Thursday, October 3, 2024
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10% आरक्षण पर अभी नहीं लगेगी कोई रोक : सुप्रीम कोर्ट

आरक्षण मामले को लेकर चल रहे विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फ़ैसला सामने आया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर कहा है कि अभी फ़िलहाल के लिए ग़रीब तबके को मिलने वाले 10 फ़ीसदी आरक्षण पर कोई रोक नहीं होगी

आर्थिक आधार पर मिलने वाले आरक्षण पर रोक लगाने के लिए साफ़ मना करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पहले 124वें संविधान संशोधन पर विचार करेगा। कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी करते हुए चार हफ़्ते के भीतर जवाब माँगा है।

इस मामले पर चीफ़ जस्टिस रंजन गोगोई और संजीव खन्ना की पीठ ने सुनवाई की है। बता दें कि सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमज़ोर लोगों को मिलने वाले 10 फ़ीसद आरक्षण के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई। जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने फ़िलहाल अपना फै़सला सुनाया है।

इससे पहले कल (जनवरी 24, 2019) गुजरात सरकार ने प्रदेश में रहने वाले आर्थिक रुप से कमज़ोर सवर्णों के लिए बड़ी घोषणा की है। सरकार ने कहा कि समान्य वर्ग के आर्थिक रुप से कमज़ोर लोगों को दिए जाने वाले 10% आरक्षण के लिए केवल ₹8 लाख सलाना आय ही सीमा होगी। सरकार ने कहा कि इसके अलावा घर व ज़मीन को आरक्षण के शर्तों के रूप में नहीं देखा जाएगा। सरकार के इस फ़ैसले के बाद समान्य वर्ग के आर्थिक रुप से कमज़ोर लोगों के लिए पहली बार किसी राज्य की सरकार ने इस तरह की बड़ी घोषणा की है।

अहमदाबाद में होने वाली कैबिनेट की मीटिंग के बाद राज्य सरकार ने बुधवार को यह फ़ैसला लिया। दरअसल केंद्र सरकार द्वारा सांसद में पारित बिल के अनुसार समान्य वर्ग के आर्थिक रुप से कमज़ोर उन लोगों को आरक्षण का लाभ मिलेगा जिनकी वार्षिक आय ₹8 लाख से कम है। इसके अलावा इस वर्ग के उन्हीं लोगों को आरक्षण का लाभ मिलेगा जिनके पास 5 एकड़ से कम जमीन व 1000 वर्ग फीट से कम में घर है। परंतु, गुजरात सरकार ने समान्य वर्ग के ग़रीब लोगों के लिए दिए जाने वाले आरक्षण में जमीन व घर की शर्तों को हटा दिया है।  

फरवरी से इस वर्ग के लोगों को मिलेगा आरक्षण का लाभ

जानकारी के लिए बता दें कि आगामी 1 फरवरी से सामान्य वर्ग के ग़रीबों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण मिलने लगेगा। इसके लिए अधिसूचना जारी कर दी गई है। अब 1 फरवरी के बाद से सरकारी नौकरियों में भर्ती के लिए जो भी रिक्तियाँ निकाली जाएगी, उनमे सामान्य वर्ग के ग़रीबों को 10 प्रतिशत आरक्षण मिलेगा।

कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (DoPT) ने इस सम्बन्ध में आदेश जारी करते हुए कहा कि सालाना ₹8 लाख से कम आय वाले लोगों को ये सुविधा दी जाएगी। इस आदेश के क्रियान्वयन के लिए अलग से रोस्टर जारी किया जाएगा।

DoPT के संयुक्त सचिव ज्ञानेंद्र देव त्रिपाठी ने शनिवार (जनवरी 19, 2019) देर रात अधिसूचना जारी करते हुए कहा, “संसद ने संविधान में संशोधन कर ग़रीबों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया है। इसे ध्यान में रखते हुए केंद्र के सभी पदों एवं सेवाओं के लिए 1 फरवरी 2019 से अधिसूचित होने वाली सभी प्रत्यक्ष भर्तियों पर इसे लागू किया जाता है।”

याद दिला दें कि विधेयक पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 13 जनवरी को हस्ताक्षर कर दिए थे। इस से पहले विधेयक को संसद के दोनों सदनों में पारित किया गया था।

रोज़ वैली चिटफंड घोटाला: ममता बनर्जी के क़रीबी को CBI ने किया गिरफ़्तार

बंगाली फ़िल्म प्रोड्यूसर श्रीकांत मोहता को सीबीआई ने कोलकाता से गिरफ़्तार कर लिया है। ₹17,450 करोड़ के रोज़ वैली चिटफंड घोटाले में शामिल मोहता को सीबीआई भुवनेश्वर लेकर जाएगी, जहाँ उसे अदालत में पेश किया जाएगा। हालाँकि, मोहता को गिरफ़्तार करना सीबीआई के लिए आसान नहीं रहा। मोहता के सुरक्षाकर्मियों के साथ-साथ बंगाल पुलिस ने भी सीबीआई को तलाशी अभियान चलाने में बाधा पहुँचाई, लेकिन अंततः जाँच एजेंसी उसे गिरफ़्तार करने में सफल रही। मोहता को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का क़रीबी माना जाता है।

श्रीकांत मोहता श्री वेंकटेश फ़िल्म्स (SVF) नामक प्रोडक्शन कम्पनी का संस्थापक है। यह पूर्वी भारत की सबसे बड़ी फ़िल्म प्रोडक्शन कंपनियों में से एक है। SVF ने प्रसेनजित चटर्जी अभिनीत ‘चोखेर बाली’ और अजय देवगन अभिनीत ‘रेनकोट’ जैसी प्रसिद्ध बंगाली एवं हिंदी फ़िल्मों का निर्माण किया है। इसके अलावा कम्पनी हॉलीवुड फ़िल्मों का डिस्ट्रीब्यूशन भी करती आई है।

सीबीआई ने गुरुवार (जनवरी 24, 2019) को सुबह 11 बजे दक्षिण कोलकाता के क़स्बा स्थित एक्रोपॉलिस मॉल के 19वें तले पर SVF के मुख्यालय पर छापा मारा। मोहता उस समय अपने दफ़्तर में ही मौज़ूद था। उसके निजी सुरक्षाकर्मियों ने सीबीआई के अधिकारियों को अंदर जाने से रोक दिया। इसके बाद क़स्बा थाना की पुलिस वहाँ पहुँची। पुलिस और सीबीआई अधिकारियों के बीच तीखी बहस हुई जिसके बाद जाँच एजेंसी मोहता को हिरासत में लेने में सफल रही। इस से पहले सुबह 7 बजे सीबीआई मोहता के आवास पर भी पहुँची थी।

सीबीआई के अनुसार, पुलिस ने जाँच अधिकारियों की पहचान जानने के बाद भी उनकी कार्यवाही में बाधा पहुँचाई। सीबीआई द्वारा अदालत का अनुमति पत्र दिखाए जाने के बावजूद पश्चिम बंगाल पुलिस ने उनसे बहस करना जारी रखा। काफ़ी मशक्क़त के बाद पुलिस दोपहर 2 बजे घटनास्थल से चली गई। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार मोहता ने ही क़स्बा पुलिस को फ़ोन कर बुलाया था।

मोहता को हिरासत में लेने के बाद सीबीआई उसे सॉल्ट लेक स्थित सीजीओ कार्यालय ले कर गई। एजेंसी के अनुसार वह जाँच में सहयोग नहीं कर रहा था और पूछताछ में भी साफ़-साफ़ जवाब नहीं दे रहा था।

पुलिस का कहना है कि मोहता ने उन्हें कॉल कर कहा था कि कुछ अज्ञात लोग उसके दफ़्तर में जबरन घुसने की चेष्टा कर रहे हैं। पुलिस के अनुसार मोहता ने इस संबंध में लिखित शिक़ायत भी दर्ज़ कराई थी। सीबीआई ने पुलिस के दावों की पोल खोलते हुए पूछा कि अगर ऐसा था तो फिर उन्होंने हमारी कार्यवाही में बाधा क्यों पहुँचाई?

