भारत के इतिहास में एक लंबा कालखंड ऐसा रहा, जब दिल्ली में इस्लामी शासन रहा और हिन्दुओं को अपने ही देश में दोयम दर्जे का नागरिक बनकर रहना पड़ा। इसमें सबसे लंबे समय तक दिल्ली की तख़्त पर मुग़लों का शासन रहा। मुग़ल अफगान तैमूर और मंगोल चंगेज खान के वंशज थे। उनके पूर्वज भी आततायी ही थे। इसके बावजूद मुग़लों को वामपंथी इतिहासकारों ने कुछ ऐसे पेश किया जैसे वो कला व संस्कृति के सबसे बड़े संरक्षक हों। हालाँकि, सच्चाई इसके इतर थी। मुग़ल राज में हिन्दुओं को जजिया कर देना होता था। मंदिर ध्वस्त किए जाते थे। इन्हीं मुग़ल शासकों में एक था – औरंगज़ेब।
औरंगज़ेब अंतिम सबसे प्रभावशाली मुग़ल शासक था, उसके बाद मुग़लों का राज सिर्फ़ दिल्ली और फिर लाल किले तक ही सीमित होकर रह गया। लेकिन, औरंगज़ेब के शासनकाल के 5 दशक हिन्दुओं के लिए किसी अंधकार युग से कम नहीं थे। पंजाब में गुरु गोबिंद सिंह, महाराष्ट्र में छत्रपति शिवाजी महाराज और छत्रपति संभाजी महाराज, बुंदेलखंड में छत्रसाल, असम में लाचित बरफुकन और दिल्ली के आसपास जाटों ने उसकी नाक में दम करके रखा। अपने जीवन के अंतिम ढाई दशक उसने डेक्कन फ़तह करने की कोशिश में बिता दिए। अपनी इस सनक में औरंगज़ेब ने मुग़ल साम्राज्य का सारा संसाधन गँवा दिया।
वामपंथी इतिहासकारों ने किया औरंगज़ेब का बचाव
वो औरंगज़ेब का ही कालखंड था, जब काशी स्थित विश्वनाथ मंदिर और मथुरा स्थित श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर को ध्वस्त करके वहाँ मस्जिदें खड़ी कर दी गईं। सन् 1669 में काशी में मंदिर को ध्वस्त कर उसके अवशेषों के ऊपर संरचना खड़ी करके उसे ‘ज्ञानवापी मस्जिद’ नाम दे दिया गया। जबकि ज्ञान और वापी, दोनों ही संस्कृत शब्द हैं। इसका अर्थ है – विद्या का कुआँ। वामपंथी इतिहासकारों ने औरंगज़ेब का बचाव करने के लिए एक नया शिगूफा छेड़ा, वो लिखने लगे कि मंदिरों को ध्वस्त किए जाने के पीछे कोई मजहबी मंशा थी ही नहीं, ये सब राजनीतिक था।
औरंगज़ेब ने इन मंदिरों को क्यों ध्वस्त करवाया? अगर आप इतिहासकार ऑड्रे ट्रुश्के को पढ़ेंगे तो वो लिखती हैं कि औरंगज़ेब के शासनकाल के अंत में भी सैकड़ों हिन्दू-जैन मंदिर खड़े रहेमंदिर वहीं एक अन्य इतिहासकार सिंथिया टैलबोट की मानें तो मथुरा में एक दंगा होने की वजह से वहाँ के मंदिर को ध्वस्त किया गया। हालाँकि, सच्चाई आपको औरंगज़ेब के समय की ही पुस्तक ‘मआसिर-ए-आलमगीरी’ में मिल जाएगी। इसके अनुसार, औरंगज़ेब ने ‘इस्लाम की स्थापना’ के उद्देश्य से ऐसा किया था। साथ ही उसका मानना था कि इन मंदिरों में ‘काफिर’ लोग अपनी ‘झूठी किताबें’ पढ़ाते थे।
The Islamic record of Maasir-i-Alamgiri states that on April 9, 1669, Aurangzeb had issued a ‘farman’ decree, “to governors of all the provinces to demolish the schools and temples of the infidels and strongly put down their teachings and religious practices.”
