Thursday, October 3, 2024
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चंदा कोचर ने वीडियोकॉन को कर्ज़ दिलाने के बदले घूस की रकम अपने पति की मदद से ली: CBI

CBI को अपनी जाँच में ICICI बैंक की पूर्व सीईओ व मैंनेजिंग डायरेक्टर चंदा कोचर के ख़िलाफ़ पर्याप्त सबूत मिले हैं। ख़बरों के अनुसार सीबीआई ने जाँच के बाद इस बात को स्पष्ट किया है कि वीडियोकोन कंपनी से चंदा कोचर ने घूस की रकम अपने पति दीपक कोचर की मदद से ली है।

सीबीआई के मुताबिक बैंक के उच्च पद पर होने का गलत फ़ायदा उठाते हुए चंदा कोचर ने वीडियोकोन ग्रुप के लिए जून 2009 से अक्टूबर 2011 के बीच कुल छ: लोन को अप्रूव किया था। सीबाआई ने जाँच में यह भी पाया कि इन छ: में से एक ₹300 करोड़ का लोन वीडियोकोन इंटरनेशनल इलेक्ट्रॉनिक्स (VIEL) लिमिटेड के नाम से अप्रूव किया गया था।

सीबीआई ने अपनी जाँच में पाया कि VIEL को लोन पास करने के बदले कोचर ने घूस लिया था। 26 अगस्त 2009 को जब VIEL के नाम पर यह लोन इश्यू किया गया था, तब बैंक द्वारा लोन अप्रूव करने वाली टीम में चंदा कोचर भी शामिल थी।

यही नहीं लोन की रकम VIEL कंपनी के खाते में बैंक द्वारा 7 सितम्बर को ट्रांसफर कर दिया गया। इसके अगले ही दिन VIEL कंपनी के चेयरमैन वेनुगोपाल धूत ने दीपक कोचर के कंपनी न्यूपावर रिन्यूएबल लिमिटेड के बैंक अकाउंट में ₹64 करोड़ ट्रांसफ़र किया। इस तरह सीबीआई ने बताया कि चंदा कोचर व उनके पति ने मिलकर अपने लाभ के लिए गैर-कानूनी तरह से लोन अप्रूव कर दिया।

चंदा कोचर 2016 में फ़ोर्ब्स पत्रिका की ‘एशिया की 10 सबसे शक्तिशाली बिज़नेस-वूमन’ की लिस्ट में शामिल रही थीं। उन पर आरोप है कि उन्होंने एक नई कम्पनी बना कर फर्जीवाड़ा किया। उनके पति दीपक कोचर ने वीडियोकॉन समूह के मालिक वेणुगोपाल धूत के साथ मिलकर दिसंबर 2008 में एक कंपनी बनाई थी।

बाद में इस कंपनी को दीपक कोचर के ट्रस्ट को सौंप दिया गया था। वीडियोकॉन ग्रुप को ICICI बैंक ने ₹3,250 करोड़ का लोन दिया था, जिसके कुछ महीनों बाद दीपक कोचर के हाथ में नई कम्पनी की कमान दे दी गई थी। इन लोन की कुल 86% राशि (₹2,810 करोड़) जमा नहीं कराई गई, जिसे NPA घोषित कर दिया गया। CBI इस मामले की जाँच कर रही है।

आजीविका में विविधता के जरिए तेज़ी से घट रही है गरीबी : ब्रूकिंग्‍स इंस्‍टीट्यूशन की रिपोर्ट

हाल के वर्षों में भारत में गरीबी घटने की गति तेज हो गई है। वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक 2018 के साथ-साथ ब्रूकिंग्‍स इंस्‍टीट्यूशन द्वारा प्रकाशित एक नोट से यह तथ्‍य उभर कर सामने आया है।

दीनदयाल अंत्‍योदय योजना – राष्‍ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (डीएवाई – एनआरएलएम) का लक्ष्‍य गरीबों के टिकाऊ सामुदायिक संस्‍थानों के निर्माण के जरिए ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी कम करना है। इसके तहत लगभग 9 करोड़ परिवारों को स्‍वयं सहायता समूहों (एसएचजी) में संगठित करना है और उन्‍हें टिकाऊ आजीविका के अवसरों से जोड़ना है।

इसके लिए इनके कौशल को बढ़ाया जाएगा और इसके साथ ही वित्‍त के औपचारिक स्रोतों, पात्रता और सार्वजनिक एवं निजी दोनों ही क्षेत्रों की सेवाओं तक उनकी पहुँच सुनिश्चित की जाएगी। यह परिकल्‍पना की गई है कि ग्रामीण क्षेत्रों की गरीब महिलाओं के गहन एवं सतत क्षमता निर्माण से उनके सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक सशक्तिकरण के साथ-साथ विकास भी सुनिश्चित होगा।

अप्रैल 2014-नवम्‍बर 2018 के दौरान प्रगति

महत्‍वपूर्ण क्षेत्रों में इस मिशन की उपलब्धियों का उल्‍लेख नीचे किया गया है :

१. मिशन फुटप्रिंट : इस अवधि के दौरान 2411 अतिरिक्‍त ब्‍लॉकों को ‘गहन’ रणनीति के दायरे में लाया गया है। इस मिशन को संचयी रूप से 29 राज्‍यों और 5 केन्‍द्र शासित प्रदेशों के 612 जिलों में फैले 5,123 ब्‍लॉकों में कार्यान्वित किया जा रहा है।

२. सामुदायिक संस्‍थानों का निर्माण :  अप्रैल 2014 और नवम्‍बर 2018 के बीच 3 करोड़ से भी अधिक ग्रामीण निर्धन महिलाओं को देश भर में 26.9 लाख स्‍वयं सहायता समूहों (एसएचजी) में संगठित किया गया है। कुल मिलाकर 5.63 करोड़ से भी अधिक महिलाओं को 49.7 लाख से ज्‍यादा एसएचजी में संगठित किया गया है। इसके अलावा, एसएचजी को 2.73 लाख से भी अधिक ग्राम स्‍तरीय महासंघों और लगभग 25,093 क्‍लस्‍टर स्‍तरीय महासंघों के रूप में संगठित किया गया है।

इसके अलावा, इन सामुदायिक संस्‍थानों को पूँजीगत सहायता के रूप में ₹5,919.71 करोड़ से भी अधिक की राशि मुहैया कराई गई है, जिनमें से लगभग 85 प्रतिशत रकम (₹5030.7 करोड़) उपर्युक्‍त अवधि के दौरान उपलब्‍ध कराई गई है।

