Thursday, November 21, 2024

सामाजिक मुद्दे

24 जनवरी: ‘राष्ट्रीय बालिका दिवस’ बस एक दिन नहीं, हमारी सामाजिक सच्चाई का आईना है

इनमें 77% महिलाओं ने वर्बल सेक्शुअल हैरस्मेंट (भद्दी गली, छींटाकशी, सीटी मारना, अश्लील कमेंट करना) का सामना किया। 51% महिलाओं का कहना रहा कि उन्हें बिना उनकी मर्ज़ी के हाथ लगाया गया। 41% ने बताया कि वो ऑनलाइन यौन शोषण का शिकार हुई हैं।

जब सूट-बूट वाली सरकार ने आम आदमी को वो दिया जो उन्हें 50 साल पहले मिलना था

लड़कियाँ स्कूल सिर्फ इस कारण नहीं जाना चाहती हैं क्योंकि वहाँ उनके पास शौचालय जाने जैसे सुविधाएँ ही नहीं मिल पाती हैं। उन्हें उन तमाम मनोवैज्ञानिक असुविधाओं से गुजरना होता है, जिनके बारे में हम कल्पना तक नहीं कर सकते हैं।

इम्तियाज़ और अब्दुल ने कॉन्स्टेबल प्रकाश को पिकअप ट्रक चढ़ाकर मार दिया, कहीं ख़बर पढ़ी?

अब आप इसी हत्या की कहानी के नाम बदल दीजिए, प्रकाश को ट्रक पर बिठा दीजिए, फ़ैयाज़ और क़ुरैशी को पुलिस बना दीजिए। तब ये घटना, भले ही इसमें घृणा का एंगल न हो, साम्प्रदायिक हो जाएगी।

विश्व की सबसे बड़ी सेनिटेशन योजना ‘स्वच्छ भारत अभियान’ से हमें क्या मिला

साठ के दशक के आरंभिक दिनों में जब विद्याधर सूरजप्रसाद नायपॉल अपने पुरखों की भूमि भारत आए थे तब उन्हें कश्मीर से लेकर मद्रास...

राहुल गाँधी जी, हवाबाज़ी थोड़ा कम कीजिए! ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ ने ज़िंदगियाँ बदली हैं

'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' योजना की प्रमुख ज़रूरत देशव्यापी जागरूकता अभियान भी है। पर राहुल और उनके पिट्ठू मीडिया को वास्तविक तथ्यों से अवगत हो और उसे सच्चाई के साथ पेश करने की उम्मीद करना बड़ा सवाल है।

मुंबई से मेडिकल साइंस की एक ख़बर और महर्षि दधीचि के बलिदान की महान गाथा

आख़िर क्यों वाजपेयी ने अपनी कविता में दधीचि का जिक्र किया था? बांद्रा के शिक्षक स्वर्गीय राजेश की कहानी ले जाती है हमें हज़ारों साल पीछे। वृत्रासुर वध की महान गाथा फिर से...

धर्म और आस्था की आड़ में गुरमीत का फलता-फूलता साम्राज्य आख़िर किसकी देन है ?

अपने प्रिय बाबा के आगे नतमस्तक होने वाले लोग यह मान ही नहीं पाते कि उनके बाबा से भी कोई ग़लती, अपराध या गुनाह हो सकता है।

प्रिय लम्पट बुद्धिजीवी गिरोह, भारत ने रोहिंग्या का ठेका नहीं ले रखा है

भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में रोहिंग्याओं को अवैध अप्रवासी बताते हुए उन्हें देश की सुरक्षा के लिए ख़तरा बताया था। सरकार का तर्क था कि रोहिंग्या लोगों को रहने की अनुमति देने से हमारे अपने नागरिकों के हित काफी प्रभावित होंगे और देश में तनाव भी पैदा होगा।

हेलो Quint, शरीरिक बीमारी तो ठीक हो सकती है, मानसिक बीमारी का क्या करें?

लोकतंत्र और FOE का मतलब वो लिबरल क्या जाने जो दुनिया की सबसे बड़ी लोकतान्त्रिक पार्टी के मुखिया के लिए मौत माँगता हो। स्वाइन फ़्लू के सात हज़ार केस आ चुके हैं भारत में। क्या उन सबकी मृत्यु से स्तुति मिश्रा की क्षुधा शांत होगी?

प्रिय प्रोपेगेंडाबाज़ो! तेरी जली न? उरी और हैदर फ़िल्मों के राष्ट्रवाद में थोड़ा फ़र्क है

इस देश का दुर्भाग्य है कि यहीं पर मौज़ूद एक ऐसा बड़ा वर्ग पैदा हो चुका है जिसे भारतीय सेना के जज़्बों में भी राजनीति ढूँढ लेने में में गर्व महसूस होता है।

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