Friday, April 19, 2024
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‘मेरा वाला ही एकमात्र पैगम्बर, बाकी सब को खत्म कर दो’: इस्लाम को लेकर 120 साल पहले स्वामी विवेकानंद

"वो सोचते हैं कि एक ही पैगम्बर है और वो मुहम्मद हैं। वो सोचते हैं कि इस्लाम के इतर सब कुछ ख़त्म कर देना चाहिए, मार दिया जाना चाहिए। प्रतिमाएँ तोड़ दिए जाने चाहिए और गैर धर्मस्थल ध्वस्त कर दिए जाने चाहिए। यही मोहम्मदिज्म है!"

अमेरिका के शिकागो में आयोजित हुए विश्व धर्म संसद में स्वामी विवेकानंद के ऐतिहासिक सम्बोधन को 127 वर्ष पूरे हो चुके हैं। आइए, इस दौरान हम 19वीं सदी के महान संत के एक और उल्लेखनीय सम्बोधन के बारे में आपको बताते हैं। ‘विश्व के महान शिक्षणगण’ शीर्षक वाले इस सम्बोधन को उन्होंने फ़रवरी 3, 1900 को कैलिफोर्निया के पासाडेना में स्थित शेक्सपियर क्लब में दिया था। इस दौरान उन्होंने पैगम्बरों और उनके संदेशों का विश्लेषण धर्म के सन्दर्भ में किया था। इसमें उन्होंने इस्लाम और मुस्लिमों को लेकर बात की थी।

इस दौरान उन्होंने इस सोच को नकार दिया था कि मेरा पैगम्बर ही एकमात्र पैगम्बर है। उन्होंने कहा था, “आप सोचते हैं कि आपको वास्तविकता, दिव्यता और ईश्वर का भान है, और ये सब कुछ एक ही पैगम्बर में देखते हैं और बाकी किसी और में नहीं, तो मैं ये निष्कर्ष निकालता हूँ कि आप किसी में भी दिव्यता को नहीं समझ पाते हैं। आपने सीधे शब्दों को निगल लिया है और एक समुदाय में बँध गए हैं। जैसे पार्टी-पॉलिटिक्स में होता है।”

विवेकानंद का कहना था कि ऐसा विचारों के मामले में हो सकता है लेकिन धर्मों के मामले में ये ठीक नहीं है। उन्होंने कहा कि कोई एक अकेला पैगम्बर ही सत्य का रूप नहीं हो सकता। उन्होंने कहा था कि हर पैगम्बर को कुछ न कुछ कार्य पूरा करना था और उन्होंने विश्व को ईश्वर का संदेश दिया। उन्होंने कहा था कि अगर कोई समझता है कि उसका पैगम्बर अकेला पैगम्बर है तो वो धर्म को नहीं समझता। उनका कहना था कि धर्म वाद-विवाद, थ्योरी या बौद्धिक सहमति नहीं है।

वो मानते थे कि धर्म हमारे हृदय के अंदर की एक वास्तविकता का एहसास है, ईश्वर को छूने जैसा है। उन्होंने आगे कहा था कि ये खुद के एक आत्मा होने का एहसास है, जो बताता है कि हम भी इस वैश्विक परमात्मा के ही एक भाग हैं और ये उसकी सभी अभिव्यक्तियों को समझा देता है। उन्होंने इसे दृढ़ एहसास का क्षण करार दिया था। उदाहरण के लिए उन्होंने कहा था, “मैं एक पैगम्बर बन जाऊँगा। ईश्वर का बच्चा बन जाऊँगा। प्रकाश का वाहक बन जाऊँगा… नहीं। मैं स्वयं ईश्वर बन जाऊँगा।”

उन्होंने कहा था कि ऐसे पैगम्बरों की पूजा और सम्मान हर धर्म में होता आ रहा है लेकिन मुस्लिम इस मामले में अलग हैं। उन्होंने कहा था कि मनुष्य होने के कारण स्वाभाविक है कि हम किसी व्यक्ति की पूजा करते हैं या बहुत सम्मान करते हैं। ऐसे व्यक्ति की, जो आत्मिक स्तर पर हमसे उच्च होते हैं। बकौल विवेकानंद, मुस्लिम समुदाय शुरू से ऐसे किसी पूजा के खिलाफ है और किसी पैगम्बर की पूजा या सम्मान से उनका कोई लेना-देना नहीं है।

