आतंकवादियों की प्रेम कहानी के न होने का जिक्र यूँ तो शाका ने बहुत साल पहले ही कर दिया था, लेकिन फिर भी कुछ लोग सुधरते नहीं, प्रेम कर ही लेते हैं। साथ ही, आतंकियों के मरने पर उसके बाप, चाचा, भाई, बेटे की बातें तो सब करते हैं, लेकिन प्रेमिकाओं के बारे में जानकारी कम ही मिल पाती है।
“शाका का बस चले तो यहाँ का हर मंडप जला दे, यहाँ से चालीस गाँव में किसी की शादी ना हो।” दाएँ कंधे को जरा ज्यादा झुकाकर, जुबान में विमल पान दबाए, टेढ़ी चाल में चलते हुए शाका की इन बातों में प्यार में धोखा खाए प्रेमी को अनुभवी दारा की पारखी निगाहों ने पहचान लिया था।
“प्रेमी है… पागल है… दीवाना है… लेकिन ये मत भूल कि दुनिया की नजरों में तू आतंकवादी है।” और इसके आगे दारा ने वो कालजयी बात कह डाली, जो प्यार में धोखा खाए हर दूसरे इंसान की जीवनी बन गई – “…लेकिन आतंकवादी की प्रेम कहानी नहीं होती।”
हाहाहा के ठहाके लगाते हुए दारा ने मटका बजाना शुरू किया और अपनी सुरीली आवाज में एक नज़्म गाई जो किसी क़ाफ़िर कवि नहीं बल्कि मुगलों द्वारा भारत लाए गए शायर मिर्चा गालिव ने जिहादियों को समर्पित कर लिखी थी।
इस नज़्म के लिरिक्स कुछ इस तरह थे – “इक प्रेम कहानी में, इक लड़की होती है, इक लड़का होता है…” इस नज़्म में ‘लड़का-लड़की’ का जिक्र तो था लेकिन कहीं भी आतंकवादी का जिक्र नहीं था। हालाँकि ये नज़्म इस लाइन से आगे कभी भी पूरी नहीं सुनी और गाई गई।
समय बीतता गया। एक के बाद एक जिहादी जन्नत उल फिरदौस के स्वप्न को गंभीरता से लेकर भारतीय सेना की गोलियों को हँसकर निगलते रहे। लेकिन जमात-ए-लिबरल-मीडिया गिरोह ने जो दगाबाजी इन युवा आतंकवादियों के साथ की, वो ये कि कोई उनके हेडमास्टर पिता पर बात करता रहा, कोई उनकी पढ़ाई पर, कोई ये साबित करता नजर आया कि आतंकवादी की गणित अच्छी थी और इसका इस्तेमाल उसने कार्ड्स खेलते हुए जमकर किया।
यहाँ तक भी बताया गया कि वो कभी भी अन्य आतंकवादियों के साथ पत्ते खेलते हुए हारा नहीं और इसके लिए उसकी गणित पर पकड़ जिम्मेदार थी। लेकिन किसी ने कभी ये नहीं पूछा कि फलाने मोहम्मद, जो कल सेना द्वारा मारे गए, क्या उन फलाने मोहम्मद की भी कोई गर्लफ्रेंड थी?
आतंकियों के प्रेम में डूबी युवती के लिए क्यों प्राइम टाइम स्क्रीन काली नहीं की जाती?
सेना की गोलियों से मारे जा रहे जिहादियों की मौत के बाद कभी इस बात को लेकर स्क्रीन काली नहीं की गई कि अपने पीछे जो वो अपनी कुछ गर्लफ्रेंड्स को छोड़ गया है, उनका भविष्य अब क्या होगा? यह तो दूर की बात है, कभी यह चर्चा तक नहीं उठाई गई कि उसकी गर्लफ्रेंड क्या करती थी?
उसका आतंकी मजनू जब बम फोड़ने की ट्रेनिंग लेकर घर लौटता था, तो क्या वो अपनी उंगलियों से उसकी पीठ पर ‘जिहाद’ लिखती थी या नहीं? उसे फ्राइड मोमो पसन्द थे या फिर बिरयानी? उसके काजल का रंग भगवा था या हरा?
