Friday, October 4, 2024
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वैक्सीन पर बछड़े वाला प्रोपेगेंडा: कॉन्ग्रेस और ट्विटर में गिरने की होड़ या दोनों का ‘सीरम’ सेम

ट्विटर के लिए सरकार द्वारा बनाए गए नए कानून और नियमों के अनुसार कार्रवाई करने के अलावा अब और कोई रास्ता नहीं बचा है। ट्विटर कितनी जल्दी यह मान लेगा, वह देखना दिलचस्प रहेगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब घोषणा की कि अब केंद्र सरकार वैक्सीन खरीद कर राज्यों को मुफ्त देगी तब लगा कि टीकाकरण को लेकर लगातार उठ रहे प्रश्न अब और नहीं उठाए जाएँगे। पर मुझे लोगों के इस निष्कर्ष पर संदेह था कि अब किसी तरह का विवाद नहीं होगा। इस वजह से मैंने यह कहा था कि अब देखना यह होगा कि लेफ्ट-कॉन्ग्रेस इकोसिस्टम के प्रोपेगेंडा का स्वरूप अब क्या होगा?

इस प्रश्न का उत्तर भी दूसरे दिन ही मिला जब राहुल गाँधी के साथ-साथ रॉबर्ट वाड्रा ने पूछा कि जब सरकार मुफ्त में वैक्सीन दे रही है तब निजी क्षेत्र के अस्पताल उसके लिए पैसे क्यों ले रहे हैं? उधर विपक्ष के कुछ नेताओं ने यह कहा कि सरकार मुफ्त में कुछ नहीं दे रही है, वैक्सीन खरीदने के लिए जनता की जेब से पैसा जाता है।

अर्थात विपक्ष को विरोध की ऐसी आदत लग चुकी है कि वह बिना विरोध व्यक्त किए रह नहीं सकता। 

यह इकोसिस्टम वैक्सीन के बारे में अफवाहें और भ्रम फैलाने का काम लम्बे समय से करता रहा है। इस काम में पत्रकार, कलाकार, नेता, अभिनेता, कार्टूनिस्ट शामिल रहे हैं। राज्यों के मुख्यमंत्री, पूर्व मुख्यमंत्री, स्वास्थ्य मंत्री के साथ-साथ और न जाने कौन-कौन शामिल रहा है। कोरोना की दूसरी भीषण लहर के बाद वैक्सीन के प्रति भ्रम फैलाने में इन लोगों की भूमिका की चर्चा सोशल मीडिया में होती रही। पर ये इतने ढीठ लोग हैं कि फेक न्यूज़ और वैक्सीन हेसिटेन्सी फैलाने से बाज़ नहीं आए। 

वैक्सीन के बारे में भ्रम फैलाने की नई घटना कॉन्ग्रेस सोशल मीडिया सेल के गौरव पांधी की ओर से हुई है। पांधी ने ट्वीट करते हुए लिखा; एक आरटीआई के उत्तर में मोदी सरकार ने स्वीकार किया है कि कोवैक्सीन के बनाने में बीस दिन से छोटे बछड़े का वध करके उसके खून का इस्तेमाल किया जाता है। यह घृणित काम है। सरकार को इसकी जानकारी पहले देनी चाहिए थी।  

यह जान-बूझकर फैलाया गया फेक न्यूज़ है। इस झूठ को फैलाने का उद्देश्य ही यह था कि केंद्र की भाजपा सरकार को बदनाम किया जाए और हिन्दुओं के मन में सरकार प्रति एक भ्रम पैदा किया जाए। सब कुछ के बाद भी मुझे इस बात पर आश्चर्य नहीं होता कि जिम्मेदार पद पर बैठा एक कॉन्ग्रेसी ऐसा कर रहा है, ऐसे दल का नेता जिसके सदस्य केरल में गाय काटकर खुश होते हैं। पर मन में एक बात यह भी आती है कि प्रोपेगेंडा चलाने वाले और फेक न्यूज़ फैलाने वाले ये लोग कितने बासी हो गए हैं कि ये आगे क्या करने वाले हैं, न केवल उसका पूर्वानुमान लगाना सरल हो गया है बल्कि अब इनकी कोई भी बात अधिकतर लोगों को आश्चर्यचकित नहीं करती। 

सरकार ने पांधी की इस ट्वीट को गंभीरता से लेते हुए एक वक्तव्य जारी किया और बताया कि यह बात गलत है कि कोवैक्सीन बनाने में बछड़े के खून का इस्तेमाल होता है। स्वास्थ्य मंत्रालय के वक्तव्य में यह बताया गया कि बछड़े के खून का इस्तेमाल केवल वीरो सेल के विकास के लिए किया जाता है। यह सबको पता है कि न तो भारत बायोटेक और न ही सरकार ने वैक्सीन से सम्बंधित सूचनाएँ कभी भी छिपाई है। 

यह बात और है कि सरकार के इस वक्तव्य के बाद भी कॉन्ग्रेसी नेता झूठ फैलाने से बाज नहीं आएँगे पर इस विषय पर ट्विटर का अपना आचरण चिंताजनक है। ट्विटर के लिखित नियमों के अनुसार ट्विटर वैक्सीन हेसिटेन्सी को बढ़ावा देनेवाले ट्वीट डिलीट करवा देता है पर आश्चर्य की बात यह है कि इस नियम के बावजूद ट्विटर ने पांधी का ट्वीट नहीं हटाया। यह समझना मुश्किल नहीं है कि विदेशों में वैक्सीन सम्बंधित प्रोपेगेंडा के विरुद्ध सख्त कार्रवाई करने वाला ट्विटर भारत में कॉन्ग्रेस नेताओं के ट्वीट पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं करता। 

ट्विटर का यही आचरण आम भारतीय के साथ-साथ सरकार के मन में भी उसके उद्देश्य को लेकर शंका पैदा करता है। आखिर रोज-रोज लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दावा करने वाला ट्विटर ऐसे मौकों पर एक पारदर्शिता का प्रदर्शन क्यों नहीं कर सकता? दुनिया भर में नैतिकता की बात करने वाला एक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म यदि इस तरह का आचरण करेगा तो किसके मन में संदेह पैदा न होगा? ऐसे में ट्विटर के लिए सरकार द्वारा बनाए गए नए कानून और नियमों के अनुसार कार्रवाई करने के अलावा अब और कोई रास्ता नहीं बचा है। ट्विटर कितनी जल्दी यह मान लेगा, वह देखना दिलचस्प रहेगा। 

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