Saturday, November 16, 2024
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कोरोना के दौरान भारत से अनाथ बच्चों को इटली, माल्टा, जॉर्डन भेजा गया: संस्था के CEO दीपक और मिशनरियों का गिरोह इसके पीछे

प्रवासी भारतीयों को कारा से बच्चा गोद लेने के लिए तीन से सात साल तक प्रतीक्षा सूची में रहना पड़ता है लेकिन विदेशी ईसाई परिवारों को बहुत कम समय में बच्चा मिल जाता है। ईसाई मिशनरियों के प्रभाव का आलम यह है कि कारा के सीईओ दीपक कुमार ने कोरोना संकट और लॉकडाउन के समय भी बच्चों को विदेश भेजा। अप्रैल माह में भी विशेष विमान से ये बच्चे इटली, अमेरिका, माल्टा और जॉर्डन भेजे गए।

अनाथ बच्चों के दत्तक प्रक्रिया का नियमन करने वाली संस्था केंद्रीय दत्तक-ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (CARA) के सीईओ/मेंबर सेक्रेटरी दीपक कुमार को पद से हटाने के निर्णय के बाद कई खुलासे हो रहे हैं। ऑपइंडिया के सूत्रों का कहना है कि दीपक कुमार की अगुवाई में कारा में एडॉप्शन प्रक्रिया की धज्जियाँ उड़ाने की अनेक सूचनाएँ प्राप्त हुई हैं। ईसाई मिशनरियों का बोलबाला रहा। इनकी तानाशाही और अवैधानिक कार्यशैली के तमाम किस्से हैं जो अबतक दबाए जाते रहे हैं।

ईसाईयों के साथ दीपक कुमार की साँठगाँठ

मंत्रालय में दीपक कुमार के खिलाफ मिली दर्जनों शिकायतों को नजरअंदाज करने में वहाँ के एक शीर्ष ईसाई अधिकारी की भूमिका भी संदिग्ध बताई जा रही है। यह भी जानकारी मिली है कि उसी बड़े अधिकारी ने दीपक कुमार का कार्यकाल बढ़ाने के लिए अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करने की कोशिश भी की लेकिन केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने दीपक कुमार का कार्यकाल बढ़ाने से साफ इनकार कर दिया और हटाने का फरमान सुना दिया।

आश्चर्य की बात है कि मंत्रालय के उक्त तथाकथित ईसाई अधिकारी ने दीपक कुमार के रिलिविंग लेटर को भी रोक रखा था। आमतौर पर किसी प्रतिनियुक्ति पर आए अधिकारी को तीस दिन पूर्व रिलीव होने की सूचना दे दी जाती है लेकिन यहाँ दीपक कुमार के मामले में उन्हें मात्र एक सप्ताह पूर्व पत्र जारी किया गया। ऑपइंडिया के हाथ लगे दस्तावेजों के अनुसार, दीपक कुमार के कार्यकाल में प्रवासी भारतीयों (NRI) को बच्चा गोद लेने के लिए वर्षों इंतजार करना पड़ता है।

ऐसे भारतीयों को कारा से बच्चा गोद लेने के लिए तीन से सात साल तक प्रतीक्षा सूची में रहना पड़ता है लेकिन विदेशी ईसाई परिवारों को बहुत कम समय में बच्चा मिल जाता है। ईसाई मिशनरियों के प्रभाव का आलम यह है कि कारा के सीईओ दीपक कुमार ने कोरोना संकट और लॉकडाउन के समय भी बच्चों को विदेश भेजा। अप्रैल माह में भी विशेष विमान से ये बच्चे इटली, अमेरिका, माल्टा और जॉर्डन भेजे गए।

हैरान करने वाली बात यह भी है कि जिस समय विशेष विमान से इटली बच्चे भेजे गए, उस समय इटली में कोरोना से मौतों का कोहराम मचा हुआ था। कोरोना से वहाँ दुनिया में सर्वाधिक मौतें हो रही थीं और स्थिति ये थी कि लाशें उठाने वाले भी लोग नहीं थे। अमेरिका की भी यही स्थिति थी। प्रवासी भारतीयों को प्रतीक्षासूची में रखना और इटली वाले ईसाईयों को विशेष विमान से कोरोना काल में बच्चे भेजने की व्यवस्था करने में दीपक कुमार की मंशा सवालों के घेरे में है।

