सवर्णों द्वारा अनुसूचित जाति के लोगों पर अत्याचार की झूठी और भ्रामक ख़बरें आजकल सोशल मीडिया ही नहीं बल्कि मुख्यधारा की मीडिया में भी आम होती नजर आ रही हैं। हाल ही में एक झूठी खबर में यह साबित करने का प्रयास किया गया था कि अमरोहा में एक युवक को दलित होने के कारण मंदिर में प्रवेश नहीं करने दिया गया और उसे गोली मार दी गई और अब एक नए प्रकरण में भी दलितों पर ‘ऊँची जाति’ वालों द्वारा अत्याचार का नैरेटिव बनाने के लिए झूठी खबर प्रकाशित की जा रही हैं।
कुछ ऐसी रिपोर्ट्स सामने आई हैं, जिनमें दावा किया गया कि लखनऊ के बरौली खलीलाबाद गाँव में गत 04 जून को एक ब्राह्मण व्यक्ति के घर से चोरी करते पकड़े जाने के बाद तीन दलितों को बाँधकर पीटा गया, उनके साथ बदसलूकी की गई और उनके गले में ‘जूतों की माला’ पहनाकर उनकी परेड करवाई गई।
ये कौन हैं??
— Shhh… (@hatefreebharat) June 11, 2020
This happened in Lucknow’s Khalilabad village on 4 June.
Dalit men were beaten up, tonsured, paraded with shoe garland around their neck.
pic.twitter.com/M2RxxNe7UX
प्रोपेगेंडा वेबसाइट ‘द क्विंट’ की एक रिपोर्ट को शेयर करते हुए कुछ चिरपरिचित एजेंडाबाजों ने ‘दलित लाइव्स मैटर’ (Dalit Lives Matter) हैशटैग के साथ इस झूठी खबर को शेयर करना शुरू किया। ऐसा करने वालों में वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण सबसे पहले व्यक्ति थे।
एक कदम आगे जाते हुए कश्मीरी पत्रकार रकीब हमीद नाइक, जो ‘द वायर’ और ‘द कारवां’ जैसे वामपंथी प्रोपेगेंडा वेबसाइट्स के लिए भी लिखते हैं, ने यह भी दावा किया कि COVID -19 के बीच जारी लॉकडाउन के दौरान दलितों के खिलाफ ऊँची-जाति की क्रूरता में अचानक उछाल आया है।
इसके बाद ‘द क्विंट’ की इस तथाकथित रिपोर्ट को कई अन्य लोगों द्वारा भी शेयर किया गया। ‘द क्विंट’ में 11 जून को प्रकाशित इस सनसनीखेज लेख का शीर्षक है – “UP में 3 दलितों के साथ मारपीट, सिर मुँड़वा कर गाँव में घुमाया।”
Three Dalit men were tied up, beaten, forcefully tonsured and paraded around with shoes hung around their necks in Lucknow’s Barauli Khalilabad village by the upper caste men. https://t.co/iw3VkxBTBJ
— IndianAmericanMuslimCouncil (@IAMCouncil) June 11, 2020
क्या कहती है ‘द क्विंट’ की झूठी रिपोर्ट
‘द क्विंट’ की इस रिपोर्ट में लिखा है – “उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में तीन दलित लोगों के साथ मारपीट की खबर सामने आई है। तीनों के साथ मारपीट की गई, जबरन सिर मुँड़वा दिया गया और गले में जूते टाँगगकर उन्हें घुमाया गया। ये घटना लखनऊ के बरौली खलिलाबाद गाँव में 4 जून की बताई जा रही है।”
PGI पुलिस स्टेशन इंचार्ज केके मिश्रा के हवाले से ‘द क्विंट’ ने लिखा – “तीन दलित लोगों को कथित तौर पर एक ब्राह्मण शख्स के घर से पंखा चुराते हुए देखा गया। परिवार के तीन लोगों को पकड़ने के बाद, गाँव के और लोग भी इकट्ठा हो गए और फिर भीड़ ने उन्हें पीटना शुरू कर दिया। उन्हें और अपमानित करने के लिए, उन्होंने उनका सिर मुँडवा दिया और गले में चप्पलें टाँगकर उन्हें गाँव में घुमाया।”
इस खबर को जातिवादी स्वरुप देकर अन्य समाचार स्रोतों ने भी इसे प्रकाशित किया है।
पुलिस ने स्पष्ट किया कि इस घटना में कोई जातिगत एंगल था ही नहीं
हालाँकि, अमरोहा की घटना की तरह ही ‘द क्विंट’ के ये दावे भी सच नहीं हैं। लखनऊ पुलिस ने इस पर स्पष्ट किया है कि इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना का जातिगत पूर्वग्रह से कोई लेना-देना नहीं था और यह महज एक चोरी का मामला था।
