Wednesday, November 27, 2024
Homeदेश-समाजपैदा हुई ईसाई, रिजर्वेशन वाली नौकरी के लिए बन गई दलित: सुप्रीम कोर्ट के...

पैदा हुई ईसाई, रिजर्वेशन वाली नौकरी के लिए बन गई दलित: सुप्रीम कोर्ट के जज ने कहा- सिर्फ ‘आरक्षण’ के लिए खुद को हिन्दू बताना संविधान के साथ धोखा

यह मामला पुद्दुचेरी की एक ईसाई महिला से जुड़ा हुआ है। सी सेल्वारानी नाम की एक महिला ने कोर्ट में दावा किया कि वह हिन्दू पैदा हुई थी और उसके माँ और बाप वल्लुवन जाति के हैं। इस आधार पर उसने आरक्षण माँगा था। हालाँकि, कोर्ट में स्पष्ट हो गया कि वह ईसाई है और सिर्फ नौकरी के लिए दलित होने का दावा कर रही है।

पुद्दुचेरी की एक ईसाई महिला ने दलित होने का दावा करते हुए आरक्षण की माँग कर दी। महिला ने दावा किया कि वह पैदा जरूर ईसाई हुई थी लेकिन हिन्दू धर्म में विश्वास रखती अहि और दलित है, इसलिए आरक्षण दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने उसके दावे को नकार दिया।

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस आर महादेवन ने कहा कि महिला केवल नौकरी लेने को ही दलित हिन्दू होने की बात कह रही है जबकि सबूत दिखाते हैं कि वह ईसाई है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सिर्फ लेने के लिए ही खुद को दलित हिदू बताना और इसमें विश्वास ना करना संविधान के साथ विश्वासघात है। सुप्रीम कोर्ट ने उसे दलित होने का जाति प्रमाण पत्र देने से इनकार कर दिया है।

क्या है मामला?

यह मामला पुद्दुचेरी की एक ईसाई महिला से जुड़ा हुआ है। सी सेल्वारानी नाम की एक महिला ने कोर्ट में दावा किया कि वह हिन्दू पैदा हुई थी और उसके माँ और बाप वल्लुवन जाति के हैं। ऐसे में वह भी इसी जाति की है और अपने जीवन भर हिन्दू धर्म में विश्वास रखते आई है। उसने यह भी बताया कि उसने अपनी पूरी शिक्षा भी दलित होने के फायदे लेते हुए की है।

महिला सेल्वारानी ने कहा कि उसने 2015 में एक नौकरी के लिए आवेदन किया था। इसमें वह पास भी हो गई थी। इसके नौकरी के लिए दस्तावेज के सत्यापन के दौरान उससे जाति प्रमाण पत्र माँगा गया था। उसने इसके लिए आवेदन दिया था लेकिन इसे रद्द कर दिया गया क्योंकि प्रारम्भिक जाँच में सामने आया कि वह ईसाई है और उसका बाप्तिसमा भी हुआ है।

दलित ना होने का जाति प्रमाण पत्र आवेदन रद्द किए जाने के बाद सेल्वारानी मद्रास हाई कोर्ट पहुँच गई। इसके बाद हाई कोर्ट ने मामले में जाँच करके फैसला लेने को जिला प्रशासन से कहा। जिला प्रशासन ने इसके बाद जाँच की और फिर से उसके दलित होने के दावे को खारिज कर दिया। आदेश में कहा गया कि ना ही वह हिन्दू है और ना ही बौद्ध या सिख।

इसके बाद सेल्वारानी केन्द्रीय प्रशासनिक अधिकरण (CAT) पहुँच गई। यहाँ से उसने एक जिस नौकरी में आवेदन किया था, उसके लिए एक पद खाली रखवा लिया। वह हाई कोर्ट दोबारा पहुँची लेकिन उसे कोई राहत नहीं मिली। इसके बाद दलित होने का प्रमाण पत्र लेने की लड़ाई सुप्रीम कोर्ट आ गई।

सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ?

सुप्रीम कोर्ट में सेल्वारानी ने दावा किया कि वह हिन्दू पैदा हुई थी और तब से हिन्दू धर्म में विश्वास रखती है। उसने दावा किया कि वह मंदिरों में भी जाती है और हिन्दू देवी-देवताओं की पूजा करती है। उसने यह दावा किया कि उसकी माँ एक ईसाई थी और पिता हिन्दू थे। उसने दावा किया उसकी माँ शादी के बाद हिन्दू बन गई थी।

इसके अलावा उसने अपने परिजनों के जाति प्रमाण पत्र भी दिखा दिए। उसने यह भी दावा किया कि उसका बाप्तिसमा तब हुआ था जब वह 3 महीने की थी इसलिए वह ईसाई नहीं बन जाती। उसने साथ ही में यह भी बताया गया कि अपनी पूरी शिक्षा भी उसने दलित होने के आरक्षण का लाभ लेते हुए पूरी की है, इसलिए अब नौकरी में भी उसे आरक्षण मिलना चाहिए।