ऑपइंडिया ने अंदरूनी सूत्रों से बात कर के पाया है कि विदेशी एडॉप्शन कराने वाली एजेंसियाँ अप्रत्यक्ष रूप से कारा के उच्च अधिकारियों को आर्थिक फायदा पहुँचाती हैं और मनमाने तरीके से काम करवाने में सफल हो जाती हैं। कहने को यह मामला मानवीय दृष्टि से सही जताया जा सकता है लेकिन जिस प्रकार की तेजी विदेशियों के मामले में दीपक कुमार द्वारा दिखाई जाती है वह उनकी कार्यशैली को संदेहास्पद बनाती है।

वर्ष 2016 में दीपक कुमार के कारा में कार्यभार संभालने के बाद से अप्रत्याशित रूप से विदेशी एडॉप्शन में बढ़ोत्तरी हुई है। आँकड़े बयान करते हैं कि दीपक कुमार के आने के बाद देश के भीतर गोद लेने की संख्या घटी और विदेशों में बच्चे भेजने की संख्या बढ़ गई। दिलचस्प यह है कि ज्यादातर बच्चों को ‘विशेष आवश्यकता (Special Need)’ की केटेगरी में डाल कर फॉरेन एडॉप्शन का खेल जारी है।

ऐसे ही एक मामले में CARA में बच्चों के हित के विरुद्ध कार्यशैली पर दीपक कुमार के विरुद्ध बाम्बे हाइकोर्ट में याचिका सं FAP-41-19 (फ़रवरी 17, 2020) तथा जबलपुर हाइकोर्ट द्वारा Writ Petition No. 28071/2018 (मार्च 19, 2020) में कोर्ट ने फटकार भी लगाई थी। दीपक कुमार ने अपनी एक टीम बना रखी थी, जिसमें दर्जन भर ऐसी महिलाओं की संविदा पर नियुक्ति कर रखी है जिनमें से अधिकांश ईसाई समुदाय से आती हैं और ‘Young Women’s Christian Association’ से किसी न किसी रूप में जुड़ी हैं।

CARA में चलता था ईसाई महिलाओं का सिक्का

इनमें Cecilia Maria और Libia Marium Paul जैसी कई ईसाई महिलाएँ हैं जो दत्तक प्रक्रिया को मनमाने ढंग से अंजाम दे रही हैं। गौरतलब है कि Cecilia Maria को अज्ञात कारणों से दो माह के भीतर ही जूनियर से सीनियर प्रोफेशनल के पद पर प्रमोट कर दिया गया। आश्चर्य है कि इनका दत्तक कार्यों से दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं है। बताया जाता है कि ये पहले किसी मिशनरी स्कूल में कार्यरत थीं।

सूत्रों का कहना है कि दीपक कुमार की यह संविदा टीम केवल मिशनरियों, दक्षिण भारतीय या भावी ईसाई दत्तक माता-पिता (Missionaries & South Indian or Christian Prospective Adoptive Parents) को ही संरक्षण देते हैं और ईसाई मिशनरी के अनुयायियों के रूप में काम करते हैं। इनके कारण लगभग 70% दत्तक माता-पिता दक्षिण भारत से आते हैं। विदेशी के रूप में वे केवल ईसाई दम्पति का चयन करते हैं।

आश्चर्यजनक रूप से CARA के अंदर संविदा पर नियुक्त इन सभी महिलाओं के पास ही दत्तक प्रक्रिया का प्रभार है। दीपक कुमार ने कारा में कार्यरत नियमित व स्थाई महिला अधिकारियों एवं कर्मचारियों को दत्तक मामलों से दूर रखा है। हमारे पास उपलब्ध दस्तावेजों के अनुसार, कारा में मिन्नी जार्ज (Minnie George) नामक इसाई महिला संविदा पर कार्यरत हैं जो कि इसी मंत्रालय के अधीन दूसरे संगठन NIPCCD में ज्वाइंट डायरेक्टर केसी जार्ज की पत्नी हैं।

