Thursday, October 3, 2024
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राहुल ने हमारी ज़मीनें हड़प रखी हैं, वो यहाँ के लायक नहीं: अमेठी में किसानों का प्रदर्शन

उत्तर प्रदेश में अपने संसदीय निर्वाचन क्षेत्र अमेठी से राहुल गाँधी के लिए बुरी ख़बर आ रही है। यहाँ किसान बढ़-चढ़कर कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे हैं। साथ ही उनके ख़िलाफ़ नारेबाज़ी भी की जा रही है।

अमेठी जिले में बुधवार (जनवरी 23, 2019) को गौरीगंज इलाके में किसानों ने माँग करते हुए कहा कि या तो राजीव गाँधी महिला ट्रस्ट द्वारा किसानों की ज़मीनें वापस की जाए या फ़िर उन्हें रोज़गार प्रदान किए जाएँ।

बता दें कि राहुल गाँधी बुधवार को चुनाव प्रचार करने अमेठी पहुँचे थे। यहाँ पर संजय सिंह नाम के प्रदर्शन कर रहे एक व्यक्ति ने एएनआई को बताया, “हम लोग राहुल गाँधी से बहुत नाराज़ हैं। उन्हें इटली चले जाना चाहिए। वो यहाँ रहने के लायक नहीं हैं। राहुल ने हमारी ज़मीनें हड़प रखी हैं।”

किसानों द्वारा यह प्रदर्शन सम्राट साइकिल फैक्टरी के पास किया गया। इस फैक्टरी का उद्घाटन पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी द्वारा उस समय किया गया था, जब वो अमेठी से सांसद थे।

इस पूरे प्रकरण को समझने के लिए 80 के दशक में जाना होगा। उत्तर प्रदेश स्टेट इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड (यूपीएसआईडीसी) ने 1984 में सम्राट साइकिल फैक्टरी के लिए किसानों से 65.57 एकड़ जमीन ली थी। शर्त यह थी कि जिन किसानों की जमीन ली गई हैं, उन्हें रोज़गार दिया जाएगा। 1988-89 में जब कंपनी बंद हो गई तो किसानों का रोज़गार भी चला गया। कर्ज़ वसूलने के लिए 2014 में इसे नीलाम किया गया। नीलामी से ₹20.10 करोड़ की वसूली हुई।

इस नीलामी प्रक्रिया में खरीदी गई जमीन का भुगतान राजीव गाँधी महिला ट्रस्ट द्वारा किया गया। हालाँकि बाद में नीलामी की पूरी प्रक्रिया को यूपीएसआईडीसी द्वारा अवैध करार दिया गया। इसके बाद गौरीगंज एसडीएम कोर्ट ने सम्राट साइकिल फैक्टरी की जमीन को यूपीएसआईडीसी को लौटाने का आदेश दिया।

कोर्ट के आदेश के बावजूद और इस ज़मीन के सभी कागज़ात यूपीएसआईडीसी के पास होने पर भी इस पर राजीव गाँधी चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा कब्ज़ा हो रखा है।

जानकारी के लिए बता दें कि कुछ समय पहले केन्द्रीय मंत्री स्मृति इरानी ने भी राहुल गाँधी पर इल्ज़ाम लगाए थे कि वो फाउंडेशन के नाम पर किसानों की ज़मीनें हड़प रहे हैं।

हिन्दुओं का मजाक उड़ाने वाले कॉन्ग्रेसी ट्रोल की गिरफ़्तारी पर कमलनाथ सरकार का विलाप शुरू

अपने ब्लॉग और फ़ेसबुक पोस्ट्स के ज़रिए हिन्दुओं की भावनाओं का मज़ाक उड़ाने वाला अभिषेक मिश्रा दिल्ली पुलिस की साइबर सेल द्वारा हिरासत में ले लिया गया। इस ख़बर पर मध्य प्रदेश सरकार की प्रतिक्रिया आई है कि दिल्ली पुलिस को ‘मध्य प्रदेश के नागरिक’ को गिरफ़्तार करने से पहले वहाँ की पुलिस को जानकारी देनी चाहिए थी।

बात यह है कि अभिषेक मिश्रा कोई ‘मध्य प्रदेश का नागरिक’ भर ही नहीं है बल्कि उसके पसंदीदा कार्यों में मोदी के ख़िलाफ़ झूठी, घृणास्पद और अफ़वाहें फैलाना सर्वोपरि है। साथ ही अपनी सोशल मीडिया और फ़र्ज़ी ख़बरों की वेबसाइट से हिन्दुओं के बारे में, उनके धार्मिक चिह्नों और परम्पराओं का उपहास करने में वो बहुत आगे रहता है।

ये सारे कारण मध्य प्रदेश की कॉन्ग्रेस सरकार के लिए बिना पैसे के काम करने वाले इस कार्यकर्ता को बचाने के लिए काफ़ी हैं। यही कारण है कि वो अब ‘नागरिक’ और क़ानून कहते हुए हल्ला मचा रहे हैं। ध्यान रहे ये वही पार्टी है जो शिव भक्त, राम भक्त और जनेऊधारी बनकर अपने हिन्दू होने के लिए गोत्र तक बताते घूम रही थी।

रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली पुलिस के विशेष साइबर सेल ने अभिषेक मिश्रा को मध्य प्रदेश में उसके घर से मंगलवार की रात को गिरफ़्तार किया। अभिषेक मिश्रा एक स्वयंभू YouTuber है जो पहले आम आदमी पार्टी के समर्थक था और कॉन्ग्रेस के प्रति अपनी वफ़ादारी को बदलने से पहले अरविंद केजरीवाल के साथ अपनी तस्वीरें क्लिक करता था। फिर उसके बाद वो दिग्विजय सिंह, राहुल गाँधी और प्रियंका चतुर्वेदी जैसे कई कॉन्ग्रेसी नेताओं के साथ अपनी तस्वीरें क्लिक करता था।

मिश्रा एक वेबसाइट ‘viralinIndia.net’ चलाता है, जहाँ वो इस्लाम समर्थक प्रचार और फ़र्ज़ी ख़बरें फैलाने का काम करता है। इसके अलावा वेबसाइट पर ट्रैफ़िक प्राप्त करने के लिए clickbait-y सुर्खियों के साथ-साथ अन्य कई अश्लील लेख भी अपलोड किए गए हैं। इसके अलावा इस वेबसाइट पर अविश्वसनीय ख़बरों को भी अपलोड किया जाता था, जैसे बिहार में एक मुर्गी द्वारा दो पिल्लों को जन्म देने जैसी बकवास ख़बरों का भी उल्लेख होता था।

आपको बता दें कि मिश्रा का प्रचार सिर्फ़ वेबसाइट तक ही सीमित नहीं था। इसके अलावा वो विभिन्न फेसबुक पेज तैयार करता है जिन्हें वो नियमित तौर पर फ़ेक न्यूज़ के रूप में शेयर भी करता है। शेयर करने के लिए वो ऐसे राजनेताओं का चयन करता है जिन्हें वो दोषी ठहरा सके और ऐसी शख़्सियतें चर्चा का विषय बन जाती हैं क्योंकि वो मोदी विरोधी होती हैं।

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों के दौरान, मिश्रा ने ‘viralinIndia.net’ को अस्थायी रूप से बंद कर दिया था क्योंकि उस समय यह टीम ‘चुनावों को कवर करने’ में व्यस्त थी। चुनाव समाप्त होते ही, मिश्रा फिर से अपनी फ़ेक न्यूज़ की वेबसाइट चलाने लगे। इतना ही नहीं प्रियंका चोपड़ा-निक जोन्स की शादी के रिसेप्शन से चोरी हुई घड़ी के लिए प्रधानमंत्री मोदी को प्रमुख संदिग्ध होने का दावा किया था।

आपको बता दें कि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब मिश्रा को क़ानूनी दायरे में लाना पड़ा हो। इससे पहले नवंबर 2016 में मिश्रा को मध्य प्रदेश पुलिस ने शिवराज सिंह चौहान और बीजेपी पर हमले के आरोप में गिरफ़्तार किया था।

दो से अधिक बच्चे होने पर मताधिकार व सरकारी नौकरी नहीं दी जानी चाहिए: योग गुरु रामदेव

देश की बढ़ती जनसंख्या पर योग गुरु रामदेव स्वामी ने एक बड़ा बयान दिया है। रामदेव स्वामी ने बढ़ती जनसंख्या पर चिंता ज़ाहिर करते हुए कहा कि जिनके दो या दो से अधिक बच्चे हों, उन सभी लोगों को मताधिकार और सरकारी नौकरी नहीं दी जानी चाहिए।

देश की बढ़ती जनसंख्या पर अपने विचार रखते हुए एक कार्यक्रम में योग गुरु रामदेव ने यह बयान दिया। योग गुरु रामदेव ने वर्तमान समय में जनसंख्या को देश की बड़ी चुनौती बताते हुए कहा, “हिंदू हों या मुस्लिम सभी लोगों के लिए ऐसे नियम बनाने की ज़रूरत है कि दो से अधिक बच्चे होने पर लोगों को सरकारी मेडिकल के साथ ही साथ मताधिकार व सरकारी नौकरी की सुविधाएँ नहीं दी जानी चाहिए।” योग गुरु रामदेव ने यह भी कहा कि ऐसे लोगों से चुनाव लड़ने के अधिकार भी छिन लिया जाना चाहिए।

इससे पहले भी इस मुद्दे पर बोल चुके हैं रामदेव

यह पहली बार नहीं है जब किसी कार्यक्रम में जनसंख्या के मुद्दे पर योग गुरु ने इस तरह का बयान दिया है। इससे पहले भी जनसंख्या के मामले में योग गुरु बयान देते रहे हैं। पिछले साल नवंबर में योग गुरु ने जनसंख्या पर बयान दिया था कि जिन्होंने शादी नहीं की है, ऐसे लोगों के सम्मानित किया जाना चाहिए। इसी कार्यक्रम के दौरान उन्होंने यह भी कहा था कि मेरे जैसे लोग जिन्होंने शादी नहीं की है, ऐसे लोगों को सरकार द्वारा सम्मानित किया जाना चाहिए। जबकि जिनके दो से अधिक बच्चे हैं, उनको मताधिकार से वंचित कर देना चाहिए।    

