दिल्ली की आम आदमी पार्टी (AAP) सरकार ने विज्ञापनों पर बेतहाशा रुपये खर्च किए। CAG यानी Comptroller and Auditor General द्वारा सरकारी खर्चों पर आधारित इस रिपोर्ट में कहा गया है कि AAP सरकार ने 2018 से 2022 के बीच विज्ञापनों पर खर्च 1200% बढ़ा दिया। यानी 2018 में जहाँ 46.90 करोड़ रुपये खर्च हुए थे, वो 2022 तक बढ़कर 612.80 करोड़ रुपये हो गए। इस तरह 5 साल में 1200 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। रिपोर्ट में ये भी कहा गया कि ये खर्च सुप्रीम कोर्ट के नियमों को तोड़ते हुए किया गया।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, CAG ने पाया कि विज्ञापनों के लिए कोई ठीक प्लानिंग नहीं हुई। न तो ये तय किया गया कि विज्ञापन किसे दिखाना है, न ही बाद में चेक किया कि इसका असर क्या हुआ। पैसे देने में भी लापरवाही हुई। कई एजेंसियों को बिना जाँच के पेमेंट कर दी गई। यहाँ तक कि 2015-17 के विज्ञापनों के लिए 2020-22 में 57.90 करोड़ रुपये दे दिए गए, जो सुप्रीम कोर्ट के नियमों के खिलाफ है। दिल्ली से बाहर भी ढेर सारे विज्ञापन चलाए गए, जो गलत माना गया।
रिपोर्ट में ये भी खुलासा हुआ कि दिल्ली सरकार की पब्लिसिटी देखने वाली संस्था ‘शब्दार्थ’ में भी गड़बड़ियाँ थीं। वहाँ काम करने वाले कुछ लोग टेंडर देने में दखल दे रहे थे और बिना ठीक जाँच के एजेंसियाँ चुन ली गईं। खर्च का हिसाब-किताब भी साफ नहीं था। DIP यानी Department of Information and Publicity ने पुराने पेमेंट्स का डेटा तक ठीक से नहीं दिया। इससे सरकार की जवाबदेही पर सवाल उठ रहे हैं।
AAP पर ये भी इल्जाम है कि उसने सरकारी विज्ञापनों के नाम पर अपनी पार्टी का प्रचार किया। इसके लिए 97 करोड़ रुपये वसूलने की बात हुई, जिसमें से 42 करोड़ रुपये चुका दिए गए, बाकी बचे पैसों की वसूली अभी बाकी है। इस बीच, विज्ञापन देने वाली एजेंसियों ने कई कोर्ट्स, ट्रिब्यूनल में आम आदमी पार्टी/सरकार के खिलाफ केस दर्ज कराए हैं, जिसमें विज्ञापन सेवा के बदले भुगतान न किए जाने की बात है। इन सभी मामलों की जाँच के लिए दिल्ली के L-G वीके सक्सेना ने आदेश भी दिए थे, इसके बावजूद आम आदमी पार्टी ने सभी नियमों का उल्लंघन करते हुए जमकर विज्ञापन जारी किए।
इस बीच, मोहल्ला क्लीनिक पर आई रिपोर्ट में भी गड़बड़ियों का खुलासा हुआ है। खास बात ये है कि 2016 से 23 के बीच 35.16 करोड़ रुपये मोहल्ला क्लीनिक को बनाने के लिए रखे गए थे, लेकिन सिर्फ 28% राशि ही खर्च की गई। AAP सरकार मोहल्ला क्लीनिक को लेकर विश्वस्तरीय स्वास्थ्य सेवाओं का दावा करती रही। यही नहीं, पर्यावरण प्रदूषण को लेकर हल्ला मचाने वाली दिल्ली सरकार ने सिर्फ 7 जगहों पर प्रदूषण की जाँच की व्यवस्था की, जबकि दिल्ली में 128 एंट्री प्वॉइंट्स हैं।