Saturday, April 20, 2024
Homeदेश-समाजविश्व की सबसे बड़ी सेनिटेशन योजना 'स्वच्छ भारत अभियान' से हमें क्या मिला

विश्व की सबसे बड़ी सेनिटेशन योजना ‘स्वच्छ भारत अभियान’ से हमें क्या मिला

स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत अब तक देश भर में नौ करोड़ से अधिक शौचालय बनाए जा चुके हैं। 2014 में देश में सैनिटेशन कवरेज 39% था जो अब बढ़कर 98% तक पहुँच चुका है।

साठ के दशक के आरंभिक दिनों में जब विद्याधर सूरजप्रसाद नायपॉल अपने पुरखों की भूमि भारत आए थे तब उन्हें कश्मीर से लेकर मद्रास तक और गोवा से लेकर उत्तर प्रदेश तक हर जगह लोग खुले में शौच करते दिखते थे। उन्होंने अपने अनुभव 1964 में आई अपनी पुस्तक ‘An Area of Darkness’ में लिखे हैं।

नायपॉल ने लिखा है कि भारतवासी कहीं भी शौच कर सकते हैं: चाहे वह रेलवे ट्रैक हो, बस अड्डा, समुद्र का किनारा, पहाड़ी, सड़कें या नदी का किनारा। भारतीयों को खुले में शौच करने से कोई परहेज नहीं होता। नायपॉल के 50 वर्ष पुराने अनुभव उस जमाने के भारत का ऐसा चित्रण करते हैं जिसका उल्लेख नायपॉल की पुस्तक आने के कई दशक बाद भी तत्कालीन साहित्य में लगभग नहीं के बराबर हुआ।

इसकी पीड़ा स्वयं नायपॉल ने भी अनुभव की थी। उन्होंने अपनी पुस्तक में लिखा था कि खुले में शौच करने की गंदी आदत के बारे में कहीं भी लिखा नहीं जाता, उसपर चलचित्र नहीं बनते न ही कोई बात करता है। यह समाज में एक प्रकार से स्वीकार्य प्रथा थी जिसका कोई विरोध नहीं करता था। लोग अपनी परंपरागत आदतों जैसे दाहिने हाथ से खाने और प्रतिदिन नहाने को यूरोप के लोगों की आदतों से ज़्यादा अच्छा मानते थे लेकिन खुले में शौच को बुरा नहीं मानते थे। नायपॉल के अनुसार तर्कों से स्वयं को श्रेष्ठ सिद्ध करने का यह भारतीय तरीका था।

बहुत से लोगों को बाहर शौच करना अधिक सुविधाजनक लगता था और बंद कमरे में शौच करने में डर लगता था। नायपॉल के जमाने में एक व्यक्ति ने उनसे यहाँ तक कहा था कि उसे बाहर शौच करना इसलिए पसंद था क्योंकि उस समय वह कुदरत के क़रीब होता था जिससे वह उर्दू में अच्छी शायरी लिख पाता था।  

आज से पचास वर्ष पहले जो भी मान्यताएँ रही हों, लेकिन विडंबना यह है कि आज भी लोग खुले में शौच करने के पीछे विचित्र और अनर्गल तर्क देते दिखाई देते हैं। गाँवों में कुछ लोगों को लगता है कि घर में शौचालय बनवाना गंदगी को घर में लाने के समान है।

नायपॉल ने 50 वर्ष पहले ही यह लिखा था कि भारतीयों को पश्चिम की आलोचना करने से पहले उनसे ‘म्युनिसिपल सैनिटेशन’ सीखना चाहिए। इस सिद्धांत को ली कुआन यू ने सिंगापुर में अपनाया था। सिंगापुर को ‘फर्स्ट वर्ल्ड’ देशों की श्रेणी में लाने के लिए ली कुआन यू ने 1959 में स्वयं झाड़ू उठाई थी और सड़कों को साफ़ किया था। यह वही समय रहा होगा जब नायपॉल भारत में भ्रमण कर रहे होंगे और अपने विचारों को पुस्तक के रूप में लिखने के बारे में सोच रहे होंगे।   