कुछ दिनों पहले सीबीआई ने मोहता से कई महत्वपूर्ण दस्तावेज़ माँगे थे लेकिन उसने ख़ुद हाज़िर होने की बजाय अपने वकील से दस्तावेज़ भिजवा दिए थे। सीबीआई कई दिनों से उसे पूछताछ के लिए बुला रही थी। मोहता पर रोज़वैली समूह के मालिक गौतम कुंडू से ₹30 करोड़ लेने का आरोप है। कुंडू अभी जेल में क़ैद है। इस घोटाले तृणमूल कॉन्ग्रेस के कई नेताओं को पहले ही गिरफ़्तार किया जा चुका है। तृणमूल सांसद सुदीप बंदोपाध्याय को भी इस मामले में सीबीआई गिरफ़्तार कर चुकी है।

तृणमूल कॉन्ग्रेस ने सीबीआई की कार्रवाई को लोकतंत्र के लिए एक ख़तरनाक निशानी बताया। तृणमूल नेता पार्थ चटर्जी ने कहा कि सीबीआई का इस्तेमाल राजनीतिक प्रतिशोध के लिए किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि फ़िल्म इंडस्ट्री के लोगों, व्यापारियों और नेताओं के ख़िलाफ़ सीबीआई का प्रयोग करने के प्रयास किए जा रहे हैं। वहीं कॉन्ग्रेस पार्टी ने मोहता और ममता बनर्जी की नज़दीकियों पर सवाल उठाए और कहा कि मोहता हमेशा मुख्यमंत्री बनर्जी के साथ अपनी नज़दीकियों का उल्लेख करता रहा है। भाजपा ने इस गिरफ़्तारी का स्वागत करते हुए कहा कि सीबीआई सही रास्ते पर है।

कुछ महीनों पहले मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सीबीआई को बिना राज्य सरकार की अनुमति के पश्चिम बंगाल में कार्रवाई करने से रोक दिया था। उस से पहले आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने भी यही निर्णय लिया था।

IED के साथ 2 आतंकी गिरफ़्तार, गणतंत्र दिवस पर दिल्ली के 5 जगहों पर हमले की थी साज़िश

गणतंत्र दिवस से पहले से पहले दिल्ली पुलिस को बड़ी कामयाबी मिली है। दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने पाकिस्तानी आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के दो आतंकवादियों को गिरफ़्तार किया है। जानकारी के मुताबिक़ हिरासत में लिए गए आतंकवादियों की योजना गणतंत्र दिवस पर आतंक फैलाने की थी। दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल के अनुसार एक आतंकी जो जैश-ए-मोहम्मद का मास्टरमाइंड है और हाल में ही श्रीनगर में हुए ग्रेनेड हमले में शामिल था। वह एक बार फिर आतंकी हमले की योजना बना रहा था। इसके अलावा पुलिस ने बताया कि दोनों आतंकी गणतंत्र दिवस के मौक़े पर भीड़भाड़ वाले इलाक़े में हमला करने की साज़िश रच रहे थे।

पुलिस ने कहा कि गिरफ़्तार किए गए 29 वर्षीय अब्दुल लतीफ़ गनी और 26 वर्षीय हिलाल अहमद भट, दिल्ली आए थे। आतंकी संगठन जैश-ए-मौहम्मद ने दिल्ली सचिवालय समेत शहर में पाँच जगहों को हमले के लिए चुना था। गुर्गों ने दक्षिण दिल्ली में आईजीएल गैस पाइपलाइन, तुर्क़मान गेट, इंडिया गेट और लाजपत नगर बाज़ार में हज मंजिल इमारत आदि जगहों का मुआयना किया था और उनकी तस्वीरें लीं थी, जहाँ आईईडी (IED) रखे जाने की योजना बनाई थी।

बता दें कि गनी (Ganaie) हाल ही में बांदीपुरा में श्रीनगर और सुंबल सहित जम्मू-कश्मीर के विभिन्न हिस्सों में हुए ग्रेनेड हमलों के मास्टरमाइंड के रूप में सामने आया था। उसके मॉड्यूल ने 17 जनवरी को जीरो ब्रिज़ की घटना के साथ-साथ ही लाल चौक में हमले को अंजाम दिया था। 18 जनवरी को शोपियां में भी घटना को अंजाम दिया था। पुलिस ने इन जगहों की तस्वीरें उसके ख़ुद के फोन से बरामद की हैं।

DCP प्रमोद कुशवाहा के अनुसार टीमों ने दो IED, 26 कारतूस और a.32 बोर की पिस्टल बरामद की है। मॉड्यूल ने लगभग एक दर्जन IED की ख़रीद की थी जिनका पता लगा लिया गया है। गिरफ़्तारी संबंधी ऑपरेशन अभी जारी है क्योंकि इसके अलावा भी और गिरफ़्तारियाँ होने की संभावना है। विशेष सेल के मुताबिक़, जम्मू-कश्मीर पुलिस ने कम से कम चार संदिग्धों की पहचान की है, जिनमें से दो अन्य को गिरफ़्तार कर लिया गया है।

ऑपरेशन के बारे में बताते हुए, DCP कुशवाहा ने कहा कि मिलिट्री इंटेलिजेंस की दिल्ली यूनिट से एक विशिष्ट सूचना प्राप्त हुई थी जिसके बाद लक्ष्मी नगर के JH ब्लॉक में एक घर में संदिग्ध लोगों को पर नज़र रखी जा रही थी। चौबीसों घंटे उस घर पर निगरानी रखी गई।

कुछ हफ़्तों बाद, पुलिस गनी की पहचान करने में सक्षम हो गई। 20 जनवरी को, पुलिस इन्स्पेक्टर शिव कुमार को जानकारी मिली कि गनी किसी से मिलने के लिए राजघाट पर जाएगा। पूरे क्षेत्र का अवलोकन एसीपी अत्तर सिंह की टीम ने कर लिया था। इसके बाद टीम ने गनी को राजघाट पर ही हथियार और गोलियों समेत गिरफ़्तार कर लिया।

कुशवाहा ने कहा कि ऑपरेशन कमांडर अबू मौज, जिला कमांडर तल्हा भाई और जिला कमांडर उमैर इब्राहिम के साथ अन्य घटिया सामग्री के नाम पर जैश-ए-मोहम्मद के तीन रबर स्टैम्प भी बरामद किए गए। पूछताछ के दौरान, दोनों ने खुलासा किया कि उनके पाक स्थित हैंडलर अबू मौज उर्फ़ अबू बकर ने उन्हें पिछले साल नवंबर में आईईडी (IED) प्रदान किया था।

अबू मौज के निर्देशानुसार, गनी दिसंबर में लाल चौक पर अकीब नाम के एक व्यक्ति से मिला था। आकिब दो दिनों तक गनी के घर पर रहा और फिर आईईडी, एक पिस्तौल और 30 कारतूस वितरित किए। मौज ने उनसे जम्मू-कश्मीर में सशस्त्र और पुलिस बलों पर ग्रेनेड फेंकने और दिल्ली के कुछ हिस्सों में इन ग्रेनेड का इस्तेमाल करने के लिए कहा था, जिससे गणतंत्र दिवस समारोह में व्यवधान उत्पन्न हो जाए।

पूछताछ के दौरान अब्दुल लतीफ़ गनी ने आगे खुलासा किया कि वह अबू मौज के साथ टेलीग्राम और व्हाट्सएप के माध्यम से संचार में था। अब्दुल लतीफ़ गनी, हिलाल अहमद और समीर के साथ नवंबर 2018 में हवाई मार्ग से दिल्ली आए। हिलाल अहमद द्वारा टिकट की व्यवस्था की गई। उन्होंने हमलों के लिए विभिन्न स्थानों की पहचान की। गनी ने वीआईपी क्षेत्रों, धार्मिक स्थानों, महत्वपूर्ण प्रतिष्ठित स्थानों और फुटपाथ जैसे क्षेत्रों को का अवलोकन किया। उन्होंने तस्वीरें और वीडियो लिए और फिर उन्हें अबू मौज के पास भेजा।