वहीं इस मामले में जाति प्रमाण पत्र देने का विरोध कर रहे जिला प्रशासन ने बताया कि सेल्वारानी के आवेदन के बाद की गई जाँच में सामने आया था कि उसका पिटा एक धर्मांतरित ईसाई है। इसके अलावा जन्म के तीन महीने बाद ही सेल्वारानी का भी ईसाइयत में बाप्तिसमा करवा दिया गया था। इसका रिकॉर्ड भी है।

इस मामले में गाँव वालों से भी जानकारी माँगी गई। सेल्वारानी के ही गाँव के एक व्यक्ति ने अबूत के साथ बताया कि सेल्वारानी ईसाई है और उसके माता-पिता की शादी भी चर्च में हुई थी। इस बात की तस्दीक सेल्वारानी के गाँव के और भी चार लोगों ने की। जिला प्रशासन ने कहा कि ऐसे में सेल्वारानी को जाति प्रमाण पत्र ना दिया जाना ठीक था।

फैसले में कोर्ट ने क्या कहा?

सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद कहा कि रिकॉर्ड दिखाते हैं कि भले ही सेल्वारानी ने खुद के ईसाई ना होने और हिन्दू धर्म मानने का दावा किया हो लेकिन अगर ऐसा होता तो वह मात्र बयान नहीं देती बल्कि कुछ सही में करती।

कोर्ट ने कहा, ” वह सिर्फ यह दावा नहीं कर सकती कि उसके पिता ने पुनः धर्म परिवर्तन कर लिया है और उसने और उसकी माँ ने भी धर्म परिवर्तन कर लिया है। सेल्वारानी और उसके परिवार ने यदि सही में धर्म परिवर्तन करने का इरादा किया था, तो उन्हें हिंदू धर्म में मानने के लिए दिखावा करने के बजाय इसे सही दर्शाने के लिए कुछ पक्का काम करना चाहिए था।”

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि मान लिया जाए कि सेल्वारानी की माँ हिन्दू बन गई थी तो फिर उसने अपने बच्चों का बाप्तिसमा क्यों करवाया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “इस मामले में, सेल्वारानी जन्म से ईसाई थी और उसे किसी भी जाति से नहीं जोड़ा जा सकता। किसी भी मामले में, ईसाई धर्म में धर्मांतरण करने पर, व्यक्ति अपनी जाति खो देता है।”

कोर्ट ने धर्मांतरण को लेकर कहा, “कोई व्यक्ति किसी दूसरे धर्म में तभी धर्मांतरित होता है, जब वह वास्तव में उसके सिद्धांतों और आध्यात्मिक विचारों से प्रेरित होता है। हालाँकि, यदि धर्मांतरण का उद्देश्य केवल आरक्षण का फायदा लेना है। लेकिन अगर दूसरे धर्म में कोई विश्वास सही में नहीं है, तो इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती।”

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर ऐसा फायदा दिया गया तो आरक्षण के पूरे उद्देश्य को ही खत्म कर देगा। कोर्ट ने कहा कि सबूत साफ़ तौर पर दिखाते हैं कि सेल्वारानी ईसाई धर्म को मानती है और नियमित रूप से चर्च में जाकर इस धर्म का सक्रिय रूप से पालन करती है। कोर्ट ने कहा कि इसके बावजूद वह हिंदू होने का दावा करती है और रोजगार के उद्देश्य से अनुसूचित जाति समुदाय का प्रमाण पत्र चाहती है। कोर्ट ने कहा कि यदि उसे आरक्षण का फायदा दिया गया तो यह संविधान के साथ धोखाधड़ी होगी।

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

ऑपइंडिया स्टाफ़
ऑपइंडिया स्टाफ़http://www.opindia.in
कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

संभल हिंसा में मुस्लिम महिलाओं के 3 प्लान: (i) दंगाइयों की रक्षा (ii) पुलिस को निष्क्रिय करना (iii) पत्थर-बोतलें फेंकना – रुकैया, फरमाना, नजराना...

संभल हिंसा के साजिशकर्ताओं ने मुस्लिम महिलाओं को समझाया था कि जब पुलिस पत्थरबाजों का पीछा करे, तब वो सामने खड़ी हो जाएँ।

मस्जिद-कब्रिस्तान की जमीन भले ही प्रयोग में नहीं, लेकिन वो रहेगी हमेशा मुस्लिमों की: पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट, वक्फ के खिलाफ दायर याचिका खारिज

जिस जमीन पर मस्जिद-कब्रिस्तान बना दी गई, उसे कपूरथला के राजा जगतजीत सिंह ने 1922 में निक्के और सलामत शाह को दान में दी थी।
- विज्ञापन -