Friday, April 26, 2024
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हादिया मामले का हवाला देकर 16 साल की मुस्लिम लड़की ने ठहराया अपना निकाह जायज, SC करेगा विचार

यूपी की एक 16 साल की लड़की ने कोर्ट के इस फैसले का हवाले देते हुए अपने निकाह को मान्य देने की गुहार लगाई है। जिसके लिए उसने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर किया है। उसने ये याचिका इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के ख़िलाफ़ दाखिल की है। जहाँ लड़की की शादी को शून्य करार देकर उसे शेल्टर होम भेजने का आदेश दिया गया था।

साल 2018 में हादिया और शफीन जहाँ के मामले में शरिया के प्रावधान को मान्य करार देते हुए सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक फैसला लिया गया था, जिसका लब्बो-लुआब था कि अगर एक मुस्लिम लड़की के पीरियड शुरू हो चुके हैं तो उसके निकाह को वैध माना जाएगा।

ऐसे में अब एक साल बाद खबर है कि यूपी की एक 16 साल की लड़की ने कोर्ट के इस फैसले का हवाले देते हुए अपने निकाह को मान्य देने की गुहार लगाई है। जिसके लिए उसने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर किया है। उसने ये याचिका इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के ख़िलाफ़ दाखिल की है। जहाँ लड़की की शादी को शून्य करार देकर उसे शेल्टर होम भेजने का आदेश दिया गया था।

लड़की ने अपनी याचिका में कहा है कि वह शादीशुदा है और उसने मुस्लिम कानून के हिसाब से निकाह किया है, वह अपने सयानेपन की उम्र भी प्राप्त कर चुकी है, इसलिए उसे अब अपना शादीशुदा जीवन बसर करने की इजाजत दी जाए।

पूरा मामला यूपी के अयोध्या का है। जहाँ से इस मुस्लिम लड़की ने वकील दुष्यंत पराशर के माध्यम से SC में याचिका दाखिल की है। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस अजय रस्तोगी की बेंच ने इस पर सुनवाई करने के लिए सहमति देते हुए सरकार को नोटिस जारी करके दो हफ्तों में जवाब दाखिल करने को कहा है।

बता दें कि लड़की की उम्र चूँकि फिलहाल 16 साल है, इसलिए अयोध्या की एक निचली अदालत में इस मामले की सुनवाई के दौरान उसे शेल्टर होम भेजने की बात कही गई थी। लेकिन लड़की ने निचली अदालत के इस फैसले को इलाहाबाद कोर्ट में चुनौती दे दी। बाद में, इलाहाबाद हाइकोर्ट ने भी इस मामले पर सुनवाई करते हुए याचिकाकर्ता को भारतीय कानून के अनुसार नाबालिग करार देते हुए निचली अदालत के फैसले को सही ठहराया था और निकाह को शून्य करार दे दिया।

जिसके बाद लड़की ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की और कहा कि उसके निकाह के मामले में इलाहाबाद कोर्ट इस चीज पर गौर नहीं कर पाया कि उसका निकाह मुस्लिम कानून के अनुसार हुआ हैं। उसे अपने जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा का अनुरोध करते हुए दलील दी कि वह एक युवक से प्रेम करती है (जिसकी उम्र 24 साल है) और इस साल जून में मुस्लिम कानून के अनुसार उनका निकाह हो चुका हैं। लड़के का नाम जावेद हैं।

लड़की का केस दायर करने वाले वकील की मानें तो उन्होंने शफीन जहाँ के मामले में लिए गए कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि एक औरत को अपना जीवन साथी चुनने का अधिकार हैं। लेकिन लड़की का पिता इस मामले में दखलअंदाजी करके लड़की से उसके जीने का अधिकार और उसके जीवनसाथी को चुनने का अधिकार छीन रहा हैं, जबकि लड़की अपने यौवन की आयु को प्राप्त कर चुकी हैं और निकाहनामा के जरिए उसकी शादी भी हो चुकी हैं।

जानकारी के लिए बता दें कि जून में लड़की की शादी के बाद लड़की के पिता ने पुलिस में युवक के ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज करवाई थी कि उसकी बेटी का अपहरण कर लिया गया है। लेकिन, मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज कराए बयान में लड़की ने कहा था कि उसने अपनी मर्जी से शादी की है और वह उसके साथ रहना चाहती हैं। इसके बाद ही 24 जून को इस मामले के मद्देनजर बहराइच की निचली अदालत ने भारतीय कानून का हवाला देते हुए कहा था कि लड़की की उम्र 18 साल से कम होने की वजह से ये शादी मान्य नहीं हैं और चूँकि, लड़की अपने माता-पिता के साथ नहीं रहना चाहती है, इसलिए उसे आश्रय घर भेजा जाता है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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