कानून के शासन और नैतिकता, मूल्यों, आदर्शों की बातें करने वाली योगी सरकार क्या जनता के लिए अलग और अपने विधायक के लिए अलग मापदंड अपनाएगी? नेताजी के लिए “भीड़” का समर्थन आएगा, इस डर से नेताजी को छोड़ा भी जा सकता है! या फिर नेताजी भी वैसे ही जेल जाएँगे जैसे इस मामले में कोई साधारण व्यक्ति गया होता?
खम्भात पर हुए 1299 के आक्रमण में अलाउद्दीन खिलजी के एक सिपहसालार ने काफूर को पकड़ा था। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि उसे 1000 दीनार की कीमत पर खरीदा गया था, इसीलिए काफूर का एक नाम 'हजार दिनारी' भी था।
समय-समय पर कॉन्ग्रेस विभाजित होती रही है। लेकिन यहाँ सवाल यह है कि अब पार्टी के विधायक अलग होकर नई पार्टी क्यों नहीं बना रहे? वे भाजपा के साथ ही क्यों जा रहे हैं? अगर वो नया दल बना लें तो वे ज्यादा मोलभाव करने की स्थिति में होंगे।
2019 आ गया है। दिल्ली इस तरह की घटनाओं से बुरी तरह से प्रभावित है। किसे दोषी ठहराया जाए? वोट बैंक की राजनीति? आज भी अविश्वास का भाव बना रहता है। तो क्या हौज़ काज़ी, मेरठ, आगरा, मुज़फ़्फ़रनगर, हरियाणा, सूरत, पश्चिम बंगाल और अन्य ऐसी जगहों पर हिंदू परिवारों को उनके साथ रहना चाहिए, जहाँ दूसरे मजहब की आबादी काफी है और जहाँ अब सड़कों पर उन्मादी और अराजक भीड़ निकल रही है।
आपकी औकात नहीं है किसी भी पब्लिक स्टेज पर यह बोलने की कि मजहबी नारे का प्रयोग आतंकी हमलों के लिए किया जाता है। पीटने के लिए उपयोग किए गए नारे में और काले झंडे पर लिख कर, अपने आत्मघाती हमले या टेरर अटैक के पहले लिखे पोस्ट या वीडियो में बोले जाने वाले नारे में ‘पीटने’ और ‘कई लोगों की जान ले लेने’ जितना का अंतर है।
जनता वापिस कॉन्ग्रेस के 'माई-बाप समाजवाद' के युग में नहीं जाना चाहेगी, जहाँ राहुल गाँधी जनता को आर्थिक रूप से सरकार पर निर्भर रखना चाहते थे या जहाँ फ़ाइलें इतना धीमें चलें कि नेहरू द्वारा उद्घाटित सरदार सरोवर बाँध का लोकार्पण मोदी के हाथों हो।
अब ये कातिलों से लेकर गबन के आरोपियों का बचाव केवल इस आधार पर करना चाहते हैं कि फलाना मोदी के खिलाफ बोला था, ‘एंटी-RSS’ था, तो अगर इसे जेल भेजा गया तो सरकार के खिलाफ बोलने वालों में ‘डर का माहौल’ बन जाएगा।
एक ऐसा राजर्षि, जिसने गाँव-गाँव में कॉन्ग्रेस को मजबूत करने में अपनी ज़िदगी खपा दी और लोकतान्त्रिक तरीके से जीत कर कॉन्ग्रेस अध्यक्ष बने। लेकिन, नेहरू के 'असहयोग' के कारण भारत रत्न टंडन को राजनीतिक वनवास पर जाना पड़ा। पटेल और बोस के बाद ऐसा त्याग करने वाले तीसरे नेता की कहानी।
प्रोपेगेंडा-पर-प्रोपेगेंडा फैलाते रहना, बार-बार पकड़े जाते रहना, शर्मिंदा होना- अगर यही बिज़नेस मॉडल है तो बात दूसरी है, वरना वायर वालों को बाज आ जाना चाहिए।