जम्मू-कश्मीर में अपनी गतिविधियों के बारे में, गनी ने कहा कि उसने जम्मू और कश्मीर में आबिद नाम के शख़्स को दो हथगोले दिए थे। पुलिस ने कहा कि आबिद ने 4 जनवरी को बांदीपुरा के सुंबल में 5 आरआर के सेना के जवानों पर एक ग्रेनेड फेंका था। इसके अलावा गनी ने ख़ुलासा किया कि उन्होंने श्रीनगर में शाहबल और हिलाल अहमद भट को भी कुछ हथगोले दिए थे। जम्मू-कश्मीर पुलिस को इस नेटवर्क के बारे में सूचित किया गया था और इसके बाद उसने 22 जनवरी को श्रीनगर में ग्रेनेड विस्फोट करने के आरोप में गनी के एक सहयोगी शाहबाज़ को गिरफ़्तार किया था।

5 सालों में असम में हिंदू हो जाएँगे अल्पसंख्यक, अगर नागरिकता बिल नहीं हुआ लागू: हिमंत सरमा

असम के वित्त मंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा है कि वो असम को दूसरा जम्मू-कश्मीर नहीं बनने देंगे। नागरिकता (संविधान संशोधन) बिल 2016 पर सरमा का कहना है कि राज्य को तभी बचाया जा सकता है जब इस बिल को लागू किया जाए। साथ ही असम अकॉर्ड के क्लॉज़ 6 को लागू करने के साथ छह समुदायों को अनुसूचित जनजाति का दर्ज़ा भी दिया जाए।

हिमंत का कहना है कि यदि नागरिक बिल को पास नहीं किया गया तो आने वाले पाँच सालों में असम में हिन्दू अल्पसंख्यकों की सूची में आ जाएँगे।

सरमा ने इस बात की भी घोषणा की है कि 2021 के बाद वो राजनीति में अधिक सक्रिय नहीं रहेंगे। उन्होंने नागरिकता (संविधान संशोधन) बिल 2016 को उच्च सदन में पास कराने के अपने संघर्ष को ‘पानीपत की अंतिम लड़ाई’ कहा है। सरमा ने अपनी बातचीत में कहा कि जो उन्हें धर्मनिरपेक्षता का पाठ सिखा रहे हैं वही लोग आज जम्मू-कश्मीर में खून-खराबे के लिए ज़िम्मेदार हैं।

सरमा का कहना है कि उन्हें धर्मनिरपेक्ष या सांप्रदायिक होने पर प्रमाण पत्र की आवश्यकता नहीं है। लोग हिंदुओं को हिंदुओं के खिलाफ खड़ा कर रहे हैं। हिंदू बांग्लादेशियों का विरोध करने वालों को पता नहीं है कि वे असम के 14 जिलों में निर्णय लेने की शक्ति खो चुके हैं। पहले ही उनकी 30 सीटें जा चुकी हैं, अगर विधेयक आता है तो अभी भी कम से कम 17 विधानसभा सीटें बचा सकते हैं।

बता दें हाल ही में गुहावटी में नॉर्थ ईस्ट स्टूडेंट्स ऑर्गनाइजेशन (NESO) के सदस्यों ने रैली निकाली थी जिसमें उन्होंने केंद्र सरकार के साथ राज्य सरकार को भी इस विधेयक को लागू करने के ख़िलाफ़ चेतावनी दी थी जिसके बाद ही हिमंत का यह बयान आया है। रैली के दौरान छात्रों ने पीएम मोदी और असम मुख्यमंत्री सीएम सर्वानंद सोनोवाल को अवैध आप्रवासियों का रक्षक और संरक्षक बताया।

सरमा ने कहा कि 1971 की गणना के अनुसार असम की जनसंख्या में 71 प्रतिशत हिंदू थे जो कि 2011 आते-आते 61 प्रतिशत हो गए। अगर 2021 तक बांग्लादेश से आए 8 लाख हिंदू बंगालियों को असम से बाहर भेज दिया गया तो ये आँकड़े गिरकर 51 से 52 प्रतिशत ही रह जाएँगे जिसके कारण आने वाले समय में राज्य का मुख्यमंत्री बदरुद्दीन अजमल या फिर सिराजुद्दीन अजमल होगा।

इस मामले का विरोध करने वालों पर सरमा ने कहा: “ऑल असम माइनॉरिटी स्टूडेंट्स यूनियन (AAMSU) के सदस्य बिल का विरोध करने के लिए सोशल मीडिया पर संदेश भेज रहे हैं। हालांकि ये लोग खुद असम में आर्थिक शरणार्थी हैं, वे इस बारे में क्यों बात कर रहे हैं कि नागरिकता किसे मिलनी चाहिए?” सरमा ने यह भी कहा कि उन्हें अपने मोबाइल पर धमकी भरे संदेश मिल रहे हैं।

बता दें कि जिस विधेयक पर इतनी खींचतान की जा रही है वो लोकसभा में पहले ही पास हो चुका है और अब राज्यसभा में भी इसके पारित करने पर चर्चा की जानी है। अगर ये विधेयक लागू हो जाता है तो 12 की जगह पिछले 6 साल से देश में रह रहे बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के गैर मुस्लिमों को भारतीय नागरिकता दे दी जाएगी।

आगामी चुनावों में आंध्र प्रदेश में नहीं होगा कॉन्ग्रेस और TDP का गठबंधन

आंध्र प्रदेश कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष रघुवीरा रेड्डी ने आगामी चुनावों में किसी भी दल के साथ गठबंधन की संभावना को सिरे से नकार दिया है। आंध्र प्रदेश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होने वाले हैं। रेड्डी ने कहा कि पार्टी राज्य की सभी 25 लोकसभा सीटों और 175 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी। ऑल इंडिया कॉन्ग्रेस कमेटी (AICC) के महासचिव व केरल के पूर्व मुख्यमंत्री ओमान चांडी ने भी कहा कि आंध्र में कॉन्ग्रेस का तेदेपा के साथ गठबंधन नहीं है।

वनइंडिया की वेबसाइट पर प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार ओमान चांडी ने इस बारे में अधिक जानकारी देते हुए कहा: “राज्य की सभी 175 विधानसभा और 25 लोकसभा सीटों पर कॉन्ग्रेस अकेले चुनाव लड़ेगी। तेदेपा ने हमारे साथ केवल राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन किया है, जिसका राज्य से कोई लेना-देना नहीं है।”

चांडी ने बताया कि आंध्र प्रदेश कॉन्ग्रेस के नेतागण 31 जनवरी को आयोजित बैठक में चुनावी तैयारियों पर चर्चा करेंगे। उन्होंने बताया कि पार्टी ने फरवरी में राज्य के सभी 13 जिलों में बस यात्रा निकालने की योजना बनाई है। रघुवीरा रेड्डी ने कहा कि गठबंधन को लेकर किसी भी प्रकार का निर्णय कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी करेंगे, साथ ही उन्होंने दुहराया कि पार्टी चुनावी समर में अकेले दम पर उतरेगी।

तेलंगाना में तेदेपा के साथ गठबंधन कर चुनाव में उतरने से कॉन्ग्रेस को नुकसान हुआ था। हालिया विधानसभा चुनावों में राज्य में कॉन्ग्रेस की सीटें 21 से घट कर 19 हो गई। तेदेपा को भी अच्छा-ख़ासा नुकसान उठाना पड़ा। उसकी सीटों की संख्या 15 से घट कर सिर्फ़ 2 रह गई। कहा जा रहा है कि तेलंगाना चुनाव परिणाम को ध्यान में रखते हुए कॉन्ग्रेस तेदेपा के साथ गठबंधन करने से बच रही है।