३. वित्‍तीय समावेश : एसएचजी की बकाया ऋण राशि मार्च 2014 के ₹32,565 करोड़ से बढ़कर अक्‍टूबर 2018 में ₹76,591 करोड़ के स्‍तर पर पहुँच गई है। पिछले पांच वर्षों के दौरान एसएचजी द्वारा कुल मिलाकर ₹1.96 लाख करोड़ के बैंक ऋण से लाभ उठाया गया है। चालू वर्ष में फंसे कर्जों (एनपीए) के घटकर 2.64 प्रतिशत हो जाने के साथ ही पोर्टफोलियो की गुणवत्‍ता में भी उल्‍लेखनीय सुधार हुआ है। यह एसएचजी द्वारा समय पर ऋणों के भुगतान को बढ़ावा देने के लिए राज्‍यों द्वारा सतत रूप से किये जा रहे प्रयासों का नतीजा है।

४. दूर-दराज के क्षेत्रों में वित्‍तीय सेवाएं : इस अवधि के दौरान वित्‍तीय सेवाएँ मुहैया कराने के वैकल्पिक मॉडलों को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए गए हैं। लगभग 3,050 एसएचजी सदस्‍यों को बैंकिंग कॉरस्‍पोंडेंट एजेंटों (बीसीए) के रूप में तैनात किया गया है, ताकि अंतिम छोर तक वित्‍तीय सेवाएं मुहैया कराई जा सकें। इनमें जमा, ऋण, धन प्रेषण, वृद्धावस्‍था, पेंशन एवं छात्रवृत्तियों का वितरण, मनरेगा से संबंधित पारिश्रमिक का भुगतान एवं बीमा और पेंशन योजनाओं के तहत नामांकन शामिल हैं। नवम्‍बर 2018 तक ₹185 करोड़ के 16 लाख से भी अधिक लेन-देन पूरे किये गये हैं।

५. महिला किसान सशक्तिकरण परियोजना एवं मूल्‍य श्रृंखला से जुड़ी पहल : महिला किसानों की आमदनी बढ़ाने और कच्‍चे माल से संबंधित लागतों एवं जोखिमों में कमी करने वाले कृषि-पारिस्थितिकी तौर-तरीकों को बढ़ावा देने के लिए इस मिशन के तहत महिला किसान सशक्तिकरण परियोजना (एमकेएसपी) को कार्यान्वित किया जा रहा है। अप्रैल 2014 से लेकर नवम्‍बर 2018 तक की अवधि के दौरान लगभग 3 लाख और महिला किसानों को एमकेएसपी के दायरे में लाया गया है। इसके साथ ही इस परियोजना के तहत अब तक 35.92 लाख महिला किसानों को लाया जा चुका है।

वित्‍त वर्ष 2015-16 से लेकर अब तक ‘डीएवाई-एनआरएलएम’ ने मूल्‍य श्रृंखला (वैल्‍यू चेन) से संबंधित उपलब्धियाँ हासिल करने की दिशा में उल्‍लेखनीय प्रयास किये हैं, ताकि बाज़ार संपर्कों (लिंकेज) का विस्‍तार किया जा सके। इसका मुख्‍य उद्देश्‍य संपूर्ण बिजनेस मॉडल विकसित करना है, जिससे कि प्राथमिक उत्‍पादकों को उत्‍पादक संगठनों के सृजन से लेकर विपणन संबंधी संपर्कों के निर्माण तक के समस्‍त सॉल्‍यूशन सुलभ कराए जा सकें।

साभार: पत्र सूचना कार्यालय

मोदी सरकार की वो योजनाएँ जिन्होंने बदल दी ग्रामीण महिलाओं की ज़िंदगियाँ

हम सुनते आए हैं कि भारत गाँवों का देश है, और यह भी सच है कि गाँवों का जीवन तमाम चुनौतियों से भरा होता है। ग्रामीण समस्याओं को देखना और बात है, और उसका निदान करना और। अगर पिछली सरकार की बात करें तो ग्रामीण जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने का प्रयास केवल चुनावी घोषणा-पत्र तक ही सिमटता दिखा। कहना ग़लत नहीं होगा कि वर्षों तक सत्ता पर क़ायम रहने वाली कॉन्ग्रेस सरकार ने ग्रामीणों की समस्याओं को गंभीरता से कभी लिया ही नहीं जिसके लिए जनता उन्हें चुनती आई थी।

वहीं वर्तमान सरकार की उपलब्धियों में स्वच्छ भारत अभियान और उज्ज्वला योजना जैसी तमाम ऐसी योजनाएँ हैं जिन्होंने गाँवो की तस्वीर बदल दी, उसमें भी ख़ास कर महिलाओं के स्वाभिमान और गरिमा की रक्षा करने का जो काम इन योजनाओं ने किया, उसके परिणाम दूरगामी हैं।

केंद्र सरकार ने गाँवों के जीवन को सुगम और बेहतर बनाने की दिशा में कई सकारात्मक क़दम उठाए हैं जिसमें न केवल पुरुष ही शामिल हैं बल्कि ग्रामीण महिलाओं को भी राहत पहुँचाना शामिल है। इस लेख में हम आपको ग्रामीण महिलाओं की बदलती ज़िदगियों के बारे में विस्तार से बताएँगे।

गाँव की पुरानी तस्वीर का अगर हम क्षण भर के लिए ख़्याल करें तो उसमें चूल्हे से जूझती महिलाओं की एक तस्वीर उभरकर सामने आती है। आपने भी देखा होगा कि ग्रामीण महिलाएँ जब खाना बनाने बैठती हैं तो चूल्हे को जलाने से लेकर जब तक खाना बनकर तैयार न हो जाए तब तक उन्हें कड़ी मशक्क़त करनी पड़ती है।

आपको जानकर हैरानी होगी कि खाना बनाने के दौरान चूल्हे से उठने वाला इस विषैले धुएँ का प्रभाव तंबाकू से भी अधिक घातक होता है। इसके अलावा महिलाओं को चूल्हा जलाने के लिए न जाने कितनी मेहनत करनी पड़ती थी।

ग्रामीण महिलाओं को उज्ज्वला योजना ने दी धुएँ से आज़ादी

गाँव के दूर-दराज़ इलाक़ों में घूम-घूमकर लकड़ी चुनना, कोयला जलाना और गोबर से उपले बनाकर ईंधन के रूप में इस्तेमाल करना, ये सभी वो चुनौतियाँ हैं जिनसे ग्रामीण महिलाओं का सामना रोज़ाना होता है। इसके अलावा बरसात के समय तो यह समस्या और भी विकराल रूप ले लेती है क्योंकि गीले ईंधन से खाना बनाना किसी चुनौती से कम नहीं होता।

बता दें कि चूल्हे के धुएँ से एक तरफ तो फेफड़ों को नुक़सान पहुँचता है जिससे टीबी यानी तपेदिक की बीमारी का ख़तरा रहता है और वहीं दूसरी तरफ महिलाओं की आँखों को भी कई तरह की समस्याओं का ख़तरा बना रहता है, जिसमें मोतियाबिंद जैसी बीमारी के चलते दिखाई देना तक बंद हो सकता है। धुएँ का सीधा संबंध दिल संबंधी बीमारियों से होता है जिसका शिकार सबसे अधिक महिलाएँ ही होती हैं।

