Friday, April 19, 2024
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जहाँ राम, वहीं शिव… और श्मशान है शिव का निवास स्थान: समुदाय विशेष के ‘कब्रिस्तान प्रपंच’ को संत समिति का जवाब

अयोध्या के डीएम अनुज झा ने भी कब्रिस्तान संबंधी चिट्ठी पर जवाब देते हुए कहा था कि फिलहाल राम जन्मभूमि के 67 एकड़ के परिसर में कोई कब्रिस्तान नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर केंद्र सरकार द्वारा गठित राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास की पहली बैठक बुधवार (फरवरी 19, 2020) को राजधानी दिल्ली में में होगी। जिसमें मंदिर निर्माण के मुहूर्त समेत कई विषयों पर विचार किया जा सकता है। यह बैठक सुप्रीम कोर्ट में रामलला के वकील रहे केशवन अय्यंगार परासरण के ग्रेटर कैलाश स्थित घर पर होगी। इस बैठक का मुख्य एजेंडा मंदिर निर्माण की तिथि और तौर-तरीकों के साथ-साथ, नए सदस्यों का चुनाव होगा। इसमें उस सुझाव के बारे में चर्चा की जा सकती है कि मंदिर निर्माण के लिए आम जनता से सहयोग राशि ली जानी चाहिए या नहीं।

इस बैठक से पहले अखिल भारतीय संत समिति ने मुस्लिम पक्षकारों के उस आपत्ति को सिरे से खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि 67 एकड़ भूमि के करीब 4 से 5 एकड़ भूमि पर मजहब विशेष की कब्रें थी। इसलिए वहाँ पर राम मंदिर का निर्माण नहीं किया जना चाहिए। यह चिट्ठी अयोध्या जमीन विवाद में मुस्लिम पक्ष के वकील रहे एमआर शमशाद ने 9 मुस्लिमों की तरफ से नव-नियुक्त श्री राम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र को पत्र लिखा था। इसका जवाब देते हुए समिति के महामंत्री स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि अधिकृत भूमि पर जब राम मंदिर बनेगा तो वहाँ उनके इष्ट देव शिव भी होंगे और सबको पता है कि शिव के निवास का एक स्थान श्मशान भी है, इसलिए मुस्लिम पक्ष को इसकी चिंता नहीं करनी चाहिए

बता दें कि इससे पहले अयोध्या के डीएम अनुज झा ने भी इस चिट्ठी पर जवाब देते हुए कहा था कि फिलहाल राम जन्मभूमि के 67 एकड़ के परिसर में कोई कब्रिस्तान नहीं है। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा था कि अयोध्या मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के दौरान इन सभी बातों का जिक्र किया गया था। वकील शमशाद जिस तथ्यों की बात कर रह हैं, वो भी सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के दौरान सामने आई थी। 9 दिसंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले में इन सभी तथ्यों का स्पष्ट उल्लेख किया गया है।

इस चिट्ठी में ऐतिहासिक तथ्यों का हवाला देते हुए कहा गया था कि साल 1855 के दंगों में 75 मुस्लिम मारे गए थे और सभी को यहीं दफन किया गया था। अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री इस पर कहते हैं कि अब जबकि देश की सर्वोच्च अदालत ने राम मंदिर के पक्ष में निर्णय सुनाया है तब मुस्लिम पक्ष परंपराओं और तर्कों का हवाला दे रहे हैं। अगर मुस्लिम पक्ष इसे सही मानता है तो उसे अन्य विवादित स्थलों से भी अपना दावा छोड़ देना चाहिए, क्योंकि पैगंबर मोहम्मद साहब ने खुद विवादित स्थल पर बनी मस्जिद को तुड़वा कर एक आदर्श पेश किया था। 

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने सालों बाद 9 नवंबर 2019 को राम मंदिर का मुद्दा सुलझा दिया। इस ऐतिहासिक फैसले के बाद अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त हो गया। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सरकार ने राम मंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट का गठन भी कर दिया।

मगर ऐसा लग रहा है कि राम मंदिर निर्माण का कार्य शुरू होने से पहले मुस्लिम पक्ष साजिश के तहत एक और भावनात्मक पेंच फँसाने की कोशिश कर रही है। हालाँकि उन्हें इसका माकूल जवाब भी मिल रहा है। एक तरफ जहाँ डीएम ने 67 एकड़ के परिसर में कोई कब्रिस्तान न होने की बात कही तो वहीं संत समिति ने कहा कि अगर है भी तो भी कोई दिक्कत नहीं है, क्योंकि भगवान शिव का एक निवास स्थल शमशान भी है और वो राम के इष्ट हैं। इसलिए उन्हें इसकी चिंता करने की जरूरत नहीं है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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