राजनीति में संयोग महत्वपूर्ण होते हैं। संयोग से समीकरण बनते हैं। संयोग से वे हालात पैदा होते हैं, जो भविष्य की तस्वीर दिखाते हैं। ऐसा ही संयोग राजस्थान की राजनीति में इस वक्त बनता दिख रहा है।
असल में, एक पुलिस अधिकारी की आत्महत्या से इस वक्त प्रदेश की कॉन्ग्रेस सरकार और उसकी एक विधायक पर सवाल उठ रहे हैं। सवाल उसी तरह के हैं जिनसे 2011 में राजस्थान की कॉन्ग्रेस सरकार और उसके नेताओं को जूझना पड़ा था।
2011 में भंवरी देवी नाम की एक नर्स के गायब होने से राजस्थान की सियासत गरम हो गई थी। ठीक उसी तरह जैसे आज विष्णुदत्त विश्नोई की आत्महत्या पर सियासी उफान दिख रहा है। संयोगों की सियासत देखिए उस वक्त भी प्रदेश में कॉन्ग्रेस की सरकार थी। मुख्यमंत्री आज की तरह ही अशोक गहलोत थे। विवादों के केंद्र में कॉन्ग्रेस नेता महिपाल मदेरणा और मलखान सिंह उसी तरह थे, जैसे आज कृष्णा पूनिया पर उँगली उठ रही है।
विष्णुदत्त विश्नोई की आत्महत्या की खबर सामने आने के बाद न केवल सियासत गरम है, बल्कि सोशल मीडिया में आम लोगों की प्रतिक्रिया देखें तो ऐसा लगता है कि उन्हें भी इस पर यकीन नहीं हो रहा। ये राजस्थान के वे लोग हैं जिनके इलाके में अपने सेवा काल के दौरान विश्नोई तैनात रहे थे। इन लोगों ने विश्नोई के होने से अपराधियों में पैदा डर को देखा था। ये उन आंदोलनों के गवाह रहे हैं जो तब हुए जब विश्नोई का तबादला उनके इलाके से कर दिया गया था।
विष्णुदत्त विश्नोई के सुसाइड नोट
विष्णुदत्त विश्नोई चुरू जिले के राजगढ़ थाना प्रभारी थे। शनिवार की सुबह अपने सरकारी क्वार्टर में फंदे से लटके मिले थे। कहते हैं कि उनकी पोस्टिंग पब्लिक डिमांड पर होती थी। जब किसी इलाके में अपराध बेकाबू हो जाता था तो विश्नोई को वहॉं भेजा जाता था। जाहिर है ऐसे अधिकारी की आत्महत्या की खबर से हर किसी को हैरान होना था और वे हुए भी।
विश्नोई दो सुसाइड नोट छोड़कर गए हैं। इनमें से एक में अपने जिले की एसपी तेजस्विनी गौतम को उन्होंने लिखा है;
आदरणीय मैडम। माफ करना। प्लीज, मेरे चारों तरफ इतना प्रेशर बना दिया गया कि मैं तनाव नहीं झेल पाया। मैंने अंतिम साँस तक मेरा सर्वोत्तम देने का राजस्थान पुलिस को प्रयास किया। निवेदन है कि किसी को परेशान नहीं किया जाए। मैं बुजदिल नहीं था। बस तनाव नहीं झेल पाया। मेरा गुनहगार मैं स्वयं हूँ।
दूसरा सुसाइड नोट उन्होंने अपने माता-पिता के नाम से लिखा था। इसमें लिखा है;
आदरणीय मॉं-पापा। मैं आपका गुनाहगार हूँ। इस उम्र में दुख देकर जा रहा हूॅं। उमेश, मन्कू और लक्की मेरे पास कोई शब्द नहीं है। आपको बीच मझधार में छोड़कर जा रहा हूँ। पता है ये कायरों का काम है। बहुत कोशिश की खुद को सॅंभालने की, पर शायद गुरु महाराज ने इतनी सॉंस दी थी। उमेश दोनों बच्चों के लिए मेरा सपना पूरा करना। संदीप भाई पूरे परिवार को सॅंभाल लेना प्लीज। मैं खुद गुनाहगार हूॅं। आप सबका विष्णु।
दोनों सुसाइड नोट में खुद को गुनहगार बताने वाले एक अधिकारी की आत्महत्या पर सवाल क्यों उठ रहे हैं? इसकी वजह है वह दबाव जिसका जिक्र एसपी को लिखे नोट में विश्नोई ने की है। अब उन पर दबाव किस तरह का था यह उन्होंने साफ नहीं किया है।
यही नहीं फंदे पर लटके पाए जाने से एक दिन पहले विश्नोई ने एक परिचित के साथ व्हाट्सएप पर चैटिंग की थी। इसमें उन्होंने कहा था कि उन्हें गंदे पॉलिटिक्स में फॅंसाने की कोशिश हो रही है। उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए आवेदन करने की बात भी कही थी।
यहीं से पूरे मामले में एथलीट से कॉन्ग्रेस की विधायक बनीं कृष्णा पुनिया पर सवाल उठ रहे हैं। हालॉंकि पूनिया इसके लिए बीजेपी की ओछी राजनीति को जिम्मेदार बताती हैं। उन्होंने विश्नोई की कॉल डिटेल निकाल पूरे मामले की जॉंच की मॉंग की है।
मेरी संवेदनाएं विष्णु दत्त विश्नोई जी के परिवार के साथ है।जिस तरह BJP के नेताओं द्वारा ओछी राजनीति की गई।मैं चाहती हूँ विष्णु दत्त जी की पिछले दिनों की सारी काल डिटेल निकलवा कर इस मामले की सम्पूर्ण जाँच की जाए। #सत्यमेवजयते @1stIndiaNews @zeerajasthan_ pic.twitter.com/Axp1Q9o45s
— Dr. Krishna Poonia (@KrishnaPooniaIN) May 24, 2020
यह भी कहा जा रहा है कि विश्नोई अपने थाने के कुछ पुलिसकर्मियों को लाइन हाजिर करने से भी नाराज थे। ऐसा कथित तौर पर कृष्णा पूनिया ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को कहकर करवाया था।
भंवरी देवी याद है?