ऐसे में केंद्र सरकार की ‘उज्ज्वला योजना’ उन महिलाओं के लिए वरदान साबित हुई जिन्हें रोज़ाना खाना बनाने के दौरान धुएँ से जूझना पड़ता था। उज्ज्वला योजना के तहत मुफ़्त गैस कनेक्शन ग्रामीण महिलाओं के लिए किसी वरदान से कम नहीं। पिछली सरकार 55 फ़ीसदी लक्ष्य ही पूरा कर सकी जबकि मोदी सरकार ने 90 फ़ीसदी लक्ष्य प्राप्ति कर लगभग हर ग्रामीण महिला को चूल्हें के धुएँ से आज़ादी दिला दी। ध्यान देने वाली बात यह है कि जो आँकड़ा 2014 से पहले का है वो कॉन्ग्रेस के वर्षों तक एकछत्र राज का है और 90 फ़ीसदी का आँकड़ा वर्तमान सरकार का है जोकि बीजेपी सरकार के महज़ साढ़े चार साल के शासनकाल का है।

इस योजना के ज़रिए अब शुद्ध ईंधन के प्रयोग से महिलाओं के स्वास्थ्य में भी सुधार हुआ है। साथ ही, छोटे बच्चों के स्वास्थ्य पर भी उचित प्रभाव पड़ा है। बता दें कि मई 2016 में शुरू की गई प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत गरीब परिवार की महिलाओं को मुफ़्त रसोई गैस (LPG) कनेक्शन मुहैया कराने के लिए मंत्रिमंडल ने ₹8,000 करोड़ की योजना को मंज़ूरी दी।

प्रधानमंत्री मातृत्व वंदना योजना ने रखा गर्भवती महिलाओं का ख़्याल

महिलाओं के हालात बदलने में केवल एक यही योजना नहीं है बल्कि ऐसी अनेकों योजनाएँ हैं जिन्होंने उनके रहन-सहन में बेहतर योगदान दिया है। ऐसी ही एक और योजना है ‘प्रधानमंत्री मातृत्व वंदना योजना‘ जिसके तहत गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को ₹6,000 की आर्थिक सहायता दिए जाने का प्रावधान है।

इस योजना का उद्देश्य गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य में सुधार करना है और नकदी प्रोत्साहन के ज़रिए उनके जीवन को स्वावलंबी बनाना है। इस योजना के लाभ से माँ और बच्चे दोनों को पोषण प्रदान किया जाता है, जिससे उन्हें कुपोषण से बचाया जा सके। जनवरी 2017 में इस योजना के तहत मोदी सरकार ने कुल बजट ₹12,661 करोड़ तय किया जिसमें से ₹7,932 करोड़ केंद्र सरकार द्वारा वहन किए जाना तय हुआ, बाक़ी राशि संबंधित राज्यों द्वारा वहन की जाएगी। इस योजना की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि योजना की राशि सीधे बैंक में भेजी जाती है जिससे इसके दुरुपयोग न किया जा सके।

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ योजना से बेटियों को मिला आधार

जनवरी 2015 में ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ‘ योजना का भी वर्तमान समय में काफ़ी योगदान है। समाज में बेटी का स्थान बेटे से कमतर ही आँका जाता है। प्रधानमंत्री मोदी की अगुआई में गठित सरकार ने बेटियों के मान को न सिर्फ़ बढ़ाने का काम किया है बल्कि उनके चहुमुखी विकास के लिए ऐसी योजनाओं का प्रावधान भी किया जिससे वो किसी पर बोझ न बनें और अपना विकास स्वयं करने में सक्षम हो सकें। जिस घर में बेटी का जन्म होता है उस घर में उसकी पढ़ाई और विवाह की चिंता घर के लोगों की चिंता का कारण बनी होती है। इसके समाधान के लिए बेटियों की शिक्षा का ज़िम्मा सरकार ने ख़ुद अपने कंधों पर लिया।

इस योजना को लागू करने के पीछे सबसे बड़ा मक़सद बालिका लिंगानुपात की गिरावट को कम करना है। इसके अलावा परिवार को बालिकाओं के प्रति किए जा रहे भेदभाव को कम करना और उन्हें जागरूक करना भी शामिल है ताकि समाज में बालिकाओं को भी अपने विकास का पूरा अधिकार मिल सके। इस योजना के तहत बेटियों को शिक्षा और विवाह के लिए आर्थिक सहायता देने का प्रावधान किया गया है। इस योजना को लागू कर सरकार ने देश की बेटियों के गौरव को बढ़ाने का काम किया है।

महिला ई-हाट ने दिलाई ग्रामीण महिलाओं के हुनर को पहचान

आज भी देश का किसान भारतीय अर्थव्यवस्था की एक मज़बूत रीढ़ है, और इस रीढ़ के साथ क़दम से क़दम मिलाकर चलने वाली उन महिलाओं को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता जो हाथ के हुनर को भी जानती हैं। इन ग्रामीण महिलाओं के हाथ को हुनर को पहचान दी प्रधानमंत्री द्वारा चलाए जा रही एक ‘लाभकारी प्रशिक्षण और रोज़गार कार्यक्रम’ ने, जिसके माध्यम से महिलाओं को स्व-रोज़गार तलाशने में मदद मिली और उन्हें उद्यमी बनने में सक्षम बनाया। इस कार्यक्रम में हर वो कार्य शामिल किया गया जो महिलाएँ अक्सर घरों में किया करती थीं। इसमें, अचार बनाना, पापड़ बनाना, सिलाई, कढ़ाई, ज़री, हथकरघा, हस्तशिल्प जैसे तमाम लघु उद्योग शामिल हैं।

महिलाओं को इस तरह का कौशल प्रदान करना और सरकार द्वारा इसे प्रशिक्षण के दायरे में लाना एक बेहद सुखद पहल है, इससे ग्रामीण स्तर की महिलाओं को भी अपना जीवन सँवारने में मदद मिलेगी। महिलाओं की बेहतरी के लिए और उनके हुनर को जन-जन तक पहुँचाने के लिए ‘महिला ई-हाट’ भी वर्तमान सरकार की ही देन है। इस हाट का उद्देश्य है कि ग्रामीण महिलाओं के हस्तशिल्प को विश्व स्तर पर पहचान मिल सके और उनके लिए कमाई के एक बेहतर विकल्प के रूप में उभर सके।  