मरणोपरांत जिसे मिला ‘सर्वोच्च’ सैन्य वीरता पुरस्कार, वो पहले था एक आतंकवादी

गणतंत्र दिवस के मौके पर इस साल देश के लिए समर्पित सैनिकों को अशोक चक्र के अलावा 5 कीर्ति और 12 शौर्य चक्र दिए जाएँगे। इन सभी पुरस्कारों की घोषणा की जा चुकी है। इस सूची में एक नाम बहुत दिलचस्प है – शहीद लांस नायक नज़ीर वानी। शहीद वानी को अशोक चक्र के लिए चुना गया है। यह जान लें कि अशोक चक्र शांति काल में देश के सैनिकों को दिया जाने वाला सर्वोच्च सैन्य वीरता पुरस्कार है।

अब कहानी शहीद लांस नायक नज़ीर वानी की। शहीद लांस नायक वानी को अशोक चक्र वीरता पुरस्कार मरणोपरांत दिए जाने की घोषणा हुई है। देश के लिए शहीद होने वाले नायक वाणी की ज़िंदगी का किस्सा बेहद ही दिलचस्प है।

नज़ीर वानी कश्मीर के एक छोटे से गाँव अश्मुजी के रहने वाले थे। यह गाँव कश्मीर के कुलगाम शहर के करीब है। नज़ीर का बचपन अपने गाँव में गुजरा था। इसी दौरान नज़ीर पत्थरबाज़ों और आतंकियों के संपर्क में आ गए। लेकिन जल्द ही उन्हें यह अहसास हो गया कि उन्होंने गलत रास्ता चुन लिया है।

इसके बाद उन्होंने 2004 में टेरिटोरियल आर्मी की 162वीं बटालियन को ज्वॉइन कर लिया। इसके बाद मानो देश के लिए नजीर ने अपनी ज़िन्दगी ही समर्पित कर दी। उनकी बहादुरी और वीरता के लिए उन्हें 2007 व 2018 में सेना द्वारा मेडल से भी नवाजा गया था।

अब एक घटना घटती है नवम्बर 2018 में। कुलगाम के शोपियाँ में आतंकियों व सुरक्षा बलों के बीच मुठभेड़ हुई। इस मुठभेड़ में नज़ीर ने अपने साथियों के साथ अंतिम साँस तक आतंकियों को मुँहतोड़ जवाब दिया।

नज़ीर व उनके साथियों ने 6 आतंकियों को मुठभेड़ में मार भी गिराया। लेकिन लांस नायक नज़ीर अहमद वानी शहीद हो गए। देश के लिए शहीद हुए वानी के परिवार में पत्नी के अलावा दो बच्चे हैं।

नज़ीर वानी के शहीद होने के बाद करीब 600 लोग उनके परिवार से मिलने पहुँचे थे। शहीद के पार्थिव शरीर को लेकर जब सेना के जवान नज़ीर के गाँव पहुँचे, तो गाँव वालों ने लांस नायक को अश्रुपूर्ण विदाई दी थी।

केंद्र सरकार ने शहीद नज़ीर के परिवार को अशोक चक्र से सम्मानित करने की घोषणा की है। जिस कश्मीर घाटी में नौजवान पत्थरबाज़ी करके अपनी ज़िन्दगी को बर्बाद कर रहे हैं, उसी कश्मीर घाटी के युवाओं के लिए देशभक्त अशोक चक्र विजेता शहीद नज़ीर एक उदाहरण बन सकते हैं।

कभी हिज़्बुल का था गढ़, अब आतंक मुक्त घोषित हुआ बारामूला

कभी हिज़्बुल मुज़ाहिद्दीन का गढ़ माने जाने वाला ज़िला बारामूला अब आतंक-मुक्त घोषित कर दिया गया है। सेना और पुलिस की इस क़ामयाबी पर पूरे देश को गर्व होना चाहिए। बुधवार (जनवरी 23, 2019) को सेना के साथ मुठभेड़ में तीन आतंकियों के मारे जाने के बाद जम्मू एवं कश्मीर के डीजीपी दिलबाग सिंह ने इस बात की पुष्टि की। पुलिस के जम्मू एवं कश्मीर में जितने भी आतंक प्रभावित ज़िले हैं, उनमे से बारामूला आतंक-मुक्त घोषित होने वाला पहला ज़िला है।

