Friday, April 19, 2024
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क्या विभाजन की विचारधारा आज भी जिन्दा है: अजीत भारती और संजय दीक्षित के बीच बातचीत

अजीत भारती ने कहा कि उम्माह के नाम पर सिर्फ अपनी कौम के लिए ही हमेशा फैसले लेने वाले लोग 'भारत' की बात नहीं कर सकते। उन्होंने कहा कि अगर ऐसा होता तो पीएचडी कर रहे मुस्लिम छात्र भी भारत को असम से काटने की बात नहीं कर रहे होते

राजस्थान कैडर के IAS अधिकारी रह चुके संजय दीक्षित (Sanjay Dixit) की पुस्तक ‘Nullifying article 370 and enacting CAA’ (अनुच्छेद 370 का निरस्तीकरण और CAA को लागू करना) पर ऑपइंडिया के सम्पादक अजीत भारती और संजय दीक्षित के बीच भारत में रह रहे कथित अल्पसंख्यकों के विभाजन की विचारधारा पर बातचीत हुई।

आईएएस अधिकारी के यूट्यूब चैनल ‘The Jaipur Dialogues’ पर अजीत भारती ने बताया कि किस तरह से आजादी के बाद भी आज तक इस देश को तोड़ने वाली विचारधारा की अच्छी खासी पैठ है और वो यह समय-समय पर साबित भी करने का प्रयास करते हैं।

इस चर्चा के दौरान भारतीय स्वतन्त्रता आंदोलन के दौरान चलाए गए खिलाफत आंदोलन के बारे में भी चर्चा हुई। किताब के लेखक संजय दीक्षित ने समुदाय विशेष के भीतर आजादी के दौर से ही चली आ रही अलगाववाद की भावना का जिक्र करते हुए कहा कि यह हमारे लोगों को कभी नजर क्यों नहीं आया कि काफिरों को इस्तेमाल करने को तो मुस्लिम राजी रहते हैं, लेकिन देखते वो उन्हें हिकारत की ही नजर से आए हैं।

बातचीत में अजीत भारती ने कहा कि अल्पसंख्यकों को जो अधिकार इस देश में मिले हैं, वो हिन्दू अल्पसंख्यकों को भी अपने ही देश में हासिल नहीं हैं। उन्होंने कहा कि देश में जो अल्पसंख्यक हैं उनके लिए अल्पसंख्यक का दर्जा छोटी इकाइयों के रूप में या जिले के स्तर पर होना चाहिए क्योंकि कश्मीर में यदि आप मुस्लिमों को अल्पसंख्यक कहते हैं तो यह किसी भी तरह से जायज नहीं है।

उन्होंने कहा कि मजहब के नाम पर हुए 1947 के विभाजन में कई मुस्लिम अल्पसंख्यकों को उनकी जमीन भी मिली लेकिन ऐसे लोग, जो आजादी की लड़ाई में सबसे आगे रहे, उन्हें विभाजन के समय हाशिए पर धकेल दिया गया। ऑपइंडिया के सम्पादक ने कहा कि तब तुष्टिकरण की नीति वाले जिन्ना ने पूरे देश को ही तोड़कर रख दिया था और अभी भी यह मानसिकता देश के विभाजन का सपना देखती है।

संजय दीक्षित ने अपनी इस पुस्तक का जिक्र करते हुए कहा कि उनकी पुस्तक में भारत में अल्पसंख्यकों की स्थिति पर भी एक हिस्से में चर्चा की गई है। उन्होंने अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण को ‘नेहरूवाद’ का नाम दिया है, जो कि आज तक भी हमारे तंत्र में जिन्दा है।

उन्होंने बताया कि यह अल्पसंख्यक और तुष्टिकरण शब्दों का बीजारोपण आजादी की लड़ाई के आख़िरी वर्षों में तब हुआ जब मुस्लिमों को चुनावों में सुरक्षित कोटा बाँट दिया जाने लगा और गाँधी के आगमन के बाद से तो मानो यह एक स्थापित सत्य बन गया।

आईएएस अधिकारी ने कहा कि हिंदूवादी समूहों ने तब भी इसका विरोध किया था और आज तक भी सत्ताधारी दलों द्वारा इस अल्पसंख्यकों के कोटा का विरोध नहीं किया जाता है। सरदार पटेल ने संविधान सभा की बैठक में कहा था कि अल्पसंख्यक, जिन्होंने देश के विभाजन को बढ़ावा दिया, वो अपने आप को अल्पसंख्यक क्यों कहते हैं? संजय दीक्षित ने अपनी पुस्तक से इस हिस्से को पढ़कर बताया कि सरदार पटेल ने संविधान सभा में यही सवाल किया था कि अगर आप ताकतवर हैं तो फिर आप खुद को अल्पसंख्यक क्यों कहना चाहते हैं?

अल्पसंख्यकों की विचारधारा और देश के प्रति आस्था के विचार पर अजीत भारती ने कहा कि मुस्लिमों ने उम्माह या उम्मत के नाम पर 1947 में विभाजन के बाद से ही बांग्लादेश और पाकिस्तान को अपनी सम्पत्ति और भारत को अपनी साझा सम्पत्ति के रूप में देखा। इसी तरह से खिलाफत आन्दोलन देश के विभाजन का कारण बना, जिसे कि कॉन्ग्रेस ने भी हिन्दू-मुस्लिम एकता के नाम पर भरपूर समर्थन दिया था। लेकिन इसमें सिर्फ हिन्दुओं को ही बेवकूफ बनाकर अपना उल्लू सीधा कर लिया गया। वो मंदिर तोड़ते गए और खुद तुर्की में चाँद देखकर अपने मजहब के प्रति अपनी जिम्मेदारी की मिशाल देते रहे।

उन्होंने कहा कि यही ‘हिन्दू-मुस्लिम एकता’ समय के साथ सिर्फ और सिर्फ हिन्दुओं पर एक बोझ ही साबित हुई है, जबकि मुस्लिम नेताओं ने इसे एक ब्लैकमेल करने और विक्टिम कार्ड खेलने के लिए ही इस्तेमाल किया है।

विभाजन की विचारधारा पर चर्चा करते हुए अजीत भारती ने कहा कि उम्माह के नाम पर सिर्फ और सिर्फ अपनी कौम के लिए ही हमेशा फैसले लेने वाले लोग ‘भारत’ की बात नहीं कर सकते। उन्होंने कहा कि अगर ऐसा होता तो पीएचडी कर रहे मुस्लिम छात्र भी भारत को असम से काटने की बात नहीं कर रहे होते और शरजील इमाम जैसे लोग इसका बेहतर उदाहरण हैं।

संजय दीक्षित ने अपनी पुस्तक का जिक्र करते हुए बताया कि उन्होंने इसमें डॉक्टर अंबेडकर के एक बयान को इस्तेमाल किया है, जिसमें उन्होंने मुस्लिमों की राजनीति को गैंगस्टर्स का तरीका बताया था।

अजीत भारती ने बताया कि अल्पसंख्यक शुरुआत से ही अपनी भीड़ के अनुपात में अपने दायरे को बढ़ाते और घटाते हैं। उन्होंने कहा कि खुद दंगा करने के बाद जिसे पीड़ा पहुँचाई उन पर ही इसका आरोप भी थोप दिया गया। यही कारसेवकों को जला देने के बाद हुआ और यही रणनीति दिल्ली में हुए हिन्दू-विरोधी दंगों के दौरान भी अपनाई गई।

संजय दीक्षित और अजीत भारती के बीच की पूरी बातचीत आप नीचे दी गई यूट्यूब लिंक पर देख सकते हैं

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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