उत्तर प्रदेश के प्रयागराज के झूसी में स्थित ‘गोविन्द बल्लभ पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान (Govind Ballabh Pant Social Science Institute)’ में बतौर सामाजिक इतिहास और सांस्कृतिक मानव विज्ञान के प्रोफेसर कार्यरत बद्री नारायण तिवारी ने अपने ऊपर लगे आरोपों का जवाब दिया है। मोतिहारी स्थित ‘महात्मा गाँधी केंद्रीय विश्वविद्यालय (MGCUB)’ के कुलपति की रेस में शामिल बद्री नारायण पर एक छात्र संगठन ने हिन्दू विरोधी और वामपंथी होने के आरोप लगाए थे।
कौन हैं प्रोफेसर बद्री नारायण तिवारी?
कवि एवं समाज-वैज्ञानिक के रूप में जाने जाने वाले बद्री नारायण तिवारी के बारे में बता दें कि वे 2015-16 में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के ‘सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ़ डिस्क्रिमिनेशन एंड एक्सक्लूजन’ में प्रोफेसर थे। वो येल विश्वविद्यालय में विजिटिंग प्रोफेसर, इंटरनेशनल इंस्टीटयूट ऑफ एशियन स्टडीज, लाइडेन यूनिवर्सिटी, द नीदरलैंड, मैसौन द साइंसेज द ला होम, पेरिस में विजिटिंग फेलो और सिंगापुर नेशनल यूनिवर्सिटी में आईसीसीआर चेयर प्रोफेसर के पदों पर भी रहे हैं।
पिछले एक दशक से कई मीडिया संस्थानों में लेख लिख चुके और डिबेट शो में दिख चुके प्रोफेसर बद्री नारायण तिवारी जीबी पंत सोशल साइंस इंस्टिट्यूट के मानव विकास संग्रहालय में गंगा नदी-संस्कृति, विदेसिया वीथिका और दलित संस्रोत केंद्र की स्थापना की है। अभी हाल ही में आई उनकी किताब ‘रिपब्लिक ऑफ़ हिन्दुत्व : हाउ द संघ इज़ रिशेपिंग इंडियन डेमोक्रेसी (2021)’ में भारतीय लोकतंत्र की संरचना के अंदर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की कार्य पद्धति, संगठन, विचार और उसकी व्यापकता पर प्रकाश डाला गया है।
एक लेखक व शोधकर्ता के रूप में पहले भी वो डाक्युमेंटिंग डिसेंट (2001), विमेन हीरोज एंड दलित असर्सन इन नॉर्थ इण्डिया (2006), फैसिनेटिंग हिंदुत्व-सैफ्रोन पालिटिक्स एंड दलित मोबलाइजेशन (2009), मेकिंग आफ दलित पब्लिक इन नार्थ इण्डिया (2011) और फ्रैक्चर्ड टेल्स : इनविजिबल इन इंडियन डेमोक्रेसी (2016) जैसी किताबें लिख चुके हैं। साथ ही लोक संस्कृति और इतिहास (1994), लोक संस्कृति में राष्ट्रवाद (1996), साहित्य और सामाजिक परिवर्तन (1997), संस्कृति का गद्य (1998), उपेक्षित समुदायों का आत्म-इतिहास (2006) और प्रतिरोध की संस्कृति (2012) जैसी किताबों के भी वो लेखक हैं।
MGCUB विवाद: मोतिहारी के छात्र संगठन ने क्यों किया उनका विरोध?