उधर आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने भी इस ओर इशारा किया कि कॉन्ग्रेस के साथ चुनावी गठबंधन नहीं होगा। अपनी पार्टी के नेताओं को टेलीकॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सम्बोधित करते हुए तेदेपा अध्यक्ष ने कहा:“राज्यों में गठबंधन संबंधित दलों की इच्छा पर आधारित होगा। हम राष्ट्रीय स्तर पर साथ मिलकर बीजेपी के खिलाफ लड़ रहे हैं। हम देश बचाओ, लोकतंत्र बचाओ, एकजुट भारत के नारों के साथ एक साझा मंच पर साथ आये हैं।”

नायडू ने पश्चिम बंगाल का उदाहरण देते हुए कहा कि राज्य में कॉन्ग्रेस और तृणमूल कॉन्ग्रेस का कोई चुनावी गठबंधन नहीं है लेकिन फिर भी कॉन्ग्रेस नेता ममता बनर्जी द्वारा आयोजित रैली में शामिल हुए। उन्होंने कहा कि संविधान की रक्षा करना 23 विपक्षी दलों का राष्ट्रीय एजेंडा है।

मंगलवार (जनवरी 22, 2019) को चंद्रबाबू नायडू ने राहुल गाँधी से उनके आवास पर मुलाक़ात की थी। कोलकाता में ममता बनर्जी द्वारा आयोजित विपक्ष की महारैली में राहुल गाँधी शामिल नहीं हुए थे। नायडू ने राहुल गाँधी से इस रैली को लेकर चर्चा की थी।

योगी सरकार के पहले 16 महीने: 3,000 एनकाउंटर्स, 78 अपराधी ढेर, 7,043 गिरफ़्तार, 11,981 ने किया आत्मसमर्पण

योगी सरकार के पहले 16 महीनों कार्यकाल में उत्तर प्रदेश पुलिस ने 3,000 से भी अधिक एनकाउंटर्स में 78 अपराधियों को ढेर किया। योगी आदित्यनाथ ने मार्च 19, 2017 को यूपी की सत्ता संभाली थी। उत्तर प्रदेश के DGP कार्यालय के एक अधिकारी ने बताया कि ये डाटा मार्च 2017 से जुलाई 2018 तक के हैं।

गणतंत्र दिवस के मौके पर योगी सरकार ने अपनी उपलब्धियों की एक लिस्ट जारी की जिसमें मारे गए और गिरफ़्तार किए गए अपराधियों के साथ एनकाउंटर्स की संख्या को भी उपलब्धियों के रूप में पेश किया गया है। राज्य के मुख्य सचिव अनूप चंद्र पांडेय ने योगी सरकार के कार्यकाल की अब तक की उपलब्धियों की लिस्ट को सभी जिलों के ज़िलाधिकारियों के पास भेज दिया है।

मुख्य सचिव ने अपने पत्र में कहा है कि अपराध पर प्रभावी नियंत्रण और वॉन्टेड अपराधियों की गिरफ़्तारी के लिए राज्यव्यापी अभियान चलाया जा रहा है। इस पत्र में बताया गया है कि जुलाई 2018 तक हुई 3,208 मुठभेड़ों में 69 अपराधियों को मार गिराया गया; 7,043 अपराधियों को गिरफ़्तार किया गया और 838 अपराधी घायल हुए। पत्र में इस बात की भी जानकारी दी गई है कि 11,981 अपराधियों ने अपनी ज़मानत रद्द करा कर अदालत के समक्ष आत्मसमर्पण किया

इन सब के अलावा स्पेशल टास्क फाॅर्स (STF) ने 9 अन्य अपराधियों को मार गिराया व 139 गिरफ़्तार किए गए। इस डाटा को अच्छी तरह खंगालने पर पता चलता है कि बताई गई अवधि में प्रतिदिन औसतन 6 एनकाउंटर्स हुए और 14 अपराधियों की गिरफ़्तारी हुई। हर महीने औसतन 4 अपराधियों को मार गिराया गया।

अगर योगी सरकार के पहले 9 महीनों (दिसंबर 15, 2017 तक) की बात करें तो इस अवधि में 17 अपराधियों को ढेर किया गया। अर्थात, हर महीने औसतन 1.8 अपराधी मारे गए। हालाँकि अगले 7 महीनों (जनवरी, 2018 से जुलाई, 2018) की बात करें तो यह आँकड़ा काफ़ी तेज़ी से बढ़ा। इस दौरान हर महीने औसतन 8.71 अपराधियों को ढेर किया गया। इन सात महीनों में कुल 61 अपराधी हत हुए।

मुख्य सचिव के पत्र के अनुसार योगी आदित्यनाथ के सत्ता सँभालने के बाद से दिसंबर, 2017 तक यूपी पुलिस ने ‘आत्मरक्षा’ की कार्रवाई में 17 अपराधियों को मार गिराया व 109 अन्य को गिरफ्तार किया।

अपराध नियंत्रण के अलावा योगी सरकार ने अपनी उपलब्धियों की लिस्ट में किसानों के लिए किए गए कार्यों का भी उल्लेख किया है। कर्ज़माफ़ी से लेकर गन्ना किसानों को भुगतान करने तक का ज़िक्र किया गया है।

बता दें कि पिछले गणतंत्र दिवस (2018) के मौके पर भी सभी जिलों के डीएम को कुछ इसी तरह की रिपोर्ट भेजी गई थी जिसमें योगी सरकार की अब तक की उपलब्धियों का ब्यौरा दिया गया था। उस रिपोर्ट में एन्टी रोमियो स्क्वॉड के कार्यों को हाईलाईट किया गया था।

ज्ञात हो कि योगी कार्यकाल में ताबड़तोड़ एनकाउंटर्स को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका भी दाख़िल की गई है। भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने इसे एक गंभीर मसला बताते हुए अगली सुनवाई की तारीख़ 12 फरवरी, 2019 तय की है। इस याचिका में यूपी पुलिस द्वारा किए गए एनकाउंटर्स की जाँच CBI से कराने की माँग की गई है।

देश भर में आज मनाया जाएगा राष्ट्रीय मतदाता दिवस ताकि कोई मतदाता पीछे न रह जाए

गणतंत्र दिवस से ठीक एक दिन पहले यानी 25 जनवरी को हमारे देश में मतदाता दिवस मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य यह है कि देश भर में युवा मतदाओं में चुनावी प्रक्रिया को लेकर जागरूकता फैलाई जा सके। देश के ज्यादा से ज्यादा नागरिक अपने मताधिकार के प्रति जागरूक हों।

आज 25 जनवरी 2019 को हमारे देश में 10 लाख मतदान केंद्रों को कवर करते हुए 6 लाख से ज्यादा जगहों पर 9वाँ राष्ट्रीय मतदाता दिवस मनाया जाएगा। इस दिवस पर मनाए जाने वाले समारोह में नए मतदाताओं को बधाई भी दी जाएगी और उन्हें उनके पहचान पत्र भी दिए जाएँगे।

आज दिल्ली कैन्ट स्थित मानेकशॉ केन्द्र (Manekshaw Centre) में चुनाव आयोग द्वारा एक समारोह आयोजित किया जा रहा है जिसके मुख्य अतिथि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद होंगे। इस समारोह में कानून मंत्री श्री रविशंकर प्रसाद भी उपस्थित रहेंगे।

लोकसभा चुनाव करीब होने के कारण इस दिवस का महत्व और भी अधिक है इसलिए ये समारोह इसी विषय पर केंद्रित होगा कि ‘कोई मतदाता पीछे न रहे’। इस दिवस पर आज ‘My Vote Matters’ नाम की त्रैमासिक पत्रिका का उद्घाटन माननीय राष्ट्रपति द्वारा किया जाएगा। इस आयोजन पर उन अधिकारियों को राष्ट्रीय पुरस्कारों से भी सम्मानित किया जाएगा जिन्होंने चुनावों के दौरान अपना श्रेष्ठ योगदान दिया है। इसके अलावा नागरिक समाज संगठनों और मीडिया संस्थानों को भी चुनाव के दौरान मतदाताओं में जागरूकता फैलाने के लिए पुरस्कृत किया जाएगा।

