Friday, November 15, 2024
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ऑड-ईवन बन गई कोर्ट की अवमानना: कभी लेफ्ट-लिबरल्स जताते थे अवमानना में सजा पर ख़ुशी, आज उनके समर्थक हैं नाराज

प्रशांत भूषण को दोषी ठहराए जाने पर भारत का वाम-उदारवादी वर्ग यह दलीलें देते हुए नजर आ रहा है कि प्रशांत भूषण ने जो भी कहा था वह सिर्फ उनके 'विचार' थे। वामपंथी लिबरल वर्ग तर्क दे रहा है कि मतभेदों को अवमानना नहीं मन जाना चाहिए।

वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण अदालत की अवमानना के सम्बन्ध में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दोषी ठहराए गए हैं। प्रशांत भूषण को सजा 20 अगस्त को सुनाई जाएगी। अपने लिबरल गिरोह के आदमी को दोषी पाए जाने पर सोशल मीडिया लिबरल जमात एकबार फिर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर आपत्ति जताते हुए देखा जा रहा है, लेकिन उन्हें प्रशांत भूषण द्वारा 2017 में किया गया एक ट्वीट याद करना चाहिए, जिसमें प्रशांत भूषण ने अदालत की अवमानना में पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति सीएस कर्णन को दोषी ठहराए जाने पर प्रसन्नता व्यक्त की थी।

प्रशांत भूषण ने लिखा था – “ख़ुशी की बात है कि सुप्रीम कोर्ट ने आखिरकार कर्णन को अदालत की घोर अवमानना ​​के लिए जेल में डाल दिया। उन्होंने जजों पर लापरवाही से आरोप लगाए और फिर SC के जजों के खिलाफ ‘बेतुके’ आदेश पारित किए!”

ग़ौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास उच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीशों के ख़िलाफ़ लिखे गए न्यायमूर्ति कर्णन के कई पत्रों पर स्वत: संज्ञान लिया था। जस्टिस कर्णन ने सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के जजों पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था। इस संबंध में उन्होंने सीबीआई को आदेश दिया था कि मामले की जाँच की जाए और इसकी रिपोर्ट संसद को सौंपी जाए।

इन आरोपों के जवाब में मुख्य न्यायाधीश ने इसे अदालत की आवमानना बताया था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने सात जजों की एक खंडपीठ गठित की, जिसने जस्टिस कर्णन के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना से जुड़ी कार्रवाई शुरू की।

कलकत्ता उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति सीएस कर्णन को वर्ष 2017 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा अवमानना ​​के लिए जेल भेजा गया था। न्यायमूर्ति कर्णन, जून 2017 में सेवानिवृत्त हुए थे, जब तत्कालीन CJI जेएस खेहर की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की संविधान पीठ ने अदालत की अवमानना ​​के मामले में उन्हें 6 महीने की जेल की सजा सुनाई और वो गिरफ्तारी से बचने के लिए फरार हो गए।

बाद में उन्हें कोयंबटूर से पश्चिम बंगाल सीआईडी ​​ने गिरफ्तार कर लिया था। देश में अपनी तरह का यह पहला मामला रहा जब अवमानना के आरोप में सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाईकोर्ट के न्यायाधीश को जेल भेजा गया।

लेकिन अब प्रशांत भूषण के मामले में इन्टरनेट पर मौजूद तमाम वाम-उदारवादी वर्ग ‘ऑड-इवन’ की तर्ज पर इस बार उच्चतम न्यायालय के फैसले से नाराज नजर आ रहा है और प्रशांत भूषण को दोषी ठहराए जाने पर सुप्रीम कोर्ट की गरिमा पर सवालिया निशान लगाते हुए नजर आ रहा है।

गालिबाज ट्रोल स्वाति चतुर्वेदी भाजपा आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय के ट्वीट पर इन्टरनेट पर मौजूद वकीलों से इसे कोर्ट की अवमानना साबित करने की अपील करते हुए देखी गई हैं। एक से अधिक बार उन्होंने अदालत की अवमानना के आधार पर मोदी सरकार को भी घेरने के प्रयास किए हैं। लेकिन आज प्रशांत भूषण के केस में यही गालीबाज स्वाति चतुर्वेदी सुप्रीम कोर्ट को उसके दायित्व पर पाठ पढ़ाते हुए देखी जा सकती है।

