इनमें 77% महिलाओं ने वर्बल सेक्शुअल हैरस्मेंट (भद्दी गली, छींटाकशी, सीटी मारना, अश्लील कमेंट करना) का सामना किया। 51% महिलाओं का कहना रहा कि उन्हें बिना उनकी मर्ज़ी के हाथ लगाया गया। 41% ने बताया कि वो ऑनलाइन यौन शोषण का शिकार हुई हैं।
लड़कियाँ स्कूल सिर्फ इस कारण नहीं जाना चाहती हैं क्योंकि वहाँ उनके पास शौचालय जाने जैसे सुविधाएँ ही नहीं मिल पाती हैं। उन्हें उन तमाम मनोवैज्ञानिक असुविधाओं से गुजरना होता है, जिनके बारे में हम कल्पना तक नहीं कर सकते हैं।
अब आप इसी हत्या की कहानी के नाम बदल दीजिए, प्रकाश को ट्रक पर बिठा दीजिए, फ़ैयाज़ और क़ुरैशी को पुलिस बना दीजिए। तब ये घटना, भले ही इसमें घृणा का एंगल न हो, साम्प्रदायिक हो जाएगी।
'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' योजना की प्रमुख ज़रूरत देशव्यापी जागरूकता अभियान भी है। पर राहुल और उनके पिट्ठू मीडिया को वास्तविक तथ्यों से अवगत हो और उसे सच्चाई के साथ पेश करने की उम्मीद करना बड़ा सवाल है।
आख़िर क्यों वाजपेयी ने अपनी कविता में दधीचि का जिक्र किया था? बांद्रा के शिक्षक स्वर्गीय राजेश की कहानी ले जाती है हमें हज़ारों साल पीछे। वृत्रासुर वध की महान गाथा फिर से...
भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में रोहिंग्याओं को अवैध अप्रवासी बताते हुए उन्हें देश की सुरक्षा के लिए ख़तरा बताया था। सरकार का तर्क था कि रोहिंग्या लोगों को रहने की अनुमति देने से हमारे अपने नागरिकों के हित काफी प्रभावित होंगे और देश में तनाव भी पैदा होगा।
लोकतंत्र और FOE का मतलब वो लिबरल क्या जाने जो दुनिया की सबसे बड़ी लोकतान्त्रिक पार्टी के मुखिया के लिए मौत माँगता हो। स्वाइन फ़्लू के सात हज़ार केस आ चुके हैं भारत में। क्या उन सबकी मृत्यु से स्तुति मिश्रा की क्षुधा शांत होगी?
इस देश का दुर्भाग्य है कि यहीं पर मौज़ूद एक ऐसा बड़ा वर्ग पैदा हो चुका है जिसे भारतीय सेना के जज़्बों में भी राजनीति ढूँढ लेने में में गर्व महसूस होता है।