राष्ट्रीय मतदाता दिवस देश में उत्साह से मनाया जाना भारत के सही अर्थों में लोकतांत्रिक होने का परिचायक है। इतिहास के पन्नों में चुनाव आयोग का गठन 25 जनवरी 1950 को ही हुआ था। लेकिन इस दिन को औपचारिक रूप से मनाने की शुरूआत 2011 से हुई। इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य था कि देश में चुनाव के दौरान होने वाले मतदाताओं की संख्या में वृद्धि हो।

राष्ट्रीय मतदाता दिवस

आपको बता दें आज हमारे देश में मतदाता होने का अधिकार हमें 18 वर्ष का होने पर मिल जाता है लेकिन 1988 से पहले ये उम्र 21 हुआ करती थी। 61वें संशोधन बिल के पास होने के बाद मतदाता की उम्र घटाकर 18 की गई।

आज के समय में चुनाव के दौरान होने वाले मतदान में चुनाव आयोग उन्हीं लोगों को वोट देने की अनुमति देता है जो उस क्षेत्र का स्थाई निवासी होता है। अगर कोई व्यक्ति से एक से अधिक जगहों पर मतदान करता है तो इसे अपराध माना जाता है। 18 साल के होते ही कोई भी नागरिक स्वत: एक मतदाता हो जाता है। मतदान करने के लिए आवश्यक नहीं है कि वोटर पहचान पत्र ही साथ हो। हम अपने पैन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस और आधार कार्ड को ले जाकर भी वोट डाल सकते हैं।

कॉन्ग्रेस नेता का महिलाविरोधी बयान: ‘केरल के CM एक महिला से भी बदतर हैं’

कोल्लम के पूर्व सांसद के सुधाकरन ने केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन को लेकर एक महिला विरोधी बयान दिया है। सुधाकरन केरल में कॉन्ग्रेस पार्टी के तीन कार्यकारी अध्यक्षों में से एक हैं। बुधवार (जनवरी 23, 2019) को कासरगोड में कॉन्ग्रेस के एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री विजयन का प्रदर्शन एक महिला से भी बदतर है। उन्होंने कहा- “जब विजयन को CPM कार्यकर्ताओं ने मुख्यमंत्री चुना था तब हमें लगा था कि वह एक पुरुष की तरह कार्य करेंगे। न केवल वह (विजयन) एक पुरुष की तरह कार्य करने में विफल रहे हैं, बल्कि वास्तविकता तो यह है कि वे एक महिला से भी बदतर साबित हुए हैं।”

उन्होंने पिनाराई विजयन को ‘सबसे बड़ी आपदा’ बताते हुए कहा कि वे कुशलतापूर्वक और प्रभावशाली ढंग से कार्य करने में विफल रहे हैं। उन्होंने विजयन को एक असंवेदनशील मुख्यमंत्री भी कहा। मीडिया में बात फैलने के बाद उन्होंने माफ़ी मांगते हुए कहा कि उनके बयान को गलत तरीके से पेश किया गया।

दरअसल, केरल में यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (UDF) ने CPM सरकार के ख़िलाफ़ प्रदर्शन तेज़ कर दिया है। विपक्षी नेताओं का आरोप है कि राज्य सरकार 2018 में आई बाढ़ पीड़ितों के पुनर्वास में पूरी तरह से विफल रही है। UDF नेताओं ने तिरुअनंतपुरम सचिवालय के साथ राज्य के सभी जिलों के कलेक्ट्रेट पर भी प्रदर्शन किया। उन्होंने कहा कि यह प्रदर्शन जारी रहेगा।

वैसे यह पहली बार नहीं है जब सुधाकरन विवादों में आए हैं। इससे पहले भी वे कई बार गलत कारणों की वजह से सुर्ख़ियों में रह चुके हैं। नवंबर 2012 में एक सैंड स्मगलर को छुड़ाने के लिए उन्होंने कॉन्ग्रेस कार्यकर्ताओं के साथ मिल कर वालपट्नम थाना के सब-इंस्पेक्टर का घेराव किया था। उसके बाद उनके ख़िलाफ़ केस भी दर्ज़ किया गया था। उन्होंने पुलिस अधिकारियों को धमकी भी दी थी और परिणाम भुगतने की चेतावनी दी थी। सुधाकरन को 15वीं लोकसभा (2009-14) में कन्नूर क्षेत्र से कॉन्ग्रेस के टिकट पर सांसद चुना गया था। सितंबर 2018 में उन्हें केरल प्रदेश कॉन्ग्रेस कमेटी (KPCC) का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया गया।

सुधाकरन सबरीमला मंदिर पर चल रहे विरोध प्रदर्शनों में भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते रहे हैं। उनका मानना है कि सबरीमला मंदिर की सैकड़ों वर्ष पुरानी परंपरा से किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ नहीं की जानी चाहिए।

अभी कुछ दिनों पहले ही कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने भी कुछ इसी तरह का महिलाविरोधी बयान दिया था। प्रधानमंत्री मोदी पर निशाना साधते हुए उन्होंने उन्हें मर्द बनने की सलाह दी थी। राहुल ने कहा था कि पीएम ने ख़ुद आने की बजाय एक महिला को आगे कर दिया। उनके इस बयान के बाद महिला संगठनों ने उनसे सार्वजनिक तौर पर माफ़ी मांगने की माँग की थी।

भारत के इतिहास में पहला जौहर करने वाली उत्तराखंड की जिया रानी

मित्रो, झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की जीवनी पर आधारित फ़िल्म मणिकर्णिका सिनेमाघरों में दर्शकों के सामने है। ऐसे में जब हम सब लोगों का दिल 25 जनवरी को सिनेमाघरों में आने वाली कंगना रनौत की इस फ़िल्म को देखने के लिए धड़क रहा है, हम आपका परिचय करवाते हैं एक ऐसी पहाड़ी वीरांगना से जिन्हें उत्तराखंड की लक्ष्मीबाई कहा जाता है।

यूँ तो सम्पूर्ण भारत ही विभिन्न हस्तियों की शौर्यगाथाओं से भरा पड़ा है परंतु इसे साधनों का अभाव कहिए या फिर हमारी शिक्षा नीति की कमजोरी, प्रायः देखा गया है कि ऐसी बहुत सी हस्तियों के बारे में जानने से हम लोग हमेशा वंचित रहे हैं, जिनके त्याग और बलिदान को कभी संवाद का ज़रिया नहीं मिल सका।

गत वर्ष हम लोगों को मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित ‘पद्मावत’ काव्य पर आधारित फ़िल्म देखने को मिली। लेकिन पद्मावती अकेली महिला नहीं थी, जिसे मुस्लिम आक्रान्ताओं के शोषण और व्यभिचारी प्रवृत्ति के चलते अपने सतीत्व की रक्षा के लिए जौहर करना पड़ा था। हालाँकि फ़िल्म आते ही देश का ‘लिबरल वर्ग’ यह भी कहता देखा गया कि सतीत्व की रक्षा के लिए जौहर करना बेवकूफ़ी भरा निर्णय हुआ करता था। ख़ैर, सबकी अपनी विशिष्ट प्राथमिकताएँ हो सकती हैं।

आज हम इतिहास के पन्नों से किस्सा लेकर आ रहे हैं एक ऐसी वीरांगना का जिन्हें उत्तराखंड (कुमाऊँ) की लक्ष्मीबाई के नाम से जाना जाता है। यह नाम है- ‘रानी जिया’। जिस प्रकार झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई का नाम स्वतंत्रता संग्राम के पृष्ठों पर स्वर्णाक्षरों में अंकित है, उसी तरह से उत्तराखंड की अमर गाथाओं में एक नाम है जिया रानी का।