निष्कर्ष के तौर पर यह मानने में कोई गुरेज़ नहीं होनी चाहिए कि वर्तमान सरकार ने देश के हर वर्ग को बराबर और एक स्तर पर लाने का पूरा प्रयास किया है। इस प्रयास में महिलाओं की बेहतरी के लिए उटाए गए क़दम भी शामिल हैं। तमाम आलोचनाओं का सामना करने के बावजूद वर्तमान सरकार अपने लक्ष्यों को पाने में न सिर्फ़ सफल रही बल्कि देश को तरक्की की राह पर भी लेकर आई।

NRC की समयसीमा में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा: SC

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) की अंतिम रिपोर्ट हर हाल में 31 जुलाई 2019 तक पूरा करने के लिए कहा है। सर्वोच्च न्यायालय ने इसके लिए एनआरसी के को-ऑर्डिनेटर, असम सरकार और चुनाव आयोग के साथ बैठकर इस मामले में योजना बनाने के लिए कहा है।

कोर्ट ने इस बात पर ज़ोर दिया कि अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव की वजह से एनआरसी का काम किसी तरह से प्रभावित नहीं होना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय के जज ने यह भी कहा कि इसके लिए असम के चीफ सेक्रेटरी, राज्य के चुनाव आयुक्त व एनआरसी से जुड़े अधिकारी आपस में बैठकर तय करें कि लोकसभा चुनाव व एनआरसी दोनों से ही जुड़े काम को सरकारी कर्मचारी बेहतर तरह से कैसे कर पाएँगे।

कोर्ट में बहस के दौरान एनआरसी के अधिकारियों ने बताया कि 31 दिसंबर 2018 तक एनआरसी लिस्ट में कुल 36.2 लोगों ने अपना नाम जुड़वाने के लिए आवेदन किया था। 30 जुलाई को एनआरसी ने एक रिपोर्ट जारी किया था, जिसमें बताया गया था कि 3.29 करोड़ लोगों के आवेदन में से 2.9 करोड़ लोगों का नाम इस लिस्ट में जोड़ा गया था।

इस मामले में सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि असम की तरफ़ से कोर्ट में पेश होने वाले सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता एक सप्ताह के भीतर सभी पदाधिकारियों के साथ मीटिंग करें। इस मीटिंग की रिपोर्ट को अगले बार सुनवाई के दौरान रखने के लिए कोर्ट ने कहा है। कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के लिए अगली तारीख 5 फ़रवरी को तय की है।

लोकसभा चुनाव : MOTN सर्वे के मुताबिक उत्तर भारत में NDA के लिए UPA नहीं होगी बड़ी चुनौती

लोकसभा चुनाव से ठीक कुछ महीने पहले इंडिया टुडे-कार्वी इनसाइट्स ने मिलकर मूड ऑफ द नेशन (MOTN) के नाम से देश भर में एक सर्वे किया है। इस सर्वे के मुताबिक लोकसभा चुनाव 2019 में देश के उत्तरी हिस्से में भाजपा व उनके सहयोगी दलों के लिए को संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) से बड़ी चुनौती नहीं मिलेगी।

इस रिपोर्ट की मानें तो उत्तर भारत के पाँच राज्यों – दिल्ली, हरियाणा, पंजाब , उत्तर प्रदेश और राजस्थान – में बीजेपी को कॉन्ग्रेस से ज़्यादा बड़ी चुनौती अन्य दलों से मिलेगी। इंडिया टुडे ने इस सर्वे के ज़रिए देश के लोगों के मिज़ाज जानने का प्रयास किया। इस सर्वे के ज़रिए यह भी जानने का प्रयास किया गया कि लोकसभा चुनाव में जनता किन मुद्दों के आधार पर वोट करेगी।

इसके साथ ही इस सर्वे में यह भी जानने का प्रयास किया गया कि, क्या जनता यूपीए, एनडीए के आलावा तीसरे विकल्प को मौका देगी? इसी तरह चुनाव से जुड़े कई सवालों के आधार पर कराए गए इस सर्वे में जो परिणाम आए हैं वो यूपीए समेत कई दलों के लिए चौकाने वाली है।

सर्वे के मुताबिक उत्तर भारत के पाँच राज्यों में चुनाव के नतीजे एनडीए के समर्थन में ही आने वाली है। सर्वे के मुताबिक इन पाँच राज्यों – दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और राजस्थान- में एनडीए को 40% तक वोट मिल सकते हैं, जबकि यूपीए को महज 23% वोट मिलने की संभावना है। हालाँकि, इस रिपोर्ट के मुताबिक अन्य दल इन राज्यों में यूपीए से ज्यादा भाजपा व उनके सहयोगी दलों के लिए चुनौती पेश कर सकते हैं।

सर्वे की मानें तो एनडीए व यूपीए के अलावा इन राज्यों में अन्य दलों को 37% वोट मिलने की संभावना है।  

पाँच राज्यों में इतनी सीटें भाजपा को मिल सकती है

यदि उत्तर भारत के इन पाँचों राज्यों में सीटों के लिहाज़ से देखें तो एनडीए यहाँ 66 सीटों पर चुनाव जीत सकती है, जबकि अन्य दलों को 65 सीटें मिल सकती है। यूपीए की बात करें तो सर्वे के मुताबिक यूपीए को यहाँ से 20 सीटें मिल सकती है। जानकारी के लिए आपको बता दें कि इन पाँच राज्यों में लोकसभा की कुल 135 सीटें हैं। सर्वे में इस बात की भी चर्चा है कि यदि सपा व बसपा यूपीए का हिस्सा होता तो एनडीए को नुकसान होता।

*दिल्ली राज्य नहीं है, सर्वे में लिखने की सहजता के लिए उसे ‘राज्यों’ में शामिल किया गया है।

मजबूरी का नया नाम – प्रियंका गाँधी

विपक्ष में आजकल त्योहारों का मौसम देखने को मिल रहा है। इसी मौसम के बीच पहली ख़ुशख़बरी ये रही कि भगवंत मान ने देशहित के लिए दारु छोड़ने की भीष्म प्रतिज्ञा कर डाली। जबकि जानकारों का कहना है कि भगवंत मान यह घोषणा करने से पहले ही 2 पैग लगा चुके थे। देशहित में अगला ऐतिहासिक त्याग इसके बाद अगर वो कुछ कर सकें तो कृपया कर उन्हें राजनीति से संन्यास ले लेना चाहिए।

इसके बाद त्यौहार मनाया लोकतंत्र के लेटेस्ट प्रवक्ता, नक़ाबपोश और ‘टेक एक्सपर्ट’ सैयद शूजा ने। सैयद शूजा की मानें तो वो भारतीय मूल के अमरीकी एक्सपर्ट हैं, जिन्होंने EVM को हैक कर के दिखाने का दावा कर डाला था।

