Saturday, October 12, 2024
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रामसेतु के निर्माण और इतिहास की पड़ताल के लिए ASI ने दी समुद्र के भीतर रिसर्च प्रॉजेक्‍ट को मंजूरी

द्वारका पर शोध के लिए अतिरिक्त 28 लाख का बजट प्रस्तावित है जबकि रामसेतु के लिए शुरुआती बजट के तौर पर 10 लाख दिए जाएँगे। इस शोध को लेकर NIO के एक अधिकारी का कहना है कि यह परियोजनाएँ वैज्ञानिक जाँच हैं, न कि केवल विश्वास का विषय।

रामसेतु का जिक्र आपने रामायण में जरूर सुना होगा। रामसेतु के बारे में दुनिया उतना ही जानती है, जितना कि रामायण में बताया गया है, लेकिन अब भारत और श्रीलंका के बीच समुद्र में मौजूद रामसेतु कितना पुराना है और इसका निर्माण कैसे हुआ था, इसका पता लगाने के लिए ऑर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) के अधीन आने वाले सेंट्रल एडवायजरी बोर्ड ने एक अंडरवाटर रिसर्च प्रॉजेक्‍ट को मंजूरी दे दी है जो कि इसी साल शुरू होगा।

टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार इस प्रोजेक्ट पर जो वैज्ञानिक काम करेंगे, उन्होंने उम्मीद जताई है कि अत्‍याधुनिक तकनीक से उन्‍हें पुल की उम्र और रामायण काल का भी पता लगाने में मदद मिलेगी।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के तहत आने वाले केंद्रीय पुरातत्व सलाहकार बोर्ड ने CSIR और नेशनल इंस्टट्यूट ऑफ ओसनोग्राफी, गोवा (NIO) को इस संबंध में शोध को लेकर पिछले महीने मंजूरी दी है। इसे लेकर ठोस वैज्ञानिक जानकारी अगले कुछ वर्षों में सामने आ सकती है। NIO डायरेक्टर प्रोफेसर सुनील कुमार सिंह के अनुसार, “प्रस्तावित अध्ययन पुरातात्विक वस्तुओं, रेडियोमेट्रीक और भौगोलिक समय और दूसरे पर्यावरण संबंधित डाटा पर आधारित होगा।”

उन्होंने कहा, “रेडियोमेट्रिक तकनीक से ये पता लगाया जाएगा कि ढाँचा कितना पुराना है। ऐसा माना जाता है कि रामसेतु से जुड़े ये पत्थर कोरल या प्यूमिस स्टोन से बने हुए हैं। कोरल पत्थर में दरअसल कैल्शियम कार्बोनेट होते हैं जिसकी मदद से रामायण के काल और ढाँचा कितना पुराना है, इस संबंध में जानकारी हासिल करने में मदद मिलेगी।”

बता दें, इस रिसर्च में रेडियोमेट्रिक और थर्मोल्‍यूमिनेसेंस (TL) डेटिंग जैसी तकनीकों का इस्‍तेमाल किया जाएगा। रेडियोमैट्रिक डेटिंग किसी वस्तु की आयु का पता लगाने के लिए रेडियोएक्टिव अशुद्धियों की तलाश करता है। जब किसी वस्तु को गर्म किया जाता है तो TL डेटिंग उसकी लाइट का विश्लेषण करती है।

ऐतिहासिकता और रामायण काल की तिथि इतिहासकारों, पुरातत्वविदों और वैज्ञानिकों के बीच एक बहस का विषय बनी हुई है। इस स्टडी में इस बात की भी जानकारी मिलेगी कि क्‍या पुल के आस-पास कोई बस्‍ती भी थी या नहीं।

एनआईओ पानी की सहत के 35 से 40 मीटर नीचे जाकर सैंपल लेगा। इसके लिए ‘सिंधु संकल्‍प’ या ‘सिंधु साधना’ नाम के जहाजों का इस्‍तेमाल किया जाएगा। उल्लेखनीय है कि NIO ने पाँच साल पहले देश भर में पानी के अंदर शोध के लिए ASI के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया था। उस समय रामसेतु और द्वारका को लेकर शोध की बात भी हुई थी। द्वारका को भगवान कृष्ण की नगरी कहा जाता जिसके बारे में मान्यता है कि ये बाद में समुद्र में डूब गई।

अधिकारियों के अनुसार द्वारका पर शोध के लिए अतिरिक्त 28 लाख का बजट प्रस्तावित है जबकि रामसेतु के लिए शुरुआती बजट के तौर पर 10 लाख दिए जाएँगे। इस शोध को लेकर NIO के एक अधिकारी का कहना है कि यह परियोजनाएँ वैज्ञानिक जाँच हैं, न कि केवल विश्वास का विषय।

गौरतलब है कि एएसआई ने इससे पहले 2007 में कहा था कि उस इस दावे के संबंध में कोई सबूत नहीं मिले हैं। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने एएसआई ने इस हलफनामे को वापस ले लिया था।

रामायण के अनुसार, भगवान राम जब लंका के राजा रावण की कैद से अपनी पत्‍नी सीता को बचाने निकले थे तो रास्‍ते में समुद्र पड़ा। इस समुद्र को पार करने के लिए वानरों ने छोटे-छोटे पत्‍थरों की मदद से इस पुल को तैयार किया था। भारत और श्रीलंका के बीच बना यह पुल करीब 48 किलोमीटर लंबा है। इस पुल की गहराई 3 फीट से लेकर 30 फीट तक है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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