Wednesday, October 16, 2024
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‘जय श्री राम नहीं बोले तो हमको मारा’ – वो 10 घटनाएँ जिनके सहारे ‘लिबरल मीडिया’ ने चलाया प्रोपेगेंडा

अगर पुलिस सोशल मीडिया में आ रही खबरों के आधार पर किसी अपराध का स्वतः संज्ञान लेने का अधिकार रखती है, तो किसी भी समुदाय के खिलाफ दुर्भावनावश या निहित स्वार्थ के अंतर्गत चलाए जा रहे नैरेटिव को तोड़ने के लिए ऐसा ट्वीट करना पुलिस की जिम्मेदारी क्यों नहीं है?

देश में इन दिनों एक ट्रेंड सा चल रहा है कि कहीं भी कोई झगड़ हो तो उसे साम्प्रदायिक बना दिया जाता है। इतना ही नहीं, उसमें जय श्री राम का मसाला जोड़कर हिन्दुओं को बदनाम करने की कोशिश की जाती है। हालाँकि, हिन्दू भी इस बात से हैरान-परेशान हैं कि आखिर वह कौन लोग हैं जो ‘जय श्री राम’ का नारा हिन्दुओं को तो लगाने की इजाज़त नहीं दिला पा रहे हैं, और समुदाय विशेष से लगवाए जा रहे हैं। देश में रोजाना किसी न किसी जगह से अल्पसंख्यकों के साथ ज्यादती और उनसे जबरन जय श्री राम का नारा लगवाने की खबरें आती हैं। इन खबरों को मीडिया में उछाला जाता है, सोशल मीडिया पर फैलाया जाता है, लेकन पुलिस जब गहनता से जाँच करती है, तो अधिकतर मामला झूठा, फर्ज़ी और मनगढ़ंत निकलता है। हम आपको ऐसी ही 10 घटनाएँ बता रहे हैं, जिनमें इसी तरह की साजिश रचकर जबर्दस्ती का साम्प्रदायिक एंगल ठूँसा गया।

29 जुलाई, चंदौली: खालीद ने किया आत्मदाह, मीडिया ने फैलाया झूठ

आज तक और इंडिया टुडे ने खबर चलाई कि उत्तर प्रदेश के चंदौली गाँव में खालीद ने जय श्री राम नहीं बोला, तो उसे आग में झोंक दिया गया। मगर चंदौली के एसपी संतोष कुमार सिंह ने इस बारे में बयान जारी करते हुए कहा कि पुलिस ने खालीद के बयानों में विरोधाभास पाया है। उन्होंने बताया कि एक चश्मदीद के बयान के मुताबिक, खालीद को किसी समूह ने आग में नहीं झोंका, बल्कि उसने खुद ही आग लगाई थी। उन्होंने कहा कि बच्चा जिस तरह से अलग-अलग लोगों को अलग-अलग बयान दे रहा है, उसे देखकर ऐसा लग रहा है कि जैसे उसे किसी ने ये सारी बातें सिखाई हैं। एसपी ने बताया कि बच्चा जिस दो गाँवों के बारे में बात कर रहा है, वो दोनों गाँव अलग- अलग दिशाओं में स्थित है और जिस जगह के बारे में वो बता रहा है वहाँ की सीसीटीवी फुटेज में वो कहीं भी नहीं है। इससे साफ जाहिर हो रहा है कि खालीद किसी के सिखाने पर ये बयान दे रहा है।

21 जुलाई, औरंगाबाद: शेख आमेर ने समुदाय में नाम उँचा करने के लिए बोला झूठ

शेख आमेर ने आजाद चौक से बजरंग चौक की तरफ जाते वक्त एक कार वाले से मामूली सा विवाद हो गया। आमेर ने उन लोगों को सबक सिखाने का सोचा और एक ही दिन पहले शहर के हुडको कॉर्नर पर घटी घटना को याद करते हुए उसने जय श्री राम न बोलने पर पिटाई की झूठी कहानी बनाई और पुलिस में शिकायत कर दी। शिकायत दर्ज कराने के एक दिन बाद ही आमेर अपने बयान से पलट गया। उसने अपना बयान वापस लेते हुए कहा कि उसने अपने समुदाय के सदस्यों के बीच अपना कद बढ़ाने और उससे झगड़ा करने वाले लोगों को सबक सिखाने के लिए मनगढ़ंत कहानी के आधार पर पुलिस से शिकायत की।

20 जुलाई, औरंगाबाद: नहीं किया भीड़ ने मजबूर

इमरान इस्माइल पटेल ने दावा किया कि रात को भीड़ ने घर लौटते समय पकड़ कर मारपीट की और जय श्री राम बोलने के लिए मजबूर किया। वहीं न केवल पुलिस बल्कि इमरान को बचाने वाले चश्मदीद ने भी उसके दावे की तस्दीक करने से साफ़ मना कर दिया है। पुलिस के अनुसार यह एक निजी रंजिश के चलते हुई हाथापाई थी।

ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है कि न केवल ‘हमसे जय श्री राम बुलवाया जा रहा है’ के दावों की बाढ़ आ रही है, बल्कि अधिकाँश दावे गलत भी साबित हो रहे हैं? अगर दावे सही साबित होते तो माना जा सकता था कि चाहे किसी के बहकावे में, चाहे हिन्दूफ़ोबिक राज्य-व्यवस्था से ऊबकर हिन्दू भड़क उठे हैं। लेकिन चूँकि लगभग सारे दावे भी गलत साबित हो रहे हैं, तो ऐसा भी नहीं है।

14 जुलाई, मुज़फ़्फ़रनगर: न दाढ़ी नोंची, न राम-नाम बुलवाया

इमाम इमलाकुर रहमान जब अपने साथ मारपीट की बात पर मुज़फ़्फ़रनगर में FIR करने पहुँचे तो न ही मामले में कोई जय श्री राम था, और न ही उन्होंने दाढ़ी नोंचे जाने की बात अपनी FIR में कही। लेकिन जब तक वह मामले की पूरी FIR करने बागपत पहुँचे (जहाँ का मामला था), यह सब चीज़ें बागपत FIR में अतिरिक्त आ गईं थीं। न केवल इन्हें एसपी ने ख़ारिज किया, बल्कि अंदेशा भी जताया कि साम्प्रदायिक एंगल जानबूझकर जोड़ा गया ताकि मामले में त्वरित कार्रवाई हो।

12 जुलाई, उन्नाव: जुमे तक अगर काज़ी साहब की बात न मानी तो…

क्रिकेट खेलने में स्थानीय लड़कों से हुए हुए विवाद और झगड़े को लेकर मदरसे के बच्चे जब काज़ी निसार मिस्बाही के पास पहुँचे तो क़ाज़ी साहब खुद ही ‘स्पिनर’ निकले। न केवल मदरसे के बच्चों से जबरन जय श्री राम बुलवाए जाने का ‘स्पिन’ उन्होंने मामले में लगा दिया, बल्कि धमकी भी दी कि अगर जुमे तक उनके बताए चार ‘दोषियों’ को उसी जुमे तक न पकड़ा गया तो ‘जो एक्शन कहीं भी नहीं हुआ, वो होगा‘। वह बात और है कि न केवल पुलिस की जाँच में यह मामला भी साम्प्रदायिक रूप से खोखला निकला, बल्कि फिर भी प्रदेश के प्रमुख सचिव (सूचना) तक को मामले पर प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलानी पड़ गई।

5 जुलाई, कानपुर: नशे में हुई लड़ाई पर झूठ

ऑटो-ड्राइवर आतिब पर हमला बेशक हुआ, ईंट-पत्थर से मारकर उसे मरणासन्न भी बिलकुल किया गया, लेकिन यहाँ भी जय श्री राम बोलने के लिए मजबूर करने की बात झूठ निकली। पुलिस जाँच के अनुसार यह एक नशे में हुई हाथापाई थी, जिसकी परिणति आतिब को शौचालय में बाँधकर पीटने के रूप में हुई।

29 जून, कूच बिहार: आप्सी मियाँ की करनी हिन्दुओं के सर

आप्सी मियाँ ने अपने हममज़हब असगर को कान पकड़ कर उठक-बैठक लगाने और जय श्री राम बोलने के लिए मजबूर किया। और लिबरल गिरोह ने हिन्दुओं को जिम्मेदार ठहराने में समय नहीं लगाया। यह भी ध्यान नहीं दिया कि कुछ बिहार पश्चिम बंगाल में है- जहाँ हिन्दू खुद भी अगर जय श्री राम बोलें तो हो सकता है उन्हें गोली मारी जा सकती है। ऐसे में एक हिन्दू भला दुसरे मजहब वाले से जय श्री राम बुलवाएगा?

23 जून, दिल्ली: चश्मदीदों ने मोमिन के आरोप को बताया झूठा

रोहिणी, सेक्टर-20 के मदरसे में पढ़ाने वाले मोहम्मद मोमिन ने आरोप लगाया कि जय श्री राम बोलने से इंकार करने पर कुछ लोगों ने उनकी कार को टक्कर मार दी। पुलिस ने जाँच की लेकिन एक भी चश्मदीद गवाह ने मोमिन की बात का समर्थन नहीं किया। घटनास्थल के पास लगे सीसीटीवी फुटेज से भी आरोपों की पुष्टि नहीं हुई।

2 जून, करीमनगर: ‘मजनूँ’ की पिटाई बनी ‘जय श्री राम’