लखनऊ पुलिस ने कहा कि उस दिन गाँव से दो घटनाओं की सूचना मिली थी। पहली घटना में, कुछ चोरों को ग्रामीणों ने चोरी के सामान के साथ रंगे हाथों पकड़ा था। चोर सवर्ण और अनुसूचित, दोनों ही जाति के थे और इन मीडिया पोर्टलों द्वारा किए गए दावों के विपरीत कि वे सभी दलित थे।
लखनऊ में दलित युवकों के साथ ब्राह्मण समुदाय द्वारा अपमानजनक कृत्य मामले में भैया @BhimArmyChief के आगाह के बाद 02 लोगों की गिरफ्तारी हुई है। अन्य की दबिश की जा रही है।@lkopolice किसी भी आरोपी को छोड़े न। सबकी गिरफ्तारी सुनिश्चित की जाए। जातीय जुल्म हरगिज मंजूर नहीं। pic.twitter.com/I1ZKN7RXxI
— Chandra Shekhar Aazad (@BhimArmyChief_) June 10, 2020
वास्तव में, जिन ग्रामीणों ने उन चोरों को रंगे हाथों पकड़ा था, वे गुस्से में थे, उन्हें पीटा और उनके सिर के बाल काट दिए। लखनऊ पुलिस ने पुष्टि की कि आरोपितों के साथ-साथ उन ग्रामीणों के खिलाफ भी मामले दर्ज किए गए हैं, जिन्होंने आरोपितों को पीटा और दुर्व्यवहार किया।
पुलिस ने पुष्टि की कि दो ग्रामीण, जो मुंडन और पीटने वालों में से थे, उन आरोपितों को पहले ही गिरफ्तार किया जा चुका है। घटना में शामिल बाकी ग्रामीणों की तलाश में पुलिस लगी हुई थी। बयान में यह भी कहा गया है कि चोरों की पिटाई और परेड करने वाले लोग भी कई जातियों के थे। यानी, जैसा कि ‘द क्विंट’ और अन्य समाचार स्रोतों ने इसे सवर्ण और दलित का मुद्दा बताने का प्रयास किया है, वह बेबुनियाद और झूठा है।
अमरोहा की घटना को भी मीडिया गिरोह ने दिया था जातिवादी एंगल
उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिला स्थित हसनपुर कोतवाली क्षेत्र के गाँव डोमखेड़ा में गत 6 जून की रात 4 युवकों ने आपसी रंजिश के चलते घर में घुस कर एक युवक की गोली मारकर हत्या कर दी। मीडिया के कई प्रमुख स्रोतों ने इस खबर में स्पष्ट तौर पर यह साबित करने का प्रयास किया है कि अमरोहा में एक दलित को मंदिर में जाने के कारण गोली से मार दिया गया।
जबकि वास्तविकता स्वयं अमरोहा पुलिस ने सामने रखी। इस घटना पर अमरोहा पुलिस ने खुद छानबीन के बाद एक वीडियो जारी कर स्पष्ट करते हुए कहा कि इस घटना में युवक की जाति और मंदिर में प्रवेश का कोई प्रसंग था ही नहीं। इस वीडियो में अमरोहा पुलिस, थाना हसनपुर क्षेत्रान्तर्गत ग्राम डोमखेड़ा में नाबालिग युवक की हत्या करने के सम्बन्ध में सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस (SP) विपिन ताडा ने कहा –
“मामला दर्ज कर के जाँच शुरू कर दी है। दो की गिरफ्तारी भी हो गई है। इनका ये कहना है कि जो मृतक है उनके भाई के साथ में इनके आम के बगीचे के ठेकों का और मधुमक्खी पालन की साझेदारी थी, जिसमें कि इनके 5 हज़ार रुपए मृतक के भाई पर शेष थे। इसी बात के तकादे को लेकर मृतक और अभियुक्त पक्ष का झगड़ा हुआ, जिसके बाद अभियुक्त गाँव छोड़कर भाग गया। फिर बदला लेने के उद्देश्य से अचानक गाँव में आया और इस युवक को गोली मारकर फरार हो गया। 2 की गिरफ्तारी हो गई है, इनसे पूछताछ करके बाकियों की गिरफ्तारी भी होगी।”
अमरोहा की घटना को भी डाली और सवर्णों के बीच संघर्ष साबित करने वाला गिरोह भी ‘द क्विंट’ की ही तरह वामपंथी प्रोपेगेंडा का हिस्सा थे, जिसमें प्रमुख नाम, टेलीग्राफ और अपने फैक्ट चेकर होने का दावा करने वाले ऑल्टन्यूज़ के संस्थापक थे।
सोशल मीडिया पर इस घटना को दलित पर सवर्णों के अत्याचार के रूप में जमकर शेयर किया गया, जबकि वास्तविकता क्विंट, वायर, लल्लनटॉप, टेलीग्राफ, ऑल्टन्यूज़ जैसे मीडिया गिरोह की हेडलाइन से अलग यह है कि यह मामला मृतक युवक की जाति या मंदिर में पूजा को लेकर नहीं बल्कि आपस में मिलजुलकर शुरू किए गए बिजनेस को लेकर था।