Wednesday, November 27, 2024

राजनैतिक मुद्दे

मोदी ने भगा दिया वाला प्रोपेगेंडा और माल्या-चोकसी-नीरव पर कसता शिकंजा: भारत में आर्थिक पारदर्शिता का भविष्य

हमारा राजनीतिक विमर्श शोर प्रधान है। लिहाजा कई महत्वपूर्ण प्रश्न दब गए। जब इन आर्थिक भगोड़ों पर कड़ाई का नतीजा दिखने लगा है, इन पर बात होनी चाहिए।

कॉन्ग्रेस के इस मर्ज की दवा नहीं: ‘श्वेत पत्र’ में तलाश रही ऑक्सीजन, टूलकिट वाली वैक्सीन से खोज रही उपचार

कॉन्ग्रेस और उसके इकोसिस्टम को स्वीकार लेना चाहिए कि प्रोपेगेंडा और टूलकिट से उसकी सेहत दुरुस्त नहीं हो सकती।

ॐ को योग से तोड़ना और अल्लाह को योग से जोड़ने का कॉन्ग्रेसी प्रोपेगेंडा, कुछ और नहीं हिन्दू विरोध का पुराना पैंतरा

पॉलिटिकल करेक्टनेस किसे कहाँ तक ले जाता है वह देखने वाली बात होगी पर फिलहाल तो सरकार के विरोध के उद्देश्य से आरंभ हुई एक प्रक्रिया योग विरोध पर पहुँची और वहाँ से एक और छलांग लगाकर हिन्दू विरोध पर जा खड़ी हुई है।

वैक्सीन पर बछड़े वाला प्रोपेगेंडा: कॉन्ग्रेस और ट्विटर में गिरने की होड़ या दोनों का ‘सीरम’ सेम

कोरोना वैक्सीन पर ताजा प्रोपेगेंडा से साफ है कि कॉन्ग्रेसी नेता झूठ फैलाने से बाज नहीं आएँगे। लेकिन उतना ही चिंताजनक इस विषय पर ट्विटर का आचरण भी है।

कैप्टन के सलाहकार प्रशांत किशोर सिद्धू के बनेंगे तारणहार? पंजाब में नेताओं को मिल रहे हैं खुले ऑफर

कैप्टन चाहते हैं कि प्रदेश अध्यक्ष जैसा शक्तिशाली पद उनके विरोधी सिद्धू के पास ना जाए। पंजाब कॉन्ग्रेस में चल रही उठा-पटक के बीच...

जैसे-जैसे फूटा लेफ्ट-कॉन्ग्रेस-इस्लामी इकोसिस्टम का बुलबुला, वैसे-वैसे बढ़ता गया ‘जय श्रीराम’ पर प्रोपेगेंडा 

कम्युनिस्ट-कॉन्ग्रेस-मीडिया-बुद्धिजीवियों के गठबंधन को पहली चोट जय श्रीराम से ही लगी थी। मोदी के उदय ने इसे और गहरा कर दिया।

श्रीराम मंदिर के लिए सदियों तक मुगलों से सैकड़ों लड़ाई लड़े तो कॉन्ग्रेस-लेफ्ट-आप इकोसिस्टम से एक और सही

जो कुछ भी शुरू किया गया है वह हवन कुंड में हड्डी डालने जैसा है पर सदियों से लड़ी गई सैकड़ों लड़ाई के साथ एक लड़ाई और सही।

हिंसा से भी खौफनाक बंगाल का सिस्टम: पीड़ितों का अब सुप्रीम कोर्ट ही सहारा

हिंसा पीड़ित नागरिकों की कौन सुनेगा? उनके विरुद्ध हुई हिंसा को रिपोर्ट करने के लिए राज्य सरकार की कौन सी संवैधानिक संस्था उपयुक्त हो सकती है?

दक्षिणपंथ मतलब भाजपा नहीं: क्यों इसकी लड़ाई अपने समर्थकों से ही है? ‘कॉन्ग्रेस’ होने से बचने की क्या है वजह?

यदि दुराग्रही वामपंथियों के प्रपंच में उलझे बिना देखें, तो दक्षिणपंथ कहीं ज्यादा तार्किक और समाधान का हिस्सा है, लेकिन 'नेहरु घाटी सभ्यता' के दौरान पैदा हुए विचारकों ने कभी किसी को यह सोचने का मौका ही नहीं दिया कि उनके अलावा भी कोई दूसरी विचारधारा इस पृथ्वी पर हो सकती है और उनसे कहीं ज्यादा बेहतर हो सकती है।

नए IT कानून को मोटा पोथा मत बनाइए: आज ट्विटर उठा रहा फायदा, कल कोई और उठाएगा

न तो भारत के अधिकांश लोग 700 पन्ने का प्रिंट निकलवाने के आर्थिक खर्च में सक्षम होंगे, न ही उतना पढ़ कर विचार रखने के लिए कोई समय निकलेगा।

ताज़ा ख़बरें

प्रचलित ख़बरें