आतंकियों के छिपे होने की सूचना के बाद पुलिस ने सर्च ऑपरेशन चलाया। ये आतंकी चार घंटे से वहाँ छिपे हुए थे और सुरक्षा बलों को निशाना बना रहे थे। उन्हें पहले सरेंडर करने को कहा गया लेकिन वो फायरिंग करते रहे। मारे गए आतंकियों में से एक लश्कर का कमांडर बताया जाता है। इन आतंकियों ने पहले कई बार बारामूला पुलिस पर ग्रेनेड से हमला किया था। इन्होने कुछ दिनों पहले घाटी के तीन युवकों को भी मौत के घाट उतार दिया था।

J&K के डीजीपी ने इस बारे में विशेष जानकारी देते हुए पत्रकारों को बताया:

“बारामूला जिले में बुधवार के ऑपरेशन में 3आतंकी मार गिराए गए। इसी के साथ बारामूला कश्मीर का पहला आतंकी मुक्त जिला बन गया है,आज की तारीख में वहां एक भी जीवित आतंकी नहीं है।”

बता दें कि बारामूला के सफ़ियाबाद में J&K पुलिस, भारतीय सेना और CRPF ने एक संयुक्त ऑपरेशन में 3 आतंकवादियों को मार गिराया। इसके अलावे मारे गए आतंकियों के पास से सुरक्षा बालों ने कई हथियार भी बरामद किए। इस ऑपरेशन में सेना की 46 राष्ट्रीय राइफल्स, 4 पैरा फोर्सेज, एसओजी और सीआरपीएफ के जवान शामिल थे। इसके साथ ही सुरक्षा बलों ने ज़िले में सक्रिय सभी आतंकियों का सफ़ाया कर दिया।

बारामूला काफ़ी दिनों से आतंकवादियों की करतूतों के कारण चर्चा में रहा है। कभी बुरी तरह आतंक प्रभावित रहे इस ज़िले के सोपोर क्षेत्र में कई बार सुरक्षा बलों और आतंकवादियों की मुठभेड़ हो चुकी है। जिस उरी सैन्य कैंप पर आतंकी हमले के बाद सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया गया था, वो बारामूला में ही स्थित है। घाटी में सेना ने ऑपरेशन ऑल आउट को जारी रखते हुए इस साल 23 दिनों में 14 आतंकियों को मार गिराया है।

12 जनवरी को हुई मुठभेड़ में अल-बद्र के खूंखार आतंकी जीनत को मार गिराया गया था। उसे IED बम एक्सपर्ट कहा जाता था। अगर पिछले साल के आँकड़ों की बात करें तो वर्ष 2018 में 28 दिसंबर तक जम्मू और कश्मीर में मुठभेड़ों में 253 आतंकवादी मारे गए थे।

फ़ेक न्यूज़ वेबसाइट चलाने वाले अभिषेक मिश्रा की अपत्तिजनक पोस्ट के लिए हुई गिरफ़्तारी

फ़ेक न्यूज़ की वेबसाइट और ग़लत सूचनाएँ फैलाने वाले अभिषेक मिश्रा को दिल्ली पुलिस ने आपत्तिजनक पोस्ट करने के लिए गिरफ़्तार किया है। मिश्रा पर आपत्तिजनक पोस्ट से धार्मिक भावनाएँ आहत करने का आरोप है। रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली पुलिस के विशेष साइबर सेल ने अभिषेक मिश्रा को मध्य प्रदेश में उसके घर से मंगलवार की रात को गिरफ़्तार किया।

अभिषेक मिश्रा एक स्वयंभू YouTuber है जो पहले आम आदमी पार्टी के समर्थक था और कॉन्ग्रेस के प्रति अपनी वफ़ादारी को बदलने से पहले अरविंद केजरीवाल के साथ अपनी तस्वीरें क्लिक करता था। फिर उसके बाद वो दिग्विजय सिंह, राहुल गाँधी और प्रियंका चतुर्वेदी जैसे कई कॉन्ग्रेसी नेताओं के साथ अपनी तस्वीरें क्लिक करता था।

मिश्रा एक वेबसाइट ‘viralinIndia.net’ चलाता है, जहाँ वो इस्लाम समर्थक प्रचार और फ़र्ज़ी ख़बरें फैलाने का काम करता है। इसके अलावा वेबसाइट पर ट्रैफ़िक प्राप्त करने के लिए clickbait-y सुर्खियों के साथ-साथ अन्य कई अश्लील लेख भी अपलोड किए गए हैं। इसके अलावा इस वेबसाइट पर अविश्वसनीय ख़बरों को भी अपलोड किया जाता था, जैसे बिहार में एक मुर्गी द्वारा दो पिल्लों को जन्म देने जैसी बकवास ख़बरों का भी उल्लेख होता था।

आपको बता दें कि मिश्रा का प्रचार सिर्फ़ वेबसाइट तक ही सीमित नहीं था। इसके अलावा वो विभिन्न फेसबुक पेज तैयार करता है जिन्हें वो नियमित तौर पर फ़ेक न्यूज़ के रूप में शेयर भी करता है। शेयर करने के लिए वो ऐसे राजनेताओं का चयन करता है जिन्हें वो दोषी ठहरा सके और ऐसी शख़्सियतें चर्चा का विषय बन जाती हैं क्योंकि वो मोदी विरोधी होती हैं।

