राशि से पीएम पद का कोई नेता लोकसभा चुनाव लड़ेगा। इसके लिए नड्डा ने कार्यकर्ताओं को कहा है कि उन्हें अपनी क्षमता निर्धारित करते हुए बूथ से जुड़ना है। उन्होंने कहा कि पूरे बूथ की जानकारियाँ हासिल होने के साथ बूथ पर सतत संपर्क भी आवश्यक है।

Info फीचर: मिडिल क्लास को क्या-क्या मिला मोदी सरकार से, ये 15 फोटो आपकी आँखें खोल देंगी

भारतीय जनता पार्टी ने विपक्ष की आलोचनाओं के बीच मध्यम वर्ग के लिए किए गए कार्यों को गिनाने का कार्य शुरू कर दिया है। पार्टी ने कई इन्फोग्राफिक चित्र सोशल मीडिया के माध्यम से ट्वीट कर बताया कि मोदी ने मिडिल क्लास के लिए क्या किया है। इन इन्फोग्राफिक्स में नरेंद्र मोदी के कार्यभार सँभालने से पूर्व से लेकर अब तक के डेटा की तुलना की गई है और पाँच वर्षों में हुए बदलावों के बारे में बताया गया है। आइए एक नज़र डालते हैं इन इन्फोग्राफिक्स पर:

1. उच्चतर शिक्षा एवं रिसर्च

उच्च शिक्षा के क्षेत्र में किए गए कार्य।

2. करदाताओं को राहत

करदाताओं को दिए गए विभिन्न फ़ायदे।
ताज़ा बजट में हुई घोषणाएँ।

3. सामान्य वर्ग के ग़रीब छात्रों को आरक्षण

सामान्य वर्ग के गरीब छात्रों की शिक्षा के लिए किए गए कार्य।

4. LED बल्ब की क़ीमत घटने से बिजली बिल में राहत

LED बल्ब की कीमतों में भारी कमी।

5. तीन करोड़ करदाताओं को टैक्स छूट

विभिन्न सेवाओं में टैक्स पर छूट।

6. कर्मचारियों के लिए यूनिवर्सल अकाउंट नंबर

जॉब बदलने पर भी UAN समान रहेगा।

7. कामकाजी महिलाओं को मातृत्व अवकाश

कामकाजी महिलाओं के लिए मातृत्व अवकाश।

8. कई खाद्य पदार्थों पर कोई टैक्स नहीं

प्रमुख खाद्य पदार्थों पर ‘No Tax ‘

9. भूमाफियाओं से मुक्ति

रियल एस्टेट सेक्टर को संजीवनी।

9.1 होम लोन मिलने में आसानी

होम लोन भी हुआ सस्ता।

10. पासपोर्ट मिलना हुआ आसान

300 नए पासपोर्ट सेवा केंद्र।

11. हवाई यात्रा हुई सस्ती

4.5 वर्षों में 100 से भी ज्यादा एयरपोर्ट।

12. शिक्षा ऋण हुआ सस्ता

कम ब्याज़ पर शिक्षा ऋण।

13. पेट्रोल के मूल्य पर नियंत्रण

तेल के दाम हुए कम।

14. मनोरंजन अब सिर्फ अमीरों के लिए ही नहीं

सिनेमा टिकट पर अब कम टैक्स।

15. स्वास्थ्य ख़र्च अब बजट में

इन इन्फोग्राफिक चित्रों को कई केंद्रीय मंत्रियों द्वारा भी सोशल मीडिया पर शेयर किया जा रहा है। ट्विटर पर #MiddleClassWithModi काफी देर तक ट्रेंड होता रहा। भाजपा द्वारा इन आँकड़ों का प्रचार करना अहम है, क्योंकि विपक्षी नेताओं ने दावा किया था कि केंद्र सरकार ने मिडिल क्लास के लिए कुछ नहीं किया है।