ध्यान देने वाली बात यह भी है कि नायपॉल की पुस्तक को भारत की खराब छवि दिखाने के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया था लेकिन खुले में शौच की समस्या के निदान के बारे में सोचना तो दूर उसे समस्या माना ही नहीं जाता था। सरकारों, नीति निर्माताओं और नेताओं को इसका भान ही नहीं था कि गंदगी जनित विभिन्न प्रकार की बीमारी होने पर इलाज में होने वाले खर्च का सीधा संबंध खुले में शौच करने से था।

अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार प्राप्त एंगस डीटन के शोध के अनुसार गंदगी में जीने से मनुष्य क़द में छोटा रह जाता है। यूरोप के लोग भारतीयों से लंबे इसलिए भी होते हैं क्योंकि वे सेनिटेशन का ध्यान रखते हैं।  

हमें शौचालय के प्रयोग और स्वछता के महत्व को समझने में 50 वर्षों से अधिक का समय लगा। शौचालय को लेकर मनःस्थिति में परिवर्तन आज से पाँच वर्ष पूर्व देखने को मिला था जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं आगे आकर स्वच्छ भारत अभियान का नेतृत्व किया था। स्वच्छ भारत अभियान के पीछे सरकार की मंशा यह थी कि लोगों की मानसिकता में परिवर्तन हो।

जब जनमानस की मानसिकता बदलती है तभी सरकारी योजनाएँ फल देती हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा की गई अपील के फलस्वरूप न केवल लोगों की आदतों में सुधार हुआ बल्कि स्वच्छ भारत अभियान को महिला सशक्तिकरण की दिशा में किए गए सबसे महत्वपूर्ण प्रयासों में गिना जा रहा है। ऐसी अनेक कहानियाँ हैं जहाँ ग्रामीण महिलाओं को शौच के लिए घर से एक किमी से अधिक दूर जाना पड़ता था लेकिन अब घर में शौचालय बनने से उनकी दिक्कतें खत्म हो गई हैं।

शौच जैसे काम के लिए महिलाओं को प्रतिदिन (कभी-कभी दिन में दो बार) घर से दूर एकांत में जाने की अनिवार्यता किसी अनहोनी का बहाना भी हो सकती है। इसका उदाहरण मई 2014 में घटित हुए बदायूं कांड में दो बहनों की मृत्यु के रूप में देखने को मिला था। कारण चाहे जो कुछ भी रहा हो किंतु दोनों बहनें शौच के बहाने ही घर से बाहर गई थीं।

समस्या युवतियों और महिलाओं के घर से बाहर जाने में नहीं है, समस्या यह है कि शौच के लिए उन्हें ऐसे समय की प्रतीक्षा करनी पड़ती है जब अंधकार हो जाए और स्थान ऐसा खोजना पड़ता है जहाँ एकांत हो। अनहोनी और अपराध का यह सर्वाधिक उपयुक्त समय और स्थान होता है। कई बार महिलाओं को इन परिस्थितियों की प्रतीक्षा करने के चलते शौच को काफी देर तक रोककर रखना पड़ता है जिसके कारण शारीरिक पीड़ा भोगनी पड़ती है।

स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत अब तक देश भर में नौ करोड़ से अधिक शौचालय बनाए जा चुके हैं। 2014 में देश में सैनिटेशन कवरेज 39% था जो अब बढ़कर 98% तक पहुँच चुका है। स्वच्छता और शौचालय अब ऐसे विषय बन गए हैं जिनपर बात होती है, फिल्म बनती है, प्रशंसा और आलोचना भी होती है। इस दृष्टि से अब हम खुले में शौच करने के कारण होने वाली बीमारियों के प्रति सचेत हो चले हैं। मानसिकता में यह परिवर्तन जो स्वतंत्रता के सत्तर वर्षों तक नहीं आया था अब दिखने लगा है। और ऐसा भी नहीं कि यह एकदम से आया और इसके लिए केवल नरेंद्र मोदी ही ज़िम्मेदार हैं।

