Thursday, April 25, 2024
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CAA विरोधी प्रदर्शनों में बच्चों का हो रहा इस्तेमाल, NCPCR से शिकायत

वीडियो में बच्चों को आज़ादी के नारे लगाते हुए सुना जा सकता है और वे बेहद परेशान करने वाले नारे भी लगा रहे थे। इस दौरान उन बच्चों ने "जो हिटलर की चाल चलेगा, वो हिटलर की मौत मरेगा" और "जामिया तेरे ख़ून से, इंकलाब आएगा" जैसे नारे लगाए।

सेव चाइल्ड इंडिया NGO ने नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ़ चाइल्ड राइट्स (NCPCR) में इस बात को लेकर अपनी शिक़ायत दर्ज करवाई है कि विरोध-प्रदर्शनों में बच्चों का इस्तेमाल किया जा रहा है। NGO का कहना है कि यह बच्चों के अधिकारों का घोर उल्लंघन है और यह बाल शोषण की श्रेणी में आता है। दरअसल, दिल्ली के शाहीनबाग में CAA और NRC के ख़िलाफ़ चल रहे विरोध-प्रदर्शन में कई बच्चे भड़काऊ नारे लगाते देखे गए हैं। इस तरह की घटना सामने आने पर यह शिक़ायत दर्ज कराई गई।

शिक़ायतकर्ता, सेव चाइल्ड इंडिया NGO ने अपने ट्विटर हैंडल से अभिनव खरे के उस वीडियो को भी शेयर किया। इसके बाद शिक़ायतकर्ता, कुमार श्योद्वाज रत्न, जो कि उक्त NGO के संस्थापक हैं उन्होंने इस मामले को संज्ञान में लिया और शिक़ायत दर्ज करवाई।

इस बात की पुष्टि करने के लिए ऑपइंडिया ने भी शिक़ायतकर्ता से सम्पर्क साधा और यह जानने के प्रयास किया कि बच्चों से भड़काऊ नारे क्या सच में शाहीनबाग के प्रदर्शन में ही लगवाए गए थे। तब पता चला कि उन्होंने (शिक़ायतकर्ता) खरे द्वारा शेयर किए गए वीडियो को देखा था और इस तथ्य को जानकर वो बहुत परेशान हो गए थे। उनका कहना था कि इन अबोध बच्चों को CAA जैसे विषय के बारे में कोई जानकारी नही है, लेकिन मंच पर खड़े होकर जिस तरह से वो भड़काऊ नारे लगा रहे थे उसे देख-सुनकर बड़ी हैरानी होती है। उन्होंने बताया कि इन बच्चों की उम्र 10 या 11 वर्ष से अधिक नहीं होगी, इनका इस्तेमाल राजनीतिक एजेंडा को आगे बढ़ाने के लिए किया जा रहा था।

इस वीडियो में बच्चों को आज़ादी के नारे लगाते हुए सुना जा सकता है और वे बेहद परेशान करने वाले नारे भी लगा रहे थे। इस दौरान उन बच्चों ने “जो हिटलर की चाल चलेगा, वो हिटलर की मौत मरेगा” और “जामिया तेरे ख़ून से, इंकलाब आएगा” जैसे नारे लगाए।

रत्न ने कहा, “जब मैंने इन चीजों को देखा, तो यह वास्तव में बहुत निराशाजनक था क्योंकि मैं वास्तव में यह समझ ही नहीं पाया था कि ये बच्चे क्या कर रहे थे। वे आज़ादी की बात कर रहे थे और उनकी उम्र 10 या 11 साल है। वे बच्चे हैं, वो तो अभी अपनी भावनाओं को सही से व्यक्त भी नहीं कर सकते। यह बच्चे ऐसे ठोस मुद्दे पर अपनी विचार रखने में सक्षम नहीं हैं, उन्हें योजनाबद्ध तरीक़े से उस स्थान पर ले जाया गया।” 

अपनी बात जारी रखते हुए उन्होंने कहा,

“मैंने सोचा कि बच्चों को वहाँ क्यों ले जाया गया… क्या इन बच्चों को किसी स्वार्थ-पूर्ति के लिए ले जाया जा रहा था? मेरे लिए यह बात वाकई दर्दनाक थी। माता-पिता बच्चों को अपनी सम्पत्ति के रूप में इस्तेमाल कर रहे थे। आप बच्चों को अपनी सम्पत्ति के रूप में कैसे इस्तेमाल कर सकते हैं?”

इसके अलावा, इस बात पर भी ज़ोर दिया गया कि इस भड़काऊ नारेबाज़ी के लिए बच्चों ने अपनी सहमति नहीं दी थी। जहाँ बच्चे नारे लगा रहे थे वए हिंसाग्रस्त क्षेत्र था, जहाँ किसी भी तरह के सुरक्षा के पर्याप्त इंतज़ाम नहीं थे। शिकायत में कहा गया, “यह विरोध जोखिम भरा हो सकता है और बच्चों को खतरों का भी सामना करना पड़ सकता है। निश्चित रूप से यह गंभीर रूप से चिंता का विषय है कि जो अपराध बच्चों ने किया ही नहीं उसके लिए उन्हें दंडित भी किया जा सकता है।”

बच्चों द्वारा भड़काऊ नारेबाज़ी को शिक़ायतकर्ता ने गंभीर रूप से संज्ञान में लिया। अपनी शिक़ायत में उन्होंने निम्नलिखित सवाल उठाए:

शिकायत में उठाए गए सवाल

शिक़ायत में माँग की गई है कि एक न्यूनतम आयु मानदंड निर्धारित किया जाए जो यह सुनिश्चित करता हो कि एक निश्चित उम्र से कम बच्चे विरोध-प्रदर्शन में भाग नहीं ले सकते। इसके अलावा, यह भी अनुरोध किया गया कि ऐसे ग़ैर-ज़िम्मेदार आचरण में लिप्त माता-पिता को हिरासत में लिया जाए। अंत में, इस मामले में उचित कार्रवाई के लिए उपयुक्त अधिकारियों को निर्देश जारी किए जाने का आग्रह किया गया है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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