केसी जार्ज भी स्वयं CARA में संयुक्त निदेशक रह चुके हैं। उनके प्रभाव से ही इस महिला ने इस संस्था में नियुक्ति हासिल की। हाल ये है कि मिन्नी जार्ज के इशारे के बिना कोई भी विदेशी दत्तक प्रक्रिया (Foreign Adoption Process) पूरी नहीं हो सकती। आंतरिक सूत्रों का कहना है कि वह विदेशी ईसाई दम्पतियों को बच्चे दिलाने में अधिक रुचि रखती हैं। ये संविदा कर्मचारी गोद प्रक्रिया में गुप्त रूप से बेईमानी के खेल में शामिल हैं, जिसमें बच्चों को वर्षों तक रोकना भी शामिल है।

अपर्णा शर्मा और मिन्नी जार्ज ने दत्तक मामलों पर अपना एकाधिकार विकसित किया है। मिन्नी जॉर्ज के खिलाफ कई शिकायतें मिली हैं, लेकिन CEO दीपक कुमार ने दबा दिया। अपर्णा शर्मा को भी बच्चों के आँकड़ों को गुप्त रखने/रोकने का दोषी पाया गया है। हैरानी की बात है कि ऑनलाइन सिस्टम में बच्चों की संख्या ब्लॉक करके रखा जाता है और गुप्त रूप से केवल ईसाई मिशनरियों को इसकी जानकारी दी जाती है अथवा उन देशों को ही ऑनलाइन बच्चे दिखाई देंगे जिनको ये लोग दिखाना चाहते हैं। हाल ही में ऐसे कई विदेशी पेरेंट्स लॉकडाउन के कारण भारत में ही फँस गए थे।

अपर्णा शर्मा को इसी मामले में कारा प्रशासन ने जनवरी 22, 2020 को दोषी पाया था लेकिन CEO दीपक कुमार ने वह फाइल दबा ली और काफी निचले स्तर के कुछेक कर्मचारियों को निकालकर खानापूर्ति कर दी। बताया जाता है कि ईसाई मिशनरियों के प्रभाव में दीपक कुमार ने एक नियम बनवा लिया है कि कोई भी विदेशी एजेंसी भारत में अपना एजेंट नियुक्त कर सकती है और उसी एजेंट के माध्यम से वह विदेशी दत्तक (Foreign Adoption) की प्रक्रिया को सम्पन्न कर सकती है।

ईसाई संगठनों के एजेंटों को दी जाती है भारी-भरकम रकम

इसका मतलब ये है कि उन्हें प्रत्यक्ष उपस्थित न होने की छूट मिल गई। गौरतलब है कि जो भारत में एजेंट कार्यरत हैं, वे सभी ईसाई संगठनों के एजेंट हैं जिन्हें वेतन के रूप में बड़ी रकम दी जाती है। कारा के सूत्रों का कहना है कि दीपक कुमार तानाशाही प्रवृत्ति के व्यक्ति हैं जिन्होंने अपने कार्यकाल में उन सभी लोगों को बर्बाद कर दिया जिसने उनके विरुद्ध थोड़ी भी आवाज उठाई। कारा में ही कार्यरत एक स्थाई महिला सहकर्मी ने दीपक कुमार पर प्रताड़ना की शिकायत की थी लेकिन मंत्रालय के कुछ अधिकारियों ने उन्हें बचा लिया।

इसके बाद उल्टा उस महिला का ही शोषण शुरू कर दिया गया था। हमें ये भी पता चला है कि ICMR के पूर्व वैज्ञानिक एसकेडी विश्वास ने कारा में प्रतिनियुक्ति के दौरान दीपक कुमार की कार्य़शैली पर सवाल उठाए थे। उन्होंने तत्कालीन केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती मेनका गाँधी तथा गृह मंत्री को पत्र लिखकर दीपक कुमार के कारनामों को उजागर किया था। लेकिन, अंततः वे इतने प्रताड़ित किए गए थे कि उन्होंने कारा छोड़ने का फैसला किया।

दीपक कुमार के नेतृत्व में विगत कुछ वर्षों में साजिश के तहत अनेक राष्ट्रवादी संस्थाओं पर जानबूझकर जुर्माना ठोका गया है और उनकी फंडिंग रोकी गई हैं ताकि ईसाई मिशनरियों को लाभ मिले तथा ये संस्थाएँ बदनाम हों जाएँ। पता चला है कि राष्ट्रवादी संस्थाओं को बदनाम कर के वनवासी क्षेत्रों में सक्रिय मिशनरियों को लाभ पहुँचाया गया है। दीपक कुमार ने अपने मूल विभाग के उच्च अधिकारियों की घर में बैठी पत्नियों को भी CARA में नौकरी दे रखा है।

