आपने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से लेकर कई भाजपा समर्थकों तक को ये कहते सुना होगा कि कॉन्ग्रेस पार्टी और वामपंथियों ने पिछले 7 दशकों में ऐसे-ऐसे लोगों को भारत के अकादमिक जगत में भर दिया जो राष्ट्र विरोधी नैरेटिव को हवा देते रहे। ताज़ा मामला पहले से ही विवादित रहे मोतिहारी के महात्मा गाँधी केंद्रीय विश्वविद्यालय का है, जहाँ बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी (BHU) के प्रोफेसर तेज प्रताप सिंह (Professor TP Singh) के कुलपति की रेस में होने का विरोध शुरू हो गया है।
मोतिहारी सेन्ट्रल यूनिवर्सिटी के वर्तमान कुलपति (Vice Chancellor) संजीव कुमार शर्मा की जगह कौन आएगा, इसके लिए केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय ने प्रक्रिया शुरू कर दी है। पहले आवेदन मँगाए गए, जिनमें से 5 प्रमुख नाम उभर कर सामने आए। उनमें से प्रयागराज स्थित गोविंद वल्लभ (GB) पंत सोशल साइंस इंस्टिट्यूट के प्रोफेसर बद्री नारायण तिवारी का नाम भी सामने आया था।
‘हिंदुत्व का मोहिनी मंत्र’ जैसे पुस्तक लिख चुके बद्री नारायण तिवारी को हिंदुत्व की परिभाषा तक मालूम नहीं थी और छात्रों का कहना है कि उन्हें हिन्दू धर्म का अपमान करने वाला प्रोफेसर नहीं चाहिए। अब नया नाम BHU के प्रोफेसर तेज प्रताप सिंह का सामने आया है। वो राजनीतिक विज्ञान विभाग में कार्यरत हैं। साथ ही उन्हें ‘Centre for Study of Social Exclusion
& Inclusive Policy (CSSEIP)’ के संयोजक का पद भी दिया गया है।
जहाँ एक तरफ ‘The Wire’ जैसे पोर्टलों पर बैठ कर हिन्दू धर्म व दलितों को अलग-अलग कर के देखने वाले प्रोफेसर बद्री नारायण तिवारी हैं, वहीं दूसरी तरफ नक्सलवाद और दंतेवाड़ा पर रिसर्च कर चुके प्रोफेसर टीपी सिंह। लेकिन, छात्रों को समस्या उनकी रिसर्च से नहीं है, उसके कंटेंट से है। छात्रों का आरोप है कि नक्सलवाद की समस्या के लिए उन्होंने भारत के सुरक्षा बलों को भी जिम्मेदार ठहराया है।
‘चम्पारण छात्र संघ’ ने इन नियुक्तियों की संभावनाओं का विरोध करते हुए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिखा है। इस पत्र में राष्ट्रपति के उत्तम स्वास्थ्य की कामना करते हुए ध्यान आकृष्ट कराया गया है कि जहाँ प्रोफेसर बद्री नारायण तिवारी अपने लेखन और सार्वजनिक वक्तव्यों के जरिए बहुसंख्यक समाज नागरिकों की आस्था के केंद्र भगवान श्रीराम, मेवाड़ के महाराणा प्रताप और बहराइच में गाज़ी मियाँ का वध करने वाले राजा सुहेलदेव को मिथक की संज्ञा देते हुए उनकी तुलना फासिस्टों से की है।
पत्र के अनुसार, वहीं दूसरी तरफ लगातार अपनी शोध परियोजनाओं नक्सली हमलों एवं बर्बरता को विरोध की संज्ञा देते हुए नक्सलियों के प्रति सहानुभूति जताने वाले और बलिदानी जवानों का अपमान करने वाले प्रोफेसर तेज प्रताप सिंह हैं। निवेदन किया गया है कि जब इस विश्वविद्यालय का बुनियादी ढाँचा ही अब तक विकसित नहीं हुआ है और अधिकतर कक्षाएँ अस्थायी इमारतों में चल रही हैं, बहुसंख्यकों का अपमान करने वाले और नक्सलियों का महिमामंडन करने वाले प्रोफेसरों को कुलपति बना कर न भेजा जाए।
