मद्रास हाई कोर्ट ने कहा है कि किसी विवाहित महिला का पोर्न देखना अपराध नहीं माना जा सकता और इस आधार पर तलाक नहीं हो सकता। हाई कोर्ट ने इस तर्क के आधार पर तलाक माँगने वाले पति को कोई राहत देने से इनकार किया है। हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि महिला का खुद को यौन सुख देना भी कोई अपराध नहीं है।
क्या था मामला?
यह सारी बातें मद्रास हाई कोर्ट ने तलाक के एक मामले में याचिका की सुनवाई में कही हैं। दरअसल, तमिलनाडु के करूर के एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी से तलाक की माँग करते हुए एक याचिका डाली थी। दोनों की शादी 2018 में हुई थी और 2020 से दोनों अलग-अलग रहते थे। यह दोनों व्यक्तियों की दूसरी शादी थी।
बात बिगड़ने के चलते 2021 में दोनों का मामला कोर्ट में चला गया। महिला ने कोर्ट से उसके वैवाहिक स्थिति को बहाल करने की माँग की थी। वहीं उसके पति ने कहा था कि वह तलाक चाहता है। हालाँकि, निचली अदालत ने तलाक देने से मना कर दिया और पत्नी की याचिका को सही माना।
इसका विरोध करते हुए पति ने मद्रास हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की। मद्रास हाई कोर्ट से पति ने माँग की कि उसको तलाक दिया जाए क्योंकि उसकी पत्नी उसके साथ क्रूरता करती है। उसने क्रूरता सिद्ध करने के लिए कई आरोप भी पत्नी पर जड़े।
क्या थे महिला पर आरोप?
पति ने अपनी याचिका में दावा किया कि उसकी पत्नी को सेक्सुअल बीमारियाँ हैं। उसने दावा किया कि यह बीमारियाँ ऐसी हैं जो सम्बन्ध बनाने से उसे भी हो सकती हैं। उसने एक आयुर्वेदिक सेंटर के कुछ दस्तावेज भी अपनी पत्नी के संबंध में दिखाए।
इसके अलावा पति ने दावा किया कि उसकी पत्नी पोर्न देखती है। पति ने यह भी आरोप लगाया कि उसकी पत्नी ‘हस्तमैथुन’ में लिप्त रहती है। इसके अलावा उसने पत्नी पर घर का काम ना करने, सास-ससुर की सेवा ना करने, मोबाइल पर देर तक बात करने और पैसा अधिक खर्च करने का आरोप भी लगाया। पति ने इन सभी को क्रूरता बताया और तलाक की माँग की।
क्या बोला मद्रास हाई कोर्ट?
मद्रास हाई कोर्ट में यह मामला जस्टिस स्वामीनाथन और जस्टिस पूर्णिमा की बेंच ने सुना। मद्रास हाई कोर्ट ने पति का सेक्सुअल बीमारियों का आरोप मानने से इनकार कर दिया और कहा कि इस संबंध में कोई भी पक्का सबूत नहीं मिला है, ऐसे में इसे नहीं माना जा सकता।
वहीं हाई कोर्ट ने पोर्न देखने और इसकी आदत लगने को लेकर भी टिप्पणियाँ की। हाई कोर्ट ने कह़ा कि निजी स्थान पर पोर्न देखना (प्रतिबंधित के अलावा) अपराध नहीं माना जा सकता। हाई कोर्ट ने इसे क्रूरता मानने से मना किया और कहा कि यह तलाक का कोई आधार नहीं बन सकता।
वहीं ‘हस्तमैथुन’ के मुद्दे पर भी हाई कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की। हाई कोर्ट ने कहा, “आरोप यह है कि महिला हस्तमैथुन में लिप्त थी। किसी महिला से इस आरोप का जवाब देने को कह़ा जाना ही उसकी यौन स्वायत्तता पर हमला है। अगर शादी के बाद कोई महिला विवाह से अलग संबंध बनाती है तो यह तलाक का आधार माना जा सकता है।”
हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया, “लेकिन, खुद को संतुष्ट करना विवाह को खत्म किए जाने का कारण नहीं माना जा सकता।” हाई कोर्ट ने इसके अलावा पति के परिजनों के प्रति क्रूरता के संबंध में भी सबूत नहीं पाए, ऐसे में यह भी सिद्ध नहीं हुआ।
हाई कोर्ट ने कहा, “यदि पति द्वारा लगाए गए आरोप सही होते, तो यह असंभव है कि वे करीब 2 साल तक साथ रहते। पति ने यह दिखाने के लिए कोई सबूत पेश नहीं किया है कि पत्नी घर के काम करने में विफल रही। सभी सबूत की जाँच के बाद निचली अदालत इस निष्कर्ष पर पहुँची कि पति ने आरोप साबित नहीं किए।”
हाई कोर्ट ने यह फैसला बरकरार रखने का निर्णय लिया है। कोर्ट ने कहा, “रिकॉर्ड पर मौजूद अभी सबूत फिर से जाँचने के बाद , हम निचली अदालत के फैसले के खिलाफ कोई नजरिया नहीं अपना सकते। हम निचली अदालत द्वारा दिए गए आदेश की पुष्टि करते हैं।”