ममता को ‘सुप्रीम’ झटका: कमिश्नर राजीव कुमार पेश हों – SC का आदेश

धरने पर बैठी पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार को तगड़ा झटका लगा है। शारदा चिटफंड घोटाले में कोलकाता पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार से पूछताछ संबंधी सीबीआई की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जाँच एजेंसी के सामने पेश होने का आदेश दिया। राजीव कुमार के लिए राहत की बात सिर्फ इतनी है कि कोर्ट ने फिलहाल उनकी गिरफ़्तारी पर रोक लगाई है।

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने अपने आदेश में कहा कि राजीव कुमार को सीबीआई के सामने पेश होना चाहिए और उन्हें जाँच में सहयोग करना चाहिए। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के अलावे जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच ने इस मामले पर सुनवाई की।

सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव, डीजीपी और कोलकाता पुलिस कमिश्नर को मानहानि याचिका पर नोटिस भी भेजा है। इस मामले पर अगली सुनवाई 20 फरवरी को होगी।

ममता की किरकिरी, बच गया ‘लोकतंत्र’

आपको बता दें कि पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार सीबीआई और केंद्र सरकार के खिलाफ पिछले तीन दिनों से धरने पर बैठी हुई है। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से उनको झटका लगा है। हालाँकि यह झटका TMC के लिए तो प्रत्यक्ष तौर पर है, लेकिन परोक्ष तौर पर उन विपक्षी पार्टियों के लिए भी है, जो ममता के साथ धरना-पॉलिटिक्स को बढ़ावा दे रहे थे। यह झटका उनके लिए भी है जो, लोकतंत्र की ‘हत्या’ को लेकर ‘चिंतित’ थे।

CBI vs ममता: क्या-क्या हुआ ‘खेल’

कोलकाता में चल रही राजनीतिक खींचातानी के बीच केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने 4 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका में सीबीआई में कोलकाता पुलिस आयुक्त राजीव कुमार से शारदा चिट फंड मामले में सहयोग करने का निर्देश देने की मांग की थी। सीबीआई ने अपनी याचिका में यह भी कहा कि था कई बार तलब किए जाने के बावजूद, राजीव कुमार सहयोग करने में असफल रहे। साथ ही जाँच में बाधा भी पैदा की।

सीबीआई द्वारा सुनवाई के लिए याचिका को सूचीबद्ध करने के बावजूद, मुख्य न्यायाधीश (CJI) रंजन गोगोई ने मंगलवार (5 फरवरी, 2019) को सुनवाई की तारीख़ दी थी। हालाँकि मुख्य न्यायाधीश ने चेतावनी वाले अंदाज़ में यह ज़रूर कहा था कि अगर कोलकाता पुलिस कमिश्नर मामले से जुड़े सबूतों को नष्ट करने की भी सोचेगा, तो कोर्ट उस पर बहुत भारी पड़ेगा, उसे पछतावा होगा।

इससे पहले रविवार (फरवरी 3, 2019) को शारदा चिटफंड घोटाला मामले में CBI की टीम जब कोलकाता में पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार के निवास स्थान पर पहुँची, तो CBI टीम को पुलिसकर्मियों ने अन्दर जाने ही नहीं दिया। इतना ही नहीं, उन सीबीआई ऑफिसरों को कोलकाता पुलिस ने गिरफ़्तार भी कर लिया। हालाँकि कुछ घंटों बाद उन्हें रिहा भी कर दिया गया।

ममता बनर्जी ने सीबीआई के इस एक्शन को केंद्र सरकार से प्रेरित बताया। इसमें राजनीति को घुसाते हुए वो राजीव कुमार के समर्थन में धरने पर बैठ गईं। एक मुख्यमंत्री का किसी व्यक्ति विशेष के लिए उठाया गया ये धरनारूपी क़दम भारतीय राजनीति के लिए अनोखा है। ख़ुद को ‘धरना क्वीन’ बनाने वाली ममता को CBI की कार्रवाई पर भला ऐसी भी क्या आपत्ति हो सकती है कि वो आधी रात को ही धरने पर बैठ गईं!