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों के दौरान, मिश्रा ने ‘viralinIndia.net’ को अस्थायी रूप से बंद कर दिया था क्योंकि उस समय यह टीम ‘चुनावों को कवर करने’ में व्यस्त थी। चुनाव समाप्त होते ही, मिश्रा फिर से अपनी फ़ेक न्यूज़ की वेबसाइट चलाने लगे। इतना ही नहीं प्रियंका चोपड़ा-निक जोन्स की शादी के रिसेप्शन से चोरी हुई घड़ी के लिए प्रधानमंत्री मोदी को प्रमुख संदिग्ध होने का दावा किया था।

आपको बता दें कि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब मिश्रा को क़ानूनी दायरे में लाना पड़ा हो। इससे पहले नवंबर 2016 में मिश्रा को मध्य प्रदेश पुलिस ने शिवराज सिंह चौहान और बीजेपी पर हमले के आरोप में गिरफ़्तार किया था।

इसके अलावा दैनिक भास्कर अपने लेख में सूत्रों के हवाले से लिखता है कि गुजरात और मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में अभिषेक ने सोशल मीडिया पर बीजेपी के ख़िलाफ़ प्रचार-प्रसार किया था, इससे बीजेपी को नुक़सान हुआ। इससे केंद्र सरकार नाराज़ है।

ऐसे में सवाल यह उठता है दैनिक भास्कर के वो कौन-से सूत्र हैं जो इस बात को पुख़्ता जामा पहनाने की कोशिश कर रहे हैं कि एक फ़ेक न्यूज़ संबंधी वेबसाइट चलाने वाले अभिषेक की वजह से बीजेपी को विधानसभा चुनाव में हानि हुई। बीजेपी जैसी बड़ी पार्टी को नुक़सान पहुँचाने के लिए क्या अभिषेक जैसे लोग काफ़ी हैं? गली-खोपचे या नुक्कड़ में किराये की दुकान में बैठे फ़र्ज़ी लोग क्या राजनीति का रुख़ पलटने में इतना सक्षम हो सकते हैं, यह एक बड़ा प्रश्न है।

राहुल गाँधी के प्रधानमंत्री बनने पर ममता को आपत्ति: गौरव गोगोई

आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर सियासी हलचल लगातार देखने को मिल रही है। कोलकाता में हाल ही में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री की अगुआई में बीजेपी के ख़िलाफ़ एक मेगा रैली का आयोजन किया गया था। अभी इस रैली को आयोजित हुए कुछ ही दिन हुए थे कि कॉन्ग्रेस नेता गौरव गोगोई ने ममता की मंशा पर प्रश्नचिन्ह लगा दिए हैं। उनका कहना है कि तृणमूल कॉन्ग्रेस राहुल गाँधी को बतौर प्रधानमंत्री नहीं स्वीकार कर रही है। आपको बता दें कि कोलकाता में आयोजित उस मेगा रैली में कॉन्ग्रेस का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और अभिषेक मनु सिंघवी ने किया था। 

कॉन्ग्रेस नेता गोरव गोगोई ने पश्चिम बंगाल के बीरभूम ज़िले के रामपुरहाट में एक रैली को संबोधित करते हुए इस बात पर ज़ोर दिया कि आगामी लोकसभा चुनावके बाद राहुल गाँधी ही प्रधानमंत्री पद के दावेदार होंगे। बता दें कि बीजेपी को चुनाव में शिक़स्त देने के उद्देश्य से ममता ने जिस मेगा रैली का आयोजन उसकी सफलता की कामना सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी ने भी की थी। यह और बात है कि प्रधानमंत्री पद के लिए राहुल गाँधी, ममता की पसंद नहीं हैं।

कॉन्ग्रेस नेता गोगोई ने यह भी कहा कि ममता को राहुल गाँधी से परेशानी है और वो उन्हें प्रधानमंत्री के तौर पर देखना नहीं चाहती। इसके बाद उन्होंने अपने संबोधन में यह स्पष्ट किया कि राहुल गाँधी ही प्रधानमंत्री होंगे और केंद्र में अगली सरकार राहुल के नेतृत्व में बनेगी।

राजनीतिक दलों की यह आपसी खींचतान इस बात का संकेत देती है कि विपक्ष को घेरने के मक़सद से भले ही राजनीतिक दल एकजुट हुए हों लेकिन अभी भी वो ख़ुद दिशाहीन हैं। प्रधानमंत्री पद के लिए कौन-सा चेहरा स्वीकार्य है और कौन-सा नहीं, यह तय नहीं हो पा रहा है। वहीं पसंद और नापसंद का भी दौर चल निकला है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि एकजुटता के नाम पर इकट्ठे हुए सभी राजनीतिक दलों का आख़िर आधार क्या है, जिसके बलबूते वो आगामी चुनाव जीत दर्ज़ कराने के इच्छुक हैं।

