Sunday, November 10, 2024
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CAA के बारे में जानते ही नहीं मुस्लिम, वोट बैंक समझते हैं सियासी दल: शाही इमाम

उन्होंने कहा कि पहले बैठकें होती थी, जिसमें इलाके के मौलाना, पार्षद, विधायक समेत आम लोग शामिल होते थे। सब कुछ तय किया जाता था कि उपद्रवी प्रदर्शन में शामिल न हों। लेकिन, अभी जब नमाज हो रही थी तो मैंने देखा कि एक तरफ नमाज हो रही थी दूसरी तरफ पीछे से नारे लग रहे थे।

जामा मस्जिद के इमाम सैयद अहमद बुखारी ने नागरिकता संशोधन कानून (CAA) को लेकर मुस्लिमों को ही फिर से आईना दिखाया है। बुख़ारी ने कहा कि मुस्लिम ये समझ ही नहीं रहे हैं कि इस क़ानून का किसी भी भारतीय नागरिक से कुछ लेना-देना ही नहीं है, चाहे वो हिन्दू हो या मुस्लिम। बुखारी ने चीजें स्पष्ट करते हुए समझाया है कि नागरिकता संशोधन क़ानून तो उनलोगों के लिए है, जो पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश से भारत में आकर शरणार्थी के रूप में रह रहे हैं। साथ ही बुखारी ने सभी राजनीतिक दलों पर समान रूप से निशाना साधा। उन्होंने मुस्लिमों के बीच फ़ैल रहे अफवाह से बचने की सलाह दी।

सैयद अहमद बुखारी ने ‘दैनिक जागरण’ में प्रकाशित एक लेख में कहा है कि मुस्लिमों को मुल्क़ में अपनी आवाज़ बुलंद करते हुए 70 साल हो गए, लेकिन सभी राजनीतिक दलों ने उनका सिर्फ़ सत्ता के लिए इस्तेमाल किया। बुखारी ने कहा है कि राजनेताओं ने वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल कर, मुस्लिमों से झूठे वादे कर सत्ता तो पा ली लेकिन बाद में वादाखिलाफी पर उतर आए। शाही इमाम मानते हैं कि जो नेता आज तक मुस्लिमों के वोट लेते रहे, उन्होंने सत्ता मिलते ही मुस्लिमों से मुँह फेर लिया।

शाही इमाम ने बताया कि उन्होंने सीएए को लेकर काफ़ी लोगों से बात की और उनका अनुभव ये रहा कि अधिकतर लोगों को इसके बारे में कुछ पता ही नहीं है। सैयद अहमद बुखारी ने मुस्लिमों को समझाते हुए अपने लेख में कहा है;

कई लोग ऐसी अफवाहें फैला रहे हैं कि मुस्लिमों को हिंदुस्ताान से बाहर भेजा जा रहा है। हमें यह समझने की ज़रूरत है कि इस कानून में नागरिकता देने की बात हो रही है, लेने की नहीं। लेकिन, युवाओं को यह डर है कि उन्हें हिंदुस्तान से बाहर भेज दिया जाएगा। हकीकत में नागरिकता कानून एनआरसी से अलग है और भारत के मुस्लिमों से संबंधित नहीं है। लोगों को सीएए और एनआरसी के बीच का अंतर समझना चाहिए।

सैयद अहमद बुखारी ने लोगों को ये भी याद दिलाया कि पूरे देश में एनआरसी लागू करने जैसी कोई चीज अभी आई ही नहीं है। उन्होंने बताया कि सीएए तो एक्ट अर्थात क़ानून बन चुका है लेकिन एनआरसी के नियम-कायदे अभी तय ही नहीं हुए हैं तो विरोध क्यों? उन्होंने कहा कि पहले बैठकें होती थी, जिसमें इलाके के मौलाना, पार्षद, विधायक समेत आम लोग शामिल होते थे। सब कुछ तय किया जाता था कि उपद्रवी प्रदर्शन में शामिल न हों। लेकिन, अभी जब नमाज हो रही थी तो मैंने देखा कि एक तरफ नमाज हो रही थी दूसरी तरफ पीछे से नारे लग रहे थे। उन्होंने कहा है कि कोई भी तहरीर तब तक सफल नहीं होती जब तक कि जिम्मेदारों को ना जोड़ा जाए।उन्होंने सलाह दी कि विरोध संयमित तरीके से होना चाहिए। उन्होंने उनलोगों से भी आपत्ति जताई, जो जबरन दुकानें बंद करा रहे हैं।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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