नगरों में शौचालय बनवाने का प्रथम अभियान बिंदेश्वर पाठक ने सुलभ शौचालय बनवा कर चलाया था लेकिन सुलभ की पहुँच नगरों तक ही सीमित थी। सुलभ के बारे में यह जानना भी आवश्यक है कि इसकी प्रेरणा मैला ढोने की प्रथा को समाप्त करने के विचार से मिली थी। जबकि स्वच्छ भारत अभियान समग्रता में नगरों के साथ गाँवों को भी सैनिटेशन की प्रक्रिया से जोड़ता है।

शौचालयों के निर्माण में केंद्र के साथ राज्य सरकारों की 60:40 के अनुपात में सहभागिता सही मायने में ‘कोऑपरेटिव फेडरलिज़्म’ से ‘कंस्ट्रक्टिव फेडरलिज़्म’ की ओर उन्मुख नीति को दर्शाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 2014-19 के मध्य गाँवों में 3,00,000 लोगों को डायरिया और प्रोटीन की कमी से मरने से बचाया जा चुका है।

बीमारियों से ग्रसित न होने से अब लोग अधिक दिनों तक काम कर सकते हैं जिसके कारण उनकी कमाई में वृद्धि हुई है। यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार जो गाँव पूरी तरह से खुले में शौच से मुक्त घोषित हो चुके हैं वहाँ एक घर को औसतन ₹50,000 प्रतिवर्ष बचत हो रही है। वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के अनुसार गंदगी के कारण 2011 में भारत की जीडीपी को जहाँ 6% की हानि हो रही थी वहीं 2016 की एक रिपोर्ट के अनुसार यह हानि 5.2% रह गई है।

पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय में सचिव परमेश्वरन अय्यर स्वच्छ भारत अभियान का नेतृत्व कर रहे हैं। अय्यर बताते हैं कि विश्वभर में खुले में शौच करने वालों की संख्या में से 60% लोग भारत में थे जिनमें से लगभग 55 करोड़ जनसंख्या ग्रामीण है। इन 55 करोड़ लोगों में से 45 करोड़ लोग आज की तारीख में खुले में शौच करने की बाध्यता से मुक्त हो चुके हैं। शौचालय निर्माण में महिलाओं ने बढ़चढ़ कर भागीदारी की है। हजारों महिलाओं ने शौचालय निर्माण को रोज़गार के एक अवसर के रूप में लिया है।

Special coverage by OpIndia on Ram Mandir in Ayodhya

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

‘PM मोदी की गारंटी पर देश को भरोसा, संविधान में बदलाव का कोई इरादा नहीं’: गृह मंत्री अमित शाह ने कहा- ‘सेक्युलर’ शब्द हटाने...

अमित शाह ने कहा कि पीएम मोदी ने जीएसटी लागू की, 370 खत्म की, राममंदिर का उद्घाटन हुआ, ट्रिपल तलाक खत्म हुआ, वन रैंक वन पेंशन लागू की।

लोकसभा चुनाव 2024: पहले चरण में 60+ प्रतिशत मतदान, हिंसा के बीच सबसे अधिक 77.57% बंगाल में वोटिंग, 1625 प्रत्याशियों की किस्मत EVM में...

पहले चरण के मतदान में राज्यों के हिसाब से 102 सीटों पर शाम 7 बजे तक कुल 60.03% मतदान हुआ। इसमें उत्तर प्रदेश में 57.61 प्रतिशत, उत्तराखंड में 53.64 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -

हमसे जुड़ें

295,307FansLike
282,677FollowersFollow
417,000SubscribersSubscribe