लोकतंत्र ख़तरे के निशान से ऊपर रहे या नीचे जाए, लेकिन इस वाकए ने देश के नौजवानों को एक नई दिशा दे डाली है। मने, इंजीनियरिंग कर के घर में पूरा दिन PUBG खेल रहे युवा, जो घर पर अपने टैलेंट की कद्र ना होने से परेशान भी है और पंखा-टीवी ठीक करने के काम आता रहा है, उसने भी मन बना लिया है कि ‘One fine day’ वो भी अब अमेरिका जाकर, नक़ाब पहन कर लाइव विडियो प्रसारण के ज़रिए देश-विदेशों में ये कह कर लहरिया लूटेगा कि वो भी टेक एक्सपर्ट है, क्योंकि विदेश में बैठा एक नौजवान ऐसा कर के बहुत जलवा काट चुका है। उसके प्रवचन कोई सुने न सुने, कपिल सिब्बल और नेशनल हेराल्ड के पत्रकार गिरोह तो जा कर सुन ही लेंगे।

हमारे देश में अपनी विश्वसनीयता क़ायम करने का ये सबसे आसान तरीका बन चुका है कि ख़ुद को किसी तरह से विदेश से सम्बंधित बताकर जो मन करे वो ज्ञान उड़ेल दिया जाए। कोई जवान लड़का जब लड़की देखने जाए तो जब तक लड़की की मम्मी इंस्टाग्राम पर उसकी होनोलूलू में खिंचाई गई तस्वीर नहीं देख लेती, तब तक उसे यकीन नहीं हो पाता है कि लड़का वाकई में क़ाबिल है।

सैयद शूजा की रामलीला ख़त्म हुई ही थी कि कॉन्ग्रेस ने भी लगे हाथ देश की राजनीति में एक और ऐतिहासिक निर्णय झोंक दिया। वरिष्ठ पत्रकार शेखर गुप्ता की मानें तो प्रियंका गाँधी ने पूर्वांचल में पार्टी कमान संभालकर वर्षों से चली आ रही परिवारवाद कि राजनीति में नई मिसाल क़ायम कर डाली है।

अंधभक्त और भाजपा चाहे कितना भी विरोध करें, लेकिन प्रियंका गाँधी हर मायने में ज़मीन से जुड़ी हुई नेता हैं और उनमें प्रतिभा भी कूट-कूट कर भरी हुई है। सबसे बड़ी प्रतिभा उनकी जिसे ख़ोज निकालने में गोदी मीडिया कल से नाकाम रहा है, वो ये है कि दुनिया में वो ऐसी इकलौती महिला हैं जो जीन्स पहनते ही वाड्रा, और साड़ी पहनते ही गाँधी बन जाने की विलक्षण क्षमता रखती हैं, विशेषज्ञों का कहना है कि बस इस मामले में वो इंदिरा गाँधी से एकदम अलग हैं। प्रियंका गाँधी की सबसे बड़ी खूबी है कि वो ‘ऑड डेज़’ पर गाँधी और ‘इवन डेज़’ पर वाड्रा बनकर रह सकती हैं। यानी इस तरह से ऑड-इवन का फ़ॉर्मूला अब सिर्फ सर केजरीवाल ही नहीं बल्कि कॉन्ग्रेस ने भी इजाद कर डाला है।

ये वही मीडिया गिरोहों का समूह है, जो प्रियंका गाँधी के आज तक के उनके समाज के लिए किए योगदान, उनके प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से किए गए राजनीतिक कार्य को गिनाने के बजाए उनके ‘लुक’ की तुलना इंदिरा गाँधी से करने में लगा है। बेहद सफाई से यह गिरोह कल से यह बताकर पाठकों का मनोरंजन कर रहा है कि प्रियंका गाँधी अपने नाश्ते और डिनर में टिंडे नहीं बल्कि दाल-मखनी और मलाई कोफ़्ता खा रही हैं।

एक ओर जहाँ कॉन्ग्रेस बिना किसी पूर्व अनुभव के प्रियंका गाँधी को राजनीति में झोंककर ये साबित कर चुकी है कि राहुल गाँधी से ना हो पाएगा, वहीं पत्रकारों का गिरोह इस मशक्कत में जुटा है कि प्रियंका गाँधी चलती भी अपनी दादी की ही तरह हैं और बोलती भी अपनी दादी की तरह हैं। स्पष्टरूप से यह गिरोह जानता है कि कॉन्ग्रेस की इस नई सनसनी के पास ऐसा कुछ है ही नहीं, जिस पर वाकई में वह चर्चा और ‘विशेष चर्चा’ बिठा सकें।

इस देश का वोटर कितना खुश होता अगर कॉन्ग्रेस अपने वंशवाद की तलब को किनारे कर, एक ऐसे चेहरे को लेकर आती जिसमें जनता को एक भविष्य का नेता नज़र आता, जो उनकी अधिकारों को लेकर लड़ चुका हो, जो समाजवाद और लोकतंत्र के ढाँचे के लिए प्रतिबद्द रहा हो।

विपक्ष की सबसे बड़ी हार यही है कि वो इस देश में नेता नहीं बल्कि अपने वंश को झोंकना चाहता है, इसी जल्दबाज़ी में वो प्रधानमंत्री का चेहरा लेकर नहीं बल्कि नरेंद्र मोदी को हटाने की तीव्र कुंठा लेकर जनता के सामने आता है।

वहीं प्रियंका गाँधी के राजनीति में आने से भाजपा के राष्ट्रीय प्रचारक रह चुके राहुल गाँधी के लिए नया संकट यह पैदा हो गया है कि कहीं उन्होंने बहन को वोट देने की माँग की और वोटर दे आएँ अपना वोट बहन मायावती को। कितना बड़ा संकट उनके सामने पैदा हो गया है, कभी ‘बटन’ दबा देने मात्र से वोट भाजपा को चले जाया करते थे, अब यह नई चुनौती है कि ‘बहन’ के लिए वोट माँगकर उन्हें वोट को बहन मायावती को जाने से भी रोकना होगा।

प्रियंका गाँधी का नाम चर्चा में आने के बाद कुछ महिलाओं में भी विशेष उत्साह देखा गया है, उनका मानना है कि प्रियंका गाँधी इस देश में पितृसत्ता की काट बनकर आई हैं। लोग शायद यह भूल गए हैं कि उन्हीं की माता सोनिया गाँधी पिछली 2 पंचवर्षीय के दौरान ख़ुद प्रधानमन्त्री न होकर भी देश चला चुकी हैं। जो महिला 15 पन्नों के CV वाले एक अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री को झोलाछाप डॉक्टर साबित कर चुकी हैं, क्या वह इस देश में महिला सशक्तिकरण में नहीं आता है?

