Thursday, May 2, 2024
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मानसिक-शारीरिक शोषण से धर्म परिवर्तन और निकाह गैर-कानूनी: हिन्दू युवती के अपहरण-निकाह मामले में इलाहाबाद HC

"बहुल्य नागरिकों के धर्मांतरण से देश कमजोर होता है। किसी को ये अधिकार नहीं है कि किसी का लालच या भय के माध्यम से किसी का धर्मांतरण कराए। अगर जबरन ऐसा किया जाता है तो इससे विवेक की स्वतंत्रता प्रभावित होगी।"

धर्मांतरण व निकाह के एक मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है। जावेद अंसारी ने उत्तर प्रदेश में ‘लव जिहाद’ के खिलाफ बने कानून के तहत हो रही कार्रवाई को रोकने के लिए हाईकोर्ट का रुख किया था। उसने आयुषी नाम की एक हिन्दू लड़की से निकाह किया था। 17 नवंबर, 2020 को आयुषी घर से बाजार के लिए निकलने के बाद वापस नहीं आई थी। परिजनों ने 21 वर्षीय आयुषी की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई थी।

इसके बाद पता चला कि जलेसर से जावेद अंसारी अपने साथियों के साथ उसे बहला-फुसला कर ले गया है। धर्म-परिवर्तन कर जबरन निकाह के उद्देश्य से ऐसा किया गया। आरोप था कि बिना जिलाधिकारी को सूचित किए हुए अवैध रूप से हिन्दू युवती का धर्म-परिवर्तन कर उसे मुस्लिम बना दिया गया। साथ ही उसके यौन शोषण भी किया जा रहा था। आरोपित के वकील का कहना था कि सब दोनों की मर्जी से हुआ है और आयुषी अब आयशा हो गई है।

दोनों के बालिग़ होने की बात कही गई। आरोपित के वकील ने ये तर्क भी दिया कि इस घटना के बाद उत्तर प्रदेश का धर्मांतरण व जबरन शादी वाला कानून लागू हुआ था, इसीलिए इस पर ये लागू नहीं होता। जबकि पीड़ित पक्ष का कहना था कि शादीशुदा आरोपित ने युवती का अपहरण कर के उसे नशीली दवा खिलाई और जबरन दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करा लिए। होश आने पर पीड़िता ने पुलिस को सूचित किया और मजिस्ट्रेट के समक्ष आरोपित के विरुद्ध बयान दर्ज कराया।

मोहम्मद जावेद ने अपने साले फैजान व महफूज के यहाँ पीड़िता को छिपाया हुआ था। पीड़िता को गाड़ी में बंद कर उसका मुँह दबा कर ले जाया गया था, इसीलिए पीड़ित पक्ष ने अपहरण बताया है। पीड़ित पक्ष ने मीडिया की विभिन्न खबरों का हवाला देते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट को बताया कि कैसे गूँगी-बहरी व गरीब-असहाय महिलाओं का धर्मांतरण कराया जाता है। डर, प्रलोभन व लालच देकर ऐसा करने के लिए विदेशी फंडिंग भी हो रही है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों को विस्तृत रूप से सुनने के बाद कहा कि हर वयस्क व्यक्ति को स्वेच्छा से धर्म-परिवर्तन व दो बालिगों को सहमति से विवाह का अधिकार है। किसी भी धर्म का व्यक्ति किसी भी धर्म के व्यक्ति से विवाद करने के लिए स्वतंत्र है। हालाँकि, कोर्ट ने नोट किया कि अपमान व उपेक्षा के कारण भी कई बार लोग धर्मांतरण करते हैं। लेकिन, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कुछ और महत्वपूर्ण बातें भी कही।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा, “किसी भी देश का बहुल नागरिक जब धर्मांतरण करता है तो इससे देश कमजोर होता है। इससे विघटनकारी शक्तियों को लाभ प्राप्त हो जाता है। देश का इतिहास बताता है कि जब-जब हम बँटे और देश पर आक्रमण हुआ, तब-तब हम गुलाम हुए। किसी को ये अधिकार नहीं है कि किसी का लालच या भय के माध्यम से किसी का धर्मांतरण कराए। अगर जबरन ऐसा किया जाता है तो इससे विवेक की स्वतंत्रता प्रभावित होगी।”

साथ ही सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला देते हुए न्यायाधीश शेखर कुमार यादव ने बताया कि ऐसी घटनाओं से सार्वजनिक व्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ता है। धर्म को जीवनशैली बताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यहाँ कट्टरता का कोई स्थान नहीं। इलाहाबाद उच्च-न्यायालय ने इससे पहले भी एक फैसले में कहा था कि केवल शादी के लिए धर्म-परिवर्तन स्वीकार्य नहीं। इस मामले में कोर्ट ने माना कि पीड़िता को उर्दू नहीं आता था और धोखे से हस्ताक्षर करा कर उसका मानसिक व शारीरिक यौन शोषण किया गया।

लेकिन, ‘आजतक’ जैसे मीडिया संस्थानों ने इस पूरी घटना को छिपाते हुए सिर्फ खबर की हैडिंग में सिर्फ इतना लिखा, “नागरिक को कोई भी धर्म अपनाने का अधिकार, मर्जी से शादी करना संवैधानिक अधिकार: इलाहाबाद HC“। इससे न तो जावेद अंसारी के गुनाह का पता चलता है, न हिन्दू पीड़िता पर हुए अत्याचार का और न ही हाईकोर्ट द्वारा कही गई अन्य बातों का। इस हैडिंग में जो है, वो तो सबको पता है।

लेकिन, जबरन धर्म-परिवर्तन से देश को होने वाले नुकसान को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जो कहा, उसे बड़ी चालाकी से छिपा लिया गया। साथ ही अंतिम पैराग्राफ में कोर्ट द्वारा ‘फटकार लगाने’ की बात लिखी हुई है। जबकि असल में ये मामला उससे कहीं बड़ा है और हाईकोर्ट की टिप्पणियाँ भी गौर करने लायक है। ये मामला ‘मर्जी से शादी’ या ‘किसी भी धर्म अपनाने’ का नहीं है, अपहरण, यौन शोषण और जबरन धर्मांतरण का है।

वामपंथी मीडिया सिर्फ धर्मांतरण के एक कारण पर कोर्ट की टिप्पणी तो दिखा रहा है कि धर्म व जाति के ठेकेदारों को सुधरने की ज़रूरत है, लेकिन जिस ‘जबरन धर्मांतरण’ से ये मामला जुड़ा है, उस पर हाईकोर्ट की टिप्पणी पर मीडिया चुप्पी साधे हुए है। धर्म के प्रचार-प्रसार का अधिकार है, लेकिन डर, लालच और भय वाली बात जो हाईकोर्ट ने कही है, उसे छिपाई जा रही है। हाल ही में एक धर्मांतरण गिरोह का पर्दाफाश होने के बाद ये मुद्दा और गंभीर हो गया है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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