मोतिहारी के कुछ छात्रों ने कहा था कि कि कभी ‘हिंदुत्व का मोहिनी मंत्र’ नामक पुस्तक लिख चुने बद्री नारायण अब पद की लालसा के लिए RSS (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) को खुश करने की जुगत में लगे हैं। राष्ट्रपति को लिखे गए पत्र में ‘चम्पारण छात्र संघ’ ने कहा था कि प्रोफेसर बद्री नारायण तिवारी ने अपने लेखन और सार्वजनिक वक्तव्यों के जरिए बहुसंख्यक समाज नागरिकों की आस्था के केंद्र भगवान श्रीराम, मेवाड़ के महाराणा प्रताप और बहराइच में गाज़ी मियाँ का वध करने वाले राजा सुहेलदेव को मिथक की संज्ञा देते हुए उनकी तुलना फासिस्टों से की है।
प्रोफेसर संजीव कुमार शर्मा का बतौर कुलपति कार्यकाल ख़त्म होने के बाद मोतिहारी के ‘महात्मा गाँधी केंद्रीय विश्वविद्यालय (MGCUB)’ के नए कुलपति को लेकर नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू हो गई है। ऐसे में पहले से ही भ्रष्टाचार और विवादों से पीड़ित MGCUB के छात्र व पूर्व-छात्र सशंकित हैं। छात्रों का कहना है कि पिछले 6 वर्षों से दो-दो कुलपतियों के विवादित कार्यकाल के कारण विश्वविद्यालय का विकास नहीं हो पाया है और अब इसे एक योग्य और अच्छे विचारधारा वाले शिक्षाविद की कुलपति के रूप में ज़रूरत है।
ऑपइंडिया से बातचीत में दिया अपने ऊपर लगे आरोपों का जवाब
ऑपइंडिया ने प्रोफेसर बद्री नारायण तिवारी से बात की और छात्रों द्वारा लगाए गए आरोपों पर उनकी प्रतिक्रिया ली। उन्होंने बताया कि वामपंथियों ने उन्हें ‘संघी’ घोषित कर रखा है और वो उन्हें लगातार गालियाँ दे रहे हैं। उन्होंने अपने ऊपर लगे आरोपों को लेकर कहा कि उनके खिलाफ कुछ लोगों द्वारा जानबूझ कर एक घृणास्पद अभियान चलाया जा रहा है। प्रोफेसर बद्री नारायण तिवारी से ऑपइंडिया के बातचीत के अंश:
सवाल: आपने ‘हिंदुत्व का मोहिनी मंत्र’ नामक पुस्तक लिखा है। क्या आप अब भी उस पुस्तक में भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) को लेकर कही गई बातों से इत्तिफ़ाक़ रखते हैं?
जवाब: ‘हिंदुत्व का मोहिनी मंत्र’ नामक पुस्तक का अंग्रेजी में नाम ‘फैसिनेटिंग हिंदुत्व-सैफ्रोन पालिटिक्स एंड दलित मोबलाइजेशन’ था, जो 2008 में लिखी गई थी। इसके लिए रिसर्च का कार्य 2006 के आसपास शुरू हुआ था। ये पहली ऐसी पुस्तक है, जिसमें दलित समाज के बीच हिंदुत्व की चेतना के प्रचार-प्रसार का अध्ययन किया गया है। उस समय शोध के समय मैंने देखा कि कैसे RSS दलितों को अपने साथ जोड़ रहा है। मैंने देखा कि कैसे हिंदुत्व के सर्वांगीण निर्माण के तहत वो कैसे दलित समूहों (सर्व-समाज) को साथ लेने की कोशिश में लगा है। दलितों के नायकों, पर्व-त्योहारों और संस्कृति को कैसे संघ अपनी चेतना-प्रसार की प्रक्रिया से जोड़ रहा है, इसी पर उस पुस्तक में शोध किया गया था। लेकिन, तब मैं वामपंथी विचारधारा से प्रभावित होकर उसे लिख रहा था, लेकिन सामाजिक सच्चाई तो वही थी। लेकिन, उसकी जो भाषिकता थी वो वामपंथी हो गई थी। पर, सामाजिक सच्चाई उसी तरीके से आगे बढ़ रही थी। ये पहली पुस्तक है, जिसमें दलित एवं हिंदुत्व के रिश्ते को परिभाषित किया गया। लेकिन, मुझे बार-बार ये एहसास हो रहा था कि सामाजिक सच्चाई और उसकी बारीकियों को लेकर मैं जो देख रहा था, उसे मैं ठीक से प्रस्तुत नहीं कर पा रहा हूँ। हम उस समय संघ को एक अलग नजरिए दे देख रहे थे, जो वामपंथी मानसिकता का प्रभाव था। मैं लगातार अपने चिंतन की व्याख्या करता जा रहा था क्योंकि मैं हमेशा से दलित समाज का अध्ययन करता रहा हूँ। इसके बाद मैंने ‘रिपब्लिक ऑफ हिंदुत्व’ लिखना शुरू किया। उसमें मैं अपनी वामपंथी परिदृश्य, दृष्टिकोण और भाषिकता से से ऊपर उठा। इस तरह वैचारिकता के मामले में मेरा सफर रहा। इसमें मैंने उन सारी रूढ़िवादी विचारों को काटने की कोशिश की है, जिसके कारण RSS मुख्यधारा में नहीं आ पाती थी।
सवाल: आरोप है कि आपने अचानक से अपनी विचारधारा बदल ली और अब आप एक वामपंथी नहीं हैं। इस बदलाव का कारण क्या है?