ऑपइंडिया ने अक्सर ऐसी पहल करने के प्रयास किए। हालाँकि, इस बात पर संशय बरकरार है कि ऑपइंडिया की इस पहल को देश के लिबरल गिरोह ने कभी सराहा या नहीं!
हाल ही की एक घटना में सेना द्वारा जन्नत भेजे गए एक आतंकवादी की महबूबा के इस अधिकार से चिंतित होकर ऑपइंडिया ने उनसे सम्पर्क स्थापित किया।
उन्होंने ऑपइंडिया से बात करते हुए बताया, “जब भी हम इंडियन एक्सप्रेस, क्विंट, वायर, NDTV की खबरें पढ़ते हैं कि उसका बाप हेडमास्टर था, भाई बोर्ड में था, चाचा आतंकवादी था, तो हमें बड़ा दुख होता है कि नारीशक्ति के चरम वाले इस युग में भी गर्लफ्रेंडों की बात कोई नहीं करता।” इतना कह कर बिलख-बिलख कर हमारे रिपोर्टर की छाती पर मुक्का मारते हुए वो नवयुवती फूट-फूटकर रोने लगीं।
हमारा रिपोर्टर सख्त लौंडा समूह का प्रादेशिक अध्यक्ष था और उसने अपना पूरा ध्यान खबर पर रखा और कोमलांगी नवयौवना के सुकोमल हाथों को हटा कर उन्हें कहा कि वो अपने बारे में और बताएँ कि क्या मृतक सलीम 555 कम्पनी की बीड़ी पीता था या उसे विदेशी सिगरेट की लत थी?
वियोग श्रृंगार रस में डूबी युवती ने बताया कि हालाँकि किसी प्रकार का कार्बनिक नशा तो वो नहीं किया करता था लेकिन फॉल्ट न्यूज़ के फैक्ट चेक और सबा नकली के किसी ट्वीट को वो मिस नहीं करता था। यही नहीं, उसने बताया कि वह बिग-बीसी और दी लायर का भी नियमित पाठक था।
युवती ने ऑपइंडिया से बातचीत में बड़ा खुलासा करते हुए बताया कि जमात-ए-प्रोपेगेंडा के इन्हीं समाचार स्रोतों से उसके आतंकवादी बॉयफ्रेंड को यह प्रेरणा मिली थी कि एक दिन उसके गणित में अच्छे होने, अच्छा बॉयफ्रेंड, अच्छा शायर, होने के चर्चे भी देश की मीडिया के सामने होंगे।
जब हमने पूछा कि वो निजी ज़िंदगी में कैसा प्रेमी था तो जानूँ ने बताया, “अपनी सुकोमल उँगलियों से जब मैं आतंकी रियाज़ की पीठ पर गणित के ए प्लस बी का होल स्क्वायर की जगह ‘जिहाद’ लिख देती थी तो गणित का मास्टर ग्रेनेड की पिन निकालने को आमादा हो उठता था!”