24 जनवरी: ‘राष्ट्रीय बालिका दिवस’ बस एक दिन नहीं, हमारी सामाजिक सच्चाई का आईना है

24 जनवरी, हमारे देश में ‘नेशनल गर्ल चाइल्ड डे’ (राष्ट्रीय बालिका दिवस) के रूप में जाना जाता है। इस दिन को देश भर में अधिकांश बालिकाओं के साथ हो रही असमानता, भेद-भाव आदि पर प्रकाश डालने के लिए मनाया जाता है। साल 2008 में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा इस दिन को मनाने की शुरूआत की गई थी। इस दिन को विशेष रूप से मनाने का यह भी उद्देश्य था कि लड़कियों की पढ़ाई, पोषण, कानूनी अधिकारों, चिकित्सा सेवा, महिला सुरक्षा जैसी ज़रूरी चीज़ों पर बात की जा सके।

आज इस दिन के उपलक्ष्य में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा नई दिल्ली, चाणक्यपुरी स्थित प्रवासी भारतीय केंद्र में समारोह भी आयोजित किया जा रहा है। इस समारोह में हाल ही में शुरू हुए ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ योजना की वर्षगाँठ को मनाते हुए भी बात होगी। साल 2019 में इस समारोह का विषय “उज्ज्वल कल के लिए लड़कियों का सशक्तिकरण” है। इसका समारोह का मक़सद बाल लिंग अनुपात के बारे में जागरूकता पैदा करना है। इस पूरे समारोह की मुख्य अतिथि मेनका गाँधी होंगी।

हमारे समाज में इस दिन को मनाने का विशेष महत्व इसलिए भी होना चाहिए, क्योंकि अधिकांश बच्चियों और महिलाओं की स्थिति देश में ठीक उसी तरह है जैसे गरीबों और असहायों की। देश में बालिकाओं के लिए चलाए जाने वाले अभियान इस बात को स्पष्ट करते हैं कि चाहे लोग कितना ही आगे बढ़ जाएँ लेकिन सोच उनकी कुंठित ही है। राजनैतिक स्तर पर सरकार बच्चियों और महिलाओं के लिए योजनाओं को लागू करके, कानून बनाके, सुविधाएँ देकर, अभियान चलाकर अपना काम कर रही है, लेकिन उनकी स्थिति को सुधारने के लिए हमे सामाजिक स्तर पर कार्य करने की बेहद आवश्यकता है।

आज से कुछ समय पहले की बात करें चाहे आज की, शायद ही देश में कुछ एक अस्पताल ऐसे हों जहाँ के कूड़ेदान में कभी कोई नवजात बच्ची पड़ी न पाई गई हो। घर से लेकर सड़क तक, मार्केट से लेकर सुपर बाज़ार तक, स्कूल से लेकर दफ़्तर तक बालिकाओं और महिलाओं का शोषण किसी न किसी रूप में किया जाता रहा है। हाल ही में सोशल मीडिया पर ट्रेंड में रहा #MeToo अभियान इन्हीं सब घटनाओं का परिणाम था।

साल 2018 में मी_टू के तूल पकड़ने के बाद एक ऑनलाइन सर्वे कराया गया, जिसमें जो नतीज़े निकलकर आए वो बेहद हैरान करने वाले हैं। इस सर्वे में पाया गया कि करीब 81 प्रतिशत महिलाएँ अपनी पूरी ज़िंदगी में कभी न कभी यौन शोषण का शिकार हुई हैं। इनमें 77 प्रतिशत महिलाओं ने वर्बल सेक्शुअल हैरस्मेंट (भद्दी गली, छींटाकशी, सीटी मारना, अश्लील कमेंट करना) का सामना किया। 51 प्रतिशत महिलाओं का कहना रहा कि उन्हें बिना उनकी मर्ज़ी के हाथ लगाया गया। 41 प्रतिशत ने बताया कि वो ऑनलाइन यौन शोषण का शिकार हुई हैं।

इस रिपोर्ट में इस बात पर भी ज़ोर दिया गया था कि अधिकतर महिलाओं को कहाँ पर शोषण होता महसूस हुआ। एक तरफ़ जहाँ 66% महिलाओं ने उत्तर में सार्वजनिक जगहों का नाम लिया वहीं पर 38% ने अपने दफ्तरों में ये अनुभव किया। इसके अलावा 35% महिलाओं का जवाब उनका अपना घर रहा।

साल 2014 में अपने साक्षात्कार में महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गाँधी ने अपने 100 दिन के कार्यकाल को पूरा करते हुए इस बात की जानकारी दी थी कि देश में हर दिन 2,000 लड़कियों को पैदा होने से पहले या तुरंत बाद मार दिया जाता है।

