राजनीतिक दोगलापन क्या होता है? कॉन्ग्रेस की कथनी और करनी में क्या फर्क है? राहुल गाँधी (Rahul Gandhi) जिन्हें दिल्ली में ‘मोदी का यार’ बताते हैं, उन लोगों की ही एजेंट उनकी पार्टी की सरकारें कैसे बनी हुई हैं? इन सवालों के जवाब चाहिए तो छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले के घने जंगलों के बीच स्थित गाँव हरिहरपुर हो आइए।
इस इलाके को हसदेव अरण्य (Hasdeo Aranya) भी कहते हैं। सितंबर के महीने में दूर-दूर तक फैली हरियाली के बीच जब हम यहाँ पहुँचे तो जोरदार बारिश मानो कॉन्ग्रेस सरकार की करनी पर रो रही हो। छतनार के पेड़ों से चलने वाली ठंडी हवाएँ मानो राहुल गाँधी की वादाखिलाफी और भारत जोड़ो यात्रा (Bharat Jodo Yatra) को लानत भेज रही हो।
ऐसे मौसम में भी खेतों के बीच फूस की छत के नीचे कुछ ग्रामीण बैठे हुए हैं। इस उम्मीद में नहीं कि भूपेश बघेल सरकार उनकी सुध लेगी। इस डर से कि प्रशासनिक अमला कहीं उन पेड़ों को काटने के लिए नहीं आ धमके, जिसे बचाने के लिए वे 02 मार्च 2022 से यहाँ डटे हुए हैं। ग्रामीणों का दावा है कि पुलिसिया बल पर अब तक 430 पेड़ काटे भी जा चुके हैं। लेकिन, आज तक उनसे संवाद करने के लिए प्रशासन का कोई अधिकारी नहीं पहुँचा है।
हरिहरपुर, सालही, फतेहपुर, घाटबर्रा, चारपाड़ा, मदनपुर जैसे कई गाँव का जनजातीय समाज ‘हसदेव बचाओ’ के नारे के साथ छत्तीसगढ़ की कॉन्ग्रेस सरकार और अडानी समूह के खिलाफ मार्च से ही धरने पर बैठा हुआ है। वे इस वन क्षेत्र में खनन की नई इजाजत का विरोध कर रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि परसा में खदान की अनुमति फर्जी ग्रामसभा का आयोजन कर दी गई है। खुदाई की वजह से वे करीब 4.5 लाख पेड़ों की कटाई होने का दावा कर रहे हैं।
धरने पर बैठे ग्रामीणों को डर है कि खनन से उनके गाँव लुप्त हो जाएँगे। यह बेजा नहीं है। जैसा कि हरिहरपुर की संपतिया ने ऑपइंडिया को बताया, “मेरा मायका केते है। जब वहाँ खदान खुला तब सब पेड़-पौधे काट दिए। मेरे सब भाई-बहन इधर-उधर चले गए। पूरा परिवार बिखर गया। अब हम इस गाँव-बस्ती को छोड़कर नहीं जाएँगे। अडानी हमारी जगह जमीन मत लो। हम इसे नहीं छोड़ेंगे। भले हम लोगों की जान जाए तो जाए, लेकिन हम यह जगह नहीं छोड़ेंगे। हम जंगल नहीं कटने देंगे।”
कॉन्ग्रेस सरकार से इनलोगों की नाराजगी की एक वजह राहुल गाँधी का वह वादा है जो उन्होंने 2015 में किया था। हरिहरपुर से करीब 15 किलोमीटर दूर मदनपुर में जून 2015 में राहुल गाँधी ने एक सभा की थी। इस दौरान इन ग्रामीणों को भरोसा दिलाया था कि राज्य में कॉन्ग्रेस की सरकार बनने पर इस इलाके में खुदाई की अनुमति नहीं होगी। उनके गाँव नहीं उजड़ने दिए जाएँगे। इस वादे पर भरोसा कर इनलोगों ने 2018 के विधानसभा चुनावों में कॉन्ग्रेस को समर्थन दिया। राज्य में भूपेश बघेल के नेतृत्व में कॉन्ग्रेस की सरकार भी आ गई। इसके बाद कॉन्ग्रेस और राहुल गाँधी ने यह वादा भूला दिया।