भंवरी देवी सितंबर 2011 में एक दिन अपने घर से निकलती है और फिर कभी लौटकर नहीं आती। 12 दिनों तक जब उसका कोई पता नहीं चला तो पति अमरचंद ने पुलिस में रिपोर्ट लिखवाई। अमरचंद ने पत्नी के गायब होने के लिए उस समय की गहलोत सरकार में मंत्री रहे महिपाल मदेरणा को जिम्मेदार ठहराया है।
सियासी पारा चढ़ा। फिर कॉन्ग्रेस विधायक मलखान सिंह का भी नाम आया। सरकार को मजबूरन सीबीआई जॉंच के आदेश देने पड़े। जॉंच में ‘सेक्स, सीडी और सियासत’ की जो परतें खुलीं वह हैरान करने वाली थी। सरकार के साथ-साथ कॉन्ग्रेस नेताओं की साख डूब चुकी थी। 2013 के विधानसभा चुनाव के नतीजों में यह साफ दिखा।
तब शहाबुद्दीन था, आज लॉरेंस गैंग
भंवरी मामले में राजू नाम के एक शख्स का बार-बार नाम आ रहा था। गायब होने के करीब 126 दिन बाद पता चला कि भंवरी की हत्या हो गई है और राजू नाम का शख्स असल में राजस्थान का दुर्दांत अपराधी शहाबुद्दीन था। इसी तरह विश्नोई की आत्महत्या मामले में लॉरेंस गैंग का नाम सामने आ रहा है। कहा जा रहा है कि विश्नोई जिस मर्डर केस की तहकीकात में जुटे थे उसके तार इसी गैंग से जुड़े थे। इसी जॉंच के सिलसिले में वे आत्महत्या से पहले रात के तीन बजे थाने भी गए थे।
विश्नोई पंचतत्व में विलीन पर सियासी धुआँ थमा नही है
पोस्टमार्टम के बाद विश्नोई का शव रविवार को श्रीगंगानगर जिले स्थित उनके पैतृक गॉंव ले जाया गया। भारत माता की जय और विष्णुदत्त अमर रहे, जैसे नारों के बीच उनका अंतिम संस्कार हुआ।
इस बीच राजगढ़ थाने में तैनात पुलिसकर्मियों ने बीकानेर रेंज के आईजी को एक पत्र लिखा है। इसमें सामूहिक रूप से अपना ट्रांसफर करने की गुहार लगाई है। इनका कहना है कि विश्नोई के साथ जो कुछ हुआ उससे वे भयभीत हैं। पत्र में सादुलपुर की विधायक (कृष्णा पूनिया) और उनके कार्यकर्ताओं पर उच्च अधिकारियों से झूठी शिकायत कर पुलिसकर्मियों को प्रताड़ित करने का आरोप भी लगाया गया है।
तपिश का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि गहलोत सरकार ने मामले की जॉंच सीआईडी (क्राइम ब्रांच) के एसपी विकास शर्मा को सौंपी। बावजूद इसके सीबीआई जॉंच की मॉंग उठ रही है।
अब देखना यह है कि गहलोत सरकार और कॉन्ग्रेस विधायक आरोपों के कठघरे से बाहर निकल पाती हैं या फिर भंवरी देवी मामले की तरह ही विश्नोई सुसाइड केस में भी आखिरकार कॉन्ग्रेस की लुटिया डूबेगी ही।
जो भी हो कोरोना संकट के इस दौर में राजस्थान की सियासत नई करवट ले रही है। नजर बनाए रखिएगा।