क्या ये महज़ एक इत्तेफ़ाक है कि वही राजमाता जो कॉन्ग्रेस की प्राचीन दंतकथाओं में कहा करती थी कि बेटा सत्ता ज़हर है, आज उसी के दोनों बच्चे परिवार के पैत्रिक व्यवसाय यानि राजनीति में ‘वेल सेटल्ड’ हो चुके हैं। लोकतन्त्र की भाषा में तो मालूम नहीं, लेकिन गढ़वाली बोली में इसे ‘फट्याटोप’ कहते हैं।

‘बेटा बचाओ’ की नाकाम कोशिशों के बाद बालिका दिवस पर कॉन्ग्रेस ने ‘बेटी बचाओ’ अभियान पर जो पहल की है, उसकी हर तरह से तारीफ़ ही की जानी चाहिए।

देश का वोटर सिर्फ यही उम्मीद पाल सकता है कि जितना योगदान राहुल गाँधी के गालों के डिम्पल भारतीय राजनीति में कर रहे हैं प्रियंका गाँधी के डिम्पल उससे कुछ ज्यादा का ही योगदान करेंगी, आख़िरकार वो गाँधी होने के साथ ही वाड्रा भी तो हैं।

उम्मीद पर दुनिया क़ायम है, दोनों बच्चों के ‘सेटलमेंट’ के बाद अब कॉन्ग्रेस पार्टी भी किसी दिन ‘सेटल’ हो जाए, इसी उम्मीद के साथ प्रियंका को बधाई और शुभकामनाएँ।

आतंकियों को पुनर्वास के लिए सरकार मौका दे सकती है: जम्मू-कश्मीर राज्यपाल

जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने आतंकियों को मुख्यधारा में लाने को लेकर बड़ा बयान दिया है। राज्यपाल ने कहा कि प्रदेश के वो नौजवान जो आतंकियों से मिल गए हैं, उनके पुनर्वास के लिए सरकार जल्द कोई बड़ी घोषणा कर सकती है।

अपने बयान में राज्यपाल ने कहा कि कश्मीर में एक भी जान जाती है चाहे वो आतंकी ही क्यों न हो उन्हें दर्द होता है। यही वजह है कि आतंकियों को मुख्यधारा से जुड़ने का मौका दिया जाएगा। राज्यपाल मलिक ने कहा कि पुलिस अपने स्तर पर किसी भी परिस्थिति को बेहतर तरह से हैंडल करने में सक्षम है।

यही नहीं उन्होंने यह भी कहा, “रात के तीन बजे जब हमलोग बिस्तर पर लेटे होते हैं, तब सेना के जवान आतंकियों से लड़ रहे होते हैं। यही वजह है कि उन्हें जितनी भी सुविधा दी जाए वो एक तरह से कम ही है।”  उन्होंने कहा कि पिछले कुछ महीने में सुरक्षा बल के जवानों ने शानदार काम किया है।

बारामुला पहला आतंकी मुक्त जिला   

जानकारी के लिए बता दें कि कभी हिज़्बुल मुज़ाहिद्दीन का गढ़ माने जाने वाला ज़िला बारामूला अब आतंक-मुक्त घोषित कर दिया गया है। सेना और पुलिस की इस क़ामयाबी पर पूरे देश को गर्व होना चाहिए। बुधवार (जनवरी 23, 2019) को सेना के साथ मुठभेड़ में तीन आतंकियों के मारे जाने के बाद जम्मू एवं कश्मीर के डीजीपी दिलबाग सिंह ने इस बात की पुष्टि की।

पुलिस के जम्मू एवं कश्मीर में जितने भी आतंक प्रभावित ज़िले हैं, उनमे से बारामूला आतंक-मुक्त घोषित होने वाला पहला ज़िला है।आतंकियों के छिपे होने की सूचना के बाद पुलिस ने सर्च ऑपरेशन चलाया। ये आतंकी चार घंटे से वहाँ छिपे हुए थे और सुरक्षा बलों को निशाना बना रहे थे।

उन्हें पहले सरेंडर करने को कहा गया लेकिन वो फायरिंग करते रहे। मारे गए आतंकियों में से एक लश्कर का कमांडर बताया जाता है। इन आतंकियों ने पहले कई बार बारामूला पुलिस पर ग्रेनेड से हमला किया था। इन्होने कुछ दिनों पहले घाटी के तीन युवकों को भी मौत के घाट उतार दिया था।

जनता की सेवा में हाज़िर किए राहुल गाँधी ने 3 सिपाही!

गुरूवार (जनवरी 24, 2019) को राहुल गाँधी ने पीएम मोदी पर निशाना साधते हुए कहा कि नरेन्द्र मोदी ने उत्तर प्रदेश के लिए कुछ नहीं किया है। लेकिन, एक बार अगर वो और उनकी पार्टी सरकार में आ गए तो वो जनता से किए सभी वादों को पूरा करेंगे।

अपने संसदीय क्षेत्र अमेठी में लोगों को संबोधित करते हुए कई बार राहुल गाँधी ने प्रधानमंत्री मोदी को कई मुद्दों पर घेरा। कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी का कहना रहा कि पीएम को सीबीआई प्रमुख आलोक वर्मा को पद से हटाने की इतनी भी क्या जल्दी थी। राहुल ने कहा कि जब सीबीआई ने रॉफ़ेल डील पर जाँच करनी चाही तो उन्हें रात के 1:30 बजे पद से हटा दिया गया।

राहुल गाँधी ने बीजेपी पर ताना कसते हुए नोटबंदी के दौरान भीड़ में लगे गरीब लोगों की भी बात छेड़ी। उन्होंने कहा कि क्या नोटबंदी के दौरान किसी ने भी उद्योगपति को लाइन में लगा देखा है? उस भीड़ में सिर्फ़ गरीब लोग खड़े हुए थे।

इसके अलावा उन्होंने कहा कि एक बार अगर कॉन्ग्रेस सरकार वापस से सत्ता में आ गई तो केंद्र और राज्य में रुके कार्यों को दोबारा से शुरू किया जाएगा।

उन्होंने कहा कि  छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में चुनाव जीतने के बाद उन्होनें वहाँ पर विकास कार्य शुरू कर दिया है। चुनाव जीतने के बाद वो अमेठी को ‘फ़ूड पार्क’ वापस देंगे और वो सब अमेठी को मिलेगा जो पीएम मोदी और यूपी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यूपी को नहीं दिया है।

उन्होंने अमेठी की जनता से कहा कि जब भी बीजेपी कार्यकर्ता आपसे आपका वोट माँगने आएँ तो उन्हें बोलिए कि उन्होंने हमारे लिए कुछ नहीं किया है।

प्रियंका के राजनीति में कदम रखने पर राहुल ने कहा कि उन्होंने अपनी बहन प्रियंका गाँधी वाड्रा और कॉन्ग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को मुख्य सचिव इसलिए बनाया है ताकि वो अपनी पार्टी कॉन्ग्रेस तो एक बार फिर गिनती में लेकर आ सकें।

राहुल ने कहा कि उन्होंने प्रियंका और ज्योतिरादित्य को यूपी में सरकार बनाने के लिए कुछ विशेष कार्य दिए हैं। उनके अनुसार अब जनता के पास देश में तीन सिपाही हैं जो जनता के लिए कार्य कर रहे हैं। साथ ही राहुल ने बताया कि उन्होंने प्रियंका गाँधी से कहा है कि वो मुख्य सचिव बनने के बाद जनता के बीच आकर उनसे मिलेंगी।

जज साहब डर गए क्या? आख़िर उंगली उठते ही भागकर किसका भला कर रहे हैं आप?