किसी समय ’15 मिनट के लिए पुलिस हटा दो’ का दावा करने वाले अकबरुद्दीन ओवैसी की AIMIM के नेता रहे और आजकल ‘मजलिस बचाओ’ से जुड़े अमजद उल्लाह खान ने दावा किया कि भाजपा-संघ के लोगों ने एक दूसरे समुदाय के किशोर को पीटा क्योंकि उसने जय श्री राम कहने से मना कर दिया था। करीमनगर के कमिश्नर ने साफ किया कि उनकी जाँच में ऐसा कुछ नहीं निकला, और यह निजी कारणों से हुई हिंसा थी- यह लड़का किसी किशोरी को तंग करने को लेकर उस लड़की के पक्ष के लोगों के हाथों पिटा था। यही नहीं, पिटने वाले लड़के के भी अपने बेटे की गलती मानते हुए माफ़ी माँगी।

28 मई, गुरुग्राम: बरकत का दावा निकला झूठा

मोहम्मद बरकत ने दावा किया कि गुरुग्राम में कुछ हिन्दुओं ने उसे घेर कर मारा, उसकी इस्लामी गोल टोपी फेंक दी और ‘जय श्री राम’ बोलने के लिए मजबूर किया। हरकत में आई गुरुग्राम पुलिस ने 15 लोगों को हिरासत में लिया, 50 के करीब सीसीटीवी फुटेज खंगालीं, और अंत में इस नतीजे पर पहुँची कि बरकत अली के साथ मार-पीट तो हुई, लेकिन न ही उसकी टोपी किसी ने ‘फेंकी’ और न ही जय श्री राम बोलने के लिए मजबूर किया गया। यही नहीं, स्वराज्य संवाददाता स्वाति चतुर्वेदी की जाँच में तो शक की सूई इस ओर भी घूमी कि बरकत को किसी ने सिखाया-पढ़ाया तो नहीं था इस घटना को साम्प्रदायिक रंग देने के लिए।

तो कारण क्या है आखिर?

एक कारण यह हो सकता है कि हिंसा-पीड़ितों को यह सुस्त और निकम्मी पुलिस और प्रशासन व्यवस्था को हरकत में लाने का आसान तरीका दिख रहा हो। ऐसे तो न पुलिस किसी की गाड़ी को टक्कर लगने या किसी के साथ मारपीट होने की FIR भी लिखने वाली, जाँच तो दूर की बात है। लेकिन अगर वही पीड़ित “हाय, मुझे मेरी मर्ज़ी के खिलाफ ‘जय श्री राम’ बोलने के लिए मजबूर किया गया” रो दे, तो हिन्दुओं को दुष्ट, साम्प्रदायिक दानव के रूप में दिखाने के लिए तैयार बैठे मीडिया गिद्ध उसके केस को चमका देंगे, ‘ऊपर’ से प्रेशर होगा और पुलिस मामला तेजी से निपटाने के लिए मजबूर हो जाएगी।

दूसरा कारण ऐसे आरोपों के उफनने का यह है कि लिबरल गैंग के पास हिन्दुओं के खिलाफ बोलने के लिए और कोई आधार नहीं बचा है। न ही कोई हनुमान चालीसा पढ़ते हुए छाती पर बम बाँधकर धमाके कर रहा है, न ही ‘जय श्री राम’ बोलकर कहीं 26/11, 9/11 जैसे हमले कर रहा है। साध्वी प्रज्ञा के खिलाफ चल रहे मामलों की दिशा भी उनके बाइज़्ज़त बरी होने की दिशा में बढ़ती दिख रही है। ऐसे में हिन्दू आतंकवाद का शिगूफ़ा छेड़ने के लिए कुछ तो चाहिए। बम धमाके न सही, ‘ज़बरदस्ती जय श्री राम बुलवाया जा रहा है’ ही सही! बंदूक लेकर कथित हिन्दू आतंकवादी सड़कों पर भले नहीं उतर रहे, लेकिन लोगों को बीफ़ करी खाने भी तो नहीं मिल रही!

ऐसे में सवाल उठता है कि पुलिस आखिर क्या कर रही है इस झूठे नैरेटिव को काटने के लिए। आज हर जिले की पुलिस का अपना ट्विटर अकाउंट है, जो अमूमन ट्विटर द्वारा ब्लू-टिक से सत्यापित भी किया होता है। क्यों नहीं किसी भी मामले में साम्प्रदायिक एंगल न होने की बात पक्के तौर पर स्थापित होते ही जिले/राज्य की पुलिस का अकाउंट कुछ शब्दों का ट्वीट या एक दस से तीस सेकंड का वीडियो डाल ऐसी बातों का खण्डन कर देता है? अगर पुलिस सोशल मीडिया में आ रही खबरों के आधार पर किसी अपराध का स्वतः संज्ञान लेने का अधिकार रखती है, तो किसी भी समुदाय के खिलाफ दुर्भावनावश या निहित स्वार्थ के अंतर्गत चलाए जा रहे नैरेटिव को तोड़ने के लिए ऐसा ट्वीट करना पुलिस की जिम्मेदारी क्यों नहीं है?

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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