Wednesday, November 27, 2024

राजनैतिक मुद्दे

शरद पवार लिबरल हिप्पोक्रेसी का नया नमूना, ब्रोकन चेयर ले जाकर कोई दिखाए पाकिस्तान की बर्बरता

मजहब को टोपी-चादर के नाम पर लुभाने की राजनीति अब देश की सरकार को झूठा बता पाकिस्तानी प्रोपगेंडा को हवा देने तक पहुॅंच गई है। ऐसे लोगों को न तो पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद दिखाई दे रहा और न ही बलूचिस्तान का नरसंहार। पूरा का पूरा लिबरल गिरोह और मानवाधिकार के कथित पैरोकार मौन हैं।

कश्मीर पर प्रोपगेंडा फैलाने वाले लिबरल 31 महीने से जारी इंटरनेट शटडाउन पर चुप, लाशें मिल रहीं पर होठ सिले

उन्होंने इस्लाम के नाम पाकिस्तान का समर्थन किया। जिन्ना पर भरोसा किया। कुरान की कसम खाने वाले सैन्य कमांडर पर यकीन किया। बदले में मिला नरसंहार, जो जारी है 72 साल से। अभिव्यक्ति की आजादी, मानवाधिकारों और मजहब के पैरोकारों के होठ फिर भी सिले।

‘न्यायपालिका बिकी हुई है’: वामपंथी गिरोह का अगला नैरेटिव क्योंकि इनके बाप-दादा फँस रहे हैं

यासीन मलिक पर मुकदमा खुल चुका है, 84 के दंगों पर दोबारा केस खुला है, नेशनल हेराल्ड केस है, चिदंबरम हैं, अगस्ता-वेस्टलैंड है, रामजन्मभूमि है, एनडीटीवी का प्रणय रॉय है, क्विंट का राघव बहल है, 370 का मामला सुप्रीम कोर्ट ने देखने का वादा किया है, अर्बन नक्सलियों पर मामले चल रहे हैं…

दादा से राहुल-प्रियंका की चिढ़ पुरानी, इंदिरा ने भी डस्टबिन में फेंक दिया था ‘फिरोज गाँधी प्रेस लॉ’

ऐसा नहीं फ़िरोज़ गाँधी कॉन्ग्रेसी नहीं थे या राजनीति में उनकी हिस्सेदारी नहीं थी। गाँधी परिवार की परंपरागत सीट रायबरेली के पहले सांसद वही थे। फिर, बात-बात में नेहरू, इंदिरा और राजीव का नाम लेने वाले कॉन्ग्रेसी और उनका अगुआ शीर्ष परिवार फिरोज का नाम लेने से क्यों डरता है?

लेफ़्ट-लिबरल इकोसिस्टम की नई चाल को काटने के लिए कितने तैयार हैं आप?

लेफ़्ट-लिबरलों का एक नया खेल शुरू हो गया है। "फेक न्यूज़" चिल्लाने से काम बनता नहीं देख उन्होंने उसी शराब को नई बोतल में डालकर "मिसइंफॉर्मेशन" का लेबल लगा दिया है। अब 'स्थानीय' गिरोह को वैश्विक लेफ़्ट-लिबरलों के नेटवर्क के सरगनाओं का साथ मिल रहा है।

डियर शेहला डोंट वरी! कहना, कंडोम वाले लौंडों को चिढ़ा रही थी

तुम्हारे यूॅं चर्चे में आने से कन्हैया, राना अय्यूब, आरफा खानम शेनवारी सब रश्क कर रहे हैं। राना अय्यूब तो वाशिंगटन पोस्ट तक लिख आई। आरफा भी वायर लेकर तैयार हैं। पर 'आ बैल मुझे मार' वाला तुम्हारा ट्रिक इनके काम अब तक नहीं आया।

एमनेस्टी इंडिया जैसे डकैत विदेशी एनजीओ दूसरे देशों को अपने बाप की खेती क्यों समझते हैं?

अगर एक अंतरराष्ट्रीय संस्था के लिए श्रीलंका की सरकार और लिट्टे समान हैं, इस्लामी देशों में महिलाओं को दोयम दर्जे के अधिकारों का मिलना सही लगता है, नेटिव अमेरिकन महिलाओं का रेप स्वैच्छिक सेक्स लगता है, भारत में जिहादी आतंकियों का पलड़ा भारी है, तो समस्या बहुत बड़ी है।

मानवाधिकार की आड़ में कश्मीर पर आवाज उठाने वाले Amnesty के काले करतूतों का कच्चा चिट्ठा

अर्बन नक्सलियों का साथ देने से लेकर तालिबान से संबंध होने तक के आरोप लग चुके होने के बावजूद Amnesty International सुधर नहीं रहा। अब वह कश्मीर के मुद्दे को भुनाने के चक्कर में कुछ नहीं बल्कि जिहाद का संरक्षण ही कर रहा है।

बाढ़, चमकी बुखार और बेरोज़गार… हर दिन मर्डर और बलात्कार… आखिर ठीके कैसे है नीतीश कुमार?

बिहार पुलिस का आँकड़ा कहता है कि जनवरी 2019 से मई 2019 तक (सिर्फ 5 महीनों में) 1277 हत्याएँ, 605 बलात्कार, 3001 दंगे, 4589 अपहरण जैसे संगीन जुर्म इस राज्य में हुए (हुए शायद ज्यादा होंगे!) और जो आधिकारिक तौर पर दर्ज किए गए।

रोमिला थापर जी, सीवी न सही सुरख़ाब के जो पर लगे हैं आप पर वही दिखा दीजिए हमें…

आखिर रोमिला थापर से सीवी क्यों न माँगी जाए? इसे ऐसे क्यों दिखाया जा रहा है कि विश्वविद्यालय ने रोमिला थापर के ऊपर कोई परमाणु हथियार डेटोनेट कर दिया है? लिबरपंथी और वामपंथी क्षुब्ध क्यों हैं? एक कागज का टुकड़ा माँगने पर इसे अपने सम्मान पर लेने जैसी कौन सी बात हो गई?

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