जस्टिस सीकरी ने ख़ुद को उस पीठ से अलग कर लिया है जो नागेश्वर राव को CBI डायरेक्टर बनाए जाने के ख़िलाफ़ दायर की गई याचिका पर सुनवाई करने वाली थी। अभी कुछ दिनों पहले ही सरकार ने Commonwealth Secretariat Arbitral Tribunal (CSAT) के लिए जस्टिस सीकरी का नाम तय किया था। इसके बाद कई नेताओं और पत्रकारों ने हंगामा मचा दिया। उनका तर्क था कि जस्टिस सीकरी ने तत्कालीन CBI डायरेक्टर आलोक वर्मा को हटाने के लिए अपना निर्णायक वोट दिया था, इसीलिए सरकार उन्हें सेवानिवृत्ति के बाद पद देकर अपना ‘एहसान’ उतार रही है। इस शोर-शराबे के बाद जस्टिस सीकरी को ये पद ठुकराना पड़ा

भारत के संवैधानिक संस्थाओं पर राजनैतिक हमले होते रहे हैं। उन पर तरह-तरह के आरोप भी लगाए जाते रहे हैं, हो सकता है कि उनमे से कुछ सच भी हो। लेकिन यह पहला ऐसा मौका है जब एक-एक कर के नौकरशाही और न्यायपालिका में कार्यरत बड़े अधिकारियों पर व्यक्तिगत लांछन लगा कर उनका जीना हराम किया जा रहा है। चाहे CBI डायरेक्टर हो या फिर चीफ़ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI)- इन महत्वपूर्ण पद पर बैठे लोगों तक को भी नहीं बख़्शा गया। नेताओं द्वारा एक-दूसरे पर व्यक्तिगत लांछन लगाने का पुराना इतिहास रहा है, लेकिन आज से पहले शायद ही ऐसा हुआ हो जब अधिकारियों, जजों, सेना प्रमुख तक को राजनीतिक बयानबाज़ी में घसीट दिया गया हो।

क्या कोर्ट के हर निर्णय पर जजों की विश्वसनीयता तय की जाएगी

पूर्व CJI दीपक मिश्रा को तब निशाना बनाया गया, जब वो अपने कार्यकाल के अंतिम चरण में थे। उन पर महाभियोग लाने की तैयारी की गई। बिना किसी सबूत के उन पर तरह-तरह के आरोप लगाए गए। भारत के इतिहास में यह पहला ऐसा मौक़ा था जब किसी CJI के महाभियोग को लेकर राजनीति चमकाने की कोशिश की गई। कई लोगों का मानना था कि राम मंदिर जैसे महत्वपूर्ण मामले को प्रभावित करने के लिए विपक्षी पार्टियों ने ये खेल खेला था। CJI पर कई व्यक्तिगत आरोप लगाए गए और महाभियोग जैसे संवेदनशील मुद्दे को राजनैतिक हथियार बना दिया गया।

जस्टिस मिश्रा ने जाते-जाते आधार, धरा 377 सहित कई लैंडमार्क फ़ैसले दिए, जिसके बाद लिबरल गैंग का उनके प्रति गुस्सा कम हुआ। यहाँ सवाल यह उठता है कि क्या अब न्यायपालिका विपक्षी नेताओं के हिसाब से नहीं चलेगी तो क्या जजों का व्यक्तिगत चरित्र हनन किया जाएगा? क्या हर एक चीज को पब्लिक मुद्दा बना कर जजों पर दबाव बनाया जाएगा? ऐसे माहौल में न्यायपालिका अगर अपना हर फ़ैसला इस आधार पर लेने लगे (जिसके लिए दबाव बनाया जा रहा है) कि इस पर विपक्ष के नेताओं और चुनिंदा पत्रकारों की क्या प्रतिक्रिया होगी- तो भगवान भला करें इस देश का।

जस्टिस सीकरी नेता नहीं हैं, उनके नाम से अपनी राजनीति मत चमकाइए

जब जस्टिस सीकरी को केंद्र सरकार द्वारा कामनवेल्थ ट्रिब्यूनल में नामित किया गया, तब कॉन्ग्रेस सहित अन्य दलों और पत्रकारों के एक ख़ास गिरोह ने सरकार पर और जस्टिस सीकरी पर कई तरह के आरोप लगाए। इस से पहले यह तनिक भी न सोचा गया कि एक पीठासीन जज पर बिना किसी सबूत के, बिना किसी तर्क के- सिर्फ़ कही-सुनी बातों के आधार पर आरोप लगा कर क्या हासिल होगा? मजबूरन जस्टिस सीकरी को यह पद ठुकराना पड़ा। सेना, ब्यूरोक्रेसी और न्यायपालिका- ये तीन ऐसी संस्थाएँ हैं, जिन्हे राजनीति से जितना दूर रखा जाए, उतना अच्छा।

लेकिन यहाँ संस्थान ही नहीं, बल्कि उस संस्थान में उच्च पदों पर बैठे अधिकारियों तक को नहीं बख़्शा गया। आज (जनवरी 24, 2019) को नए CBI डायरेक्टर का चयन किया जाना है, ऐसे में ऐसी क्या जल्दी थी कि नागेश्वर राव को अंतरिम डायरेक्टर बनाए जाने के ख़िलाफ़ याचिका दाख़िल कर दी गई? क्या अब सरकार के एक-एक निर्णय को जबरन न्यायिक छनने से छाना जाएगा? जस्टिस सीकरी ने ख़ुद को इस पीठ से अलग करने का कोई कारण नहीं बताया है, लेकिन क्या ऐसी संभावना नहीं हो सकती कि सुप्रीम कोर्ट ने इस पर अपना समय जाया करने से पहले आज हाई पॉवर्ड कमिटी के निर्णय का इंतज़ार करना उचित समझा?

