दिल्ली में फरवरी में हुए हिंदू विरोधी दंगे कितनी बड़ी साजिश का नतीजा थे इसको लेकर हम लगातार तथ्य सामने लाते रहे हैं। इस मामले में दंगों के सूत्रधारों को बचाने के लिए संवेदनाओं की आड़ में घटिया हथकंडे लगातार अपनाए जा रहे हैं। सफूरा जरगर के बाद अब खालिद सैफी के लिए भी इसी तरह के कुत्सित प्रयास शुरू हो गए हैं।
खालिद सैफी के गुनाहों पर भावुकता की लीपापोती करने का जिम्मा उठाया है इस्लामिक पत्रकारिता करने वाली पत्रकार राणा अय्यूब ने। इसी मिशन के तहत उसने पृष्ठभूमि बनानी शुरू कर दी है।
With the family of Khalid Saifi who was arrested for the anti CAA protests. In the first two months the kids would ask, ‘Will daddy come home for eid’ , ‘will he come for my birthday’. The innocent questions remain unanswered as Saifi continues to be incarcerated. pic.twitter.com/F3VN12EWXd
— Rana Ayyub (@RanaAyyub) July 20, 2020
सोमवार को राणा अय्यूब ने एक ट्वीट किया है। ट्वीट में वो खालिद सैफी के बच्चों के साथ नजर आ रही हैं। अपने 1.1 मिलियन फॉलोवर वाले ट्विटर हैंडल से उन्होंने लोगों को ये बताने की कोशिश की है कि खालिद सैफी जिसने एंटी सीएए प्रोटेस्ट में भाग लिया था, उसके बच्चे अब उसकी राह देख रहे हैं।
राणा अय्यूब एक फोटो साझा करते बेहद भावुकता के साथ लिखती हैं, “खालिद सैफी के परिवार के साथ हूँ जिसे एंटी सीएए प्रोटेस्ट करने पर गिरफ्तार किया गया। पहले दो महीनों में उसके बच्चे पूछ रहे थे कि क्या डैडी ईद के लिए आएँगे। फिर पूछा कि क्या वो मेरे जन्मदिन पर आएँगे। इन सवालों का अब भी कोई जवाब नहीं है, क्योंकि सैफी अब भी जेल में बंद है।”
इस ट्वीट के बाद कुछ लोग हैं जो ये सब देखकर भावुक हो रहे हैं और दुआ कर रहे हैं कि सैफी के परिवार के सिर से ये मुश्किल का समय टल जाए। लेकिन सवाल है कौन सा मुश्किल समय? क्या ये मुश्किल समय सैफी के घर-परिवार पर उस परिवार के मुकाबले ज्यादा है जिसने दिल्ली के हिंदू विरोधी दंगों में अपने पिता, अपने भाई और अपने बेटे को खो दिया।
क्या ये दुख उससे बढ़कर है जिससे वो बच्चा बड़ा होकर महसूस करेगा जिसके पिता बस उसके लिए दूध लेने निकले थे और दंगाइयों ने उनकी जान ले ली। क्या ये दुख विनोद के बेटे के दुख से ज्यादा है जिसके पिता को बीच सड़क पर नारा-ए-तकबीर और अल्लाह हू अकबर के नारों के बीच में मार दिया गया।
राणा अय्यूब! ये दुख, ये संकट उस 15 साल के नितिन के परिवार के दुख से बड़ा नहीं है जो चाउमिन लेने निकला और घर सिर्फ़ उसकी लाश आई। रतन लाल का सोचा है कभी? क्या गलती थी उनके बच्चों की उनका पिता तो केवल उन लोगों की सुरक्षा में तैनात हुआ था, जिन्होंने उसकी जान ले ली।
रतन लाल की पत्नी का क्या गुनाह था? ये संकट वो कहर नहीं है जिसे दलित दिनेश समेत कई हिंदू परिवारों ने 24-25 फरवरी की रात झेला। उत्तराखंड के दिलबर नेगी को जलती आग में उसके हाथ-पाँव काटकर फेंक दिया गया? क्या उसके माँ-बाप नहीं थे? उसका परिवार नहीं था? आईबी के अंकित शर्मा का हाल भूल जाएँ क्या?
कौन होती हैं राणा अय्यूब ऐसे प्रयास करके किसी की गिरफ्तारी को मानवीय कोण देने वाली और केवल मजहब की पत्रकारिता करके अपने फॉलोवर्स का ब्रेनवॉश करने वाली? उन्हें नहीं पता क्या जिस व्यक्ति को लेकर वह यह बात कर रही हैं कि वो कौन है? उस पर क्या आरोप हैं?
अगर नहीं पता तो जानिए कि खालिद सैफी वही शख्स है जिस पर आरोप लगा है कि उसने सिंगापुर सहित मध्य पूर्व के एक देश से दंगों के लिए धन जुटाया और मलेशिया तक जाकर जाकिर नाइक से मुलाकात की। इसके अलावा उमर खालिद और ताहिर हुसैन की शाहीन बाग में मीटिंग कराने वाला भी यही शख्स था। जिसके संबंध बड़े बड़े मीडिया गिरोह के लोगों से भी थे।
आज जैसे-जैसे दिल्ली दंगों की परतें खुल रही है, साफ मालूम चल रहा है कि उसके तार शाहीन बाग से जुड़े थे। लेकिन राणा अय्यूब को इससे क्या मतलब? उन्हें खालिद केवल वही शख्स लगता है जिसने एंटी सीएए प्रदर्शनों में भाग लिया और दिल्ली पुलिस ने इस्लामोफोबिया के तहत उसे गिरफ्तार कर लिया।
यहाँ बता दें, एंटी सीएए प्रदर्शन में जिसका विकराल रूप 24-25 फरवरी की रात उत्तर-पूर्वी दिल्ली में देखने को मिला। इसके बाद करोड़ों की संपत्तियाँ बर्बाद हो गई और 50 से ज्यादा लोगों की जान गई, जबकि कई घायल हुए।
मौके दर मौके साध्वी प्रज्ञा को भगवा आतंक बोलने वाली और इस्लामिक देशों के बयान के बाद प्रधानमंत्री की चुप्पी को अपनी जीत समझने वाली राणा अय्यूब नहीं मानती क्या कि ‘ईद में अब्बा घर आएँगे’ का भावुक प्रश्न पूछने वाले बच्चे को पिता के अपराध का भी पता होना चाहिए?
हम ये नहीं कहते कि सैफी के बच्चों में भी वही गुण या वही कट्टरता होगी। लेकिन ये जरूर कह रहे हैं कि उनकी आड़ में कई परिवारों पर हुए अत्याचार की कहानी पर पानी न फेरा जाए। राणा अय्यूब जैसों ने आज इस्लामिक आतताइयों के कारनामों को धो-पोंछ कर उन्हें स्मृतियों से मिटाने का बीड़ा उठाया है। यही सेकुलरिज्म देश के लिए खतरा है और वास्तविकता में देश में इस्लामोफोबिया का प्लॉट तैयार करने का यही असल मकसद है।
सबसे दुखद तो ये है कि इस एजेंडे के तहत मजहब देखकर अपराधी के मानवीय/पारिवारिक पहलू की बात जोर-शोर से होती है लेकिन उसने कितनों के अब्बा छीन लिए, इसकी बात कोई वामपंथी मीडिया नहीं करता और न कोई तथाकथित सामाजिक कार्यकर्ता न्याय दिलाने आगे आता है! आज का सच यही है कि वामपंथ का जहर भी अपनी पैठ बनाने के लिए कट्टरपंथ के आधीन हो चुका है।