कुल 8 नए मंत्री बनाए गए, जिनमें लोजपा के पशुपति कुमार पारस के सांसद बन जाने के बाद खाली हुई जगह भी शामिल है, लेकिन भाजपा के अलावा लोजपा के भी किसी विधायक को मंत्री नहीं बनाया गया।
ओवैसी ने धार्मिक स्वतंत्रता को लेकर भी कहा था, “भारत का क़ानून, संविधान हमें इजाज़त देता है कि हम अपने धर्म का पालन करें। जब भारत के प्रधानमंत्री मंदिर जा सकते हैं तो हम भी गर्व के साथ मस्जिद जा सकते हैं।”
पिछले साल घाटी में आतंकरोधी अभियानों की शुरुआत न होने के कारण, रमज़ान महीने के दौरान केवल 11 आतंकवादी मारे गए थे और वह भी कुपवाड़ा और हंदवाड़ा ज़िलों में।
पार्टी में आने वाले मेहमानों के साथ पाकिस्तानी सुरक्षा एजेंसियों के अधिकारियों और जवानों ने बदसलूकी की। कई मेहमानों को बाहर ही रोक दिया गया, तो कितने मेहमानों की बार-बार जाँच की गई।
दिव्या ने पिछले साल अक्टूबर में पार्टी से नाराज होकर कॉन्ग्रेस के सोशल मीडिया प्रमुख के पद से इस्तीफा दे दिया था। हालाँकि, कुछ दिनों बाद वो वापस ट्विटर पर आ गई और फिर से अपने ट्विटर अकाउंट के बायो में खुद को कॉन्ग्रेस का सोशल मीडिया प्रमुख लिखा।
जिसे धार्मिक कर्मकांडों को ढकोसला मानना है, वह काहे का हिन्दू, काहे का ब्राह्मण? उसके विचारों का बोझ हिन्दू क्यों उठाए? उसके विचारों के आधार पर ब्राह्मणों को क्यों निशाना बनाया जा रहा है, जो हिन्दू ही नहीं है?
अगर आप रोजगार के तमाम आँकड़ों को न मान कर ‘मैं जब मुखर्जीनगर पहुँचा तो वहाँ सारे युवा बेरोज़गार थे’ वाला लॉजिक लेकर चलिएगा तो मैं कहूँगा कि ‘मैं जब सायबर हब पहुँचा तो वहाँ सारे लोग लाखों की सैलरी पाने वाले थे, भारत बदल गया है, बेरोज़गारी शून्य प्रतिशत है’।
आमतौर पर समितियों की सिफारिश (अभी वाली नेशनल एजुकेशन पालिसी ड्राफ्ट भी) करीब पाँच सौ पन्ने का मोटा सा बंडल होता है जिसे कौन पढ़ता है, या नहीं पढ़ता, हमें मालूम नहीं। ऐसी सभी सिफारिशों से मेरी एक और आपत्ति ये भी होती है कि ये किस आधार पर बनी है ये पता नहीं होता।
सोशल मीडिया पर भी अरस्तू और सुकरात के बाद जन्मे कुछ 'महान विचारकों' ने जमकर इस घटना पर सत्संग और 'अच्छा महसूस होने वाला' साहित्य लिखा, लेकिन मुबंई पुलिस ने इस खबर की सच्चाई उजागर कर दी।