राजनीतिक दल जजों पर आरोप लगाते हैं। उनके कार्यकर्तागण भी वही दुहराते हैं, जो आलाकमान कहता है। जजों के हर एक फ़ैसले से नाराज़ राजनीतिक दल उनके ख़िलाफ़ पब्लिक परसेप्शन तैयार करने लगे हैं। ऐसे में यह सवाल पूछा जा सकता है कि अगर किसी दिन अदालत से बाहर जजों को घेर कर राजनितिक कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन शुरू कर दिया, तब क्या होगा? कल को ऐसी स्थिति भी बन सकती है कि हर निर्णय से पहले राजनीतिक कार्यकर्ता जज के आवास को घेर कर प्रदर्शन शुरू कर दें- जैसा अक्सर नेताओं के साथ होता है।

सेना प्रमुख से क्या दुश्मनी?

जब देश का हर एक व्यक्ति सेना पर गर्व कर रहा है, सेना द्वारा आतंकियों के ख़िलाफ़ चलाए जा रहे अभियान की प्रशंसा कर रहा है, तब सेना की कमान संभाल रहे व्यक्ति पर व्यक्तिगत हमले का क्या उद्देश्य हो सकता है? सेना प्रमुख के हर एक बयान को राजनैतिक चश्मे से देखा जा रहा है, सेना की हर एक करवाई पर सवाल खड़े करने वाले पैदा हो जा रहे हैं- क्या यह देश की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ नहीं है? सेना प्रमुख के लिए नेताओं द्वारा ‘सड़क का गुंडा‘ जैसे आपत्तिजनक शब्द प्रयोग किए गए।

दिसंबर 2016 में जब जनरल रावत को सेना प्रमुख (COAS) बनाया गया, तब उनके प्रमोशन पर सवाल खड़े किए गए। बिना उनके प्रदर्शन को देखे ऐसी आलोचना की गई। क्या ये ऐसी संवेदनशील संस्थाओं को संभाल रहे अधिकारियों का आत्मविश्वास गिराने वाला कार्य नहीं हुआ? उस से पहले जब जनरल सुहाग को COAS बनाया गया, तब भी कॉन्ग्रेस पार्टी ने सवाल खड़े किए थे। किसी ऐसे व्यक्तियों को भी राजनीतिक बयानबाज़ी में घसीटने का चलन बन गया है, जिनका राजनीति से दूर-दूर तक कोई वास्ता न रहा हो।

संस्थाओं के हौसले को नुकसान न पहुँचाएँ

किस अधिकारी की मनःस्थिति पर व्यक्तिगत आरोपों का क्या असर पड़ता है, इसकी समझ नेताओं में होनी चाहिए। नेता आरोप-प्रत्यारोप, बयानबाज़ी, लांछन- इन सब के आदी होते हैं और उनकी पूरी ज़िंदगी ही आरोप लगाने और आरोपों का बचाव करने में बीतती है। लेकिन जो न्यायालय में बैठ कर महत्वपूर्ण फ़ैसले सुना रहे हैं, जो किसी जाँच एजेंसी की कमान संभाल कर अपराधियों के ख़िलाफ़ करवाई कर रहे हैं, जिन पर पूरे देश की सीमा की सुरक्षा की जिम्मेदारों है- ऐसे लोगों पर लगातार आरोप लगा कर क्या नेतागण अपनी सीमा का उल्लंघन नहीं कर रहे?

साहब, आप अपनी राजनीति चमकाएँ, बेशक चमकाएँ, लेकिन संवैधानिक संथाओं की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी संभाल रहे अधिकारियों और सुरक्षाबलों के प्रमुखों पर आरोप लगा कर नहीं। गन्दी राजनीति एक-दूसरे पर व्यक्तिगत लांछनों की बारिश कर के चमकाएँ, जजों और सेना-प्रमुख को अपनी घटिया बयानबाज़ी में न घसीटें।

गुजरात सरकार ने सामान्य वर्ग के वंचितों को दिया तोहफ़ा, आरक्षण से हटाई घर व भूमि की शर्तें

गुजरात सरकार ने प्रदेश में रहने वाले आर्थिक रुप से कमजोर सवर्णों के लिए बड़ी घोषणा की है। सरकार ने कहा कि समान्य वर्ग के आर्थिक रुप से कमजोर लोगों को दिए जाने वाले 10% आरक्षण के लिए केवल ₹8 लाख सलाना आय ही सीमा होगी। सरकार ने कहा कि इसके अलावा घर व ज़मीन को आरक्षण के शर्तों के रूप में नहीं देखा जाएगा। सरकार के इस फ़ैसले के बाद समान्य वर्ग के आर्थिक रुप से कमजोर लोगों के लिए पहली बार किसी राज्य की सरकार ने इस तरह की बड़ी घोषणा की है।

अहमदाबाद में होने वाली कैबिनेट की मीटिंग के बाद राज्य सरकार ने बुधवार को यह फ़ैसला लिया। दरअसल केंद्र सरकार द्वारा सांसद में पारित बिल के अनुसार समान्य वर्ग के आर्थिक रुप से कमज़ोर उन लोगों को आरक्षण का लाभ मिलेगा जिनकी वार्षिक आय ₹8 लाख से कम है। इसके अलावा इस वर्ग के उन्हीं लोगों को आरक्षण का लाभ मिलेगा जिनके पास 5 एकड़ से कम जमीन व 1000 वर्ग फीट से कम में घर है। परंतु, गुजरात सरकार ने समान्य वर्ग के गरीब लोगों के लिए दिए जाने वाले आरक्षण में जमीन व घर की शर्तों को हटा दिया है।  

फरवरी से इस वर्ग के लोगों को मिलेगा आरक्षण का लाभ

जानकारी के लिए बता दें कि 1 फरवरी से सामान्य वर्ग के ग़रीबों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण मिलने लगेगा। इसके लिए अधिसूचना जारी कर दी गई है। अब 1 फरवरी के बाद से सरकारी नौकरियों में भर्ती के लिए जो भी रिक्तियाँ निकाली जाएगी, उनमे सामान्य वर्ग के ग़रीबों को 10 प्रतिशत आरक्षण मिलेगा। कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (DoPT) ने इस सम्बन्ध में आदेश जारी करते हुए कहा कि सालाना ₹8 लाख से कम आय वाले लोगों को ये सुविधा दी जाएगी। इस आदेश के क्रियान्वयन के लिए अलग से रोस्टर जारी किया जाएगा।

DoPT के संयुक्त सचिव ज्ञानेंद्र देव त्रिपाठी ने शनिवार (जनवरी 19, 2019) देर रात अधिसूचना जारी करते हुए कहा, “संसद ने संविधान में संशोधन कर ग़रीबों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया है। इसे ध्यान में रखते हुए केंद्र के सभी पदों एवं सेवाओं के लिए 1 फरवरी 2019 से अधिसूचित होने वाली सभी प्रत्यक्ष भर्तियों पर इसे लागू किया जाता है।”

विधेयक पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 13 जनवरी को हस्ताक्षर कर दिए थे। इस से पहले विधेयक को संसद के दोनों सदनों में पारित किया गया था।