Tuesday, March 19, 2024
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मॉरीशस के थे तुलसी, कहते थे सब रामायण गुरु: नहीं रहे भारत के ‘सांस्कृतिक दूत’ राजेंद्र अरुण

वो रामायण पर 'हरि कथा अनंता', 'भारत गुण गाथा', 'जग जननी जानकी', 'जग रोम-रोम में राम', 'रघुकुल रीति सदा', 'तजु संशय भजु राम', 'अथ कैकेयी कथा' और 'मानस में नारी' जैसी कई पुस्तकें लिख चुके थे।

पूरे विश्व में रामायण का डंका बजाने वाले और भारत के ‘सांस्कृतिक दूत’ कहे जाने वाले राजेंद्र अरुण (Rajendra Arun) नहीं रहे। दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर वर्तमान पीएम नरेंद्र मोदी तक, सभी ने उनके कार्य की सराहना की थी। राजेंद्र अरुण को मॉरीशस (Mauritius) में रामायण सेंटर (Ramayana Centre) की स्थापना के लिए जाना जाता है, जो अपने-आप में दुनिया का पहले ऐसा संस्थान है।

मारीशस स्थित रामायण सेंटर की खासियत ये है कि इसकी स्थापना मॉरीशस संसद के एक एक्ट (एक्ट संख्या 7, सन् 2001) के तहत हुई है। जून 2001 में इसे लागू किया गया था। इस ‘रामायण सेंटर’ की स्थापना भगवन श्रीराम के काल का अध्ययन कर वहाँ से आध्यात्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक सीख लेने के लिए और इसके प्रचार-प्रसार के लिए किया गया। रामायण में सम्बन्ध रखने वाले सभी लोग इसके सदस्य बन सकते हैं और संस्थान के पास विदेश में किसी भी इस तरह के संस्थान के साथ साझेदारी की छूट है।

इस ‘रामायण सेंटर’ के माध्यम से रामकथा से जुड़े कंटेंट्स को प्रकाशित किया जाता है। फिर उसे बेचा या बाँटा जाता है। रामायण से जुड़े साहित्य की विवेचना और लेक्चर्स के लिए भी इसका प्रयोग होता है। मारीशस की सरकार ने इसे टैक्स में छूट दे रखी है और इसे मिलने वाले डोनेशन को भी पर भी कोई कर नहीं लगता। 7-11 सदस्यों वाली कमिटी इसका प्रबंधन करती है। देश-विदेश में रामकथा के प्रचार-प्रसार में इसे अच्छा कार्य किया है।

इसकी स्थापना से लेकर अब तक राजेंद्र अरुण ही इसके अध्यक्ष थे। उन्हें लोग ‘मॉरीशस के तुलसी’ के रूप में भी जानते थे। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के निर्देश में उन्होंने कई पत्र-पत्रिकाओं में लेखन कार्य किया था। उनका जन्म उत्तर प्रदेश स्थित फैजाबाद जिले के नरवापितम्बरपुर गाँव में जुलाई 29, 1945 को हुआ था। सोमवार (जून 21, 2021) को लगभग 76 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया

प्रयाग विश्वविद्यालय से उनकी शिक्षा-दीक्षा हुई। राजेंद्र अरुण ने पत्रकारिता को ही करियर के रूप में चुना और 1970 से ही हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार में जुट गए। इलाहाबाद से प्रकाशित होने वाले ‘जनता की आवाज़’ पत्रिका के वो प्रमुख संपादक थे। लेकिन, ईश्वर ने उन्हें किसी बड़े कार्य के लिए चुना था। 1973 में ‘विश्व पत्रकारिता सम्मेलन’ में वो मॉरीशस गए और वहाँ के तत्कालीन राष्ट्रपति शिवसागर रामगुलाम हिंदी भाषा को लेकर उनके प्रेम से खासे प्रभावित हुए।

तभी ‘रामायण सेंटर’ की स्थापना का मार्ग प्रशस्त हुआ। दो दर्जन से भी अधिक पुस्तकें लिखने वाले राजेंद्र अरुण ने रामायण पर गहन रिसर्च किया और इसके कई पहलुओं के बारे में दुनिया को बताया। वो रामायण पर ‘हरि कथा अनंता’, ‘भारत गुण गाथा’, ‘जग जननी जानकी’, ‘जग रोम-रोम में राम’, ‘रघुकुल रीति सदा’, ‘तजु संशय भजु राम’, ‘अथ कैकेयी कथा’ और ‘मानस में नारी’ जैसी कई पुस्तकें लिख चुके थे।

मॉरीशस की सरकार नहीं चाहती थी कि वो देश छोड़ कर जाएँ, इसीलिए उन्हें ‘जनता’ का संपादक बना कर वहीं रहने का अनुरोध किया गया। मॉरीशस से राजेंद्र अरुण ने धर्मयुग, कादंबिनी, साप्ताहिक हिंदुस्तान से लेकर कई प्रमुख अखबारों में मॉरीशस की साहित्यिक, सांस्कृतिक व रचनात्मक गतिविधियों व रामायण को लेकर कई ज्ञानवर्धक लेख लिखे। 1982 में उन्होंने ‘मॉरीशस ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन (MBC)’ के रेडियो चैनल पर रामायण के साप्ताहिक व्याख्यान का कार्यक्रम ‘मंथन’ शुरू किया।

आज भी ये कार्यक्रम ‘मानस मंथन’ के रूप में लोगों का ज्ञान बढ़ाता है। ये ‘रामायण सेंटर’ का ही प्रभाव है कि वहाँ के स्कूली पाठ्यक्रम में भी रामायण को शामिल किया गया है। उन्होंने अपने गाँव समेत कई स्थलों पर इस सेंटर की शाखा का भी निर्माण कराते हुए इसे विस्तार दिया। राजेंद्र अरुण पाठकों और श्रोताओं को रामायण का पान ऐसे कराते थे, जैसे न तो ये ज्यादा गूढ़ लगे और न ही ज्यादा नाटकीय।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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