आखिर आतंकियों के सम्मान का कोई सोच भी कैसे सकता है? फिर याद आता है कि ये तो नेत्री भी हैं, इनको तो वोट भी वही लोग देते हैं जो आतंकियों के जनाज़े में टोपियाँ पहन कर पाकिस्तान परस्ती और भारत को बाँटने की ख्वाहिश का नारा लगाते शामिल होते हैं।
आज भले ही साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के ऊपर से मामला पूरी तरह खतम न हुआ हो लेकिन यह भी सच है कि कॉन्ग्रेस के कार्यकाल में ऐसा कोई भी व्यक्ति दंडित नहीं किया जा सका जिसे हिन्दू आतंकी कहा गया।
हाल ही में बीजेपी में शामिल हुए राहुल शेवाले ने यह कहते हुए सुले को शांत करना जारी रखा कि उन्होंने सुले या उनके पिता शरद पवार के बारे में कोई अपमानजनक बातें नहीं की हैं।
यहाँ तुफैल अहमद ने दो बड़ी गलतियाँ की। पहली ग़लती, हिन्दू देवी-देवताओं द्वारा धारण किए गए अस्त्र-शस्त्रों को हिंसा से जोड़कर देखा। दूसरी ग़लती, माँ सरस्वती के बारे में बिना तथ्य जाने झूठ बोला। दोनों ही गलतियों को तथ्यों व सबूतों के साथ काटा गया है। 'शांतिप्रिय' तुफैल शायद...
भारतीय जनता पार्टी ने इन विज्ञापनों के प्रसारण को रोकने की अपील की थी। मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी वीएल कांताराव की अध्यक्षता वाली कमिटी ने इन विज्ञापनों के प्रसारण की अनुमति को निरस्त करने का फैसला लिया है।
पश्चिम बंगाल के पुरुलिया ज़िले में एक भाजपा कार्यकर्ता का शव पेड़ से लटका मिला। ओडिशा में 26 वर्षीय बीजेपी कार्यकर्ता सदानंद बेहरा का शव खून से लथपथ था। बूथ पर डराने-धमकाने वाली ख़बर की रिपोर्टिंग करने गए रिपोर्टर के साथ मारपीट... हो क्या रहा है इस देश में?
सोशल मीडिया पर कुछ लोगों का मानना है कि मोहसिन को केवल प्रधानमंत्री 'नरेंद्र मोदी' के हेलीकॉप्टर की जाँच करने के कारण निलंबित किया गया है। जबकि चुनाव आयोग की मानें तो मोहसिन को ड्यूटी में लापरवाही बरतने का दोषी पाया गया है।
रोहित के कमरे में इतनी सारी दवाइयाँ थीं, जैसे कि वो कोई छोटा सा मेडिकल स्टोर हो। रोहित ने सुबह 4 बजे अपनी भाभी कुमकुम को फोन किया था? या... 16 घंटे तक वो सोए रहे और घर में किसी ने भी उनकी सुध तक नहीं ली?
अब यदि विपक्ष के द्वारा संवैधानिक अवहेलना एवं संस्थागत अवमानना पर विचार किया जाए, तो कई सारे उदाहरण और मिल जाएँगे। और यदि उनके इतिहास के बारे में सोचा जाए, तो ऐसे उदाहरणों की कोई कमी नहीं होगी। एक भारतीय के रूप में हमें इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि संविधान व संस्थाएँ, दोनो ही मोदी सरकार मैं पूर्ण रूप से संरक्षित हैं।
दोनों पुस्तकों के पिछले कई महीनों से बाज़ार में उपलब्ध होने का अर्थ यह है कि इनके पाठकों की संख्या उनसे कई गुना अधिक है जो निमंत्रण पाकर या गाहे बगाहे बुक लॉन्च में पहुँचते। बुक लॉन्च जैसे आयोजन लेखकों को अपनी वह बात कहने का मंच देते हैं जो वे पुस्तक में नहीं लिख पाते।