— 𝗔𝗵𝗮𝗺 𝗕𝗿𝗮𝗵𝗺𝗮𝘀𝗺𝗶 (@TheRudra1008) October 18, 2022
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यही कारण है कि औरंगज़ेब ने न केवल मंदिरों, बल्कि कई गुरुकुलों को भी ध्वस्त करवाया। भारत हमेशा से विद्या की धरती रही है। यहाँ वर्षों से ‘विद्या ददाति विनयं’, ‘विद्या नरस्य रूपमधिकं’, ‘नास्ति विद्यासमो बंधु’ और ‘विद्या नाम नरस्य कीर्तितुला’ पढ़ाया जाता रहा है। खगोलीय गणनाओं से लेकर जाती गणित तक, अर्थशास्त्र से लेकर नीतिशास्त्र तक, सैकड़ों वर्षों से छात्र इन सबका अध्ययन करते आ रहे हैं। बख़्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय के पुस्तकालय ‘रत्नोदधि’ को जलाया था तो कई लाख पुस्तकें बर्बाद हो गई थीं। औरंगज़ेब भी हिन्दू धर्म के बृहद ज्ञान-भण्डार से खार खाया रहता था।
शरिया क़ानून के हिसाब से मंदिर ध्वस्त करना वैध
साफ़ है, उसने स्थानीय बगावतों का इस्तेमाल किया अपने मजहबी एजेंडे को पूरा करने के लिए। एक बहाने के रूप में राजनीतिक परिस्थितियों का इस्तेमाल किया गया, इसे एक आवरण बनाकर अपनी कट्टरपंथी कार्रवाइयों को ढँका गया। जहाँ तक कई छोटे-छोटे मंदिरों के उसके शासनकाल के अंत तक अस्तित्व में रहने का सवाल है – किसी बड़े मंदिर को ध्वस्त करना इस्लामी आक्रांताओं के लिए बड़ा सन्देश देने का कार्य करता, सिवाए छोटे मंदिरों को तोड़ने के। हालाँकि, इस्लामी फ़ौज राह चलते छोटे मंदिरों को भी ध्वस्त करते चलते थे। फिर भी, महमूद गजनी द्वारा सोमनाथ मंदिर को ध्वस्त किया जाना पूरे इस्लामी मुल्क़ में किंवदंतियों का आधार बना। अतः, भव्य मंदिर हमेशा से निशाने पर थे।
इस्लाम में ‘हनफ़ी’ क़ानून के तहत ये वैध था। आख़िर ऑटोमन साम्राज्य ने भी तो इस्ताम्बुल स्थित हागिया सोफिया चर्च को मस्जिद में तब्दील कर दिया था। सोशल मीडिया पर जो लोग ये कहते हैं कि औरंगज़ेब बादशाह था और जो चाहे वो कर सकता था, इसीलिए अगर वो मंदिरों को ध्वस्त करने पर आता तो देश में एक भी मंदिर नहीं बचते – ऐसा मानने वालों को इतिहास का ज्ञान नहीं है। निचले स्तर पर और सेना में अधिकतर हिन्दू ही होते थे, ऐसे में औरंगज़ेब जैसे बादशाह एकदम से सारे मंदिरों को ध्वस्त नहीं कर सकते थे। ये मौक़े की तलाश में रहते थे। मुग़ल दरबार में भी हिन्दुओं का प्रभाव था, ख़ासकर के जयपुर-आमेर राजघराने का।
1669 ईस्वी में ही औरग़ज़ेब ने एक फरमान जारी करके कई मंदिरों और विद्यालयों को ध्वस्त करने का आदेश दिया था। इसमें ख़ासकर के ठट्टा, मुल्तान और वाराणसी का जिक्र था। औरंगज़ेब का दावा था कि यहाँ ‘ग़लत पुस्तकें’ पढ़ाई जा रही हैं। हालाँकि, औरंगज़ेब का ये आदेश पूरा मुग़ल साम्राज्य में लागू नहीं किया जा सका, लेकिन कई मंदिर ध्वस्त किए गए। इसी तरह, सन् 1662 में औरंगज़ेब ने पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर को ध्वस्त किए जाने का फरमान जारी किया। लेकिन, जिन स्थानीय अधिकारियों को इस आदेश की तामील करानी थी उन्हें घूस दिया गया। मंदिर को बचाने के लिए इसे कई दिनों तक बंद रखा गया। सन् 1707 में औरंगज़ेब की मौत के साथ ही यहाँ दर्शन-पूजन फिर से शुरू किया जा सका।
तीर्थस्थलों से टैक्स वसूलते थे मुग़ल