हमने ‘चम्पारण छात्र संघ’ से संपर्क किया तो संगठन ने कहा कि तेज प्रताप सिंह उर्फ टीपी सिंह को जानने वाले प्रत्येक व्यक्ति को पता है कि उनकी पृष्ठभूमि वामपंथी है। संगठन का कहना है कि 2014 से पहले इसे वे छिपाते भी नहीं थे लेकिन केंद्र में भाजपा की सरकार बनते हीं वे राष्ट्रवादी बन गए। आरोप है कि उन्होंने दंतेवाड़ा एवं बस्तर के नक्सलवाद, जो उनका प्रिय विषय है, पर एक प्रोजेक्ट किया है जो यूपीए सरकार के समय UGC द्वारा वित्त पोषित है।
ये भी आरोप है कि उन्होंने केंद्र सरकार, राज्य सरकार, सेना, पुलिस और अर्धसैनिक बलों की कार्रवाई को नक्सलवाद में वृद्धि का कारण बताया है। असल में महात्मा गाँधी केंद्रीय विश्वविद्यालय (MGCUB) के छात्रों को पिछले दोनों कुलपतियों के कार्यकाल में खासी परेशानी हुई है, इसीलिए अब वो किसी योग्य और राष्ट्रनिष्ठ व्यक्ति को ही इस पद पर चाहते हैं। जहाँ पहले कुलपति को विवादों के कारण इस्तीफा देना पड़ा था, अभी वाले पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं।
संघ के संयोजक विकाश जी ने कहा कि विश्वविद्यालय के सर्वांगीण विकास के लिए कुलपति के रूप में एक योग्य प्रशासक, अकादमिक अनुभव से परिपूर्ण, दूरदर्शी एवं भारतीय संस्कृति व संविधान में आस्था रखने वाले, विश्वविद्यालय के सर्वांगीण विकास एवं उत्तम शैक्षिक वातावरण के निर्माण के लिए दृढ़ संकल्पित एक कर्मयोगी शिक्षाविद की नियुक्ति की जाए। कुछ ही दिनों में नए कुलपति की घोषणा होनी है।
प्रोफेसर तेज प्रताप सिंह ने ‘द हिन्दू’ में एक लेख लिखा था, जिसमें उन्होंने माओवादियों की हिंसा को ‘माओवादी आंदोलन’ बताते हुए लिखा था कि वो ‘सत्ता के खिलाफ हथियारबंद संघर्ष’ कर रहे हैं। मार्च 2013 में लिखे इस लेख में उन्होंने बार-बार माओवादी हिंसा को ‘मूवमेंट’ कहा है और दावा किया है कि भारतीय सुरक्षा बलों के जवानों की लाशों को क्षत-विक्षत न कर के वो UN के ‘जेनेवा कन्वेंशन’ का पालन करते आ रहे हैं।
उनका दावा था कि ‘जमींदारों से गरीबों को बचाने और किसानों की मदद के लिए’ ‘माओवादी आंदोलन’ का जन्म हुआ। उन्हें 2013 में नजर आया था कि ‘माओवादी आंदोलन का अपराधीकरण’ हो रहा है। जबकि सच्चाई ये है कि इस क्रूरता का भुक्तभोगी बिहार-झारखंड का समाज 90 के दशक से ही रहा है। वो माओवादी हिंसा को ‘राजनीतिक समस्या’ कहते हैं। अक्टूबर 2012 में लिखे एक लेख में उन्होंने कहा था कि माओवादी अलगाववादी नहीं हैं।
प्रोफेसर टीपी सिंह के अंतर्गत शोध कर चुके अम्बिकेश त्रिपाठी का नाम भी सामने आया है, जो MGCUB के अध्ययन विभाग में सहायक प्राध्यापक और गांधीवादी शोध केंद्र का निदेशक हैं। अपने एक फेसबुक पोस्ट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मजाक बनाते हुए उन्होंने लिखा था, “एक जगह बोर्ड लगा था PM बनने का तरीका सीखें मात्र 100 रुपए में। मई अंदर गया तो देखा कि वो चाय बनाना सीखा रहे थे।”
अब देखना ये है कि छात्रों, बुद्धिजीवियों और युवाओं के विरोध को देखते हुए क्या भगवान श्रीराम, महाराणा प्रताप और सुहेलदेव को मिथक बताने वाले प्रोफेसर बद्री नारायण तिवारी या फिर नक्सलियों की हिंसा पर पर्दा डालने वाले प्रोफेसर तेज प्रताप सिंह को मोतिहारी के ‘महात्मा गाँधी केंद्रीय विश्वविद्यालय (MGCUB)’ का कुलपति बनाया जाता है या नहीं। अकादमिक जगत में वामपंथियों के बोलबाला से छात्र नाखुश हैं, ये स्पष्ट है।