खैरागढ़ के कत्यूरी सम्राट प्रीतमदेव (1380-1400) की महारानी जिया थी। कुछ किताबों में उसका नाम प्यौंला या पिंगला भी बताया जाता है। जिया रानी धामदेव (1400-1424) की माँ थी और प्रख्यात उत्तराखंडी लोककथा नायक ‘मालूशाही’ (1424-1440) की दादी थी ।


उत्तराखंड के प्रसिद्ध कत्यूरी राजवंश का किस्सा

कत्यूरी राजवंश भारत के उत्तराखण्ड राज्य का एक मध्ययुगीन राजवंश था। इस राजवंश के बारे में माना जाता है कि वे अयोध्या के शालिवाहन शासक के वंशज थे और इसलिए वे सूर्यवंशी कहलाते थे। इनका कुमाऊँ क्षेत्र पर छठी से ग्यारहवीं सदी तक शासन था। कुछ इतिहासकार कत्यूरों को कुषाणों के वंशज मानते हैं।

बागेश्वर-बैजनाथ स्थित घाटी को भी कत्यूर घाटी कहा जाता है। कत्यूरी राजाओं ने ‘गिरिराज चक्रचूड़ामणि’ की उपाधि धारण की थी। उन्होंने अपने राज्य को ‘कूर्मांचल’ कहा, अर्थात ‘कूर्म की भूमि’। ‘कूर्म’ भगवान विष्णु का दूसरा अवतार था, जिस वजह से इस स्थान को इसका वर्तमान नाम ‘कुमाऊँ’ मिला।

कत्यूरी राजवंश उत्तराखंड का पहला ऐतिहासिक राजवंश माना गया है। कत्यूरी शैली में निर्मित द्वाराहाट, जागेश्वर, बैजनाथ आदि स्थानों के प्रसिद्ध मंदिर कत्यूरी राजाओं ने ही बनाए हैं। प्रीतम देव 47वें कत्यूरी राजा थे जिन्हें ‘पिथौराशाही’ नाम से भी जाना जाता है। इन्हीं के नाम पर वर्तमान पिथौरागढ़ जिले का नाम पड़ा।

जिया रानी

जिया रानी का वास्तविक नाम मौला देवी था, जो हरिद्वार (मायापुर) के राजा अमरदेव पुंडीर की पुत्री थी। सन 1192 में देश में तुर्कों का शासन स्थापित हो गया था, मगर उसके बाद भी किसी तरह दो शताब्दी तक हरिद्वार में पुंडीर राज्य बना रहा। मौला देवी, राजा प्रीतमपाल की दूसरी रानी थी। मौला रानी से 3 पुत्र धामदेव, दुला, ब्रह्मदेव हुए, जिनमें ब्रह्मदेव को कुछ लोग प्रीतम देव की पहली पत्नी से जन्मा मानते हैं। मौला देवी को राजमाता का दर्जा मिला और उस क्षेत्र में माता को ‘जिया’ कहा जाता था इस लिए उनका नाम जिया रानी पड़ गया।

रानी जिया ,प्रतीकात्मक चित्र

पुंडीर राज्य के बाद भी यहाँ पर तुर्कों और मुगलों के हमले लगातार जारी रहे और न सिर्फ हरिद्वार बल्कि उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊँ में भी तुर्कों के हमले होने लगे। ऐसे ही एक हमले में कुमाऊँ (पिथौरागढ़) के कत्यूरी राजा प्रीतम देव ने हरिद्वार के राजा अमरदेव पुंडीर की सहायता के लिए अपने भतीजे ब्रह्मदेव को सेना के साथ सहायता के लिए भेजा जिसके बाद राजा अमरदेव पुंडीर ने अपनी पुत्री मौला देवी (रानी जिया) का विवाह कुमाऊँ के कत्यूरी राजवंश के राजा प्रीतमदेव उर्फ़ पृथ्वीपाल से कर दिया।

उस समय दिल्ली में तुगलक वंश का शासन था। मध्य एशिया के लूटेरे शासक तैमूर लंग ने भारत की महान समृद्धि और वैभव के बारे में बहुत बातें सुनी थीं। भारत की दौलत लूटने के मकसद से ही उसने आक्रमण की योजना भी बनाई थी। उस दौरान दिल्ली में फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ के निर्बल वंशज शासन कर रहे थे। इस बात का फायदा उठाकर तैमूर लंग ने भारत पर चढ़ाई कर दी।

वर्ष 1398 में समरकंद का यह लूटेरा शासक तैमूर लंग, मेरठ को लूटने और रौंदने के बाद हरिद्वार की ओर बढ़ रहा था। उस समय वहाँ वत्सराजदेव पुंडीर शासन कर रहे थे। उन्होंने वीरता से तैमूर का सामना किया मगर शत्रु सेना की विशाल संख्या के आगे उन्हें हार का सामना करना पड़ा।

उत्तर भारत में गंगा-जमुना-रामगंगा के क्षेत्र में तुर्कों का राज स्थापित हो चुका था। इन लुटेरों को ‘रूहेले’ (रूहेलखण्डी) भी कहां जाता था। रूहेले राज्य विस्तार या लूटपाट के इरादे से पर्वतों की ओर गौला नदी के किनारे बढ़ रहे थे।

इस दौरान इन्होंने हरिद्वार क्षेत्र में भयानक नरसंहार किया। जबरन बड़े स्तर पर मतपरिवर्तन हुआ और तत्कालीन पुंडीर राजपरिवार को भी उत्तराखंड के नकौट क्षेत्र में शरण लेनी पड़ी जहाँ उनके वंशज आज भी रहते हैं और ‘मखलोगा पुंडीर’ के नाम से जाने जाते हैं।

लूटेरे तैमूर ने एक टुकड़ी आगे पहाड़ी राज्यों पर भी हमला करने के लिए भेजी। जब ये सूचना जिया रानी को मिली तो उन्होंने फ़ौरन इसका सामना करने के लिए कुमाऊँ के राजपूतों की एक सेना का गठन किया। तैमूर की सेना और जिया रानी के बीच रानीबाग़ क्षेत्र में भीषण युद्ध हुआ, जिसमें तुर्क सेना की जबरदस्त हार हुई।

इस विजय के बाद जिया रानी के सैनिक कुछ निश्चिन्त हो गए लेकिन दूसरी तरफ से अतिरिक्त मुस्लिम सेना आ पहुँची और इस हमले में जिया रानी की सेना की हार हुई। जिया रानी एक बेहद खूबसूरत महिला थी इसलिए हमलावरों ने उनका पीछा किया और उन्हें अपने सतीत्व की रक्षा के लिए एक गुफा में जाकर छिपना पड़ा।

जब राजा प्रीतम देव को इस हमले की सूचना मिली तो वो जिया रानी से चल रहे मनमुटाव के बावजूद स्वयं सेना लेकर आए और मुस्लिम हमलावरों को मार भगाया। इसके बाद वो जिया रानी को अपने साथ पिथौरागढ़ ले गए।

पिता की मृत्यु के बाद अल्पवयस्क धामदेव बने उत्तराधिकारी

राजा प्रीतमदेव की मृत्यु के बाद पुत्र धामदेव को राज्य का कार्यभार दिया गया किन्तु धामदेव की अल्पायु की वजह से जिया रानी को उनका संरक्षक बनाया गया। इस दौरान मौला देवी (जियारानी) ने बेटे धामदेव के संरक्षक के रूप में शासन किया, रानी स्वयं शासन संबंधी निर्णय लेती थी और राजमाता होने के चलते उन्हें जिया रानी भी कहा जाने लगा।