उन्होंने याद दिलाया था कि किसी एक पैगम्बर की जगह हजारों साधु-संतों की पूजा होती है और ये अच्छा है, ये एक फैक्ट है। उन्होंने कहा था कि कुछ मुस्लिम इस मामले में खासे अनगढ़ हैं और सांप्रदायिक हो चले हैं। वो सोचते हैं कि एक ईश्वर है, एक ही पैगम्बर है और वो मुहम्मद हैं। उन्होंने ‘काफिरों’ पर पड़ने वाले इसके खतरनाक प्रभाव की चर्चा करते हुए कहा था कि वो सोचते हैं कि इस्लाम के इतर सब कुछ ख़त्म कर देना चाहिए, इस्लाम में विश्वास न रखने वालों को मार दिया जाना चाहिए।

उन्होंने आगे ‘कुछ मुस्लिमों’ की सोच की बात करते हुए कहा था कि उनका इरादा है कि जिसकी भी पूजा इस्लाम में नहीं होती हो, उनकी प्रतिमाएँ तोड़ दिए जाने चाहिए और गैर धर्मस्थल ध्वस्त कर दिए जाने चाहिए, अन्य धर्म के बारे में शिक्षा देने वाली पुस्तकें जला दिए जाने चाहिए। उन्होंने कहा, “प्रशांत से लेकर अटलांटिक महासागर तक पूरी दुनिया में 500 वर्षों तक खून बहा। यही मोहम्मदिज्म है!”

बाद की और पूर्व की कई घटनाओं को देखें तो स्वामी विवेकानंद सही थे। चाहे वो इस्लामी आक्रांताओं की क्रूरता हो या फिर अलकायदा और ISIS जैसे संगठनों की हरकतें। स्वामी विवेकानंद का कहना था कि भले ही इस्लाम को रक्त बहा कर फैलाया गया लेकिन इसमें कुछ भी अच्छा नहीं होता तो ये अब तक टिकता नहीं। उन्होंने कहा था कि अच्छा है, पैगम्बर मुहम्मद ने भाईचारे और बराबरी का सन्देश तो दिया था।

उनका मानना था कि हर पैगम्बर कुछ न कुछ शिक्षा देते हैं और मुहमम्द का जीवन भी उज्ज्वल और काफी कुछ बताने वाला था। जैसे, उन्होंने बताया कि जाति, रंग, पंथ, वंश, समुदाय या लिंग – बराबरी में कोई भी आड़े नहीं आना चाहिए। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा था कि तुर्की का सुल्तान अफ्रीका से एक नीग्रो दास खरीद कर ला सकता है, लेकिन अगर वो मुस्लिम बन गया तो सुल्तान उससे अपनी बेटी की शादी भी कर सकता है।

हालाँकि, अब स्थिति बदतर है और शिया-सुन्नी-अहमदिया के कई झगड़े चल रहे हैं। दुनिया भी में बराबरी की इस भावना का मजाक बनाया जा रहा है। जब मजहब के आधार पर देश का बँटवारा हुआ, तब तक स्वामी विवेकानंद ब्रह्मलीन हो चुके थे। जिन शिक्षाओं की वो बात करते थे और इस्लाम में जिस बराबरी का उन्होंने हवाला दिया था, वो अब देखने को नहीं मिलती। दुनिया भर में आतंकी हरकतें चीख-चीख कर इसे झुठला रही है।

स्वामी विवेकानंद के अनुसार, हिन्दू धर्म के सिवा संसार के अन्य सभी धर्म ऐतिहासिक जीवनियों के आधार पर खड़े हैं। परन्तु हिन्दू धर्म कुछ तत्वों की नींव पर खड़ा है। उन्होंने कहा था, ”पृथ्वी पर कोई भी व्यक्ति – स्त्री हो या पुरुष, वेदों के निर्माण करने का दम नहीं भर सकता है।” इसीलिए हमारा धर्म किसी व्यक्ति विशेष पर निर्भर नहीं करता, यहाँ तो अनेकों ऋषि-ऋषिकाओं ने और महापुरुषों ने जन्म लिया है और आगे भी लेते रहेंगे।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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