एक और तथ्य पर ध्यान दीजिए, कई बड़े मंदिरों और तीर्थस्थलों से इन मुग़लों को पैसे मिलते थे। यहाँ तक कि कुंभ जैसे आयोजनों से भी इन आक्रांता शासकों की बड़ी कमाई होती थी। हिन्दुओं से टैक्स भी वसूलना था और इस्लाम का शासन भी स्थापित करना था। मजहबी लक्ष्य तो था ही, लेकिन लुटेरे प्रवृत्ति के इन आक्रांताओं ने जहाँ टैक्स से अधिक कमाई की संभावना थी वहाँ नरमी बरती। जैसे, 1724 में भी जगन्नाथ मंदिर को ध्वस्त करने का फरमान जारी किया गया था। रामचंद्र देव द्वितीय ने इस्लाम अपनाने का नाटक किया और प्रतिमाओं को छिपा दिया गया। बाद में प्रतिमाओं को पुनः स्थापित किया गया क्योंकि 9 लाख रुपए का नुकसान हुआ था।
चूँकि मुग़लों को मंदिरों को लूटकर धन कहीं ले तो जाना नहीं था, इसीलिए उन्होंने बड़ी चालाकी से हिन्दुओं पर टैक्स लगाकर हर साल की कमाई की व्यवस्था की। औरंगज़ेब ने जिन मंदिरों को ध्वस्त करने का फरमान जारी किया था, उनमें एलोरा का कैलाशा मंदिर भी शामिल था। एक पूरी की पूरी फौज इसे ध्वस्त करने के लिए लगाई गई थी, लेकिन स्थानीय लोगों ने इसका जमकर विरोध किया। आज भी इस मंदिर को वास्तुकला के सर्वोत्तम उदाहरणों में से एक माना जाता है। उस समय भी इस मंदिर की मजबूत संरचना और श्रद्धालुओं के प्रतिरोध के कारण 3 साल प्रयास करने के बावजूद औरंगज़ेब इसमें सफल नहीं हो पाया। आज भी कैलाशा मंदिर खड़ा है, ये हिन्दू समाज की जिजीविषा का ही प्रमाण है।
कालकाजी से लेकर सोमनाथ मंदिर तक को करवाया ध्वस्त
इससे पहले औरंगज़ेब दिल्ली के कालकाजी मंदिर के ध्वस्तीकरण के लिए भी फरमान जारी कर चुका था। ये फरमान 3 सितंबर, 1667 को जारी किया गया था। कारण ये बताया गया था कि वहाँ बड़ी संख्या में हिन्दुओं का जुटान हो रहा है। इसके बाद औरंगज़ेब ने 100 मजदूरों को उस मंदिर को ध्वस्त करने के लिए भेजा। ‘सियाह अख़बारात-ए-दरबार-ए-मुअल्ला’ नामक मुग़ल दस्तावेज में ये जिक्र मिलता है कि एक ब्राह्मण ने उस दौरान तलवार निकाल कर मंदिर की रक्षा करने का प्रयत्न किया था। उसने एक को मार भी डाला। इसके बाद ब्राह्मण ने काज़ी पर हमला किया। अंततः उसे क़ैद कर लिया गया और पत्थर मार-मार कर सज़ा-ए-मौत दे दी गई।
इसी तरह, औरंगज़ेब ने सन् 1706 में सोमनाथ मंदिर को भी ध्वस्त करवाया। हालाँकि, इस आदेश की उतनी अच्छी तरह तामील नहीं हुई क्योंकि अगले ही वर्ष उसकी मौत हो गई थी। इससे पहले उसने नवंबर 1665 में भी इसे ध्वस्त किए जाने का आदेश दिया था। यानी, औरंगज़ेब के कालखंड में सोमनाथ मंदिर को दो-दो बार ध्वंस का सामना करना पड़ा। इससे पहले मजमूद गजनवी और अल्लाउद्दीन खिलजी के भाई उलुग खान ने सोमनाथ मंदिर का विध्वंस किया था। औरंगज़ेब को उसके अब्बा शाहजहाँ ने गुजरात का ही गवर्नर नियुक्त किया था, ऐसे में वो सोमनाथ मंदिर के महत्व को समझता था। औरंगज़ेब के समय मंदिरों की मरम्मत पर भी प्रतिबंध था।
हालाँकि, औरंगज़ेब के निधन के बाद मराठा शक्ति मजबूत हुई और दक्षिण भारत में हिन्दू राज्य का उदय हुआ जिसने बाद में दिल्ली को भी अपने नियंत्रण में ले लिया। औरंगज़ेब का मानना था कि एक मंदिर की तरफ देखना भी इस्लाम में हराम है। उसने गुजरात में हाटकेश्वर मंदिर को भी ध्वस्त करवाया। साथ ही उसने गुजरात के द्वारकाधीश मंदिर के ध्वस्तीकरण का आदेश भी जारी किया था, लेकिन इसपर अमल नहीं करवा सका। इसके अलावा औरंगज़ेब ने हिन्दुओं पर जजिया टैक्स भी लगाया था। हिन्दुओं को झुककर मुग़ल अधिकारियों के सामने हाजिरी लगानी होती थी और टैक्स देना होता था।