Friday, November 22, 2024

सामाजिक मुद्दे

घर के इन दीमकों का क्या करें? ‘हा-हा’ रिएक्शन देने वालों का भी मज़हब नहीं होता?

सेना और हमारे सुरक्षा बलों के जवान बाहरी ख़तरों से तो निपट लेंगे लेकिन ये 'हा-हा' करने वालों से कौन निपटेगा? इन्हें क्यों बर्दाश्त किया जा रहा है इस देश के 'अच्छे मुस्लिमों' द्वारा?

राष्ट्र-निर्माण नहीं, राष्ट्र-विरोध की पाठशाला बनता जा रहा है AMU

AMU शैक्षणिक गतिविधियों के अलावा बाक़ी सभी कारणों से सुर्ख़ियों में रहता है। यहाँ बात-बात में साम्प्रदायिक हिंसा भड़क जाती है। देश-विरोधी नारे और राष्ट्र विरोधी गतिविधियाँ तो जैसे यहाँ एक सामान्य बात हो चुकी है।

जब तक शेर अपनी कहानी खुद नहीं कहता शिकारी महान बना रहेगा

हज़ार वर्षों से हमलों के सामने प्रतिरोध की क्षमता ना छोड़ने वाले हिन्दुओं की कहानी लिखने वालों को पब्लिक कब ढूँढेगी?

भारत में हिन्दू अल्पसंख्यकों को कब मिलेगा उनका हक़? माइनॉरिटीज़ कमीशन का फ़ैसला होगा हिंदुओं के पक्ष में!

लक्षद्वीप में 96%, जम्मू एवं कश्मीर में 68%, असम में 34% और पश्चिम बंगाल में 27% लोग मुस्लिम हैं, लेकिन वो अल्पसंख्यक हैं। पश्चिम बंगाल में मुस्लिमों की जनसंख्या उतनी ही है, जितनी यमन और उज़्बेकिस्तान में।

प्रिय मृणाल पांडे, आपकी बातें सड़क पर नाइदो तनियम जैसी हत्या करा सकती हैं! सँभालिए खुद को

कोई व्यक्ति अपने पद का इस्तेमाल लोगों को जोड़ने में कर रहा है, और आपके पास उसकी नीतियों को लेकर, उसके कार्य को लेकर कुछ कहने को नहीं है, तो आप उसकी उस कोशिश का उपहास करते हैं जहाँ वो किसी जनजाति की परम्परा का सम्मान कर रहा होता है!

कॉन्ग्रेस में ‘G’ प्रथा को तोड़िए चिदंबरम जी, सबरीमाला-राम मंदिर आपसे न हो पाएगा

प्रथा वो है, जिसमें कॉन्ग्रेस पार्टी की विचारधारा लीन है। ‘परिवारवाद’ है प्रथा चिदंबरम जी... और अगर ये प्रथा नहीं है तो ‘राहुल गाँधी’ ही क्यों कॉन्ग्रेस पार्टी के अध्यक्ष हैं... आप बन जाइए!

रवीश जी, आर्टिकल ट्रान्सलेट करने के बाद भांडाफोड़ होने पर लेख क्यों नहीं लिखते?

अब यही एन राम, यही हिन्दू और यही रवीश कुमार हर दिन ऐसे कारनामे कर रहे हैं कि मुझे कोई कल को पूछे कि पत्रकारिता में क्या नहीं करना चाहिए तो इनके नाम बताने में झिझक नहीं होगी।

‘हलाला’ और ‘हलाल’ में अधिक अंतर नहीं, क्योंकि तिल-तिल मरते जीवन का कोई अर्थ नहीं

प्रतीत होता है कि ऐसी विषम स्थितियों का सामना कर रही मुस्लिम सम्प्रदाय की महिलाएँ इन कुरीतियों को मानने के लिए लिए जैसे दिमागी तौर पर पहले से ही तैयार रहती हों। लगता है कि विरोध करने की ताक़त तो जैसे उनमें कभी पनपी ही न हो।

हिन्दुओं की मौत में अख़लाक़ वाला सोफ़िस्टिकेशन नहीं है

क्या मार दिए गए किसी व्यक्ति को सिर्फ इसलिए न्याय नहीं मिलना चाहिए, क्योंकि उसका नाम अख़लाक़ नहीं बल्कि रामलिंगम है?

प्रिय मुस्लिम औरतो, आप हलाला, पोलिगेमी और तलाक़ के ही लायक हो! क्योंकि आप चुप हो!

घरवालों ने बेटे से कहा कि अपने फ़ैसले पर पुनर्विचार करे। पति की शर्त आई कि पहले लड़की को उसके पिता के साथ हलाला करना होगा। हलाला यानी ससुर के साथ शारीरिक संबंध बनाना।

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