भावनाएँ आहत होना हमारा राष्ट्रीय उद्योग बन चुका है, और सुप्रीम कोर्ट का हर भावना को बचाने के लिए समय निकाल कर दही हाँडी की ऊँचाई से लेकर जलीकट्टू के सांड की सींग और होली के पानी तक के प्रयास का आम जनता जबरदस्ती सम्मान करती रही है।
जावेद अख्तर ने फ़िल्म लेखक, गीतकार, सांसद और न जाने कितनी भूमिकाएँ निभाई है, लेकिन अब वह एक हास्यास्पद ट्विटर ट्रोल के किरदार में उतर आए हैं। उनके भाषा से वह शालीनता गायब हो गई है, जो उनके गीतों में दिखती थी।
इस पूरे प्रकरण के बाद दावा किया गया कि अमेरिका में भारतीय दूतावास के सामने भारतीय झंडा जलाया गया। लेकिन वहाँ की मीडिया ने इस दावे की मिट्टी पलीद कर दी।
इनमें 77% महिलाओं ने वर्बल सेक्शुअल हैरस्मेंट (भद्दी गली, छींटाकशी, सीटी मारना, अश्लील कमेंट करना) का सामना किया। 51% महिलाओं का कहना रहा कि उन्हें बिना उनकी मर्ज़ी के हाथ लगाया गया। 41% ने बताया कि वो ऑनलाइन यौन शोषण का शिकार हुई हैं।
लड़कियाँ स्कूल सिर्फ इस कारण नहीं जाना चाहती हैं क्योंकि वहाँ उनके पास शौचालय जाने जैसे सुविधाएँ ही नहीं मिल पाती हैं। उन्हें उन तमाम मनोवैज्ञानिक असुविधाओं से गुजरना होता है, जिनके बारे में हम कल्पना तक नहीं कर सकते हैं।
अब आप इसी हत्या की कहानी के नाम बदल दीजिए, प्रकाश को ट्रक पर बिठा दीजिए, फ़ैयाज़ और क़ुरैशी को पुलिस बना दीजिए। तब ये घटना, भले ही इसमें घृणा का एंगल न हो, साम्प्रदायिक हो जाएगी।
'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' योजना की प्रमुख ज़रूरत देशव्यापी जागरूकता अभियान भी है। पर राहुल और उनके पिट्ठू मीडिया को वास्तविक तथ्यों से अवगत हो और उसे सच्चाई के साथ पेश करने की उम्मीद करना बड़ा सवाल है।