हमारे देश में जहाँ पर पितृसत्ता की जकड़ इतनी कसी हुई हो, कि एक औरत ही लड़की की दुश्मन बनती जा रही है। ऐसे में हम अंदाजा लगा सकते हैं कि हमें नेशनल गर्ल चाइल्ड डे को मनाने की कितनी ज़रूरत है, लड़कियों के अधिकारों पर आवाज़ उठाने की कितनी ज़रूरत है। जहाँ लड़की के पैदा होने से पहले ही उसकी शादी के दहेज की चिंता सर पर भार बन जाए वहाँ पर समझा जा सकता है ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान के क्या महत्व होंगे।

मिड डे मील से लेकर लाडली योजना तक के पीछे का उद्देश्य सिर्फ यही रहा है कि लड़की को पढ़ाना और बढ़ाना घर के लोगों पर बोझ न बने। साल 2011 में आई ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में छपी ‘लैंसेट’ में पाया गया कि करीब 1.2 करोड़ भारतीय लड़कियाँ 1981 से अब तक पेट से ही गिराई जा चुकी हैं। 1981 में एक तरफ जहाँ 1000 लड़कों के मुकाबले 962 लड़कियाँ थी, वहीं 2011 के आते-आते ये अनुपात और भी बिगड़ गया, जिसमें लड़कियों की संख्या 918 ही रह गई।

समाज में पिछड़े हुए समाज पर न बात करते हुए अगर राज्य में मंत्री पद पर आसित व्यक्ति (सोमनाथ भारती, आप नेता) के बारे में ही यदि बात करें तो उनकी पत्नी भी घरेलू हिंसा की शिकार हुई हैं।

उपयुक्त लिखी सभी बातें मात्र ख़बरों का या फिर जानकारी का हिस्सा नहीं हैं, निबंध लिखने के लिए लिंग अनुपात के आँकड़े शायद हमें कहीं से भी मिल जाएँगे लेकिन अपने भीतर और आस-पास के माहौल में जागरूकता फैलाने का कार्य हमें स्वयं ही करना है। ये ऑनलाइन सर्वे, ये आँकड़े सिर्फ उन महिलाओं की दशा इंगित करते हैं जो खुलकर इन विषयों पर बात करती हैं या फिर अपने ख़िलाफ़ हो रहे अन्यायों को शिकायत के रूप में दर्ज़ कराती हैं।

इन सबके अलावा हमारे समाज में वो औरतें, वो लड़कियाँ भी शामिल हैं जो न ही कुछ बोलती है और न ही उनपर होते अत्याचार थमने का नाम ले रहे हैं। ऐसे में सरकार द्वारा चलाए गए अभियान और शुरू की गई योजनाएँ तब तक व्यर्थ हैं, जबतक हम खुद महिलाओं की स्थिति को सुधारने का बीड़ा नहीं उठाएँगे। देश की हर महिला को और हर व्यक्ति को इस बात की जानकारी होने बेहद आवश्यक है कि न केवल 24 जनवरी के दिन बल्कि हर दिन एक लड़की के भविष्य को सुधारने पर बात की जानी चाहिए।

26 जनवरी को न बाहर निकलें, न करें सफ़र: दारुल उलूम

गणतंत्र दिवस को देखते हुए देश में चप्पे-चप्पे पर सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं। हर सार्वजनकि स्थल पर सुरक्षा बलों द्वारा जाँच की जा रही है। इसी बीच उत्तर प्रदेश से आई एक ख़बर। चौंकाने वाली ख़बर। इस्लामिक शिक्षण संस्थान दारुल उलूम देवबंद ने अपने छात्रों को 26 जनवरी को कहीं भी बाहर न निकलने की हिदायत दी है।

दारुल उलूम के छात्रावास प्रभारी द्वारा यह हिदायत जारी किया गया है। इस हिदायत में उन्होंने कहा कि 26 जनवरी के मौके पर तिरंगा फहराने के बाद सभी छात्र अपने छात्रावास में वापस आ जाएँ। उस हिदायत में यह भी कहा गया है कि छात्र गणतंत्र दिवस के दिन ट्रेनों में सफ़र न करें।

26 जनवरी के संबंध में दारुल उलूम की हिदायत

दारुल उलूम के मुफ़्ती असद कासमी का कहना है कि गणतंत्र दिवस के दिन कुछ छात्र अपने दोस्तों के साथ इधर-उधर घूमने निकल जाते हैं। ऐसे में वो किसी विवादित स्थिति में न फंस जाए या उनका उत्पीड़न न हो जाए, इसी कारण से देवबंद ने उन सभी को सख़्ती से हिदायत दी है कि 26 जनवरी को कहीं पर भी न आएँ-जाएँ।

हिदायत में हालाँकि यह स्पष्ट किया गया कि अगर किसी को इस दिन बाहर जाने की बहुत जरूरत पड़ जाती है तो सफ़र करके वह तुरंत दारुल उलूम देवबंद का रुख़ करे। तर्क (अटपटा सा) देते हुए इसमें कहा गया है कि 26 जनवरी को हर जगह जाँच-पड़ताल होती है, इससे किसी को बिना वज़ह के परेशानी उठानी पड़ती है। इस कारण डर और ख़ौफ का माहौल पैदा होता है।