वादा याद दिलाने के लिए यहाँ के करीब 300 ग्रामीणों ने 4 अक्टूबर 2021 को एक पदयात्रा शुरू की। यह 11 अक्टूबर को रायपुर पहुँची। बघेल सरकार को राहुल गाँधी का वादा याद दिलाया। आश्वासन मिला, पर हुआ कुछ नहीं। इसके बाद ग्रामीणों का एक दल दिल्ली आकर राहुल गाँधी से मिला। उन्होंने भी कथित तौर पर फिर भरोसा दिलाया। फिर भी कोई पहल नहीं हुई तो ग्रामीणों ने ‘हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति’ के बैनर तले धरना शुरू किया। दिलचस्प यह है कि छत्तीसगढ़ का परसा कोल ब्लॉक राजस्थान राज्य विद्युत् उत्पादन निगम लिमिटेड को आवंटित है। राजस्थान की सरकार ने अनुबंध पर इसे खनन के लिए अडानी समूह को दिया है। राजस्थान में भी कॉन्ग्रेस की ही सरकार है।
फतेहपुर गाँव के भुनेश्वर सिंह पोर्ते भी ‘हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति’ से जुड़े हुए हैं। उन्होंने ऑपइंडिया को बताया, “धरने पर बैठे हुए हमें 190 दिन के आसपास हो गया है। लेकिन आज तक शासन-प्रशासन का कोई आदमी हमारी सुध लेने नहीं आया है।’ सालही गाँव के राम लाल सिंह करियाम कहते हैं, “सरकार ने फर्जी ग्रामसभा के आधार पर खनन की जो अनुमति दी है एनजीटी ने 2014 में ही उसे निरस्त कर दिया था। फिर भी यह सरकार आगे बढ़ रही है। हम पदयात्रा करके रायपुर गए थे। राज्यपाल ने फर्जी ग्रामसभा की जाँच के आदेश दिए थे। लेकिन जिला प्रशासन मौन बैठा हुआ है।”
सालही के ही नंदराम ने ऑपइंडिया को बताया, “छत्तीसगढ़ में कॉन्ग्रेस सरकार आने से हम लोगों को लगा कि जब ये नरवा, गरुआ, घुरुवा की बात कर रही है तो यह खदान आवंटन रद्द करेगी। लेकिन यह नरवा, घुरुवा को उजाड़ने का काम कर रही है। हमारी जान जाए तो जाए लेकिन हम जंगल-जमीन नहीं छोड़ेंगे। हम लड़कर रहेंगे। सरकार यह मत सोचे कि हम कमजोर हैं। हम कमजोर नहीं हैं। पूरे छत्तीसगढ़ के लोग आज हमारे आंदोलन का समर्थन कर रहे हैं।”
सवाल केवल यह नहीं है कि इस जगह खनन होना चाहिए या नहीं? इसके लिए जो प्रक्रिया अपनाई गई वह वैध थी या नहीं? लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई एक सरकार से अपेक्षा की जाती है कि वह अपने लोगों से संवाद करेगी। हसदेव बचाओ आंदोलन को लेकर कॉन्ग्रेस की सरकार ने यह पहल तक नहीं की है। उलटा कुछ ग्रामीणों पर केस दर्ज कर दिए गए हैं।
सबसे हास्यास्पद यह है कि कॉन्ग्रेस की ही सरगुजा यूनिट इन्हें समर्थन देने की बात कहती है। इसी इलाके से आने वाले बघेल सरकार के एक मंत्री टीएस सिंहदेव भी इन आंदोलनकारियों को धरनास्थल पर आकर अपना व्यक्तिगतसमर्थन देकर जा चुके हैं। राज्य सरकार चाहे तो केंद्र की मोदी सरकार का भी अनुकरण कर सकती है जो उसने कृषि कानूनों को वापस लेकर दिखाई है। लेकिन ऐसा कुछ होने की उम्मीद नहीं दिखती, क्योंकि कॉन्ग्रेस, राहुल गाँधी और भारत जोड़ो यात्रा में बिजी आंदोलनजीवियों के लिए हसदेव और उसके जनजातीय बच्चों की आवाज का कोई मोल ही नहीं है।