Saturday, October 5, 2024
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हिंदुओं के खिलाफ नफरत, धर्मांतरण और विदेशों से अवैध फंडिंग: तमिलनाडु की ईसाई मिशनरी जीसस रिडीम्स की FCRA लाइसेंस रद्द

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मोहन सी लाजरस द्वारा संचालित विवादास्पद ईसाई मिशनरी संगठन जीसस रिडीम्स का विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम (FCRA) लाइसेंस निलंबित कर दिया है। यह कार्रवाई कानूनी कार्यकर्ता समूह लीगल राइट्स प्रोटेक्शन फोरम (LRPF) की एक शिकायत के बाद हुई है। शिकायत में एफसीआरए के प्रावधानों के गंभीर उल्लंघन का आरोप लगाया गया था।

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मोहन सी लाजरस द्वारा संचालित विवादास्पद ईसाई मिशनरी संगठन जीसस रिडीम्स का विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम (FCRA) लाइसेंस निलंबित कर दिया है। यह कार्रवाई कानूनी कार्यकर्ता समूह लीगल राइट्स प्रोटेक्शन फोरम (LRPF) की एक शिकायत के बाद हुई है। शिकायत में एफसीआरए के प्रावधानों के गंभीर उल्लंघन का आरोप लगाया गया था।

ईसाई मिशनरी संगठन जीसस रिडीम्स तमिलनाडु के तूतीकोरिन में स्थित है। इसका उन संगठनों से विदेशी धन प्राप्त करने का बहुत ही संदिग्ध रिकॉर्ड है, जो भारतीय हितों के खिलाफ काम करने के लिए जाने जाते हैं। भारत सरकार द्वारा जाँच करने के बाद उसकी गतिविधियाँ संदिग्ध लगीं और आखिरकार उसका FCRA लाइसेंस (076160018) रद्द कर दिया गया।

दरअसल, LRPF ने नवंबर 2023 में जीसस रिडीम्स और उसके विदेशी दानदाताओं की गतिविधियों की व्यापक जांँच का केंद्रीय गृह मंत्रालय से अनुरोध किया था। उसने कहा था कि जीसस रिडीम्स नाम का यह संस्था लोगों के बीच धार्मिक, जातिय, नस्लीय, सामाजिक, भाषाई, क्षेत्रीय या सामुदायिक स्तर पर वैमनस्य पैदा करने की कोशिश करता है।

अपनी शिकायत में एलआरपीएफ ने कहा था, “जीसस रिडीम्स के मुख्य पदाधिकारी के रूप में मोहन लाजरस उर्फ ​​मोहन सी लाजरस का कार्य विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम 2010 की विभिन्न धाराओं को आकर्षित करता है, जो उक्त संगठन के एफसीआरए पंजीकरण निलंबन/रद्दीकरण का कारण बन सकता है। जैसे कि अध्याय II, 9 (ई) (v): धार्मिक, नस्लीय, सामाजिक, भाषाई या क्षेत्रीय समूहों, जातियों या समुदायों के बीच वैमनस्य पैदा करना। अध्याय III 12 (4) (एफ) (vi): धार्मिक, नस्लीय, सामाजिक, भाषाई या क्षेत्रीय समूहों, जातियों या समुदायों के बीच वैमनस्य पैदा करना।”

LRPF ने गृह मंत्रालय से ‘जीसस रिडीम्स’ की आधिकारिक पत्रिका की भी जाँच करने का आग्रह किया था। इसे मोहन लाजरस द्वारा प्रकाशित किया जा रहा था। शिकायत में यह भी कहा गया था कि इस एनजीओ का संचालन अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, दुबई, मलेशिया, न्यूजीलैंड, सिंगापुर, कनाडा और श्रीलंका सहित कई अन्य देशों में है।

भारत सरकार से मामले की जाँच का आग्रह करते हुए लीगल राइट्स प्रोटेक्शन फोरम ने कहा था कि जीसस रिडीम्स लगातार विदेशों में ईसाई धर्म का कार्यक्रम आयोजित कर रहा है और चीन सहित विभिन्न देशों से पादरियों को आमंत्रित कर रहा है। संस्था ने इन आयोजनों पर होने वाले खर्च की ऑडिट रिपोर्ट आदि की भी जाँच करने का आग्रह किया था।

जीसस रिडीम्स को डैंगोटे ग्रुप के निदेशकों से भी भारी विदेशी फंड प्राप्त हुआ था। डैंगोटे नाइजीरिया की एक खनन कंपनी है, जिसका सिनोमा इंटरनेशनल इंजीनियरिंग कंपनी लिमिटेड के साथ बेहद करीबी संबंध है। सिनोमा इंटरनेशनल चीन के सरकारी स्वामित्व वाली एक कंपनी है।

कम्युन मैगजीन के अनुसार, मोहन लाजरस जीसस रिडीम्स नाम से एक ईसाई संगठन चलाता और इसके जरिए वह धर्मांतरण की गतिविधियों को संचालित करता है। वह हिंदू विरोधी बयान देकर सांप्रदायिक सौहार्द्र बिगाड़ने के लिए भी कुख्यात है। हिंदू मंदिरों और हिंदू देवताओं के खिलाफ बयान देने के कारण लाजरस के खिलाफ तमिलनाडु के विभिन्न पुलिस स्टेशनों में IPC की विभिन्न धाराओं में कई मुकदकमे दर्ज हैं।

एक अन्य मामले में क्षेत्रीय पासपोर्ट अधिकारी ने मोहन लाजरस को नया पासपोर्ट जारी करने से इनकार कर दिया। दरअसल, लाजरस ने पासपोर्ट आवेदन में उनके खिलाफ लंबित 4 आपराधिक मामले की जानकारी छुपा ली थी। इतना ही नहीं, फरवरी 2021 में मद्रास उच्च न्यायालय ने हिंदुओं और हिंदू धर्म के खिलाफ बयान देने के लिए इस पादरी को सख्त चेतावनी दी थी।

हालाँकि, लाजर को 2020 के केस संख्या W.P.(MD)No.15829 के माध्यम से उच्च न्यायालय से राहत मिली, जिसमें भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकार के रूप में उसके ‘यात्रा करने के अधिकार’ पर जोर दिया गया।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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