“वो कहा करता था, ‘अपनी इन उँगलियों के नाखून से मेरी पीठ पर ‘जिहाद’ गोद दे… जब भी मैं जिहाद की बमबाजी से थक कर नीचे सुस्ताने बैठूँगा और मेरी पीठ किसी पत्थर को छुएगी तो इस रिसते जख्म के दुखते ही मैं वापस खड़ा हो कर दो बम और फोड़ दूँगा।’”
यह कहने के बाद नवयुवती रोने लगी, सिसकते हुए उसने आगे कहा, “वो बहुत ही दरियादिल आदमी था। अपनी कमाई के पैसे बच्चों को पत्थर फेंकने को प्रेरित करने में ही खर्च कर देता था। मैंने कई बार कहा कि एक लिप्सटिक दिला दे मुझे, तो वो मेरे होंठों पर बंदूक की नाल रगड़ देता था और कहता था कि जिहादियों की लिप्सटिक यही है।”
इसके साथ ही उसने बगल से वो रायफल निकाली तो हमारा रिपोर्टर डर ही गया। लेकिन उसने कर के बताया कि आतंकी गणितज्ञ रियाज उसके होंठों पर बंदूक से कैसे लगाता था लिप्सटिक।
प्रेमी की मौत से क्षुब्ध नवयुवती ने एक ऐसी डायरी भी हमें दिखाई, जिसमें शहीद हो चुका आतंकवादी छुप छुपकर कविता भी लिखा करता था। इनमें से एक कविता इस प्रकार है –
“सुन पगली तुझे ऐसा प्यार करूँगा कि तेरे होंठों की लिपस्टिक बिगड़ेगी But प्रॉमिस तेरे आँखों का काजल कभी नहीं बिगड़ेगा – HeArt हैकर रियाज़ उर्फ अब्दुल”
ये सेक्युलर नज़्म पढ़ते हुए दिवंगत आतंकी की प्रेमिका एक बार फिर हमारे संवाददाता से लिपटकर फूट-फूटकर रोई। भावुक संवाददाता ने किसी प्रकार खुद को संभाला और आगे की जानकारी के लिए बातचीत जारी रखी। संवाददाता ने अपने दल को बताया कि उसने युवती की बातों में एक बार के लिए खुद के दर्द को भी महसूस किया।
वास्तव में, यह अक्सर देखा गया है कि NDTV, The Wire, The Quint, आदि आतंकवादियों की खाने-पहनने, नाचने-गाने के शौक पर तो खूब साहित्य लिखते हैं लेकिन आतंकवादियों की जिंदगी के इस अहम पहलू, यानी उनकी लव-लाइफ़ पर कभी भी प्रकाश नहीं डालते।
इन तथाकथित मीडिया वालों को जनता के सामने यह बात भी रखनी चाहिए कि आतंकवादियों की भी प्रेम कहानी हुआ करती है। और कभी-कभी तो वही सेना से उनकी मुखबिरी कर उन्हें मरवाने में मददगार भी साबित होती है।
आतंकवादियों की प्रेम कहानी बन सकती है युवाओं के लिए सबक
आतंकवादियों की लव-लाइफ़ के पहलू से प्रेम में धोखा खाए उन युवाओं को भी बड़ी प्रेरणा मिल सकती है, जिन्होंने फेसबुक एंजल प्रिया बनना भी स्वीकार किया इसके बावजूद भी वो एक गर्लफ्रेंड बना पाने में नाकाम रहे और आखिर में उन्होंने अपना जीवन टिकटोक वीडियो के नाम कर दिया।
वायर, क्विंट, NDTV अगर यह ख़बर जनता के सामने नहीं लेकर आएँगे कि आतंकवादियों के सीने में भी एक दिल होता है, जो छुप-छुपकर नज़्म भी लिखता है, जिनकी मौत के बाद उनकी प्रेमिकाएँ सख्त संवाददाताओं से लिपटकर फूट-फूटकर रोती हैं, तो जनता के मन में उनके इस मानवीय पहलू के प्रति संवेदना कैसे पैदा होगी?
कुछ आतंकवादी भाग्यशाली थे कि वो गणित में अच्छे थे, उनके पिता स्कूल में हेडमास्टर थे, या फिर उनकी एक प्रेमिका थी। ये सारे भाग्यशाली आतंकी थे।
जरा उन आतंकवादियों का सोचिए, जो गणित में भी अच्छे नहीं, जिनका बैंक PO में भी चयन नहीं हुआ, जिनकी प्रेमिका ने ठीक उनके UPSC इंटरव्यू की पहली शाम कहा कि घरवाले नहीं मानेंगे, और फिर भी दारा की उस एक बात को दिल पर लगाए जिंदगी भर मटका बजाकर उसे फोड़ने लगे, जिसमें दारा ने शाका से कहा था कि आतंवादियों की प्रेम कहानी नहीं होती… हा हा हा
दारा और शाका का वह संवाद, जिसे जिहाद चुनने से पहले हर आतंकवादी को देखना चाहिए –