वर्तमान में जिया रानी की रानीबाग़ स्थित गुफा के बारे में एक दूसरी कथा भी प्रचलित है। कत्यूरी वंशज प्रतिवर्ष उनकी स्मृति में यहां पहुँचते हैं। कहते हैं कि कत्यूरी राजा प्रीतम देव की पत्नी रानी जिया यहाँ चित्रेश्वर महादेव के दर्शन करने आई थी। जैसे ही रानी नहाने के लिए गौला नदी में पहुँची, वैसे ही तुर्क सेना ने उन्हें घेर दिया।

इतिहासकारों के अनुसार जिया रानी बेहद खूबसूरत और सुनहरे केशों वाली सुन्दर महिला थी। नदी के जल में उसके सुनहरे बालों को पहचानकर तुर्क उन्हें खोजते हुए आए और जिया रानी को घेरकर उन्हें समर्पण के लिए मजबूर किया लेकिन रानी ने समर्पण करने से मना कर दिया।

कुछ इतिहासकार बताते हैं कि जिया रानी के पिता ने उनकी शादी राजा प्रीतम देव के साथ उनकी इच्छा के विरुद्ध की थी जबकि कुछ कथाओं के आधार पर मान्यता है कि राजा प्रीतमदेव ने बुढ़ापे में जिया से शादी की। विवाह के कुछ समय बाद जिया रानी की प्रीतम देव से अनबन हो गयी और वो अपने पुत्र के साथ गौलाघाट चली गई, जहाँ उन्होंने एक खूबसूरत रानीबाग़ बनवाया। इस जगह पर जिया रानी 12 साल तक रही थी।

दूसरे इतिहासकारों के अनुसार एक दिन जैसे ही रानी जिया नहाने के लिए गौला नदी में पहुँची, वैसे ही उन्हें तुर्कों ने घेर लिया। रानी जिया शिव भक्त और सती महिला थी। उन्होंने अपने ईष्ट देवता का स्मरण किया और गौला नदी के पत्थरों में ही समा गई।

लूटेरे तुर्कों ने उन्हें बहुत ढूंढा लेकिन उन्हें जिया रानी कहीं नहीं मिली। कहते हैं उन्होंने अपने आपको अपने लहँगे में छिपा लिया था और वे उस लहँगे के आकार में ही शिला बन गई थीं। गौला नदी के किनारे आज भी एक ऐसी शिला है जिसका आकार कुमाऊँनी पहनावे वाले लहँगे के समान हैं। उस शिला पर रंगीन पत्थर ऐसे लगते हैं मानो किसी ने रंगीन लहँगा बिछा दिया हो। वह रंगीन शिला जिया रानी का स्मृति चिन्ह माना जाता है।

इस रंगीन शिला को जिया रानी का स्वरुप माना जाता है और कहा जाता है कि जिया रानी ने अपने सतीत्व की रक्षा के लिए इस शिला का ही रूप ले लिया था। रानी जिया को यह स्थान बेहद प्रिय था। यहीं उन्होंने अपना बाग़ भी बनाया था और यहीं उन्होंने अपने जीवन की आखिरी साँस भी ली थी। रानी जिया के कारण ही यह बाग़ आज रानीबाग़ नाम से मशहूर है।

कुमाऊँ स्थित जिया माता मंदिर

रानी जिया हमेशा के लिए चली गई लेकिन उन्होंने वीरांगना की तरह लड़कर आख़िरी वक्त तक तुर्क आक्रान्ताओं से अपने सतीत्व की रक्षा की।

वर्तमान में प्रतिवर्ष मकर संक्रांति के अवसर पर 14 जनवरी को चित्रशिला में सैकड़ों ग्रामवासी अपने परिवार के साथ आते हैं और ‘जागर’ गाते हैं। इस दौरान यहाँ पर सिर्फ ‘जय जिया’ का ही स्वर गूंजता है। लोग रानी जिया को पूजते हैं और उन्हें ‘जनदेवी’ और न्याय की देवी मना जाता है। रानी जिया उत्तराखंड के कुमाऊँ क्षेत्र की एक प्रमुख सांस्कृतिक विरासत बन चुकी हैं।

इस देश के लगभग सभी क्षेत्र में शौर्य, बलिदान और त्याग की पराकाष्ठाओं के अनेक उदाहरण मौज़ूद हैं। लेकिन संसाधनों की कमी के कारण देशभर में तमाम ऐसे नायक-नायिकाओं को उस स्तर की पहचान नहीं मिल पाई, जिसके वो हक़दार हैं।

सशस्त्र सेनाओं की संयुक्त साइबर, स्पेशल ऑपरेशन तथा स्पेस कमान

सशस्त्र सेनाओं की संयुक्त साइबर, स्पेशल ऑपरेशन तथा स्पेस कमान का गठन भारत गणतंत्र को सुरक्षित करने की दिशा में महत्वूर्ण निर्णय है। विगत डेढ़ दशक से सशस्त्र सेनाओं के तीनों अंगों की संयुक्त साइबर, स्पेशल ऑपरेशन तथा स्पेस कमान बनाने की माँग ने ज़ोर पकड़ा था।

आज के समय में जहाँ युद्ध धरती, समुद्र और आकाश तक सीमित नहीं रह गए हैं और नेटवर्क सेंट्रिक युद्ध का सिद्धांत दिया जा चुका है वहाँ भारत के पास भी साइबर, स्पेशल ऑपरेशन और स्पेस की संयुक्त कमान होना समय की माँग है। भारत सरकार ने इन तीनों कमान के गठन को स्वीकृति प्रदान की है।

जल्दी ही भारत के पास एक संयुक्त स्पेशल ऑपरेशन डिवीज़न, स्पेस और साइबर एजेंसी होगी जो इंटीग्रेटेड डिफेंस स्टाफ के अधीन कार्य करेंगी। रक्षा संबंधी विभिन्न समितियों की रिपोर्टों में इन तीनों की संकल्पना एक ‘कमांड’ के रूप में की गई थी- वैसे ही जैसे थलसेना, नौसेना या वायुसेना की कमांड होती है- परंतु सरकार ने साइबर और स्पेस के लिए एक बड़ी कमांड नहीं बल्कि ‘एजेंसी’ और स्पेशल ऑपरेशन के लिए ‘डिवीज़न’ शब्द प्रयोग किया है।

चूँकि थलसेना, वायुसेना और नौसेना तीनों के पास अपने पृथक साइबर विभाग हैं और साइबर विभाग से तीनों के सामने आने वाले खतरे समान हैं इसलिए एक संयुक्त साइबर कमान की आवश्यकता पड़ी जिसमें सशस्त्र सेनाओं के तीनों अंगों के अधिकारी मिलकर कार्य करेंगे।

स्पेशल ऑपरेशन कमान या एजेंसी का महत्व समझने के लिए स्पेशल ऑपरेशन को समझना आवश्यक है। जब युद्ध चल रहा होता है तब किसी देश की सेना के विशेष रूप से प्रशिक्षित सैनिक शत्रु के क्षेत्र में भीतर तक घुसकर किसी विशेष लक्ष्य को भेदकर वापस लौट आते हैं। ऐसा मिलिट्री ऑपरेशन ‘स्पेशल ऑपरेशन’ कहलाता है। इसका प्रारंभ द्वितीय विश्व युद्ध के समय हुआ था जब अमेरिका ने हवा से कूद कर शत्रु की भूमि पर उतरने वाली स्पेशल एयरबोर्न डिवीज़न बनाई थी।       

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से ही लगभग सभी शक्तिशाली देशों की सेनाओं के पास स्पेशल ऑपरेशन दस्तों की बटालियनें रही हैं जिन्हें वे पारंपरिक युद्ध के अतिरिक्त शांतिकाल में लड़े जाने वाले छद्म युद्धों में प्रयोग करते रहे हैं। उदाहरण के लिए इस्राएल ने फ़लस्तीन के साथ कई वर्षों तक छद्म युद्ध लड़ा जिसमें इस्राएली डिफेंस फ़ोर्स की भूमिका अहम रही।

