सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (15 अप्रैल 2025) को इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस फैसले पर कड़ा ऐतराज जताया, जिसमें हाई कोर्ट ने रेप पीड़िता को ही जिम्मेदार ठहराते हुए आरोपित को जमानत दे दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जमानत देना जज का अधिकार है, लेकिन पीड़िता को दोषी बताने वाली टिप्पणी गलत है। कोर्ट ने जजों से संवेदनशीलता बरतने और अपने शब्दों पर ध्यान देने को कहा।
रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने इलाहाबाद हाई कोर्ट की टिप्पणी को असंवेदनशील बताया। जस्टिस गवई ने कहा कि जमानत देना अलग बात है, लेकिन पीड़िता पर ऐसी टिप्पणी क्यों? उन्होंने जजों से सावधानी बरतने को कहा। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी कहा कि ऐसी टिप्पणियाँ आम लोगों के बीच गलत संदेश देती हैं। लोगों को लगता है कि न्याय नहीं हुआ।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को चार हफ्ते बाद सुनवाई के लिए टाल दिया है। कोर्ट ने कहा कि ऐसी टिप्पणियाँ पीड़िताओं के लिए न्याय की राह को और मुश्किल बना देती हैं।
बता दें कि इलाहाबाद हाई कोर्ट में जस्टिस संजय कुमार सिंह ने इस मामले की सुनवाई की थी। उन्होंने कहा कि अगर पीड़िता के आरोप सही भी मान लिए जाएँ, तो भी वह खुद इस घटना के लिए जिम्मेदार है। कोर्ट ने यह भी कहा कि पीड़िता एमए की छात्रा है, इसलिए उसे अपने कदमों की नैतिकता और परिणाम समझने चाहिए थे। मेडिकल जाँच में पीड़िता का हाइमन टूटा हुआ पाया गया, लेकिन डॉक्टर ने यौन हिंसा की पुष्टि नहीं की। इस आधार पर कोर्ट ने आरोपित को जमानत दे दी थी।
यह मामला सितंबर 2024 का है, जब नोएडा की एक यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाली एमए की छात्रा ने अपने पुरुष मित्र पर रेप का आरोप लगाया था। पीड़िता ने बताया कि वह अपनी सहेलियों के साथ दिल्ली के हौज खास में एक बार में गई थी। वहाँ शराब पीने के बाद वह नशे में थी। सुबह तीन बजे तक बार में रहने के बाद वह आरोपित के साथ चली गई, जो उसे अपने घर ले जाने की बात कह रहा था।
पीड़िता का आरोप है कि आरोपित उसे नोएडा के बजाय गुरुग्राम में अपने रिश्तेदार के फ्लैट में ले गया। वहाँ उसने पीड़िता के साथ दो बार रेप किया। पीड़िता ने 23 सितंबर 2024 को नोएडा के सेक्टर-126 थाने में शिकायत दर्ज की। इसके बाद पुलिस ने 11 दिसंबर 2024 को आरोपित को गिरफ्तार किया।
यह पहला मौका नहीं है जब इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर सवाल उठे हैं। इससे पहले मार्च 2025 में हाई कोर्ट ने कहा था कि एक नाबालिग लड़की का स्तन पकड़ना और उसका पायजामा तोड़ना रेप की कोशिश नहीं है। उस फैसले पर भी सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी।