Thursday, April 25, 2024
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रिटायर्ड जज, ब्यूरोक्रेट्स उतरे प्रशांत भूषण के विरोध में: CJI को लिखा पत्र, कहा- ये लोकतांत्रिक संस्थाओं पर करते हैं आघात, सख्ती से आएँ पेश

“हम कुछ लोगों के बयानों से बहुच चिंतित हैं, जो खुद के सिविल सोसायटी का एकमात्र प्रतिनिधि होने का गलत दावा करते हैं और संसद, चुनाव आयोग तथा अब उच्चतम न्यायालय जैसे भारत के लोकतांत्रिक संस्थानों की जड़ों पर हमला करने के हर अवसर का इस्तेमाल करते हैं।”

सेवानिवृत्त न्यायधीशों और ब्यूरोक्रेट्स समेत नागरिकों के एक समूह ने वकील प्रशांत भूषण को अदालत की अवमानना के मामले में दोषी करार देने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश की आलोचना करने वालों पर निशाना साधा है। उन्होंने नायायलय के फैसले की निंदा करने वालों को घेरते हुए आरोप लगाया कि ये लोग संसद, चुनाव आयोग और शीर्ष अदालत जैसी लोकतांत्रिक संस्थाओं की जड़ों पर आघात करने का हर अवसर भुनाते हैं।

सीजेआई बोबड़े को लिखे गए इस पत्र में कहा गया है कि ये काफी दुर्भाग्यपूर्ण है कि जब किसी वकील का राजनीतिक मकसद कोर्ट के फैसलों से पूरा नहीं होता है तो वो इस पर अपमानजनक टिप्पणी करते हैं। 

पत्र में आगे कहा गया है, “हम सभी लोग इस नए ट्रेंड पर चिंता जताते हैं, जिसमें न्यायपालिका को निशाना बनाया जा रहा है। भारत में पिछले कई सालों में देखा गया कि कुछ लोगों ने लगातार उन जजों पर हमला बोला है, जो उनसे सहमत नहीं थे।”

पत्र में ऐसे वकीलों का जिक्र किया गया है जो कोर्ट के फैसले के खिलाफ बोलते हैं। इसमें कहा गया है कि ऐसे वकील अपमानजक टिप्पणी कर कोर्ट का अपमान करते हैं, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया और जजों को भी टारगेट किया जाता है। हमेशा उनके जजमेंट की आलोचना की जाती है।

खत में आगे कहा गया है कि अगर न्यायपालिका अपना काम और संचालन सही तरीके से कर रही है तो ऐसे में ये जरूरी हो जाता है कि कोर्ट की गरिमा और अथॉरिटी की सुरक्षा की जाए। न्यायपालिका का आधार यही है कि लोग इस पर न्याय के लिए भरोसा रखते हैं। कोर्ट के खिलाफ ये कहना कि ‘सुप्रीम कोर्ट ने लोकतंत्र को बर्बाद कर दिया’ और ‘सुप्रीम कोर्ट संविधान की हत्या कर रहा है’, जनता में न्यायपालिका के भरोसे को तोड़ने की एक शुरुआत जैसा है।

सेवानिवृत्त न्यायधीशों और ब्यूरोक्रेट्स समेत नागरिकों के एक समूह की तरफ से लिखा गया है, “हम कुछ लोगों के बयानों से बहुच चिंतित हैं, जो खुद के सिविल सोसायटी का एकमात्र प्रतिनिधि होने का गलत दावा करते हैं और संसद, चुनाव आयोग तथा अब उच्चतम न्यायालय जैसे भारत के लोकतांत्रिक संस्थानों की जड़ों पर हमला करने के हर अवसर का इस्तेमाल करते हैं।”

इन सभी वकीलों, पूर्व जजों और ब्यूरोक्रेट्स ने आखिर में अपील करते हुए कहा है, “हम सीजेआई से अपील करते हैं कि न्याय प्रणाली की विश्वसनीयता बनी रहे और ऐसे लोगों से, जो इस संस्था को खत्म करना चाहते हैं, लोकतंत्र के तीसरे पिलर को बचाएँ। साथ ही सुप्रीम कोर्ट से अपील करते हैं कि ऐसे लोगों के साथ सख्ती से पेश आया जाए।”

पत्र पर 100 से अधिक लोगों ने हस्ताक्षर किए हैं, जिनमें मुंबई उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश के आर व्यास, सिक्किम उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश प्रमोद कोहली, पूर्व पेट्रोलियम सचिव सौरभ चंद्रा और पंजाब के पूर्व पुलिस महानिदेशक पीसी डोगरा आदि शामिल हैं। उन्होंने कहा है कि प्रशांत भूषण उच्चतम न्यायालय के एक वरिष्ठ अधिवक्ता हैं और ‘अदालत की अवमानना’ को कोई ‘दबाव समूह’ न्यायोचित नहीं ठहरा सकता है।

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण के खिलाफ उनके दो ट्वीट्स को लेकर 14 अगस्त को फैसला दिया था। 14 अगस्त को शीर्ष अदालत ने वकील प्रशांत भूषण को कोर्ट की अवमानना वाले मामले में दोषी करार दिया। न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने भूषण को अवमानना का दोषी ठहराते हुए कहा कि इसकी सजा की मात्रा के मुद्दे पर 20 अगस्त को बहस सुनी जाएगी। शीर्ष अदालत ने पाँच अगस्त को इस मामले में सुनवाई पूरी फैसला सुरक्षित कर लिया था। 

ये पहली बार है जब कुछ लोगों ने प्रशांत भूषण के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में आवाज उठाई है। इससे पहले कई बुद्धिजीवी, पत्रकार, वकील और अन्य लोगों ने प्रशांत भूषण का समर्थन किया और कोर्ट के फैसले पर ‘चिंता’ जाहिर की थी। प्रशांत भूषण को अवमानना का दोषी करार दिए जाने के फैसले के बाद सैकड़ों वकीलों और अन्य लोगों ने इसका विरोध किया। बार एसोसिएशन ऑफ इंडिया से लेकर वकीलों की अन्य एसोसिएशंस ने भी इस पर चिंता जताई थी।

बता दें कि वकील प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक अर्जी दायर की जिसमें अवमानना मामले के संबंध में उनकी सजा पर सुनवाई टालने की माँग की गई है। इसमें कहा गया है कि जब तक इस संबंध में एक समीक्षा याचिका दायर नहीं की जाती है और अदालत द्वारा इस पर विचार नहीं किया जाता है, तब तक सजा पर सुनवाई को टाल दिया जाए। 

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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