इन्टरनेट ट्रोल और इंडिया टुडे के पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने प्रशांत भूषण पर अदालत के फैसले के बाद कश्मीर के अपराधियों से इसकी तुलना करते हुए ट्वीट में लिखा है कि कश्मीर में हिरासत में लिए गए लोगों की बंदी प्रत्यक्षीकरण (हैबियस कॉरपस) याचिकाएँ भी एक साल से अधिक समय से लंबित हैं!

हालाँकि, यही राजदीप सरदेसाई कुछ समय पहले राम मंदिर के विषय पर अदालत की अवमानना जैसे हथियारों को याद करते देखे जा रहे थे। इसी क्रम में निखिल वागले सुप्रीम कोर्ट की विश्वसनीयता तक पर सवाल खड़े करते देखे जा रहे हैं।

प्रोपेगेंडा वेबसाइट ‘द वायर’ के संस्थापक सिद्धार्थ वरदराजन कश्मीर में 4G इन्टरनेट सेवा को लेकर मोदी सरकार पर और पूर्व CJI की पीएम मोदी से मुलाकात को अदालत की अवमानना का विषय बता चुके हैं।

प्रोपेगेंडाबाज वामपंथी कविता कृष्णन भाजपा नेताओं के बयान पर अदालत की अवमानना का ही जिक्र करते हुए देखी गईं हैं।

मतभेद और अवमानना में फर्क

प्रशांत भूषण को दोषी ठहराए जाने पर भारत का वाम-उदारवादी वर्ग यह दलीलें देते हुए नजर आ रहा है कि प्रशांत भूषण ने जो भी कहा था वह सिर्फ उनके ‘विचार’ थे। वामपंथी लिबरल वर्ग तर्क दे रहा है कि मतभेदों को अवमानना नहीं मन जाना चाहिए।

लेकिन सवाल यह है कि प्रशांत भूषण द्वारा जितने भी आरोप सुप्रीम कोर्ट के फैसलों और मुख्य न्यायाधीशों पर लगाए गए, वह सब बेबुनियाद और हर दूसरे राह चलते आदमी के निष्कर्षों से भी ज्यादा वाहियात थे।

प्रशांत भूषण ने एक ट्विटर ट्रोल की तरह तंज भरा ट्वीट करते हुए लिखा था कि जब उच्चतम न्यायालय लॉकडाउन की अवस्था में नागरिकों को न्याय के उनके मौलिक अधिकारों से वंचित कर रहा है तब नागपुर स्थित राजभवन में प्रधान न्यायाधीश बगैर मास्क या हेलमेट के भाजपा नेता की 50 लाख की मोटरसाइकिल की सवारी कर रहे हैं।

प्रशांत भूषण के इन गंभीर आरोपों में न ही मतभेद नजर आते हैं और ना ही तर्क नजर आते हैं। वास्तविकता यही है कि ये प्रशांत भूषण जैसे लोग ही हैं, जो अपने बेबुनियाद और बिना सर-पैर के आरोपों के कारण ही हर्ष मंदर जैसे लोग नागरिकों को न्याय में यकीन न करकर सड़क पर उतर जाने के लिए उकसाते हुए नजर आते हैं।

प्रशांत भूषण जैसे लोग ही सस्थाओं को महत्वहीन साबित करने का हर संभव प्रयास कर समाज के ढाँचों को अस्थिर करते नजर आते हैं। और आखिर में इन आरोपों की परिणति बेंगलुरु दंगों और दिल्ली के हिन्दू-विरोधी दंगों के रूप में देखी जाती है, जब कोई अब्दुल पेट्रोल बम लेकर पहले वाहन और फिर थोड़ा सा हौंसला और बढ़ाकर पुलिस थानों को ही फूँकने निकल पड़ता है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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