जवाब: मेरे विचारों में जो बदलाव आया, उसका कारण है कि सामाजिक सच्चाई को समझने में वामपंथी दृष्टिकोण और शब्दावली लगातार मेरी राह में बाधा पैदा कर रही थी। वामपंथी विचार एक जगह जाकर रुक गया है और उसकी शब्दावली जड़ हो गई है, जबकि सामाजिक सच्चाई दिनोंदिन बदलती ही जा रही है। एक समाज-वैज्ञानिक हमेशा सामाजिक सच्चाई की प्रक्रिया को समझने के दौरान परिपक्व होता जाता है। मेरी भी यात्रा यही है। इसीलिए, मुझमें ये परिवर्तन आया। ये ‘अचानक आया बदलाव’ नहीं है, बल्कि इसकी एक लंबी प्रक्रिया रही है। 2012-13 में मैंने पाया कि दलित समाज में एक नया तबका पैदा हो गया है, जो अन्य तबकों से इत्तिफ़ाक़ नहीं रखता। मैंने इन्हें समझने के दौरान ही खुद में बदलाव महसूस किया।
सवाल: आपने हाल ही में अपनी पुस्तक ‘रिपब्लिक ऑफ हिंदुत्व’ लॉन्च की है। इसमें क्या है? इस रिसर्च का कारण क्या है?
किसी शोध को करने या फिर पुस्तक लिखने का कोई मोटिव नहीं होता, बल्कि एक प्रेस्पेक्टिव होता है, एक परिदृश्य होता है। मेरे इस किताब में बताया गया है कि किस तरह भारतीय समाज के निर्माण में RSS की भूमिका रही है और लोकतंत्र व सामाजिक ढाँचे में विकास आ रहा है, उसमें संघ की भूमिका को नए परिदृश्य में समझने की कोशिश की गई है। इसे इस किताब को पढ़ने के दौरा समझा जा सकता है।
वामपंथियों ने प्रोफेसर बद्री नारायण तिवारी को दी थी गालियाँ
हाल ही में कई वामपंथियों ने सोशल मीडिया के माध्यम से प्रोफेसर बद्री नारायण तिवारी को गालियाँ बकी हैं और उन पर RSS के हाथों बिके होने का आरोप लगाया है। फेसबुक पर कई वामपंथियों ने उन और छींटाकशी की है। दीपक सिंह नाम के एक यूजर ने लिखा कि प्रोफेसर बद्री नारायण अब ‘संतरा संरक्षण’ में आ गए हैं। उसने आरोप लगाया कि अगर कॉन्ग्रेस की सरकार होती तो ये अब तक ‘प्रगतिशील’ होते।
वहीं रुस्तम कुरैशी नाम के एक व्यक्ति ने तो उन्हें गाली देते हुए तलवे चाटने का आरोप लगाया और कहा कि ये जीबी पंत संस्थान में संघ का एजेंडा चला रहे हैं। एक पवन गुप्ता नाम के यूजर ने लिखा कि उसे 4 साल पहले ही संस्थान के एक कार्यक्रम में इसका एहसास हो गया था। वहीं एक अन्य वामपंथी ने उन पर पद की लालसा होने का आरोप लगाया। ऑपइंडिया के पास इन कमेंट्स के स्क्रीनशॉट्स हैं।
उन्होंने हाल ही में बयान दिया था कि कोरोना काल में RSS ने गरीबों की जितनी सेवा की है, उतनी किसी ने नहीं की। इसे लेकर वामपंथियों ने उनका विरोध किया। उन पर भाजपा के एजेंट होने के आरोप लगाए गए। उन पर राजनीतिक आस्था और भावना बदलने के आरोप लगाते हुए वामपंथियों ने कहा कि वो उन्हें अपने गुट का मानते थे, लेकिन लगता नहीं कि ऐसा है। कुल मिला कर वामपंथी गिरोह उनसे खासा नाराज़ था।
RSS नेताओं ने की है प्रोफेसर बद्री नारायण के काम की तारीफ़
संघ के कई नेताओं ने प्रोफेसर बद्री नारायण और उनके कामकाज की तारीफ़ की है। विनय सहस्रबुद्धे ने कहा था कि वो ‘रिपब्लिक ऑफ हिंदुत्व’ के लिए प्रोफेसर बद्री नारायण को बधाई देते हैं। वहीं संघ के जे नंदकुमार ने भी उन्हें बधाई देते हुए उनकी तारीफ की। सहस्रबुद्धे ने कहा कि वो हमेशा से बद्री नारायण तिवारी की लेखनी के कायल हैं और कई मुद्दों पर वो रूढ़िवादी तौर-तरीकों की बजाए नए नजरिए से अध्ययन करते रहे हैं।
RSS के राम माधव ने भी उनकी तारीफ़ की थी। जे नंदकुमार ने उनकी ताज़ा पुस्तक को हिंदुत्व से जुड़े लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण पुस्तक बताया था। राम माधव ने उन्हें ईमानदार बताते हुए कहा था कि उन्होंने सचमुच RSS को समझते हुए ये पुस्तक लिखी है, जबकि ये एक कठिन कार्य है। उन्होंने ईमानदारी से निष्कर्ष को सामने रखने के लिए उनका धन्यवाद दिया और कहा कि उन्होंने एक अच्छा प्रयास किया है।