प्रधानमंत्री मोदी जहाँ बनारस से चुनाव लड़ेंगे, वहीं अमित शाह को गाँधीनगर की ज़िम्मेदारी दी गई है। गाँधीनगर में भाजपा ने 1989 से आजतक चुनाव नहीं हारा है।
कॉन्ग्रेस की यही समस्या है कि वो इतना नकारा तो चौवालीस सीट पाने के बाद भी नहीं महसूस कर पाया जितना विपक्ष में कि इतने नेताओं के महागठबंधन के बाद भी मोदी को घेरने के लिए उसके पास सिवाय अहंकार और अभिजात्य घमंड के और कुछ भी नहीं है।
हमलों के पीछे का मकसद अज्ञात है लेकिन वेस्ट मिडलैंड्स पुलिस ऐसा मान रही है कि सारे हमले एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। यही कारण है कि आतंकवाद-रोधी पुलिस मामले की जाँच कर रही है।
कल दो घटनाएँ हुईं, और दोनों ही पर मीडिया का एक गिरोह चुप है। अगर यही बात उल्टी हो जाती तो अभी तक चुनावों के मौसम में होली की पूर्व संध्या पर देश को बताया जा रहा होता कि भगवा आतंकवाद कैसे काम करता है। चैनलों पर एनिमेशन और नाट्य रूपांतरण के ज़रिए बताया जाता कि कैसे एक हिन्दू ने ट्रेन में बम रखे और समुदाय विशेष को अपनी घृणा का शिकार बनाया।
कहते हैं कि हवा में गुलाल और गुलाबजल का ऐसा सम्मिश्रण घुला होता था कि उस समय रंगीन तूफ़ान आया करते थे। ये सिख सम्राट का ही वैभव था कि उन्होंने सिर्फ़ अंग्रेज अधिकारियों को ही नहीं रंगा बल्कि प्रकृति के हर एक आयाम को भी रंगीन बना देते थे।
आप सोच कर भी नहीं सोच पाएँगे कि अमित शाह के बाद भाजपा का अध्यक्ष कौन बनेगा, मोदी के बाद भाजपा का पीएम कौन होगा या फिर यही देख लीजिये कि अटल जी और आडवानी जी की विरासत को कौन आगे बढ़ा रहा है?
वो इलाक़ा होता था कश्यप-पुर जिसे आज मुल्तान नाम से जाना जाता है। ये कभी प्रह्लाद की राजधानी थी। यहीं कभी प्रहलादपुरी का मंदिर हुआ करता था जिसे नरसिंह के लिए बनवाया गया था। कथित रूप से ये एक चबूतरे पर बना कई खंभों वाला मंदिर था।