Wednesday, October 16, 2024
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ओलंपिक में मीराबाई चानू के सिल्वर मेडल जीतने पर एक दुःखी वामपंथी की व्यथा…

मीराबाई तो श्रीकृष्ण की भक्त थीं। क्या उनका नाम 'अरुंधति चानू', 'वृंदा चानू' या 'कविता चानू' नहीं रख सकते थे? मैं 'सीताराम' येचुरी से कहने जा रहा हूँ कि वो 'मीराबाई चानू' के नाम पर आपत्ति जताते हुए एक पत्र जारी करें।

नमस्कार, मैं एक दुःखी वामपंथी। पेगासस ने मेरा फोन हैक कर लिया था, इसीलिए कई दिनों से मैंने कुछ लिखा नहीं। आज फोन पर टेप साट लिया है, तो हैकिंग का डर ख़त्म है। जैसे ही ट्विटर खोला, मेरा कलेजा काँप गया। भारत की एक महिला भारोत्तोलक मीराबाई चानू ने टोक्यो ओलंपिक में वेटलिफ्टिंग में सिल्वर मेडल जीता है। मुझे सबसे पहली समस्या उनके नाम से ही है। क्या ‘मीराबाई’ नाम रखना आज के आधुनिक माहौल में शोभा देता है?

मीराबाई तो श्रीकृष्ण की भक्त थीं। हम तो श्रीकृष्ण को एक काल्पनिक किरदार मानते हैं। क्या हिन्दू संत मीराबाई की जगह उनके माता-पिता उनका नाम ‘अरुंधति चानू’, ‘वृंदा चानू’ या ‘कविता चानू’ नहीं रख सकते थे? मैं ‘सीताराम’ येचुरी से कहने जा रहा हूँ कि वो ‘मीराबाई चानू’ के नाम पर आपत्ति जताते हुए एक पत्र जारी करें। आपत्ति की दूसरी वजह है उनका हनुमान चालीसा पढ़ना। इससे देश को खतरा है।

मीराबाई चानू कहती हैं कि रियो ओलंपिक में मिली बड़ी विफलता के बाद हनुमान चालीसा और शिव की भक्ति से उन्हें अवसाद से मुक्ति मिली। इसके बाद वो मानसिक रूप से मजबूत हुईं। मानसिक मजबूती तो सत्ता को गाली देकर मिलती है, ‘हनुमान चालीसा’ तो अपने-आप में एक ‘वॉर क्राई’ है। ‘जय श्री राम’ भी ‘वॉर क्राई’ है। कोई हनुमान चालीसा का पाठ कर के कैसे मानसिक शक्ति पा सकता है?

ये विज्ञान के खिलाफ है। ये वैज्ञानिकों का अपमान है। विज्ञान हमेशा गलत नहीं होता। जब कोई IIT का शोध ये कह देता है कि दीवाली के पटाखों से प्रदूषण पर कोई खास फर्क नहीं पड़ता, तभी विज्ञान गलत हो सकता है। वरना नहीं। हनुमान ने ‘मूलनिवासी’ रावण की लंका जला दी थी। ये सामंती मानसिकता है। हनुमान काल्पनिक हैं। रावण मौजूद था। काल्पनिक हनुमान ने असली रावण की लंका क्यों जलाई?

ठीक वैसे ही, भगवान शिव की भी वो भक्त हैं। योग करती हैं। योग, एलोपैथी का विरोधी है। उन्हें एलोपैथी की गोलियाँ फाँकनी चाहिए, योग ‘हिंदुत्व’ है। भगवान शिव काल्पनिक हैं। शिव ने बैल को अपनी सवारी बना रखी है। ये गलत है। ये पशु-अधिकारों का हनन है। शिव काल्पनिक हैं, उनका वाहन बैल असली है। ऐसे नहीं चलेगा। मानसिक शक्ति चे ग्वेरा, व्लामिदिर लेनिन और माओत्से तुंग से मिलनी चाहिए, शिव या हनुमान से नहीं।

मैं आगे बढ़ा। मैंने मीराबाई चानू की दीवाली मनाते हुए तस्वीर देखी। उन्होंने अपने हाथ में पूजा की थाल ले रखी है। हनुमान जी की प्रतिमा के सामने दीपक सजाया हुआ है। ऐसा नहीं चलेगा। दीपक में तेल होता है। तेल से प्रदूषण फैलता है। मैं अभी अपने एसी कमरे से निकल कर अपनी गाड़ी से ‘सेन्ट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड’ के दफ्तर जाकर शिकायत करता हूँ। मेरी सिगरेट भी ख़त्म हो गई है, रास्ते में ले लूँगा। इससे तनाव थोड़ा कम होगा।

उफ़! अंधभक्ति की भी कोई सीमा होती है। भारत की मिट्टी में ऐसा क्या है जो कोई अपने साथ रखे? ये ‘टॉक्सिक हाइपर नेशनलिज्म’ है। मिट्टी हो भी तो चीन की लाल मिट्टी होनी चाहिए। गाँव का चावल खाना भी ‘फ़ूड नेशनलिज्म’ का हिस्सा है। क्यूबा, चीन या उत्तर कोरिया के चावल में क्या दिक्कत है? हमें इससे ‘आज़ादी’ चाहिए। मीराबाई चानू ने सिल्वर मेडल जीतने के बाद ‘आज़ादी’ का नारा भी नहीं लगाया। ये गलत है।

नॉर्थ-ईस्ट के सभी राज्यों ने हमें ‘आज़ाद’ कर दिया है, इसका मतलब ये नहीं कि वो मनमानी करें। अंतिम लेकिन सबसे बड़ी बात तो ये है कि मीराबाई चानू को ये सिल्वर मेडल नरेंद्र मोदी के राज में आया है। ये गोल्ड क्यों नहीं है, मोदी जी इस्तीफा दो। हम ओलंपिक का बहिष्कार करते हैं। जापान में हो रहा है ये। जापान ने वाराणसी में ‘रुद्राक्ष सेंटर’ बनवाया है। मेरा फोन ऑफ हो रहा है, लगता है कोलकाता से आया टेप सिक्योर नहीं है। विदा लेता हूँ। लोल सलाम!

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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