दारुल उलूम ने अपनी हिदायत में छात्रों से अपील की है कि अगर कोई इस दिन सफ़र करता है तो किसी भी प्रकार की बहसों में न पड़े और सब्र से काम लें।

AMU: तिरंगा यात्रा निकालने और ‘वन्दे मातरम’ के नारे पर छात्रों को नोटिस

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के प्रॉक्टर ने तिरंगा यात्रा निकालने और वन्दे मातरम का नारा लगाने पर 6 छात्रों को कारण बताओ नोटिस जारी किया है। जिन छात्रों को नोटिस जारी किया गया है, उनमें छात्र नेता ठाकुर अजय सिंह और सोनवीर शामिल हैं। तिरंगा यात्रा का नेतृत्व करने वाले अजय बरौली के भाजपा विधायक ठाकुर दलवीर सिंह के पौत्र हैं। AMU ने छात्रों पर निम्न गंभीर आरोप लगाए हैं-

  • बिना अनुमति यात्रा निकालना
  • यूनिवर्सिटी कैंपस में शैक्षणिक माहौल को ख़राब करना
  • क्लास में पढ़ रहे छात्रों को बहका कर रैली में ले जाना
  • यात्रा में असामाजिक तत्वों का शामिल होना
  • AMU को बदनाम करना, और
  • छात्रों के बीच भय का माहौल पैदा करना
AMU द्वारा छात्रों को थमाई गई नोटिस की कॉपी।

नोटिस मिलने के बाद छात्रों ने प्रॉक्टर मोहसिन ख़ान की तुलना जालियाँवाला बाग़ सामूहिक हत्याकांड को अंजाम देने वाले अंग्रेज अधिकारी जनरल डायर से की है। छात्रों ने कहा कि देशभक्ति के नारे लगाने और तिरंगा लहराने के लिए आज़ाद भारत में कहीं भी अनुमति लेने की जरूरत नहीं है। उन्होंने AMU में हुई इन घटनाओं का जिक्र कर प्रॉक्टर को घेरा-

  • आतंकी बशीर वानी के भारतीय सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में मारे जाने के बाद छात्रों ने उसके समर्थन में आज़ादी वाले नारे लगाए।
  • कैंपस में सामान्य वर्ग को आरक्षण देने सम्बन्धी बिल की कॉपी को जलाया गया।
  • जातिगत संघर्ष को बढ़ावा देने वाले सेमिनार आयोजित किए गए।

छात्रों ने कहा कि जब ये सब घटनाएँ होती हैं, तब प्रॉक्टर के कान में जूँ तक नहीं रेंगती लेकिन राष्ट्रवादी नारों से उन्हें बहुत तकलीफ़ होती है।

बता दें कि यूनिवर्सिटी कैंपस में इंजीनियरिंग फैकल्टी से लेकर बाबे सय्यद तक छात्रों ने बाइक रैली निकाली थी, जिसमें उन्होंने ‘वन्दे मातरम’ और ‘भारत माता की जय’ के नारे लगाए थे। इस रैली में छात्रों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था। साथ ही उन्होंने अन्य छात्रों से शहीद भारतीय जवानों के परिवारों को आर्थिक मदद देने की अपील भी की थी। रैली के बारे में अधिक जानकारी देते हुए उस वक्त छात्र नेता अजय ठाकुर ने कहा था:

“तिरंगा यात्रा को सबका समर्थन मिलना चाहिए। हमको याद रखना होगा कि हम अपने घर व गांवों में सुरक्षित हैं। हमारे ही भाई सीमा पर शून्य डिग्री तापमान में अपनी हड्डियां गला रहे हैं… उनको हौसला देने के लिए ये तिरंगा शान से लहराता दिखना चाहिए। उनकी कुर्बानियों के सम्मान में ये तिरंगे लहरते रहने चाहिए। क्यूंकि इन तिरंगों की शान के लिए ही वो अपनी जान की बाजी लगाते हैं।”

AMU के प्रॉक्टर प्रोफ़ेसर एम मोहसिन खान ने रैली निकलने के तुरंत बाद कहा कि इस रैली के लिए विश्वविद्यालय प्रसाशन से अनुमति नहीं ली गई थी और छात्रों को नोटिस भेजा जाएगा। और अंततः यही हुआ। छात्रों को ‘कारण बताओ नोटिस’ थमा दिया गया। रैली के वक्त ही अजय ने यह साफ़ कर दिया था कि यह कोई राजनीतिक रैली नहीं है।

भारतीय जनता पार्टी ने भी AMU के नोटिस का विरोध किया है। भाजयुमो के मीडिया प्रभारी प्रतीक चौहान ने पूछा कि ऐसा कर के प्रॉक्टर देश को क्या सन्देश देना चाहते हैं? उन्होंने यात्रा की अनुमति न दिए जाने को लोकतंत्र के साथ खिलवाड़ बताते हुए कहा कि यात्रा का मक़सद वीर ऐप के जरिए शहीदों के लिए आर्थिक मदद इकट्ठा करना था।