जब भी फ़लस्तीन के आतंकी इस्राएल पर हमला करते तब इस्राएली डिफेंस फ़ोर्स की स्पेशल फ़ोर्स यूनिट उन्हें दंडित करती। आज स्पेशल फ़ोर्स का प्रयोग लंबे समय तक चलने वाले ‘प्रॉक्सी वॉर’ या छद्म युद्ध से लड़ने के लिए ही किया जाता है।  

भारत की थलसेना के पास भी स्पेशल ऑपरेशन के लिए PARA SF यूनिट है। इसके अतिरिक्त नौसेना, वायुसेना और यहाँ तक की केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल के पास भी क्रमशः MARCOS, GARUD और COBRA नामक दस्ते हैं जो कठिन परिस्थितियों शत्रु के क्षेत्र में विशेष लक्ष्य को बर्बाद करने का कार्य करते हैं।

लेकिन हमारे यहाँ समस्या यह है कि हमने स्पेशल फ़ोर्स की आधिकारिक परिभाषा नहीं गढ़ी है जिसके कारण भ्रम की स्थिति उत्पन्न होती है। ऐसे में स्पेशल फ़ोर्स डिवीज़न- जिसे मेजर जनरल रैंक का अधिकारी कमांड करेगा- में किस विशेष बल के जवानों को रखा जाएगा यह तय करना पड़ेगा।  

भारतीय थलसेना की PARA SF का अंग रहे लेफ्टिनेंट जनरल प्रकाश कटोच (सेवानिवृत्त) अपनी पुस्तक India’s Special Forces: History and Future of Special Forces में लिखते हैं कि पहले तो यह निर्धारित करना पड़ेगा कि किस बल की यूनिट को स्पेशल फ़ोर्स कहा जाएगा क्योंकि किसी भी देश की स्पेशल फ़ोर्स उस देश की विदेश नीति निर्धारित करने का कारगर हथियार होता है।

इसका हालिया उदाहरण हमें तब देखने को मिला था जब भारत ने म्यांमार और पाकिस्तान में ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ की थी। यह सर्जिकल स्ट्राइक केवल भारतीय सशस्त्र सेनाओं (आर्मी, नेवी, एयर फ़ोर्स) के जवान ही कर सकते थे क्योंकि भारत सरकार किसी दूसरे देश में जाकर मिलिट्री ऑपरेशन करने का अधिकार सशस्त्र सेनाओं को ही प्रदान करती है।

ऐसे में हम यह नहीं कह सकते कि विशेष रूप से प्रशिक्षित COBRA कमांडो स्पेशल फ़ोर्स की श्रेणी में आकर विदेश में सर्जिकल स्ट्राइक कर सकते हैं। स्पेशल फ़ोर्स के महत्व को सबसे पहले अमेरिका ने समझा था। आज अमेरिका के पास न केवल संयुक्त स्पेशल ऑपरेशन कमान है बल्कि उन्होंने छद्म युद्ध के अध्ययन के लिए एक अलग जॉइंट स्पेशल ऑपरेशन यूनिवर्सिटी तक स्थापित कर ली है।

यह बड़ी विचित्र विडंबना है कि भारत में ‘इंडियन नेशनल डिफेंस यूनिवर्सिटी’ का बिल 2016 से सरकार की वेबसाइट पर जनता के विचारार्थ पड़ा हुआ है जिसपर 1,000 से अधिक विचार आ भी चुके हैं लेकिन सरकार के पास समय नहीं है कि इस बिल को संसद तक ले जाए।

आज के दौर में स्पेशल फ़ोर्स की अहमियत इतनी अधिक है कि सामरिक विशेषज्ञ भरत कर्नाड ने लिखा है कि यदि भारत को दक्षिण एशिया में अपना सामरिक प्रभुत्व स्थापित करना है तो हमारे पास तीन मूलभूत सामरिक क्षमताओं का होना अनिवार्य है: परमाणु क्षमता युक्त इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल, नेटवर्क सेंट्रिक युद्धक प्रणाली और स्पेशल ऑपरेशन कमांड।

इस दृष्टि से यदि भारत एक वर्ष के भीतर संयुक्त स्पेशल ऑपरेशन डिवीज़न बना लेता है तो हमारे पास पाकिस्तान से दीर्घकालिक छद्म युद्ध लड़ने के लिए डिवीज़न स्तर का एक संयुक्त विशेष युद्धक बल होगा।

संयुक्त साइबर एजेंसी बनाने की आवश्यकता इसलिए पड़ी क्योंकि भविष्य में सशस्त्र सेनाओं के सभी विभाग आपस में साइबर नेटवर्क से जुड़ कर युद्ध लड़ेंगे। नेटवर्क सेंट्रिक वॉरफेयर में समुद्र, थल और नभ में स्थित उपकरण आपस में एक ही नेटवर्क से जुड़े होंगे। यदि इस नेटवर्क को शत्रु भेद देगा तो हम युद्ध हारने की स्थिति में होंगे।

यही नहीं युद्ध और शांतिकाल में सशस्त्र सेनाओं के तीनों अंग एक साथ देश के संसाधन साझा करते हैं चाहे वह बिजली हो या वित्तीय लेनदेन। ऐसे में एक संयुक्त एजेंसी होना आवश्यक है जो किसी भी परिस्थिति में सेनाओं के तीनों अंगों के बीच तारतम्य टूटने न दे।

सेनाएँ गोपनीय सूचनाओं का आदान प्रदान भी करती हैं जिनपर चीन की विशेष नज़र है। इंटेलिजेंस एजेंसियों द्वारा साझा की जा रही सूचनाएँ साइबर डोमेन में सुरक्षित नहीं हैं। मई 2017 में Wanna Cry नामक रैन्समवेयर ने विश्व भर में उत्पात मचाया था। अक्टूबर 2016 में साइबर अटैक से भारत के लगभग 30 लाख डेबिट कार्ड प्रभावित हुए थे।

आतंकवाद से लड़ने के लिए भी संयुक्त साइबर एजेंसी की आवश्यकता है। विभिन्न आतंकी संगठन युवाओं को बरगलाने के लिए साइबर स्पेस का उपयोग करते हैं। मुंबई में 2008 में हुए हमले में voice over internet प्रोटोकॉल का प्रयोग किया गया था। ऐसे अनेक साइबर खतरे हैं जिनसे संयुक्त रूप से निपटने के लिए संयुक्त एजेंसी की आवश्यकता है।

इसके अतिरिक्त देश में सभी प्रकार के संगठनों की सूचनाएँ NTRO और NATGRID में संग्रहित होती हैं जो मिलिट्री इंटेलिजेंस से साझा की जाती हैं। इन सभी सूचनाओं की सुरक्षा राष्ट्रीय सुरक्षा का महत्वपूर्ण अंग है।

साइबर के अतिरिक्त स्पेस अर्थात अंतरिक्ष भी आज के समय में युद्ध का अखाड़ा बना हुआ है। जनवरी 2007 में चीन ने अपनी ही सैटेलाइट को मार गिराया था और दुनिया के सामने इसे एक दुर्घटना बताया था। वास्तव में चीन किसी सैटेलाइट को मार गिराने की अपनी क्षमता को जाँच रहा था। डीआरडीओ के अध्यक्ष वी के सारस्वत ने 2010 में भारतीय विज्ञान कांग्रेस में अपने संबोधन में कहा था कि भारत भी शत्रु के सैटेलाइट मार गिराने की तकनीक विकसित कर रहा है।

आज भारत ने स्पेस एक्सप्लोरेशन ASTROSAT से लेकर नेविगेशन सैटेलाईट IRNSS तक अंतरिक्ष में स्थापित की है। देश में पूरी संचार व्यवस्था इन्हीं सैटेलाइट की सुरक्षा पर टिकी है। थलसेना, वायुसेना और नौसेना के उपकरण इस संचार व्यवस्था पर कार्य करते हैं इसलिए एक संयुक्त एजेंसी का गठन स्वागतयोग्य निर्णय है।