शालिनी पीयूष उनके बॉस की पत्नी हैं जिनको दत्तक कार्य का कोई अनुभव नहीं है लेकिन CARA में वह अच्छे वेतन पर नौकरी कर रही हैं। मिन्नी जार्ज महाराष्ट्र की प्रभारी हैं। उन्होंने एक संस्था से एक बच्चे को बेल्जियम के एक अस्वस्थ ईसाई दंपत्ति को गोद लेने हेतु विभाग से अनापत्ति पत्र (NOC) जारी करवा दिया था। महाराष्ट्र की उस संस्था ने इसके विरुद्ध बाम्बे हाइकोर्ट में याचिका (संख्या FAP-41-19) दाखिल की थी।

उच्च न्यायालय ने उक्त प्रकरण मे CARA के निदेशक व ज्वाइंट डायरेक्टर को बुलाकर फटकार लगाई थी व इस संदर्भ मे दिनांक फ़रवरी 17, 2020 को आदेश पारित कर स्पष्ट दिशानिर्देश जारी किए थे। न्यायालय ने अपने उक्त आदेश में CARA द्वारा बच्चे के भविष्य की परवाह न करने तथा अन्य अनियमितताओं का उल्लेख किया है। दीपक कुमार के इस रवैये पर मीडिया क्यों शांत है, ये भी चर्चा का विषय है।

ऑपइंडिया ने इससे पहले किया था दीपक कुमार का ईसाई मिशनरियों के साथ संबंधों का खुलासा

इससे पहले ऑपइंडिया ने खुलासा किया था कि जब से दीपक कुमार ने कारा (CARA) के सीईओ का प्रभार सँभाला, तभी से नियमों को ताक पर रख कर बच्चों को गोद दिए जाने की प्रक्रिया अपनाई जाने लगी। सूत्रों का ये भी कहना है कि दीपक कुमार ने अनियमितताएँ बरतते हुए अपने करीबियों को CARA में बिठाया और इसका एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तरह संचालन शुरू कर दिया। मंत्रालय को काफी शिकायतें मिलीं कि एडॉप्शन की प्रक्रिया में संविदा कर्मचारियों द्वारा रक़म की वसूली की जा रही है।

दीपक कुमार को इतना बड़ा पद दिए जाने के पीछे भी कुछ बड़े अधिकारियों की मिलीभगत थी। सूत्रों के अनुसार, एक साजिश के तहत 2016 में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के ही कुछ बड़े अधिकारी उन्हें लेकर आए थे। वो आर्मी के सिग्नल कोर में फाइबर इंजिनियर थे और उनकी शिक्षा-दीक्षा भी इंजीनियरिंग में ही हुई है। CARA के कामकाज का जो तरीका है, उसे लेकर उन्हें न कोई अनुभव था और ही कोई ज्ञान।

 मनमाफिक कामकाज की प्रक्रिया अपनाने के लिए दीपक कुमार ने कारा के कई नियमों को बदल भी दिया था। उन्होंने अपने सम्बन्धियों को कारा में घुसाने के लिए भी बड़ी चालाकियाँ की। सबसे पहले तो उन्हें चपरासी के रूप में नियुक्ति दी और फिर धीरे-धीरे उनको कारा में एडवाइजर बना कर मोटी रकम देनी शुरू कर दी। भर्ती किए गए संविदाकर्मी फिर विदेशी एजेंसियों के साथ साँठगाँठ कर ख़ुद भी कमाई करने लगे।

इसमें भारतीय पेरेंट्स को जम कर इंतजार कराया गया और उनकी सीनियोरिटी को धता बताते हुए विदेशियों को प्राथमिकता दी गई। भारतीय पेरेंट्स इंतजार करते रहे। भारत में अगर किसी को इस प्रक्रिया में लाभ पहुँचाया भी गया तो उन्हें ही जो काफी संपन्न थे। मानसिक व शारीरिक रूप से कमजोर बच्चों को भी ख़ासी परेशानी हो रही है, जिन्हें उन संस्थाओं में रहने को मजबूर किया उनके देखरेख और पुनर्वास की व्यवस्था नहीं की गई।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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