इस दूसरे कार्यकाल में इन आतंकियों को हीरो बनाने से रोकना एक प्राथमिकता होनी चाहिए। जिसने निर्दोषों को क़त्ल के लिए बंदूक उठा ली, वो मानव नहीं है। जो मानव नहीं है, उसके न तो अधिकार हैं, न परिवार।
30 मई को जिन मंत्रियों ने शपथ ली, उनकी जाति-धर्म पर शोध हुए और खबरें बना दी गईं। जाति और धर्म का एंगल देकर निष्कर्ष ये निकाला गया कि मोदी सरकार ने भले ही ‘सबका साथ-सबका विकास’ करने की कितनी ही कोशिश क्यों न की हो, लेकिन उनकी मंत्रिपरिषद में ऊँची जाति वालों का ही आधिपत्य है।
चर्चा के विषय से इतर बीच-बीच में दार्शनिक ज्ञान अवश्य बघारें। जरूरत के हिसाब से नास्तिक की अलग-अलग श्रेणियों यथा ईश्वरद्रोही, ईश्वर को न मानने वाला या सिद्ध होने पर ईश्वर को मान लेने की श्रेणी में कूद-फांद करते रहें।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि बीजेपी ने लोकसभा चुनाव 2019 में ओडिशा में जबरदस्त सफलता पाई है। संसदीय सीटों में 8 गुना वृद्धि और विधानसभा चुनावों में दोगुने से अधिक लाभ प्राप्त किया है। दोनों चुनावों में वोट शेयर भी लगभग दोगुना है।
योगेन्द्र यादव ने जनता को भला-बुरा कहा, करोड़ों मतदाताओं को अनभिज्ञ, भटका हुआ, पूर्वग्रह से ग्रसित और सम्मोहित, बताते हुए पूछा है, "क्या मैं उन सबको कॉलर पकड़ कर बताऊँ कि तुम कट्टर हो, धर्मांध हो?"
वो मामला (इसे आप धार्मिक कह लें या सांस्कृतिक) जिसने बंगाल की रगों में ममता के विरुद्ध सोच पनपने की जमीन तैयार की। वो मामला राजनीतिक नहीं था। वो मामला RSS या BJP के द्वारा तैयार नहीं किया गया था। बल्कि उस मामले को ममता ने खुद अपने हाथों से तैयार किया। छले गए बंगालियों ने...
स्मृति इरानी से सुरेन्द्र के शव को कंधा दिया। बंगाल में मारे गए कार्यकर्ताओं के परिवारों को मोदी के शपथग्रहण समरोह में बुलाया जा रहा है। किसी भी नेता या दल को अपने कार्यकर्ताओं के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए, इसका उदाहरण रामायण में मिलता है।
‘धंधे’ में पक कर पक्के हुए निखिल वागले के द्वारा यह अनभिज्ञता नहीं, कुटिलता है, क्योंकि अगर इतने साल बाद भी वह ‘अनभिज्ञ’ हैं निर्वाचन और जनमत-संग्रह के अंतर से, तो वह इतने साल से कर क्या रहे थे?